देश में निजीकरण और विनिवेश की एक बड़ी खिड़की खुल रही है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट से कुछ यही सन्देश मिलता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा भी कि बेकार एसेट्स आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में योगदान नहीं कर सकते। मेरा अनुमान है कि विनिवेश से साल 2021-22 तक हमें 1.75 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे। दशकों से तैयार किये गये संसाधन बेकार श्रेणी में आने का मतलब ही है, उनकी सार्वजनिक क्षेत्र से विदाई। सरकार आने वाले महीनों में सरकारी कम्पनियों और विभागों की सम्पत्तियों का मुद्रीकरण करने की तैयारी तो कर ही रही है, सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) में रणनीतिक बिक्री को बढ़ावा देने का भी उसका इरादा है। ज़ाहिर है इसके लिए उसे कानून में संशोधनों की ज़रूरत रहेगी और यह काम वह इसी सत्र में कर सकती है। विपक्ष, कई विशेषज्ञों और कर्मचारी संगठनों के विरोध के बावजूद निजीकरण और विनिवेश का यह सिलसिला कहाँ ठहरेगा? अभी कहना मुश्किल है। हालाँकि यह समझना मुश्किल नहीं कि इसका आम आदमी पर क्या प्रभाव पड़ेगा। आत्मनिर्भर भारत के मोदी सरकार के नारे के साथ उसका बीमा कम्पनियों में एफडीआई यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 49 फीसदी से बढ़ाकर सीधे 74 फीसदी करने का इरादा चौंकाने वाला ही कहा जाएगा।
बजट में केंद्र सरकार ने कम-से-कम दो सरकारी बैंकों के और एक सामान्य बीमा कम्पनी के निजीकरण की घोषणा कर दी है। मोदी सरकार का इरादा आईडीबीआई बैंक, बीपीसीएल, शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, कंटेनर कॉर्पोरेशन, नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड समेत कई अन्य कम्पनियों में हिस्सेदारी बेचकर रकम जुटाने का है। बजट में वित्त मंत्री भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, एयर इंडिया, शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, आईडीबीआई, बीईएमएल, पवन हंस, नीलाचल इस्पात निगम लिमिटेड और अन्य की रणनीतिक बिक्री 2021-22 में पूरा करने का वादा कर चुकी हैं। सरकार सरकारी क्षेत्र की सबसे बड़ी बीमा कम्पनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) का आईपीओ भी लॉन्च करने जा रही है और उम्मीद कर रही है कि चालू माली साल में उसे सरकारी फर्मों के विनिवेश से 1.75 करोड़ रुपये जुटेंगे।
इस स्तर पर निजीकरण और विनिवेश का मतलब साफ है कि सरकार आर्थिक मोर्चे पर विभिन्न दबाव झेल रही है। इसका एक कारण उसका वित्तीय कुप्रबन्धन भी हो सकता है, जिसे वह ज़ाहिर नहीं करना चाहती। सरकार इस बड़े पैमाने पर निजीकरण और विनिवेश अपने वित्तीय दबाव को कम करने के लिए ही कर रही है। सरकार के निजीकरण के लिए बड़ी खिड़की खोलने का विरोध अभी से शुरू हो गया है। बजट पेश होने के एक हफ्ते के भीतर सरकारी बैंकों और अन्य सरकारी विभागों के निजीकरण की घोषणा के खिलाफ विभिन्न बैंकों के कर्मचारियों ने विरोध जताया और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। यूनाइटेड फोरम ऑफ बैकिंग एसोसिएशन और बैंक ऑफ इंडिया नीड ऑर्गेनाइजेशन ने कहा कि केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री सीतारमण ने देश की बड़ी सरकारी कम्पनियों और सरकारी बैंक का निजीकरण का फैसला किया है, जो कि निंदनीय है। एसोसिएशन ने इसका विरोध किया और कहा कि सरकार को सरकारी बैंकों को निजी हाथों में देने की बजाय अपनी तरफ से हिस्सेदारी बढ़ाकर इसे मज़बूत करने के लिए कदम उठाने चाहिए।
