इन दिनों जब पूरी दुनिया मधुमेह दिवस यानी डायबिटीज-डे मना रही है, तब भी जाने कितने लोग ऐसे हैं, जिन्हें यह भी नहीं पता कि अगर उन्हें डायबिटीज है, तो यह उनके लिए कितनी घातक है। आज यह बीमारी भारत में तेज़ी से पैर पसार रही है। इस बड़ी स्वास्थ्य चुनौती को लेकर अब भी तैयारियों और परिस्थितियों की समीक्षा करने का भी समय है। हमें सोचना यह होगा कि इस बीमारी से बचने के लिए क्या हमने दीर्घकालिक उपाय किए हैं? खासकर जब यह आशंका है कि भारत में वर्ष 2030 तक लगभग 10 करोड़ लोग इस साइलेंट किलर के शिकार हो चुके होंगे।
हालाँकि, संतोष की बात यह है कि लगातार लोग और साथ ही सरकार भी जीवनशैली को लेकर जागरूक हो रहे हैं और साथ ही कई मामलों में आयुर्वेद जैसी पारम्परिक चिकित्सा पद्धति को आधुनिक एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के पूरक और वैकल्पिक पद्धति के तौर पर स्वीकार किया जा रहा है। खासतौर पर डायबिटीज के टाइप-2 मरीज़ों के इलाज में यह बहुत प्रभावी हो रहा है।
जहाँ सरकार देश-भर में वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति को बड़े स्तर पर बढ़ावा दे रही है, वहीं विभिन्न सरकारी अनुसन्धान एजेंसियाँ भी आयुर्वेद और चिकित्सकीय जड़ी-बूटियों के आधार पर आधुनिक दवाएँ विकसित करने पर ज़ोर दे रही हैं। जिन बीमारियों में एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति प्रभावी साबित नहीं हो पा रही है, उनके लिए आयुर्वेदिक दवाओं को विकसित करने पर ये विशेष ध्यान दे रही हैं।
इन्हीं में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) की दो प्रयोगशालाएँ राष्ट्रीय वानस्पतिक अनुसन्धान संस्थान (एनबीआरआई) और केंद्रीय औषधीय और सुगन्धित पादप संस्थान (सीआईएएमपी) का ताज़ा प्रयास भी शामिल है। इन दोनों ने अपने साझा प्रयास से बीजीआर-34 नाम की मधुमेह में प्रभावी आयुर्वेदिक दवा विकसित की है। इसे टाइप-2 मधुमेह के प्रबन्धन में प्रभावी पाया गया है। आयुर्वेदिक फार्मूले से बनी इस आधुनिक दवा के प्रभाव को वैज्ञानिक आकलन के आधार पर प्रमाणित किया जा चुका है। इस बीमारी के गम्भीर मरीज़ों के इलाज में इस दवा को पूरक औषधि के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इस दवा को ऐसे मरीज़ों पर बहुत प्रभावी पाया गया है।
एनबीआरआई के पूर्व वैज्ञानिक एकेएस रावत कहते हैं- ‘यह दवा बहुत से औषधीय पादपों से तैयार की गयी है। इनमें गिलोय, मेथी, दारूहरिद्रा, विजयसार, मजीठ, मेठिका और गुड़मार शामिल हैं। ये मधुमेह का प्रभाव कम करने वाले माने गये हैं और रक्त में सर्करा की मात्रा को संतुलित करते हैं। विभिन्न अध्ययनों से साबित हुआ है कि इनसे रक्त सर्करा का प्रबन्धन और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है।’
‘ट्रेडिशनल एंड कंप्लीमेंट्री मेडिसीन’ नाम के अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक शोध प्रकाशन में प्रकाशित अध्ययन में भी बीजीआर- 34 को मधुमेह के मरीज़ों में हृदयाघात के खतरे को 50 फीसदी तक कम करने के लिए प्रभावी पाया गया है।
मधुमेह जीवनशैली से जुड़ी दुनिया की सबसे प्रमुख समस्याओं में शामिल है और भारत में भी बदलती जीवन शैली की वजह से इसका खतरा तेज़ी से बढ़ रहा है।
सरकार ने अपने स्तर पर सरकारी अस्पतालों में आयुर्वेद और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों को बड़े स्तर पर उतारने की योजना बनायी है। पिछले दिनों केंद्रीय आयुष मंत्री श्रीपाद नाईक ने भी देश के हर ज़िाले में आयुर्वेदिक अस्पताल शुरू करने की घोषणा की है।