घर के नज़दीक पार्क में सुबह-शाम सैर करने वालों की अलग-अलग टोलियों के आपसी संवाद के दो-तीन विषय सामान्य होते हैं- राजनीति, शेयर बाज़ार और मोटापा। पार्क के दो-तीन फेरे लगाने के बाद बेंच पर आराम फ़रमाने वाले ये लोग अक्सर अपने या घर के किसी अन्य सदस्य के बढ़े हुए वज़न को क़ाबू करने के तरीक़ों के बारे में एक-दूसरे से सवाल-जवाब करते नज़र आ जाते हैं। दरअसल ऐसे दृश्य किसी ख़ास पार्क, जिम या योगा केंद्र तक ही सीमित नहीं हैं। दुनिया में करोड़ों लोग मोटापे की विकट समस्या से जूझ रहे हैं। यही वजह है कि मोटापे को कम करने वाला धन्धा अरबों रुपये का हो चुका है। दुनिया में जैसे-जैसे मोटे लोगों की संख्या बढ़ेगी, वैसे-वैसे इस धन्धे का भी और अधिक विस्तार होगा।
मोटापा कई देशों की समस्या
इस समय दुनिया में 80 करोड़ से अधिक लोग मोटे हैं। विश्व मोटापा संघ के अनुसार, वर्ष 2030 तक दुनिया भर में एक अरब से अधिक लोग मोटापे की चपेट में होंगे। इस महासंघ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सात करोड़ वयस्क मोटे लोगों की श्रेणी में आ जाएँगे। ध्यान देने वाली बात यह है कि 2010 में यह संख्या क़रीब दो करोड़ थी। भारत में बच्चों में मोटापा भी एक गम्भीर समस्या का रूप ले चुका है। मोटापे के बारे में अक्सर यह सोचा जाता है कि अधिक खाने से वज़न बढ़ता है; लिहाज़ा यह समस्या अमीर लोगों की हो सकती है। लेकिन ऐसी कोई रूढ़ धारणा बनाने से पहले यह जानना भी ज़रूरी है कि आधुनिक जीवनशैली, अस्वस्थकारी खानपान आदि कई कारक इसके लिए ज़िम्मेदार हैं। दुनिया के 50 फ़ीसदी मोटे पुरुष भारत, अमेरिका समेत नौ देशों में और 50 फ़ीसदी मोटी महिलाएँ अमेरिका, भारत, चीन, पाकिस्तान समेत 11 देशों में पायी जाती हैं। हैरान करने वाला तथ्य यह भी है कि दुनिया के कुल मोटे बच्चों में से 75 फ़ीसदी बच्चे निम्न आय वाले देशों में पाये जाते हैं।
मोटापे से होने वाले रोग
अधिक वज़न / मोटापा व्यक्ति के शरीर में असामान्य या अधिक वसा के होने से होता है, जो स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। यह जोड़ों में दर्द, माँसपेशियों में दर्द, उच्च रक्तचाप, थायराइड, शुगर पैदा करने के अलावा हृदय, लीवर, किडनी और प्रजनन प्रणाली को ख़राब करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन यह भी कहता है कि मोटापे से टाइप-2 मधुमेह, हो वयघात, उच्च रक्तचाप, कई तरह के कैंसर, मानसिक रोग, चर्म रोग, मस्तिष्काघात, हृदयाघात आदि हो सकते हैं। कई अध्ययन यह भी दर्शाते हैं कि मोटे लोगों को अगर कोरोना वायरस का संक्रमण हो जाता है, तो उनके अन्य लोगों की तुलना में अस्पताल में भर्ती होने की सम्भावना तीन गुना अधिक हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह भी मानना है कि दुनिया भर के देशों को मोटापे के संकट से निपटने के लिए तेज़ी से कार्रवाई करने वाली योजनाएँ बनानी चाहिए, जिन पर गम्भीरता से अमल भी करना होगा। दरअसल इस समस्या से राष्ट्र सरकारों व लोगों को आगाह करने के मक़सद से विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर विश्व मोटापा महासंघ 11 अक्टूबर, 2015 से विश्व मोटापा दिवस मना रहा है। यह दिवस मोटापा के बारे में जागरूकता फैलाने और इसके उन्मूलन की दिशा में कार्रवाई को प्रोत्साहित करने, लोगों का ध्यान स्वस्थ वज़न की अहमियत की ओर खींचने के लिए आयोजित किया जाता है, जिसके तहत मोटापा कम करने की दिशा में उठाये जा रहे वैश्विक प्रयासों का संचालन व नेतृत्व होता है। सन् 2020 से विश्व मोटापा दिवस हर वर्ष 4 मार्च को मनाया जाता है और 2022 की थीम ‘एवरीबॅडी नीड्स टू एक्ट’ है।