सरकार मौज़ूदा माली साल में सेंट्रल पब्लिक सेक्टर इंटरप्राइजेज (सीपीएसई अर्थात् केंद्र की स्वामित्व वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियाँ) में अपनी हिस्सेदारी बेचकर और शेयर बायबैक के ज़रिये 17,957 करोड़ रुपये जुटा चुकी है। देश में इस समय तकरीबन 249 सीपीएसई हैं, जिनमें से 54 से ज़्यादा कम्पनियाँ स्टॉक मार्केट में लिस्टेड हैं। सरकार ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए 2.10 लाख करोड़ रुपये विनिवेश से जुटाने का लक्ष्य रखा था; लेकिन अब उसका कहना है कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते यह लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका। अब मोदी सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए 1.75 लाख रुपये विनिवेश से जुटाने का लक्ष्य तय किया है, जिसके लिए वह सरकारी कम्पनियों और बैंकों को बेचने और सरकारी कम्पनियों में अपनी हिस्सेदारी घटाने की योजना बना रही है। विपक्ष इसी का सख्त विरोध कर रहा है।
बजट भाषण में वित्र मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि पिछले साल बड़े विनिवेश की योजना तैयार की गयी थी, जिसमें एलआईसी के शेयर बेचे जाने की बात भी शामिल थी। इस योजना को इस साल पूरा किया जा सकता है। सरकार ने वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए 1.05 लाख करोड़ और वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए 80 हज़ार करोड़ रुपये के विनिवेश का लक्ष्य रखा था। अब सरकार इस विनिवेश के लक्ष्य को पूरा करने के लिए दो सरकारी बैंकों और एक इंश्योरेंस कम्पनी समेत कई पब्लिक सेक्टर की कम्पनियों की हिस्सेदारी बेचने जा रही है। सरकार एक लाख करोड़ सरकारी कम्पनियों को बेचकर जुटाएगी, जैसे बैंक और इंश्योरेंस कम्पनी आदि। वहीं 75 हज़ार करोड़ रुपये सरकारी कम्पनियों में हिस्सेदारी बेचकर जुटाये जाएँगे। निजीकरण के ज़रिये सरकार सार्वजनिक कम्पनी में अपनी अधिकतर हिस्सेदारी किसी निजी कम्पनी को बेचती है, जबकि विनिवेश में सरकारी कम्पनी में कुछ हिस्सेदारी बेचना है; लेकिन इसमें सरकार की हिस्सेदारी 50 फीसदी से ज़्यादा रहती है। सरकार साफ कह रही है कि उसका उद्देश्य सरकारी कम्पनियों की संख्या कम करना और निजी क्षेत्र के लिए नये अवसर तैयार करना है।
