भारत 2020 में सबसे युवा देश होगा, क्योंकि यहाँ अनुमान के मुताबिक दुनिया की 65 फीसदी आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है। सबसे ज़्यादा युवा आबादी होने के बावजूद देश की जनसांख्यिकीय विभाजन के आधार पर देखें, तो शिक्षा, कौशल की कमी के चलते देश में बेरोज़गारी तेज़ी से बढ़ रही है। उदाहरण के तौर पर रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड (आरआरबी) की निकाली नौकरी के विज्ञापन से समझा जा सकता है। इसमें 35000 नॉन टेक्निकल के लिए विज्ञापन निकाला गया था, जिममें ग्रेजुएट और अंडर ग्रेजुएट कैटेगरी वालों के लिए मौके थे और ग्रुप-डी में एक लाख माके थे, जिनको सितंबर 2019 में पूरा किया जाना था, लेकिन अब तक इनको भरा नहीं जा सका है। ये सभी पद अब भी लम्बित हैं। बता दें कि इन दोनों परीक्षाओं के लिए आवेदन करने वालों की कुल अभ्यर्थियों संख्या 2.41 करोड़ है। देश में सरकार के पास कामगारों की कमी और आवेदन करने वालों की बड़ी तादाद से बेरोज़गारी का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। अब देश का युवा बेचैन हो रहा है और सड़कों पर उतरकर वह आक्रोश भी व्यक्त करने लगा है।
इस दौरान सरकार ने रेलवे मंत्रालय में निवेदन करने वाले अभ्यर्थियों से 1000 करोड़ रुपये जुटाये, जो सामान्य श्रेणी से 500 रुपये, आरक्षित श्रेणी से 250 रुपये आवेदन शुल्क के तौर पर लिए गये। इसमें सरकार को लगभग कुल मिलाकर 1,000 करोड़ की कमाई हुई। यह केंद्र सरकार के रूखेपन की स्थिति खेदजनक है। हालात केवल यही नहीं हैं कि महज़ पैसा लिया जा रहा है, बल्कि आवेदन करने वालों में बड़ी संख्या में पीएचड़ी, एमबीए, स्नातक अन्य डिग्री हासिल करने वाले बेरोज़गार शामिल हैं। श्रम विभाग के हाल के आँकड़ों पर नज़र डाले, तो वर्तमान में देश में बेरोज़गारी दर 6.1 फीसदी है, जो पिछले 45 वर्षों की तुलना में सबसे ज़्यादा है। कुल मिलाकर वर्तमान में देश में 10 करोड़ लोग (युवा) बेरोज़गार हैं। ऐसा लगता है सरकार लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में अपनी जवाबदेही से बच रही है। वह युवाओं के लिए जो मौके हैं, उनकी भरपाई नहीं कर रही है। वर्तमान में केंद्र सरकार के 22 लाख से अधिक पद रिक्त हैं। इतनी बड़ी तादाद में खाली पदों को भरने के लिए केंद्र के साथ ही राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की हालत भी बहुत अच्छी नहीं है। आर्थिक मंदी के इस दौर में कृषि संकट, चौतरफा विभाजन की राजनीति, बहिष्कार, साम्प्रदायिकता की राजनीति, समाज से निष्कासित लोग और उग्र राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे हावी हैं। ऐसी परिस्थिति में सबका विकास (सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास) की राजनीति के आगे राष्ट्रवाद का लेप चढ़ा दिया जाता है, जिससे लोगों में भय, असुरक्षा और असंतोष पनप रहा है। इससे बेरोज़गारी बढऩे के साथ ही लोगों में सामाजिक दूरियाँ भी बढऩे लगी हैं, जिन्हें अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता।
देश के वर्तमान हालात के नज़रिये से देखें, तो नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को लेकर विरोध-प्रदर्शन और नाराज़गी चल रही है। इस विरोध को एनडीए सरकार के सामाजिक विभाजन करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है, जिसमें लोगों को धार्मिक आधार बाँटने की कोशिश करार दिया जा रहा है। एनआरसी पर एनडीए सरकार ने साम्प्रदायिक आधार पर वोटों के लिए ध्रवीकरण की कोशिश की है। धार्मिक समुदाय को निशाना बनाकर भाजपा शासित राज्यों में विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक सम्पत्ति को नष्ट करने के लिए दमनकारी पुलिस बल प्रयोग के िखलाफ भी लोगों का गुस्सा उबाल पर है। भारत के सभी धर्मों और वर्ग के लिए इस दमनकारी कार्रवाई के िखलाफ खुलकर नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए सड़क पर उतर रहे हैं। लोग सरकार की ओर से की गयी कार्रवाई और कानून का विरोध कर रहे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि इन प्रदर्शनों में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा, राष्ट्रीयगान, भारत के संविधान की प्रस्तावना को एक साथ मिलकर युवाओं के बीच पढ़ते सुना जा सकता है। संविधान की प्रस्तावना के तहत नागरिकों के लिए समानता का अधिकार, आपसी भाईचारा, न्याय की माँग कर रहे हैं। लोकतांत्रिक तरीके को अपनाते हुए विविधता में एकता ही भारत की आत्मा है। यदि सरकार जनता की भावनाओं पर ध्यान नहीं देती है, तो राष्ट्र की एकता खतरे में पड़ सकती है। इस प्रकार भारत में एक व्यक्ति के शासन को समाप्त करने का विकल्प शुरू हो जाएगा।