– असली-नक़ली डायमंड की कालाबाज़ारी के खेल में पड़े हैं बड़े-बड़े माफ़िया, अपराधी और जौहरी
दुनिया में आजकल हर महँगी-से-महँगी और सस्ती-से-सस्ती चीज़ की कालाबाज़ारी होने लगी है। सोने-चाँदी, हीरे-जवाहरात से लेकर कोयला तक की कालाबाज़ारी में कई धन्ना सेठ और हमारे नेता घुसे हुए हैं। जिस दिन कालाबाज़ारी का असली सच सामने आ गया ना! कई भोले-भाले से दिखने वाले चेहरों के नक़ाब उतरेंगे और वो साफ़-साफ़ भयंकर पापी नज़र आएँगे। ऐसा नहीं है कि इन बड़े चेहरों की सच्चाई सबसे छुपी है; पर जिन्हें इनकी काली सच्चाई मालूम है, वो उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते, क्योंकि पैसा और पॉवर इन पापियों को न सिर्फ़ बचा रहे हैं, बल्कि इनके घिनौने चेहरे पर गुलाबों जैसी ख़ुशबू, भोलापन और अच्छे इंसान की छवि का नक़ाब भी डाले हुए हैं।
कालाबाज़ारी असली चीज़ों की भी होती है और नक़ली चीज़ों की भी होती है। दुनिया में दोनों ही चीज़ों की कालाबाज़ारी का बहुत बड़ा बाज़ार है, जिसमें सब कुछ दलालों, माफ़ियाओं, गुंडों, नेताओं और अंडरवर्ल्ड के ज़रिये हैंडिल होता है। एक तरफ़ दिन भर मेहनत करने वाला मज़दूर और नौकर पेट पालने में हाँफ जाता है, तो दूसरी तरफ़ ये नक़ली चोर लोग ख़ाली बैठे-बैठे फोन की घंटी बजाकर करोड़ों से अरबों रुपये एक झटके में कमा लेते हैं। असली चीज़ों से बड़ा कारोबार नक़ली चीज़ों का है, क्योंकि नक़ली चीज़ें असली चीज़ों से भी अच्छी दिखती हैं। ऐसे में जो दुनिया के ज़्यादातर लोग समझ नहीं पाते हैं कि असली क्या है और नक़ली क्या है, वो ठगे ही जाते हैं। दो साल पहले ही जयपुर में एक अमेरिकी महिला ने एक ज्वेलर से छ: करोड़ रुपये का डायमंड (हीरा) ख़रीद लिया। जब उसने इसकी जाँच करायी, तो उसके तोते उड़ गये, क्योंकि डायमंड तो महज़ 300 रुपये का ही था। पर ज्वेलर और उसके बेटे ने अमेरिकी महिला को वो नक़ली डायमंड असली बताकर 5,99,99,400 रुपये का मुनाफ़े में बेच दिया। ज्वेलर ने अमेरिकी महिला को विश्वास में लेने के लिए हॉलमार्क सर्टिफिकेट भी दिया था। जब महिला अपने वतन अमेरिका लौटी, तो उसने हीरे की जाँच करायी और वह सहम गयी, क्योंकि उसके हाथ में छ: करोड़ का नहीं, बल्कि 300 रुपये का हीरा था। यह तो एक छोटी-सी ठगी की दास्तान है। पर हमारे यहाँ तो ऐसे ठगों की कोई कमी ही नहीं है, जो 24 घंटे इसी धंधे में लगे हैं। ठगी और कालाबाज़ारी का खेल बिना पुलिस की मिलीभगत के नहीं चलता है और पुलिस बड़ी ताक़तों के सहयोग के बिना ये सब नहीं करती है।
नक़ली डायमंड और असली डायमंड की कालाबाज़ारी ने असली डायमंड और ईमानदार व्यापारियों के कारोबार को कमज़ोर किया है। नक़ली डायमंड को सीवीडी कहा जाता है, जो लैब में तैयार होते हैं। नक़ली डायमंड की सुरक्षा में भी कम पैसा ख़र्च होता है। असली डायमंड को सिक्योरिटी के अलावा कार्बन चेंबर में रखना पड़ता है, जिसमें प्लाज्मा की ज़रूरत पड़ती है और इसके चैंबर में ऊर्जा और दबाव रखना पड़ता है, जिसके लिए बहुत ख़र्चा आता है। पर नक़ली डायमंड को न चोरी का बहुत डर है और न उसे कार्बन चेंबर