सरकार सफाई दे रही है कि सरकारी बैंक या कम्पनियाँ कई बार खज़ाने पर काफी बोझ डालते हैं। क्योंकि सरकार को उन्हें समय समय पर संकट से उबारने के लिए पूँजी (री-कैप्टलाइजेशन) देनी पड़ती है, जिससे सरकार को राजस्व की बचत होगी। विनिवेश से सरकार के पास काफी पैसा आ जाएगा, जिसे सरकार इंफ्रास्ट्रक्टर पर खर्च कर सकती है। साथ ही निजीकरण से कम्पनी की कार्यक्षमता में भी बढ़ेगी। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कान्त ने बजट पर कहा कि यह बहुत शानदार है; क्योंकि यह अगले तीन-चार साल की दिशा दे रहा है। सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्टर पर फोकस किया है। शिक्षा और स्वास्थ्य पर बहुत फोकस है। यह बहुत व्यावहारिक बजट है। कोई नया कर नहीं लगाया गया है, जो बहुत बड़ी बात है। यह बजट आम आदमी के अनुकूल है।
हालाँकि कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने बजट पर कहा कि सरकार की तीन बड़ी गलतियों नोटबन्दी, त्रुटिपूर्ण जीएसटी और बैंकिंग क्षेत्र पर दबाव की वजह से आज अर्थ-व्यवस्था नियंत्रण से बाहर हो गयी है और नीचे आ रही है। चिदंबरम ने कहा कि सरकार ने तीन बड़ी गलतियाँ की हैं। नोटबन्दी की ऐतिहासिक गलती, जल्दबाज़ी में गड़बडिय़ों वाला माल और सेवा कर (जीएसटी) लागू करना और बैंकिंग क्षेत्र पर दबाव बनाने जैसी गलतियों की वजह से आज हमारी अर्थ-व्यवस्था टूट रही है। उन्होंने कहा कि देश एक बार फिर आर्थिक वृद्धि की दृष्टि से उदासीन वर्ष की ओर बढ़ रहा है। अर्थ-व्यवस्था में सुस्ती की वजह विपक्ष बता रहा है, जबकि इसका स्पष्टीरकरण सरकार की ओर से दिया जाना चाहिए। आर्थिक आँकड़े देते हुए चिदंबरम ने कहा कि ये लडख़ड़ाती अर्थ-व्यवस्था का संकेत देते हैं। खनन, विनिर्माण, बिजली, कोयला, कच्चा तेल और गैस सभी क्षेत्रों का प्रदर्शन काफी खराब है। सरकार ने माँग में सुधार के लिए कम्पनी कर में कटौती की है। कम्पनी कर घटाने के बजाय यदि सरकार ने जीएसटी के मोर्चे पर राहत दी होती, तो लाखों लोगों के हाथ में अधिक पैसा रहता, जिससे निवेश बढ़ता। चिदंबरम ने कहा कि अगर पैसा जुटाना विनिवेश का मकसद है, तो हम विरोध करेंगे; क्योंकि यह खराब कारण है। सरकार सम्भवत: 5-10 फीसदी शेयर बेच सकती है, इससे एलआईसी का स्वामित्व नहीं बदलेगा।
वैसे कुछ आर्थिक विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि सरकारें कमोवेश हर बजट में एक तय समय में पब्लिक सेक्टर यूनिट्स के विनिवेश का ऐलान ज़रूर करती हैं। हालाँकि ये भी ज़रूरी नहीं कि सरकार इन्हें बेचने में कामयाब हो ही जाए। एयर इंडिया इसका एक बड़ा उदाहरण है।
रोज़गार सबसे बड़ी चुनौती
पिछले साल कोरोना महामारी और मोदी सरकार के अनियोजित लॉकडाउन के कारण भारत में रोज़गार का बड़ा संकट खड़ा हो गया है। एक अनुमान के मुताबिक, इससे करीब 15 करोड़ लोग बेरोज़गार हुए हैं और लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी उनमें से 70 फीसदी अभी अपने हारों में बेरोज़गारी झेल रहे हैं। इससे निपटने के लिए केंद्रीय बजट 2021-22 के पूँजीगत खर्च में 34 फीसदी की बढ़ोतरी को विशेषज्ञ बहुत कम बता रहे हैं। वित्तीय साल 2020-21 की बात करें, तो पूँजीगत खर्च 4.12 लाख करोड़ रुपये था, जिसे अब बढ़ाकर नये बजट में 5.54 लाख करोड़ रुपये किया गया है।
