कोविड-19 से मार खायी अर्थ-व्यवस्था के बीच अगला वित्तीय बजट पेश हो रहा है। इसमें ‘वी’ अर्थात् वैक्सीन का प्रभाव तो है ही, लेकिन महामारी में लगे अर्थ-व्यवस्था के झटकों के बाद अब विकास दर का ग्राफ कुछ-कुछ ऊपर की तरफ बढ़ता दिख रहा है। इसके साथ बजट में विशेष रूप से प्रत्यक्ष करों की बड़े करदाताओं की श्रेणी पर कोरोना सेस की उम्मीद के बीच पहली बार केंद्रीय बजट पूरी तरह से कागज़ रहित और एक विशेष ऐप के माध्यम से सुलभ हो रहा है।
पहली फरवरी से बजट के बाद के सत्रों में कई आत्मनिर्भर योजनाओं को पहले ही शुरू कर दिया गया है, ताकि लॉकडाउन प्रभावित क्षेत्रों पर कोरोना के प्रभाव को कम करने का लक्ष्य रखा जा सके; जैसे कि 21 लाख करोड़ रुपये के हिस्से के रूप में कोविड आत्मनिर्भर योजना के तहत मार्च में एमएसएमई क्षेत्र के लिए तीन लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त मदद घोषित की गयी।
‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ प्रत्येक गरीब परिवार को पाँच किलो चावल, पाँच किलो गेहूँ और एक किलो दाल देने का वादा किया गया था और 2.33 करोड़ दैनिक वेतनभोगियों को मनरेगा के लिए 10,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन भी घोषित किया गया था। इस बजट में विशेष रूप से उच्च व्यय को आवंटित करने के साथ कृषि के लिए भी कुछ नया है। क्योंकि दिसंबर, 2020 तक बेरोज़गारी दर 10 फीसदी तक बढ़ गयी थी, इसलिए इस पर चर्चा लाज़िम है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना और साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड योजना पर अधिक ध्यान है ही। पिछले साल बजट बाद कोविड-19 पैकेज में सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में 1.7 लाख करोड़ रुपये आवंटित किये थे। इंफ्रास्ट्रक्चर का खर्च भी बढ़ेगा; क्योंकि सरकार ने 2023 तक इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश कर लिया है। राजकोषीय घाटे की चिन्ता के बावजूद बजट में खपत और रोज़गार बढ़ाने और अर्थ-व्यवस्था में अधिक लिक्विडिटी देने के लिए एक बड़ा कदम आम आदमी पर कर का बोझ कम करना और अधिक क्रय शक्ति देने के साथ-साथ उद्योग को राहत देना भी है। स्वास्थ्य अवसंरचना व्यय को बढ़ावा मिलना ही चाहिए, ताकि पिछले साल महामारी के मद्देनज़र प्रधानमंत्री मोदी की शुरू की गयी आत्मनिर्भर भारत यात्रा के दौरान एमएसएमई पर खर्च का लाभ मिल सके। ई-कॉमर्स और रिटेल सेक्टरों को करों में और विशेष रूप से प्रक्रियाओं में अनुकूल उपचार की उम्मीद है; क्योंकि लॉकडाउन ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, ई-कॉमर्स और डब्ल्यूएफएच सुविधा पर ज़ोर दिया।
घर से काम (वर्क फ्रॉम होम) लॉकडाउन अवधि में एक बड़े विकल्प के रूप में उभरा है, जिसने लोगों को घर से काम करने की आवश्यकता पैदा की है। इसे रोज़गार या एक वैकल्पिक कार्य प्रारूप के विकल्प के रूप में माना जा सकता है और इस क्षेत्र को बजट से शायद कुछ कर प्रोत्साहन मिलेगा। रियल एस्टेट और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर, जो कोविड के दौर में सबसे ज़्यादा प्रभावित रहे हैं, इस बार बजट में वित्त मंत्री से पहले ही सहानुभूति की उम्मीद किये हुए हैं। हाउसिंग क्रेडिट गारंटी स्कीम पर अधिक आवंटन और ब्याज सब्वेंशन स्कीम में प्रधानमंत्री आवास योजना और सभी के लिए िकफायती आवास और किराये के आवास पर काम होगा। पिछले साल की तुलना में अधिक प्रोत्साहन और कमीशन आ रहा है, जिसमें रियल एस्टेट के लिए बजट आवंटन 25,000 करोड़ रुपये आंका गया था। ग्रामीण क्षेत्र और शिक्षा पर विशेष रूप से ध्यान दिये जाने की लोगों ने काफी उम्मीद कर रखी है; क्योंकि शिक्षण संस्थानों को वर्ष के बड़े हिस्से में बन्द कर दिया गया।
अब जबकि लॉकडाउन को हटा दिया गया है, फिर भी कोविड का दुष्प्रभाव असंगठित क्षेत्र पर बहुत गहरा पड़ा है, जो अभी भी कम माँग और श्रमिकों के बड़े पैमाने पर पलायन के बाद चुनौती झेल रहा है। मनरेगा पर अतिरिक्त खर्च के साथ-साथ असंगठित और सूक्ष्म उद्यमों के लिए पैकेज और वोकल फॉर लोकल के तहत कुटीर उद्योगों पर अधिक ज़ोर दिया जाना अपेक्षित रहा। इस बीच आरबीआई और सरकार को कोरोना प्रभावित क्षेत्र को अधिक राहत पहुँचाने के सन्दर्भ में विशेष पैकेज मिले, यह उम्मीद थी ही। प्रभावित उधारकर्ताओं ने एनपीए पर रुख नरम करने और साथ ही अधिस्थगन के सन्दर्भ में कहा था कि सरकार ने पहले ही एक बड़ी घोषणा की थी। राजस्व के साथ प्रत्यक्ष करों में किसी भी रियायत की घोषणा मुश्किल है। हालाँकि कुछ कंज्यूमर गुड प्रोडक्ट्स (सीजीपी) उत्पादों की माँग को बढ़ावा देने के लिए जीएसटी के मोर्चे में कुछ और बदलाव किये जाने का विकल्प है। पीएलआई योजनाओं के साथ-साथ सीएपीईएक्स के प्रोत्साहनों से बजट में शायद बढ़ोतरी होगी; यहाँ तक कि राजकोषीय घाटे के घटने की लागत पर भी। राजस्व संग्रह भी जीएसटी में प्रारम्भिक गिरावट के बाद उत्तरार्ध की अवधि में ठीक होना शुरू हो गया है। अर्थ-व्यवस्था में बदलाव अपेक्षित था ही, फिर भी सरकार के पास अपने राजस्व को पूरक करने के लिए बहुत कम संसाधन हैं। शेयर बाज़ार हर समय ऊँचे स्तर पर है और सरकार इस अवसर का इस्तेमाल पीएसयू शेयरों के विनिवेश के ज़रिये भुनाने में कर सकती है। इन बाधाओं के साथ भविष्य में जीडीपी में बदलाव की उम्मीद है। हालाँकि खपत की माँग को कोरोना वायरस से पूर्व के स्तर पर वापस लाने और अर्थ-व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए अधिक समय लगेगा। वित्त वर्ष 21 के लिए राजकोषीय घाटा 7.75 फीसदी को पार करने की सम्भावना है। राज्य और केंद्र का साझा वित्तीय घाटा 12.5 फीसदी पार करने की आशंका है।