और उसमें लगने वाले ख़र्च की ज़रूरत होती है। इतने पर भी नक़ली डायमंड असली डायमंड से ज़्यादा चमकदार हो सकता है, इतना चमकदार कि छोटे-मोटे पारखी भी धोखा खा जाएँ। असली डायमंड और नक़ली डायमंड की क़ीमत में 20 गुना अंतर होता है; पर डायमंड की कालाबाज़ारी करने वाले कई बार नक़ली डायमंड को असली डायमंड की क़ीमत में बेच देते हैं। पिछले कुछ वर्षों में नक़ली डायमंड का कारोबार इतना बढ़ा है कि असली डायमंड की क़ीमतों में 25 प्रतिशत से ज़्यादा की गिरावट आ गयी है। खुले बाज़ारों में ही नक़ली डायमंड की बिक्री 40 प्रतिशत हो रही है। दूसरे नक़ली जेम्स का बाज़ार तो 65 प्रतिशत तक पहुँच चुका है। कालाबाज़ारी में भी नक़ली डायमंड और जेम्स असली डायमंड और जेम्स को टक्कर दे रहे हैं।
दुनिया का सबसे बड़ा हीरा बोर्स भारत डायमंड बोर्स (बीडीबी) है. जो कि मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में है। अकेला बीडीबी देश के डायमंड निर्यात बाज़ार का 98 प्रतिशत डायमंड निर्यात करता है। दूसरा डायमंड निर्यात का केंद्र गुजरात के सूरत में स्थित सूरत डायमंड बोर्स (एसडीबी) है। पर दोनों ही डायमंड निर्यात केंद्रों पर दलालों, ठगों, माफ़िया और अपराधियों का जमावड़ा रहता है और ये लोग सरकार, क़ानून और पुलिस से डरे बिना डायमंड की कालाबाज़ारी कर रहे हैं। हमारे गुप्त सूत्रों से पता चला है कि बीडीबी और एसडीबी से 30 प्रतिशत कालाबाज़ारी डायमंड की होती है और कई सफ़ेदपोश इस खेल में शामिल हैं। इन बाज़ारों पर अंडरवर्ल्ड से लेकर मुंबई के बड़े-बड़े कारोबारी और माफ़िया जुड़े हुए हैं। अगर ईमानदार अफ़सर सही जाँच करें, तो कई भोले-भाले चेहरों के नक़ाब उतर जाएँगे और क़ानूनी तरीक़े से डायमंड व्यापार बढ़ जाएगा, जिससे सरकारी ख़ज़ाने में और पैसा आएगा, जिससे जनता की सेवा हो सकेगी।
दुनिया का सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला बाज़ार भारत में ही डायमंड का है; पर कुछ लोग अच्छे डायमंड कारोबारी का नक़ाब ओढ़कर न सिर्फ़ नक़ली डायमंड का धंधा कर रहे हैं, बल्कि डायमंड की कालाबाज़ारी भी बड़े पैमाने पर धड़ल्ले से कर रहे हैं। 2021 में डायमंड के गहनों का बाज़ार सिर्फ़ हमारे देश में 4.6 बिलियन डॉलर का हुआ था। पर 2022 में इसमें आठ प्रतिशत का उछाल आया और डायमंड से सजे गहनों की बिक्री 5 बिलियन डॉलर से ज़्यादा हुई। 2022 में ख़ाली डायमंड का बाज़ार 65.8 बिलियन डॉलर का रहा। डायमंड कारोबारियों और सरकार का अनुमान है कि 2027 तक भारतीय डायमंड का कारोबार 85.8 बिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है। पॉलिश किये हुए तैयार डायमंड की 80 प्रतिशत आपूर्ति अकेले सूरत से होती है। इस अकेले शहर में गुजरात के 90 प्रतिशत डायमंड की कटिंग और पॉलिश होती है। डायमंड की पैदाइश की बात करें, तो मध्य प्रदेश के पन्ना शहर को हीरों का शहर कहा जाता है। हमें गर्व है कि कोहिनूर हमारे देश का है और जब तक ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका में डायमंड नहीं मिलते थे, तब तक भारत ही दुनिया का अकेला डायमंड पैदा करने वाला देश रहा। आज हमारा देश डायमंड का देश और सोने की चिड़िया भले ही नहीं रहा, जिसके पीछे भी बड़ी लूट ही है; पर हम और हमारी सरकारें ईमानदारी से पेश आएँ, तो भारत सोने और हीरे की चिड़िया फिर से बन सकता है।