बहुत-से अर्थशास्त्री मानते हैं कि दीर्घकालिक इंफ्रास्ट्रक्टर प्रोजेक्ट को प्रोत्साहित करना तो ठीक है, लेकिन यह बहुत ज़्यादा रोज़गार दे देगा; ऐसा सोचना ही गलत है। इंडियास्पेंड की एक रिपोर्ट कहती है कि बजट में 2019 और 2020 में सामाजिक सुरक्षा और सर्वमान्य न्यूनतम मज़दूरी से जुड़े प्रावधानों का भी दोहराव कर किया गया है। मनरेगा के बजट आवंटन में बड़ी कटौती कर दी गयी है। मनरेगा ने ही गाँवों में लॉकडाउन में रोज़गार को सहारा दिया था, अन्यथा हालत और भी खराब होती। इसे गाँवों में रोज़गार की सबसे बड़ी योजना माना जाता है। ऐसे में इसके बजट में कटौती समझ से परे है। बजट में शहरी क्षेत्रों में भी रोज़गार बढ़ाने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया है। रिपोर्ट कहती है कि यह तब है, जब लॉकडाउन और महामारी से अर्थ-व्यवस्था की टूटी कमर को सीधा करने के लिए रोज़गार एजेंसियों ने इस पर खासा ज़ोर दिया था। श्रम और रोज़गार मंत्रालय को 13,306.5 करोड़ (1.82 बिलियन डॉलर) आवंटित किये गये हैं, जो 2020-21 की संशोधित आवंटन से 413 करोड़ रुपये कम हैं। इसमें भी श्रमिकों के लिए मौज़ूद सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं के बजट को 3.4 फीसदी कम करके 11,104 करोड़ (1.52 बिलियन डॉलर) कर दिया गया है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने टेक्सटाइल, शिपिंग और इंफ्रास्ट्रक्टर क्षेत्र के लिए योजनाओं और आवंटन की घोषणाएँ की हैं, जिससे उम्मीद की जा रही है कि रोज़गार बढ़ेगा। उदाहरण के लिए 13 क्षेत्रों में प्रोडक्शन-लिंक्ड इनिशिएटिव (पीएलआई) के लिए पाँच साल में 1.97 लाख करोड़ (27 बिलियन डॉलर) का प्रावधान सरकार करेगी। अगले तीन साल में बजट में सात मेगा इवेस्टेमेंट टेक्सटाइल्स पार्क शुरू किये जा रहे हैं। टेक्सटाइल इंडस्ट्री के कच्चे माल के लिए मौलिक सीमा-शुल्क को कम करके 5 फीसदी किया गया है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के साथ-साथ तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और असम में आर्थिक मार्ग और राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए 1,08,230 करोड़ रुपये (14.8 बिलियन डॉलर) की रकम निश्चित की गयी है। पीपीपी मॉडल के तहत शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक बस परिवहन वृद्धि योजना के लिए 18,000 करोड़ रुपये की घोषणा की गयी है। लेकिन यह सारी योजनाएँ बहुत लम्बा समय लेने वाली योजनाएँ हैं। अर्थात् इसमें रोज़गार तत्काल नहीं मिलने वाला है।
आर्थिक जानकार कहते हैं कि बड़ी इंफ्रास्ट्रक्टर परियोजनाओं में वर्तमान में बड़ी पूँजी लगती है। निर्माण क्षेत्र की ज़्यादातर नौकरियाँ आवासीय और व्यावसायिक परियोजनाओं में सृजित होती हैं, बड़े इंफ्रास्ट्रक्टर प्रोजेक्ट में नहीं। इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट कहती है कि 2019 के आखरी महीने तक भारत के कुल मानव संसाधन का 48 फीसदी हिस्सा स्व-रोज़गार था। लेकिन लॉकडाउन के बाद अगस्त 2020 में ऐसे लोगों की संख्या बढ़कर 64 फीसदी हो गयी है। लॉकडाउन के बीच जब मोदी सरकार ने राहत उपायों की घोषणा की थी, तो सबसे ज़्यादा ज़िक्र सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) का हुआ था। अनियोजित लॉकडाउन में सबसे बड़ी मार इसी सेक्टर ने झेली थी। इस दौरान कई उद्योग धन्धे चौपट हो गये थे। अब एमएसएमई मंत्रालय के लिए वर्तमान वित्तीय अनुमान 7,572 करोड़ को दोगुना करके 2021-22 में 15,700 करोड़ किया गया है; लेकिन कुल आवंटन का 64 फीसदी गारंटी इमरजेंसी क्रेडिट लाइन (जीईसीएल) सुविधा के लिए रखा गया है। एमएसएमई देश के असंगठित क्षेत्र के 40 फीसदी कामगारों को रोज़गार उपलब्ध कराता है।
