हमारा देश चमत्कारों का देश है। यहां कुछ भी हो सकता है। पुलिस, प्रशासन, लोग या जानवर कुछ भी ऐसा कर सकते हैं जिसकी किसी ने कल्पना भी न की हो। शायद इसका कारण हमारी सदियों पुरानी संस्कृति है। पूरी दुनिया घूमने के बाद पता चलता है कि इंसान को मोक्ष दिलाने के ठेकेदार जितने यहां है उतने पूरी दुनिया में कुल मिला कर भी नहीं होंगे। खैर, हमारा देश आदि काल से ऐसे ही चल रहा है।
इस बार उत्तरप्रदेश पुलिस ने फिर कमाल कर दिया। उसने एक वृद्ध की हत्या के मामले में कुछ ‘अन पहचाने’ बंदरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है। पुलिस जो कभी हत्या के मामले से लेकर पाकेटमारी तक में एफआईआर लिखने से कतराती है, उसने बंदरों के खिलाफ मामला दर्ज कर नई शुरूआत कर दी है। अब बंदरों की खैर नहीं। इन बंदरों पर आरोप है कि उन्होंने एक बूढे आदमी की पत्थर मार कर हत्या कर दी। अब बंदरों ने पत्थर कैसे मारे और उनकी उस बूढ़े के साथ ऐसी क्या दुश्मनी थी कि उन्होंने उसकी जान ही ले ली, यह प्रश्न अभी भी हल नहीं हुआ। हत्या के मामले में ‘मॉटिव’ का होना ज़रूरी है। यदि अदालत में हत्यारे के खिलाफ ‘मॉटिव’ साबित न हो सके तो वह छूट सकता है।
अब बंदरों ने किस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उस बूढ़े को मारा यह जांच का विषय है। यदि पुलिस इस जांच में कुछ भी हासिल नहीं कर पाती है तो मामला सीबीआई को भी सौंपा जा सकता है। आखिर मामला बंदरों और बूढ़े का है। साथ ही आजकल हालात सीबीआई में भी कुछ ठीक नहीं है पर फिर भी आज तक तो वही देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी है।
सवाल यह है कि आखिर इन बंदरों को पत्थर चलाने की ट्रेनिंग किसने दी यह भी जांच का विषय है। असल में यह मामला इतना सीधा नहीं है जितना दिखता है। देखना यह होगा कि क्या इन बंदरों को आतंकवादी शिविरों में रखा गया था या फिर कश्मीर के पत्थरबाजों से इन बंदरों ने प्रशिक्षण लिया। यह किसी शत्रु मुल्क की साजिश भी हो सकती है। देश की सुरक्षा के लिए यह मामला अति गंभीर है। इसी कारण तो योगी सरकार की देशभक्त पुलिस ने इन बंदरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। मामला देश का न होता तो उस बूढ़े के मरने की शिकायत कौन दर्ज करता? बूढ़े तो वैसे भी मरने के लिए ही होते हैं। और फिर जिस बूढ़े के पास न धन हो और न कोई देखभाल करने वाला तो उसके जीवन का क्या अर्थ। देश तो युवाओं का है। नौजवान इसे चला रहे हैं, ऐसे में यहां बूढ़ों का क्या काम?
मेरे हिसाब से तो सरकार को एक कानून बना कर देश में जीने की अधिकतम आयु तय कर देनी चाहिए। जैसे एक निश्चित आयु प्राप्त कर लेने के बाद आदमी को नौकरी से रिटायर कर दिया जाता है। उसी प्रकार एक निर्धारित आयु के बाद बूढ़ों को इन बंदरों के हवाले कर देना चाहिए। अपने आप पत्थरों से मारते रहेंगे।
पुलिस ने जो एफआईआर दर्ज की है, उसका मकसद क्या है, यह तो अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। शायद पुलिस इसलिए उन्हें तलाश रही है ताकि उनकी रहनुमाई में और बंदरों को प्रशिक्षित किया जा सके। इस प्रकार बंदरों की एक फौज तैयार की जाए जो ‘राफेल’ विमान तक उड़ा सके। फिर युद्ध में हमारे ये पत्थरबाज बंदर अपनी पूरी भूमिका निभाएंगे। इन्हें तो वेतन भी नहीं देना होगा। वैसे तो कहावत है -‘बंदर के हाथ उस्तरा’। यहां तो उनके हाथों में पत्थर तो आ ही गए हैं अब बात बंदूक देने की भी हो सकती है।
बंदरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का कुछ पशु प्रेमी विरोध कर रहे हैं, तो कुछ ने इसे आस्था पर प्रहार की संज्ञा भी दी है। कहते हैं बंदर का तो स्वभाव ही चंचल है, उसी चंचलता में मार दिए होंगे दो-चार पत्थर । अब अगर बूढ़ा जिसने जीवन में न जाने कितने धक्के खाए होंगे दो-चार पत्थर भी सहन नहीं कर सका तो इसमें बंदरों का क्या कसूर। कुछ भी हो योगी सरकार की इस देशभक्त पुलिस ने जो कारनामा किया है वह निश्चित तौर पर गज़ब का है। कम से कम एफआईआर दर्ज करने की हिम्मत तो दिखाई, चाहे बंदरों के खिलाफ ही सही।