बच्चे भविष्य हैं। भविष्य उज्ज्वल हो, परिवार, समाज, देश, दुनिया प्रगति करे, इसके लिए बच्चों का स्वस्थ रहना बहुत महत्त्व रखता है। बच्चों को स्वस्थ रखने में टीकाकरण की भूमिका अहम पायी गयी है। बच्चों के शरीर में रोग प्रतिरक्षण के वास्ते टीके लगाये जाते हैं, जिससे बच्चों के शरीर की रोग से लडऩे की शक्ति बढ़ती है। टीकाकरण से बच्चों में कई संक्रामक बीमारियों की रोकथाम होती है तथा समुदाय के स्वास्थ्य के स्तर में सुधार होता है। अध्ययन यह भी बताते हैं कि स्वस्थ बच्चा पढ़ाई में भी अच्छा करता है व बीमार बच्चों की तुलना में वह रोज़गार में भी बेहतर प्रदर्शन करता है। टीकाकरण के महत्त्व के मद्देनज़र बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ ने हाल ही में अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ द वल्ड्र्स चिल्ड्रन’ 2023 में टीकाकरण पर फोकस किया है।
‘द स्टेट ऑफ द वल्ड्र्स चिल्ड्रन 2023 : फॉर एवरी चाइल्ड, वैक्सीनेशन’ में बाल टीकाकरण पर रोशनी डाली है। यह रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2019-2021 के दरमियान दुनिया भर में 6 करोड़ 70 लाख बच्चे टीका लगवाने से चूक गये। अध्ययन किये गये देशों में से एक-तिहाई में टीकाकरण के प्रति भरोसे में कमी पायी गयी। लेकिन भारत, चीन और मैक्सिको ऐसे देश हैं, जहाँ टीके के प्रति भरोसे बना रहा व इसमें सुधार हुआ। यह रिपोर्ट आगाह करती है कि विश्व बच्चों के स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक चेतावनी का सामना कर रहा है। कोरोना महामारी के दौरान टीकाकरण की कवरेज में तेज़ी से गिरावट आयी, कई लाखों बच्चों को असुरक्षित स्थिति में छोड़ दिया।
कोरोना महामारी के मद्देनज़र वैश्विक स्तर पर बाल टीकाकरण की प्रगति को धक्का लगा। ग़ौरतलब है कि जो बच्चे टीकाकरण से छूट जाते हैं, वे अक्सर ग़रीब परिवारों, निम्न आय वाले देशों व दूर-दराज़ इलाक़ों और हाशिये के समुदायों से ताल्लुक़ रखते हैं। और कोरोना महामारी ने उन्हें और भी पीछे धकेल दिया। दुनिया भर में हर पाँचवाँ बच्चा ऐसा है, जिसे टीका नहीं लगा है। यानी ज़ीरो डोज या उसका पूर्ण टीकाकरण नहीं हुआ है। यानी उसकी आयु के अनुसार उसे जो-जो टीके लगने चाहिए थे, वे सभी उसे नहीं लगे हैं। हर पाँच में से एक बच्चा खसरे के प्रति असुरक्षित है, खसरा बच्चों के लिए जानलेवा है। क़रीब 8 में से 7 लड़कियों को एचपीवी नहीं लगा है, यह टीका सर्वाइकल कैंसर से बचाव करता है।
टीके हर साल 44 लाख ज़िन्दगियाँ बचाते हैं, यह आँकड़ा वर्ष 2030 तक 58 लाख तक जा सकता है, यदि टीकाकरण एंजेडा 2030 को हासिल कर लिया जाएगा। सतत विकास लक्ष्यों की सूची में यह भी शामिल है। पर इसके साथ ही यह भी ध्यान देने वाली बात है कि बीते कुछ दशकों में टीकाकरण के प्रति बढ़ते प्रयासों के बावजूद ज़ीरो डोज वाले बच्चों की संख्या कम करने में बहुत कम प्रगति हुई है। प्रत्येक बच्चे तक पहुँचना एक चुनौती बनी हुई है। डॉक्टरों की राय में जब हम बच्चों को टीका नहीं लगवाते हैं, तो हम उनके जीवन और स्वास्थ्य को जोखिम में डालते हैं; साथ ही समाज की वृद्धि और विकास को भी। टीकाकरण बच्चों को बीमारियों के ख़िलाफ़ सुरक्षा प्रदान करता है, वह बच्चों की स्कूल में ग़ैर-हाज़िरी को कम करता है, जिससे उसके सीखने के नतीजे भी सुधरते हैं।
