हम जब भी क्लाइमेट चेंज, ग्लोबल वाॄमग की बात करते हैं तो ज़्यादातर लोग यह संकेत देते हैं कि उन्हें यानी खतरे का आभास है; लेकिन और यह शब्द खासा भारी-भरकस तब जान पड़ता है, जब हम एकदम अलग नज़रिये से पर्यावरण बचाने के लिए हुए काम का जायज़ा लेते हैं। हमें दिखता है कि तमाम खतरों को जानने समझने के बाद भी कहीं कुछ हुआ ही नहीं। अपने ज़ोरदार शब्दों में पर्यावरण बचाने के लिए सारी दुनिया मे बच्चों और युवाओं को सक्रिय करने वाली युवा कार्यकर्ता ग्रेटा रनबर्ग मे दावोस में जुटे राजनेताओं, अफसरशाहों और उद्योगपतियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि पहली नज़र में यह तो लगता है कि पिछले साल से क्लाइमेट चेंज, ग्लोबल वाॄमग से पर्यावरण और पारिस्थितिकी को बचाने के लिए काफी कुछ हुआ है। दुनिया भर में बच्चों और युवाओं ने इस दिशा मे खासा आन्दोलन छेड़ा है। लोगों को प्रेरित किया है। लेकिन कहीं कुछ न्यारा नहीं हो सका। जो हुआ वह शुरुआत ज़रूर कही जा सकती है।
अभी पिछले ही साल बर्लिन (जर्मनी) में बच्चों और युवाओं के साथ क्लाइमेट चेंज पर बड़ा प्रदर्शन किया। संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव ने उन्हें क्लाइमेट चेंज पर बोलने के लिए आमंत्रित किया। ग्रेटा ने तमाम बच्चों को क्लाइमेट चेंज पर धरना-प्रदर्शन करने के लिए कहा।
किशोरी ग्रेटा टनबर्ग के अलावा पर्यावरण और पारिस्थितिकी बचाने के काम में जुटे दूसरे युवाओं में सल्वाडोर गोमेज-कोलोन में अपनी बात रखी। सल्वाडोर ने तब खासी मेहनत करके लोगों से धन इकट्ठा किया और तूफान में बर्बाद हो गये प्यूरिटो रिको को और प्रभावित लोगों को 2017 में फिर एक नयी ज़िन्दगी दी। जांबिया की नताशा म्वांसा ने लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ी है। उन्होंने अपने विषय पर सबका ध्यान खींचा। इस मौके पर कनाडा के आदिवासी समुदायों के प्रतिनिधि के तौर पर ऑटम पेल्टियर भी मौज़ूद थे। दुनिया भर के नामी गिरामी अर्थशास्त्री, नौकरशाह बड़े उद्योगपति और बड़े देशों के राज्यध्यक्ष और मौसम परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) के चलते होने वाली मुसीबतों के प्रति आग्राह करने वाले गैर-सरकारी स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रमुख स्विटजरलैंड के दावोस शहर में जनवरी महीने में 20 से 24 तारीखों में मिले, बैठे। कई मुद्दों खासकर पर्यावरण पर खासी नाराज़गी भी दिखी। भारत में नागरिकता और कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन के मुद्दों पर खासी जिज्ञासा रही। चीन मे ओगुर मुसलमानों पर अहमविचार की चर्चा भी हुई। तकरीबन 75 साल पहले नाज़ियों के अत्याचारों की गूँज भी वहाँ थी।
लेकिन इस सबमें खासा महत्त्वपूर्ण रहा जलवायु परिवर्तन के चलते ब्राजील के अमेजन जंगलों में लगी आग आस्ट्रेलिया के जंगलों और झाडिय़ों में तकरीबन ढाई महीने से सुलगती आग पर चिन्ता। इस आग की चपेट में हज़ारों पशु-पक्षी और इंसान भी आये। जान-माल का खासा नुकसान हुआ। दुनिया में कई देशों में अचानक बाढ़ समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी, ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण भी बदलते मौसम की परवाह करने की चिन्ता जगी। क्योंकि इसका असर इंसानों के कामकाज, उद्योग धन्धों पर पड़ा। एक आकलन के अनुसार ग्लोबल वाॄमग के चलते सारी दुनिया में इसके कारण होने वाले नुकसान को लेकर खासी हलचल है। लेकिन इससे बचाव सम्बन्धित सामूहिक प्रयास करने के लिए वे लोग एकजुट नहीं होते दिखे, जिनके फैसलों का असर होता है।
