दोपहर के समय पूर्व दिल्ली के शास्त्री नगर में जि़ला मजिस्ट्रेट कार्यालय में बचाव दल बचाव अभियान चलाने की अनुमति मिलने का इंतजार कर रहा था। यह एक सामान्य कार्रवाई थी। टीम में किसी को यह पता नहीं था कि वे कहां जा रहे हैं सिवाए इस विचार को छोड़कर कि वे सभी एक आम-मिशन के लिए इक_े हुए हैं- बच्चों को बचाने के लिए। जो कारखानों, दुकानों और अन्य स्थानों में अवैध रूप से मज़दूरी करते हैं।
जल्दी ही बाल श्रम बचाव अभियान शुरू हुआ। टीम चार समूहों में विभाजित हो गई वे शास्त्री नगर इलाके की भीड़ वाली तंग गालियों में फैल गए अधिकतर रिहायशी इलाके में जहां यह अवैध कारखाने, चल रहे थे। इन कारखानों में ज़्यादातर, कढ़ाई, ज़री और आभूषण बनाने का काम होता है। इन कारखानों में आठ साल की उम्र के बच्चों को भी कार्य में शामिल किया गया था।
कारखाने और दुकान वालों को इस अभियान का पता पहले से ही चल गया था और उन्होंने बच्चों को बचाव दल की आंखों से बच कर इधर-उधर भागने के लिए कहा। बचाव दल केवल 12 बच्चों को ही बचा पाया। यहां जब भी छापा मारा जाता हैं तो फैक्टरी वालों को इसका पता पहले ही चल जाता है। कारखाने के मालिकों को हमारी योजना का पहले ही पता चल जाता है। इस मिशन का नेतृत्व करने वाले अरशद ने ‘तहलका’ को बताया।
26 जून को कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाऊंडेशन की टीम के साथ लगभग 12 कर्मचारियों ने पूर्व दिल्ली के शास्त्री नगर में बाल श्रम -बचाव अभियान किया। यह अभियान का दूसरा दिन था। कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाऊंडेशन की टीम में रेड एफएम इंडिया, जिला मेजिस्ट्रेट के महेश और ‘तहलका’ भी शामिल थे।
बच्चों ने बताया
11वर्षीय आकाश (बदला हुआ नाम) ने हिचकिचाहट के साथ अपने दाहिने हाथ में गहरे कट का निशान दिखाया, एक चोट जो उसे पूर्वी दिल्ली में एक जूस की दुकान में काम करते हुए लगी थी। शुरू में लड़के ने अपने कट (ज़ख्म) के बारे में जानकारी देने से इंकार कर दिया। परन्तु जब उसे यह आश्वासन दिया गया कि भविष्य में ऐसा कुछ नहीं होगा, तो उसने बताया कि उसने दुकान में काम करना छोड़ दिया क्योंकि दुकान का मालिक अक्सर छोटी-छोटी गलतियों पर उसे मारता था।
”पहले वाला मालिक बहुत बुरा इंसान था। रोज़ मारता था, हर बात पर- जो भी हाथ में आता था उठा कर मार देता था’’। तभी वहां काम छोड़ दिया। आकाश ने कहा।
दूसरे पीडि़त विजय (बदला हुआ नाम) जो कि बिहार के दरभंगा जि़ले से था और तीन महीने पहले काम करने के लिए दिल्ली आया था। वह पूर्वी दिल्ली में स्थानीय चाइनीज फास्ट फूड की दुकान पर एक कुक के रूप में काम करता था। यह 15 वर्षीय 10 घंटे तक बिना आराम किए और बिना साप्ताहिक अवकाश के काम करता। जब उससे मुलाकात हुई तब तक उसे मालिक से कोई पैसा भी नहीं मिला था।
बिहार के पूर्णिया जि़ले के 13 वर्षीय सोनू (बदला हुआ नाम) ने कहा कि वह तंग जगह में कमरे को नौ-दस अन्य साथियों के साथ सांझा करता है। वे सभी सहायक या मज़दूरों के रूप में पूर्वी दिल्ली में कपड़ों की दुकान में काम करते हैं।