शारीरिक श्रम की ज़रूरत
अधिक वज़न / मोटापे की मुख्य कारणों में से अधिक वसा वाला भोजन करना भी है। इसके साथ ही कम व्यायाम करना व ऐसी ज़िन्दगी जीना, जिसमें निष्क्रियता हावी हो। शारीरिक गतिविधि कम होना भी इसका कारण हो सकता है। लोगों में होम डिलीवरी का रुझान बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ ऑर्डर देने के 10 मिनट के भीतर घर का सामान पहुँचाने के विज्ञापनों पर करोड़ों रुपये ख़र्च करती हैं। लोग भी होम डिलीवरी के विकल्प को तरजीह देने लगे हैं। घर बैठे ही दूध, सब्ज़ियाँ, फल, आटा, चावल, दालें आदि मँगवाने लगे हैं। यही नहीं अगर किसी कारणवश घर के आसपास निकलना भी पड़ता है, तो कार या स्कूटर आदि का इस्तेमाल करते हैं। पैदल चलना/साइकिल चलाने का मतलब अपने आर्थिक व सामाजिक हैसियत को कम करने से जोड़ लिया गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि मोटापा स्वास्थ्य संकटों में से एक है और इसके उन्मूलन के लिए ख़ुराक में बदलाव के साथ व्यायाम पर भी ज़ोर देने की ज़रूरत है। यह संगठन शहरों व गाँवों में आमजन के लिए सुरक्षित पैदल चलने व साइकिल के लिए अलग से जगह बनाने पर भी ज़ोर देता है। विदेशों में तो सड़क निर्माण व ग्रामीण और शहरी योजनाओं को बनाते वक़्त इस पर ध्यान दिया जाता है। लेकिन जहाँ तक भारत में इस दिशा में सन्तोषजनक प्रगति नहीं हुई है। महानगरों में कहीं-कहीं अलग से पैदल व साइकिल चलाने वालों के लिए लेन तो बना दी गयी हैं; लेकिन वो वीरान नज़र आती हैं या उन पर मोटरसाइकिल सवार दौड़ते हैं, या उन्हें दुकानदारों और रेहड़ी-पटरी वालों और वाहन खड़े करने वालों ने घेर लिया है, जिसके चलते पैदल यात्रियों को चलने में दिक़्क़त होती है। यूरोपीय देशों में हरी बत्ती होने पर पहले सड़क पार करने का हक़ पैदल चलने वालों व साइकिल चलाने वालों का होता हैं। लेकिन यहाँ उन्हें किस नज़र से देखा जाता है, हर कोई इससे वाक़्किफ है। सरकार को मोटापे की समस्या से निपटने के लिए इस पहलू पर भी ध्यान देना होगा।
असन्तुलित आहार
असन्तुलित आहार, $खराब जीवनशैली व स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने वाली खाद्य सामग्री का सेवन इंसान को मोटा बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। अब विश्व में इस बात पर ज़ोर दिया जाने लगा है कि पैकेट बन्द खाद्य सामग्री पर हेल्थ स्टार रेटिंग होनी चाहिए। हेल्थ स्टार रेटिंग पैकेट बन्द खाने में शामिल नमक, चीनी और वसा की मात्रा के आधार पर दी जाती है। अभी ब्रिटेन, चिली, मैक्सिको, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया में यह प्रणाली लागू है। भारत जो कि दुनिया में आबादी के आँकड़ों में दूसरे नंबर पर है, वहाँ जीवनशैली से जुड़ी बीमारियाँ बहुत हैं। लिहाज़ा यहाँ भी रेटिंग प्रणाली को लागू करने की बहुत ज़रूरत है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण इस दिशा में काम कर रहा है। इसका एक मक़सद उपभोक्ताओं को स्वस्थ भोजन के प्रति जागरूक करना है। यह हेल्थ स्टार रेटिंग पैकेट बन्द खाने में शामिल नमक, चीनी और वसा की मात्रा के आधार पर दी जाएगी और पैकेट के सामने वाले हिस्से पर प्रकाशित होगी, ताकि ख़रीदार पहले उसे पढ़ सकें व उसके बाद सोच-समझकर फ़ैसला लें कि यह उनके लिए कितनी सेहतमंद या नुक़सानदायक साबित होगी?