हालाँकि वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम (विश्व आर्थिक संघ) दावोस में बातचीत की शुरुआत करते हुए स्विटजरलैंड महासंघ की राष्ट्रपति साइमोनेटा सोमरूगी ने 20 जनवरी को अपने बीज मंत्र में कहा कि आज असहिष्णुता है, घृणा है, बदले की भावना है। हमें वह संतुलन बनाना चाहिए, जिससे एक सांझा भविष्य बने। आज सारी दुनिया में आग लगी हुई है। हम सबको मिलकर पर्यावरण बचाने में जुटना चाहिए, जिससे पारिस्थितिकी बचे। आस्ट्रेलिया में आज भी झाडिय़ों में आग की चिंगारियों फैल रहीं हैं और ब्राजील के अमेजन जंगलों में आग दहकी ही थी। न जाने कितने पशु-पक्षी भी मारे गये। राष्ट्रपति ने कहा कि यदि पेरिस की मशहूर कृति एफेल टॉवर से हर रोज़ एक पेंच निकाल लिया जाए, तो एक दिन वह टॉवर ही नहीं बचेगा। आज ज़रूरत है कि राजनेता अपने अपने देशों में अफसरशाही का पर्यावरण और पारिस्थितिकी के संतुलन पर ध्यान देने को कहें। जब तमाम देश ग्लोबल वाॄमग और मौसम परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) के लिहाज़ से काम करेंगे, तो पर्यावरण मानव मात्र के लिए बेहतर बन सकेगा। उन्होंने मानव मात्र के जीवन में कीड़े-मकौड़ों और जैविक विविधता के बचाव पर एक छोटी िफल्म भी प्रदर्शित की। उन्होंने चाहा कि तमाम राजनीतिक और अफसरशाह मिलकर बेहतर संसार बनाने में जुटे। इस मौके पर दावोस मैनिफेस्टो 2020 भी जारी हुआ। इस दस्तावेज़ में समाज निर्माण के सभी भागीदारों से अपील की गयी है कि उद्योग संसार का मकसद समाज की ज़रूरतों को पूरा करना होना चाहिए। उसे सिर्फ मुनाफे के तौर पर नहीं देखना चाहिए। इस दस्तावेज़ में बड़ी खूबसूरती ले गये भी बताया गया है। आज हमारे समय में क्या क्या महत्त्वपूर्ण मुद्दे हैं, मसलन- टैक्स जंगली, बढ़ती असहिष्णुता, भ्रष्टाचार रोकने की ज़रूरत और बड़े प्रबंधकों के वेतन भत्ते और मानवाधिकार।
विश्व आर्थिक फोरम के संस्थापक और अध्यक्ष क्लाज श्वैब के तैयार किये गये इस दस्तावेज़ में यह भी बताया गया है कि किस तरह व्यापार मे मुनाफे पर नज़र रखते हुए आज किस तरह सरकार में और अफसरों में सहयोग पाने के लिए अपनी सारी क्षमताएँ लगा दी जाती हैं। इस तरीके में आज बदलाव ज़रूरी है, जिससे मानवमात्र भी प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए अपना जीवनयापन कर सके। इस साल वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम के मंच पर खासतौर पर जनता-निजी सहयोग को बढ़ाते हुए पारिस्थितिकी, अर्थ, समाज, उद्योग, तकनीक और भू-राजनीति (जियो पॉलिटिक्स) के विभिन्न रूपों पर विचार विनियम हुआ। यह भी तय पाया कि इस धरा पर अगले दशक में एक लाख करोड़ से भी ज़्यादा पौधा रोपण और उनका संरक्षण किया। इससे एक खरब लोगों को चौथी औद्यौगिक क्रान्ति के दौरान ज़रूरी हुनर का प्रशिक्षण मिल सकेगा।
भारत से इस फोरम में मध्य प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक, तेलंगाना के मुख्यमंत्री, केंद्र सरकार से उद्योग मंत्री पीयूष गोयल बड़ी संख्या में अफसरशाहों और तमाम बड़े उद्योगपति और तकरीबन सौ प्रमुख कार्यकारी अधिकारी भी तो पहुँचे। इनके अलावा कई गैर-सरकारी स्वयंसेवी संगठनों की प्रमुख हस्तियों भी वहाँ मौज़ूद थीं। सभी का इरादा है कि विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष और उद्योगपति क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वाॄमग से पूरी दुनिया में हो रहे जान-मान के नुकसान से बचाने के लिए ऐसे फैसले में जो दूरगामी हों। इससे जनजीवन की सेहत भी ठीक रहेगी और वे अधिक बेहतर तरीके से इस दुनिया को आकर्षक बनाने में जुट सकेंगे।