आकाश, विजय और सोनू 12 जून को कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाऊंडेशन और रेड एफएम इंडिया के नेतृत्व में बालश्रम बचाव अभियान में बचाए गए 12 लड़कों में से तीन थे। ‘तहलका’ को जो इस मिशन में भागीदार था उसे लड़कों से बातचीत करने का अवसर मिला।
जांच से पता चला है कि 11 लड़के बिहार और उत्तरप्रदेश के थे। इन्हें दो-तीन महीने पहले दिल्ली लाया गया था।
बिहार में दरभंगा और पूर्णिया जि़लों और उत्तरप्रदेश के दहरिया और बादान जि़ले के अधिकांश लड़के भारत की राजधानी में बाल मज़दूरी में लगे हुए हैं। इन लड़कों में से एक उसी दिन वहां पहुंचा था जिस दिन यह बचाव अभियान चला गया था। बचाव दल ने पाया कि लगभग हर दिन बिहार और उत्तरप्रदेश के पिछड़े इलाकों से एक या दो लड़के शास्त्री नगर के लघु उद्योग क्षेत्र में आते हैं।
हालांकि विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि पिछले दो दशकों में बाल श्रम (बाल मज़दूरी) में नाटकीय गिरावट आई है। अभी भी भारत में बाल श्रम को खत्म करना एक कठिन कार्य है। ऐसी कई नीतियों के बावजूद भी लगभग 80 फीसद बच्चे अभी भी शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी आर्थिक- सामाजिक स्थितियों के अधिकार से वंचित हैं और गैर कानूनी गतिविधियों में उनके बचपन और भविष्य के खो जाने का जोखिम हैं।
बाल श्रम अधिनियम
जुलाई 2016 में संसद ने बाल श्रम संशोधन बिल पारित किया था। यह अधिनियम 83 खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में बच्चों के रोज़गार पर रोक लगाता है। यह अधिनियम 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के रूप में ”किशोरावस्था’’ को परिभाषित करता है और किसी भी खतरनाक व्यवसाय में बच्चों के रोज़गार पर रोक लगाता है।
अधिनियम स्पष्ट करता है कि 14 साल से कम उम्र के बच्चों को कार्य पर रखने वाले को छह महीने से दो साल तक की जेल और 20 हजार से 50 हजार रुपए का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। यह अपराध दोहराने पर अपराधी को एक से तीन साल तक की जेल हो सकती है। 12 जून 2018 को बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस के अवसर पर कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाऊंडेशन और रेड़ एफएम इंडिया दोनों बाल सुरक्षा के महान मिशन को आगे बढ़ाने के लिए एक साथ आए।
नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने रेड एफएम से कहा,” जब मैंने बाल श्रम के खिलाफ अपनी लड़ाई शुरू की तब रेडियो मेरी सक्रियता का एक साधन था। प्रसारण माध्यम के रूप में रेडियो का एक दूरगामी प्रभाव है जो दूर दराज के क्षेत्रों में पहुंचने की क्षमता रखता है। मुझे खुशी है कि सुरक्षित बचपन का संदेश जनता तक पहुंच सकता है’’।
रेड एफएम के आरजे रौनक ने कहा, ”मैं हाल में एक बचाव अभियान का हिस्सा बना था मेरा विश्वास कीजिए वहां से बचाए गए बच्चों को जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की सख्त ज़रूरत है। वे भूखे थे और कपड़ों से वंचित थे। मुझे पूरा विश्वास है कि कैलाश सत्यार्थी फाऊंडेशन उनके जीवन को एक नया अर्थ देगा और उनकी शिक्षा का ध्यान रखेगा’’।
फिलहाल इन लड़कों की कैलाश सत्यार्थी फाऊंडेशन के ‘बचपन बचाओं आंदोलन’ के पुनर्वास केंद्र ‘मुक्ति आश्रम’ में देखभाल की जा रही है।