लॉकडाउन लगने के बाद काम छूट जाने से अपने घरों को लौटने वाले बेरोज़गार प्रवासी मज़दूरों ने लॉकडाउन के दौरान मनरेगा के तहत काम के लिए आवेदन किया था; लेकिन 97 लाख ज़रूरतमंद लोगों को काम ही नहीं मिला। इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक, जून 2020 में, मनरेगा के लिए रिकॉर्ड 61,500 करोड़ रुपये (8.4 बिलियन डॉलर) का आवंटन किया गया था। बाद में 40 हज़ार करोड़ रुपये अतिरिक्त दिये गये। साल 2021-22 में बजट में इज़ाफे के साथ 73 हज़ार करोड़ आवंटित किये गये; लेकिन यह 2020-21 के संशोधित अनुमान की तुलना में 35 फीसदी कम हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, माँग के मुकाबले बजट में मनरेगा के लिए हमेशा कम पैसे दिये जाते हैं। पिछले साल इस मद में आवंटन बढ़ाया गया था, लेकिन वह पैसा भी नौकरी कार्ड वाले सभी परिवारों को 100 दिन काम देने के लिए ज़रूरी पैसे का महज़ एक-तिहाई है।
बजट में रोज़गार को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि रोज़गार के प्रमुख क्षेत्र होते हैं, एग्रीकल्चर, इंफ्रास्ट्रक्टर, टेक्सटाइल और टेक्नोलॉजी। इम्प्लॉयमेंट जनरेशन को बढ़ाने के लिए इन चारों बिन्दुओं पर इस बजट में बहुत ज़ोर दिया गया है।
इस दशक के पहले बजट के लिए, जिसमें विजन भी है, एक्शन भी है, मैं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। किसान की आय दोगुनी हो, इसके प्रयासों के साथ ही 16 एक्शन प्वाइंट्स बनाये गये हैं जो ग्रामीण क्षेत्र में रोज़गार को बढ़ाने का काम करेंगे। बजट में जिन नए रिफॉर्म्स का ऐलान किया गया है, वो हमारी अर्थ-व्यवस्था को गति देने, देश के प्रत्येक नागरिक को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने और इस दशक में अर्थ-व्यवस्था की नींव को मज़बूत करने का काम करेंगे। टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में रोज़गार को बढ़ावा देने के लिए इस बजट में हमने कई प्रयास किये हैं। नए स्मार्ट सिटीज, इलेक्ट्रॉनिक मैयूफैक्चरिंग, डेटा सेंटर पार्क्स, बायो टेक्नोलॉजी और ांटम टेक्नोलॉजी, जैसे क्षेत्रों के लिए अनेक पॉलिसी इनिशिएटिव लिए गये हैं। स्टार्ट अप्स और रीयल एस्टेट के लिए भी टैक्स बेनिफिट्स दिये गये हैं। ये सभी फैसले अर्थ-व्यवस्था को तेज़ गति से बढ़ाने और इसके ज़रिये युवाओं को रोज़गार के नए अवसर उपलब्ध कराएँगे। अब हम इनकम टैक्स की व्यवस्था में, विवाद से विश्वास के सफर पर चल पड़े हैं।नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
बजट जवान और किसान की बजाय उद्योगपतियों के लिए फायदेमंद है। केंद्र के केवल तीन से चार उद्योगपति मित्र हैं, जो उनके लिए भगवान हैं। यह सिर्फ एक फीसदी आबादी का बजट है। बजट में सैनिकों की पेंशन में कमी आश्चर्यजनक है। न तो युवा और न ही किसान, मोदी सरकार के लिए उद्योगपति दोस्त
केवल भगवान!
राहुल गाँधी, कांग्रेस नेता