2 स्टेट्स आसानी से 3 इडियट्स हो सकती थी. उसे बस अर्जुन कपूर को छिपाना था और हिरानी-आमिर को फिल्म से जोड़ना था. और अगर यह मुश्किल था तो कम से कम उसे हिरानी की 3 इडियट्स को बार-बार देखना था ताकि वह समझ सके कि जिस फील गुड सिनेमा का पैरहन वह पहनने जा रही है उसकी भावुकता और गहराई को हिरानी सबसे बेहतर समझते हैं. उन्हें पता है कि चेतन भगत की कहानी को कितना फिल्म के अंदर रखना है और कितना बाहर. तब शायद 2 स्टेट्स जिसमें कालेज लाइफ का रोमांस, बाहर की दुनिया का संघर्ष, उसी दुनिया के लोगों से किरदारों की टकराहट, मल्टीनेशनल के क्यूबिकल के अंदर बैठने की कसमसाहट और लेखक बनने की चाहत की सामान्य से थोड़ी-सी अलग कहानी है, अपना खुद का गुरुत्वाकर्षण खोजती जो फिल्म की तरफ हमें खींच सकता. तब फिर हम अर्जुन कपूर को भी स्वीकार लेते क्योंकि हमने 40 पार के आमिर को 20 से कम के छात्र के तौर पर भी स्वीकारा था. लेकिन फिल्म ऐसा कुछ नहीं करती. और हमारे पास अर्जुन और आलिया रह जाते हैं फिल्म की सपाट कहानी को जीवंत बनाने के लिए.
इस कठिन काम पर निकले अर्जुन आधी से ज्यादा फिल्म में अपने चेहरे पर जो एक-सा एक्सप्रेशन रखते हैं उसकी व्याख्या कुछ इस तरह है : कपाल भाती के दौरान जिस वक्त आपको सांस छोड़नी है, आपने गलती से थोड़ी और सांस अंदर खींच ली और पेट से क्रिया भी चालू रखी, तब कष्ट में जिस तरह का चेहरा दो पलों के लिए आपका हो जाता है ठीक वैसा ही चेहरा अर्जुन तकरीबन आधी फिल्म तक रखते हैं. ऐसे में हर फ्रेम को, और फिल्म को, आलिया ही संभालती हैं. उनका और अर्जुन का कालेज का रोमांस हालांकि कच्चा है लेकिन अच्छा लगता है क्योंकि उसमें आलिया हैं और आज के जमाने का बिना झंझट वाला प्यार जो सच्चा ज्यादा और फिल्मी थोड़ा कम है.
कालेज से निकलकर फिल्म पंजाबी और तमिल के बीच के कल्चरल डिफरेंसिस को खूब दिखाती है, लेकिन उसके पास दो समुदायों के बीच कल्चरल हारमनी लाने वाली समझ नहीं है, और वैसे दृश्य भी नहीं है. वह पंजाबी-तमिल परिवारों में शादी के माध्यम से समझौता तो करा देती है, लेकिन दोस्ती नहीं करा पाती. वैसे उसे दोस्ती की फ्रिक भी नहीं है, उसने चिकन और इडली के बीच की दूरियों को कम करने का जिम्मा आप पर छोड़ा हुआ है. फिल्म चीजों को जनर्लाइज करने में भी दिलचस्पी लेती है. हीरो बैंक की ही नौकरी करता है और हीरोइन शेंपू बनाने वाली कंपनी की है. कमाल है भाई, उल्टा नहीं हो सकता था क्या! वह अपनी सबसे बड़ी ताकत आलिया को भी हलका दिखाने से पीछे नहीं हटती. ‘हिटलर भी दिल का बुरा आदमी नहीं था’ जैसे संवाद एक समझदार लड़की के किरदार के लिए तो नहीं ही होने चाहिए थे. लेकिन फिर भी आलिया फिल्म में चमकती हैं और सिर्फ वे ही चमकती हैं. आलिया हमारी फिल्मों का भविष्य है, यह तय है. आलिया के अलावा फिल्म में सिर्फ रोनित रॉय हैं जिनका जिक्र करना बेहद जरूरी है. उनका चेहरा क्रोध और अकड़ को ऐसे बोलता है जैसा कम ही अभिनेता बोल पाते हैं.
अपने कागजी पैरहन में खुश 2 स्टेट्स सिर्फ एक लकड़ी से जली आग के आगे ढाई घंटे नाचती है. खुद भी थकती है, हमें भी थकाती है.