पर कई लोग ऐसा नहीं चाहते और भारत की छवि को कालाबाज़ारी से कलंकित करते रहते हैं। ऐसे देशद्रोही अपराधियों को तो सलाखों के पीछे होना ही चाहिए; पर कई अपराधी कारोबारी और ईमानदार अमीरों के भेष में हैं, तो कई अपराधी खादी में लिपटे हैं। बिना ख़ुफ़िया बड़ी जाँच के इन सबकी पहचान कर पाना संभव ही नहीं है। अब देखिए ना! नीरव मोदी जैसे कई डायमंड व्यापारी तो देश का पैसा लेकर भी विदेश भाग चुके हैं, जो विदेशों से कालाबाज़ारी का खेल भी कर रहे हैं। डायमंड और जेम्स की कालाबाज़ारी का जाल गुजरात से लेकर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बाज़ारों में पनप रहा है। छत्तीसगढ़, झारखण्ड में कोयले की खदानों से हीरे निकलते हैं, तो मध्य प्रदेश में छत्रसाल से पन्ना निकलता है। पर इनकी न$क्क़ाशी, पॉलिश और दुनिया के बाज़ारों में इन्हें पहुँचाने का काम सबसे ज़्यादा गुजरात के सूरत से होता है। असली डायमंड और जेम्स की कालाबाज़ारी के अलावा नक़ली डायमंड और जेम्स की कालाबाज़ारी भी कई बड़े बाज़ारों से होती है। शासन-प्रशासन में बेईमानों की तादाद इतनी बड़ी है कि बाज़ारों में दलालों, ठगों, तस्करों, माफ़ियाओं और गुंडों के हिसाब से सब कुछ तय होता है। डायमंड और जेम्स की नीलामी भी इन बाज़ारों में इन सबकी मनमर्ज़ी से हेती है। कालाबाज़ारी में डायमंड और जेम्स का बाज़ार बहुत बड़ा हो चुका है। एक तरफ़ कालाबाज़ारी से अपराधी लोग, भ्रष्ट अधिकारी और इन सबके सरगना नेता मोटी कमायी करके अपनी तिजौरियाँ भर रहे हैं, तो दूसरी तरफ़ इस कालाबाज़ारी से सरकार को राजस्व का बहुत बड़ा नुक़सान हर साल होता है। हैरानी इस बात की है कि हमारी सरकाार का इस तरफ़ ध्यान ही नहीं है। होगा भी कैसे? सरकार कोई ईमानदार डिटेक्टिव रोबोट तो है नहीं, जो सिर्फ़ बटन दबाने से बिना किसी भेदभाव के कालाबाज़ारियों का सफ़ाया कर देगी। उसे भी तो खादी पहने हुए नक़ली चेहरों पर भोली-भाली सूरत का नक़ाब ओढ़ने वाले मासूम दिखने वाले समाजसेवी और देशभक्त जैसे दिखने वाले चेहरों वाले ही चलाते हैं। ये सफ़ेदपोश अगर काले धंधे वालों से मिलकर चलते हैं, तो काली कमायी में मोटी हिस्सेदारी इन्हें मिलती है और अगर ये उनसे मिलकर नहीं चलेंगे, तो एक ही शर्त पर ज़िन्दा रहेंगे कि बिना कार्रवाई के ख़ामोशी से बैठे रहें। ऐसा न करने पर क्या होगा? यह बताने की ज़रूरत नहीं है; क्योंकि यह सब जानते हैं।
हम आम लोग इसी में ख़ुश रह लेते हैं कि कोहिनूर हमारा है और अंग्रेज इसे चुराकर ले गये। पर हमें यह नहीं मालूम पड़ता है कि हमारी नाक के नीचे कई ऐसे चोर हैं, जो हमें ठगने के लिए कोहिनूर की चमक जैसा मायाजाल बिछाकर बैठे हैं। डायमंड और जेम्स लेने की इच्छा रखने वाले इनके जाल में आसानी से फँस जाते हैं। बचके रहना रे बाबा! कहीं आप भी इन कालाबाज़ारियों के जाल में न फँस जाना।