बड़ी क्रांति के इंतज़ार में गुजरात का कपड़ा उद्योग

– दूसरे राज्यों का रुख़ कर रहे गुजरात के कपड़ा उद्योगपति, कोरोना-काल के बाद से नहीं उबर पा रहा यह क्षेत्र

कपास उत्पादन के साथ-साथ कपड़ा उद्योग में गुजरात का स्थान भारत में सबसे ऊपर है; लेकिन यहाँ का कपड़ा उद्योग कोरोना-काल से संकट का सामना कर रहा है। गुजरात सरकार ने यहाँ के कपड़ा उद्योग को बचाने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाये हैं। कोरोना-काल में जहाँ टैक्सटाइल कम्पनियों के महीनों बंद रहने के साथ-साथ कपड़ा उद्योग में कई दूसरी समस्याएँ के आड़े आयीं, वहीं टेक्सटाइल उद्योग में मोदी सरकार द्वारा टैक्स लगाये जाने से इस उद्योग पर बुरा असर पड़ा है। इसके चलते कई टेक्सटाइल कम्पनियाँ और उनके खाते बंद हो चुके हैं, बल्कि कपड़ा उद्योग पर लागू नीतियों के चलते भी टैक्सटाइल कम्पनियाँ गुजरात छोड़कर दूसरे राज्यों में जा रही हैं। पिछली कपड़ा नीति 31 दिसंबर, 2023 को समाप्त हो जाने के बाद काफ़ी देरी से नयी कपड़ा नीति गुजरात सरकार ने बनायी, जिसकी तारीफ़ गुजरात सरकार ने तो की है; लेकिन टैक्सटाइल के जानकार इसे उचित नहीं मान रहे हैं।

जानकारों के मुताबिक, पिछले एक साल में कपड़ा नीति में कमियों के चलते कई बड़ी कम्पनियाँ गुजरात छोड़कर झारखण्ड, महाराष्ट्र. तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और दूसरे राज्यों का रुख़ कर चुकी हैं। गुजरात में कपास उत्पादन भी घट रहा है, जिसकी वजह कपास की खेती की लागत ज़्यादा आने के अलावा कपास का भाव कम होना है। एक प्रमुख उत्पादक बना हुआ है; लेकिन सूत और कपड़े के उत्पादन में इस क्षेत्र की क्षमताएँ पिछड़ रही हैं। स्थिति यह है कि गुजरात के किसानों की कपास को व्यापारी सूत और कपड़ा बनाने के लिए महाराष्ट्र और तमिलनाडु आदि राज्यों में में भेज रहे हैं। इन राज्यों में पहले भी कपास जाती थी; लेकिन अब इसमें बढ़ोतरी हो गयी है।

कोरोना-काल के बाद गुजरात के कपड़ा उद्योग पर हाल ही में बांग्लादेश में हुए सत्ता परिवर्तन से बुरा असर पड़ा है। बांग्लादेश की नयी सरकार ने भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों को ख़त्म करने के लिए नीतियों में बदलाव कर दिया है। इससे बांग्लादेश से आने वाले कपड़े में काफ़ी कमी आयी है, जिससे भारत में कपड़े का भाव भी बढ़ा है। इसका असर गुजरात के सूरत, अहमदाबाद जैसे मुख्य कपड़ा उद्योग वाले ज़िलों पर सबसे ज़्यादा पड़ा है। पड़ोसी देश में अचानक सत्ता परिवर्तन के दौरान सामने आयी एक रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के समय सूरत के क़रीब 250 से ज़्यादा कपड़ा व्यापारियों के 550 करोड़ रुपये फँस गये थे। बांग्लादेश से जींस आदि का कपड़ा आयात होता है, तो साड़ी, लेडीज ड्रेस मटेरियल और सादा कपड़ा निर्यात होता है, जिस पर बुरा असर पड़ा है। सूरत के व्यापारिक एसोसिएशनों ने उस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को पत्र लिखकर इस मुद्दे का हल निकालने की माँग की थी। टैक्सटाइल क्षेत्र के एक्सपर्ट जगदीश भाई का कहना है कि गुजरात में कपास की खेती में कमी आयी है और पिछले चार-पाँच साल से सरकार की कुछ ग़लत नीतियों के चलते कपड़ा उद्योग कमज़ोर भी हुआ है। लेकिन अब भी गुजरात में कपड़ा क्षेत्र में अपार संभावनाएँ हैं और इसे चार गुना तक बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए ख़ासकर सूत