फ्रंट ऑफ पैकेजिंग लेबलिंग को लेकर भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण नयी नीति बना रहा है। भारतीय प्रबन्धन संस्थान, अहमदाबाद की पैकेट बन्द और प्रसंस्कृत खाद्य सामग्री पर सामने के हिस्से में प्रकाशन के प्रभाव से जुड़ी रिपोर्ट के आधार पर यह करने का फ़ैसला लिया गया है। सरकार इस सन्दर्भ में मसौदा विनियमन तैयार कर रही है और उधर भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने इस बाबत उद्योग संगठनों से प्रतिक्रिया भी माँगी है। इनका वैज्ञानिक पैनल के ज़रिये मूल्यांकन कराया जाएगा, ताकि सरकार की ओर से तैयार हो रहे मसौदे में उन्हें भी शामिल किया जाए। कोरोना महामारी से पूर्व एक उच्च स्तरीय संस्था में इस बिन्दु पर भी चर्चा हुई थी कि स्कूली बच्चों के नज़दीक पैकेट बन्द खाद्य सामग्री की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। लेकिन अभी तक ऐसी कोई पहल दिखायी नहीं देती। भारत में साल 2030 तक मोटे बच्चों व किशोरों की संख्या क़रीब 2.70 करोड़ होगी। जंक फूड से निजात दिलाने के लिए राजनीतिक प्रतिबद्धता की ज़रूरत है। अस्वस्थकारी खाद्य सामग्री के विज्ञापन व विपणन पर नियंत्रण होना बहुत ज़रूरी है।
कई अभिनेता ऐसे विज्ञापनों के ज़रिये अपनी ब्रांड वैल्यू बढ़ाकर करोड़ों रुपये कमा रहे हैं और बच्चे, किशोर व आमजन उनका अनुसरण करते हुए वही पैकेट ख़रीदते हैं। ख़राब खानपान से निजात दिलाना बहुत ज़रूरी है। बदलते वक़्त के साथ ख़राब खानपान देश में 60 फ़ीसदी अकाल मौतों की वजह बन सकता है। इसी के मद्देनज़र तेलगांना के राष्ट्रीय पोषण संस्थान ने खानपान के तौर-तरीक़ों का नया मसौदा तैयार करने की बात कही है। जिसमें छ: माह से अधिक आयु के इंसान के खानपान का नया मानक तय होगा। एनआईएन के निदेशक डॉ. अवुला का कहना है कि हाल ही में वसा व चीनी वाले खाद्य पदार्थों की खपत बढ़ी है, जिससे रोग बढ़े हैं। लेकिन पौष्टिक खानपान से कई रोगों की रोकथाम सम्भव है। दुर्भाग्य यह है कि आज एक तरफ़ लोगों को मोटापा कम करने के लिए अधिक खाने से रोकना पड़ रहा है, तो वहीं करोड़ों लोगों को भरपेट खाना भी नहीं मिलता है। हैरानी की बात यह है कि आज पालतू जानवरों में भी मोटापा बढ़ रहा है, जिसे कम करने के लिए उनके मालिक उन्हें डॉक्टरों के पास और जिम ले जाते हैं।