इसके साथ इस मुद्दे पर भी विचार हुआ कि पूरी दुनिया के विभिन्न देशों में लोगों की आमदनी में जो ध्रुवीकरण हुआ है उसे कैसे कम किया जाए।
दावोस में भारतीय उद्योगपतियों ने एकजुट होकर क्लाइमेट चेंज के मुद्दे पर काम करने की योजना बनायी है। इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स के साथ मिलकर पिछले साल बनी। आज इसमें 45 सदस्य है। भारतीय उद्योगपतियों की इस पहल पर खासा आश्चर्य भी रहा। भारतीय उद्योगों में चर्चित उद्योगपति टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन रतन टाटा, वाहन निर्माताओं में प्रमुख महिंद्रा एंड महिंद्रा के चेयरमैन आनंद महिंद्रा, विप्रो कम्प्यूटर्स के रिशाद प्रेमजी, नादिर गोदरेज, विद्याशाह और हेमेंद्र कोठारी ने मिलकर इंडियन क्लाइमेट कम्युनिटी गठित की। इस सबसे यह फैसला लिया कि वे सभी मिलकर मौसम को बढिय़ा बनाने के लिए मिलकर काम करेंगे। तमाम तरह की समस्याओं के निदान की कोशिश भी होगी। इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स एक ऐसा मंच बनाने की कोशिश में रहा है, जहाँ तरह-तरह के विचारों का आदान-प्रदान हो। क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वाॄमग के बुरे प्रभावों से बचने की कोशिश की जाए और हरीतिमा के साथ उद्योग के पहिये तेज़ी से घूमें। िफलहाल जिन मुद्दों पर ध्यान दिया जाएगा, उनमें हवा को साँस लेने लायक बनाना और पेयजल की सप्लाई पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। उद्योगों के विकास के साथ-साथ पर्यावरण और पारिस्थितिकी के संतुलन को बिगडऩे से बचाने का यह बेहद दिलचस्प प्रयोग होगा। सरकारी एजंसियों से मिलकर सारे पर्यावरण और पारिस्थितिकी बचाने के लिए शैक्षमिक संस्थान, निजी क्षेत्र और अन्य के साथ नए तरीके से काम किया जाएगा। महिंद्रा समूह के अध्यक्ष आनंद महिंद्रा ने बताया कि अब उद्योग व्यापार उस स्थिति में नहीं है कि जैसा भी है, चलने दो। कोई भी पर्यावरण और पारिस्थितिकी को पनपाने का काम अपने बूते नहीं कर सकता। आज ज़रूरत है कि सरकार के साथ मिल कर व्यापार और पर्यावरण में सहयोग की बात हो। यह प्रयोग सफल होगा। विभिन्न देशों में आज भी अच्छी तादाद है आदिवासियों की। उनके पास इनकी अपनी जीवनशैली है। इनकी अपनी भाषा है। खानपान, गीत-संगीत है। रीति-रिवाज़ हैं। मौसम परिवर्तन का आभास इन्हें समुद्र की लहरों से किनारे आयी मछलियों, सीपियों-शंखों से होता है। अब कई पढ़ लिख गये हैं। इन्हें जानने समझने का काम अमेरिका में खासा हो रहा है। उनकी पारम्परिक जानकारी का लाभ विभिन्न शोध पन्नों को तैयार करने में और इनके साथ वैज्ञानिक प्रयोगों में सफलता के रिकॉर्ड भी बने। दावोस में एक मौसम विज्ञानी ने बताया कि वाशिंगटन राज्य में क्विनॉल्ट इंडियन स्टेट है। यहाँ जो आदिवासी हैं, वो खुद को 12 हज़ार साल से यहाँ का निवासी बताते हैं। वे समुद्र पर क्लाइमेट चेंज का असर उसकी लहरों के किनारे पर पछाडऩा जानते हैं। वे किनारे पर आयी मछलियों, शंखों, सीपियों से उसकी गति और समय का अनुमान लगाते हैं। बचपन से जंगल, पेड़ पौधों, पहाड़, समुद्र और अपनी संस्कृति को जानने-समझने के कारण वे मौसम परिवर्तन को भूमि और वायु में हो रहे बदलाव से भी माँपते हैं।
अपने पारम्परिक ज्ञान को अब 2005 से इन्होंने तकनीकी तौर से भी जानना समझना और संग्रह करने की अच्छी शुरुआत की है। अब इनके पास समुद्र से हो रहे बदलाव, उसमें बढ़ते अम्लीकरण ग्लोबल वाॄमग के कारण आ रहे बदलाव का ज़मीन और वायु में क्या और कैसा प्रभाव प्रदान भी एक तरीका है, जिससे प्रकृति के बदलाव का काफी पहले जान सकते हैं।