यही नहीं, जब बच्चे रोगों के ख़िलाफ़ सुरक्षित रहते हैं तो उनके अभिभावकों व देखभाल करने वालों को अपना अधिक वक़्त उनकी देखभाल में नहीं व्यतीत करना पड़ता। इससे उन्हें अपने काम से बार-बार अवकाश नहीं लेना पड़ता। ख़ासकर माँओं को। परिवारों को कम भावात्मक पीड़ा का सामना करने की संभावना रहती है और कई बार बीमार बच्चे की देखभाल की भारी क़ीमत चुकानी पड़ती है। बहुत-से बच्चे जो ज़ीरो डोज वाले और जिनका पूर्ण टीकाकरण नहीं हुआ है, वे चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में रहते हैं। जैसे कि दुर्गम स्थनों पर, शहरी बस्तियों में जहाँ निर्माण कार्य चल रहा होता है, ग्रामीण इलाक़े ऐसे इलाक़े जो सघर्ष व संकटग्रस्त की श्रेणी में आते हो। विश्व में पाँच में से दो बच्चे, जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है; वे संघर्ष प्रभावित या कमज़ोर हालात वाले स्थानों में रहते हैं।
ये हालात टीकों को लेकर उपलब्धता, पहुँच व वहनीय क्षमता वाली चुनौतियाँ पैदा करते हैं। चुनौतियाँ निम्न व मध्य आय वाले देशों में अधिक हैं, जहाँ शहरी इलाक़ों में प्रत्येक 10 में से एक बच्चा ज़ीरो डोज वाले वर्ग में आता है, ग्रामीण इलाक़ों में यह आँकड़ा प्रति छ: बच्चों में एक है। उच्च-मध्यम आय वाले देशों में, शहरों व ग्रामीणों बच्चों में कोई अन्तर नहीं है। सबसे ग़रीब घरों में पाँच बच्चों में से एक बच्चा ज़ीरो डोज वाली श्रेणी में आता है, जबकि अमीर देशों में यह आँकड़ा 20 बच्चों में से एक का है। इस पर भी ग़ौर फ़रमाया गया कि उन बच्चों की माँएँ, जो बिलकुल पढ़ी-लिखी नहीं या कम शिक्षित हैं; उनके टीकाकृत होने की संभावना बहुत कम होती है।
यही नहीं, बहुत-से बच्चे टीकाकरण से इसलिए भी छूट जाते हैं, क्योंकि वे उन स्थानों पर रहते हैं, जहाँ प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की सेवाएँ बहुत सीमित हैं या नहीं हैं। जहाँ तक भारत का सवाल है, यह रिपोर्ट कहती है कि महामारी के दौरान ज़ीरो डोज वाले बच्चों की संख्या 30 लाख होने के बावजूद भारत ने 2020 ओर 2021 के बीच इस दिशा में अच्छा काम किया और ऐसे बच्चों की संख्या 30 लाख से घटकर 27 लाख रह गयी। यह अटूट राजनीतिक प्रतिबद्धता और सरकार द्वारा शुरू किये गये साक्ष्य आधारित निरंतर कैच-अप अभियानों के कारण सम्भव हो सका है।
द स्टेट ऑफ द वल्ड्र्स चिल्ड्रन 2023 रिपोर्ट इस बात को भी रेखांकित करती है कि भारत में हर पाँचवाँ बच्चा टीकाकरण से चूका हुआ है, उस तक पहुँचने के लिए भारत को प्राथमिक स्वास्थ्य देखरेख में निवेश को प्राथमिकता देनी होगी। यह रिपोर्ट स्वीकार करती है कि भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में से एक है जहाँ टीकों के प्रति सबसे अधिक विश्वास है। यह भारत के टीकों के महत्त्व को बताने व संदेह को संबोधित करने वाले प्रयासों की प्रभावशीलता को प्रदर्षित करता है। देश के टीकाकरण पर नज़र डालें, तो पता चलता है कि टीकाकरण पर विस्तारित कार्यक्रम सन् 1978 में शुरू किया गया था। इसका लक्ष्य शैश्वावस्था में कम-से-कम 80 प्रतिशत कवरेज था। टीकाकरण की सुविधा प्रमुख अस्पतालों में दी जाती थी और यह सुविधा बड़े पैमाने पर शहरी इलाक़ों तक ही सीमित थी।
सन् 1985 में इसका नाम बदलकर सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम कर दिया गया और इसका दायरा शहरों से बढ़ाकर गाँवों तक कर दिया गया। सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत हर साल देश में 2.67 करोड़ नवजात शिशुओं व तीन करोड़ गर्भवती महिलाओं को टीके लगाये जाते हैं। इस कार्यक्रम के तहत बच्चों को राष्ट्रीय स्तर पर इन बीमारियों के ख़िलाफ़ टीके लगाये जाते हैं- डिप्थीरिया, काली खाँसी, टिटनेस, खसरा-रूबेला, बचपन में तपेदिक के गम्भीर रूप से बचाव के लिए हेपेटाइटिस-बी और मेनिनजाइटिस और निमोनिया हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप-बी, रोटावायरस। पोलियो से बचाव के लिए ड्रॉप्स दिये जाते हैं। इसके अलावा जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन भी दी जाती है; लेकिन यह उन्हीं इलाक़ों में दी जाती है, जहाँ जापानी बुख़ार बच्चों को अपना निशाना बनाता है। सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के दो प्रमुख उपलब्धियाँ 2014 में देश से पोलियो का उन्मूलन और 2015 में मातृ और नवजात टिटनेस उन्मूलन है। भारत के लिए पोलियो मुक्त होना एक बहुत बड़ी चुनौती थी; लेकिन राजनीतिक प्रतिबद्धता के कारण भारत ने यह सम्भव कर दिखाया और दूसरे देश यह देख हैरान रह गये। भारत ने बाल टीकाकरण की दर को बढ़ाने के लिए दिसंबर, 2014 में मिशन इंद्रधनुश अभियान शुरू किया और इसका उद्देश्य बच्चों की पूर्ण टीकाकरण कवरेज को 90 $फीसदी तक बढ़ाना है।
इस अभियान के तहत कम टीकाकरण कवरेज वाले क्षेत्रों और दुर्गम क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जहाँ ग़ैर-टीकाकृत और आंशिक रूप से टीकाकृत बच्चों का अनुपात सबसे अधिक है। भारत ने बाल टीकाकरण को मज़बूत करने के लिए कोल्ड चेन की क्षमता को भी सुदृढ़ किया। कोल्ड चैन उपकरणों की मरम्मत और रख-रखाव में कोल्ड चैन तकनीशियनों को तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए नेशनल कोल्ड चेन ट्रेनिंग सेंटर पुणे और नेशनल कोल्ड चेन एंड वैक्सीन मैनेजमेंट रिसोर्स सेंटर नई दिल्ली में स्थापित किया गया है। इसके अलावा भारत सरकार ने यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि देश के हर सेंटर में टीके बराबर उपलब्ध रहे।
भारत सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क प्रणाली शुरू की है, जो संपूर्ण वैक्सीन स्टॉक प्रबंधन, उनके लॉजिस्टिक्स और तापमान ट्रेकिंग सरीखे वैक्सीन भंडारण के सभी स्तरों पर राष्ट्रीय से लेकर उप ज़िला तक डिजिटाइज करती है। देश भर में 27,000 से अधिक कोल्ड चैन हैं। टीकाकरण में भरोसा तो बना हुआ है; लेकिन इसे बनाये रखना और इस भरोसे के स्तर में वृद्धि करने के लिए प्रयासों में निरंतरता बनाये रखना ज़रूरी है।