पश्चिम बंगाल विधानसभा में मंगलवार को राज्य में ऊपरी सदन यानी विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव बड़े बहुमत से पास हो गया है। सत्तारूढ़ टीएमसी ने विधानसभा में यह प्रस्ताव पेश किया और चर्चा के बाद प्रस्ताव के पक्ष में 196 सदस्यों ने वोट दिए जबकि खिलाफ सिर्फ 69 वोट ही पड़े।
बता दें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत राज्य में विधान परिषद का गठन किया जा सकता है। विधान परिषद के गठन के लिए विधेयक संसद में लाना होता है और पास होने के बाद इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाता है।
टीएमसी प्रमुख लोगों को, जिनमें काफी टीएमसी के नेता भी हैं, को विधान परिषद् में भेजना चाहती हैं क्योंकि सभी को विधानसभा में टिकट नहीं दिया जा सका था या कुछ प्रमुख में हार गए थे। खुद ममता बनर्जी भी अभी किसे सदन की सदस्य नहीं हैं।
याद रहे 18 मई को तीसरी बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के कुछ समय के बाद ही ममता बनर्जी ने विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव कैविनेट से पास करवा लिया था।
ममता बनर्जी ने चुनाव के दौरान भी इसका वादा किया था। वैसे बंगाल में पहले मुख्यमंत्री बिधान चंद्र रॉय ने 1952 में विधान परिषद का गठन किया था लेकिन अगली सरकार ने 1969 में इसे ख़त्म कर दिया गया।
यदि गुना भाग देखा जाए तो बंगाल में विधान परिषद की 98 तक सीटें हो सकती हैं। सदस्यों की आयु 30 वर्ष से काम नहीं होनी चाहिए। परिषद् सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। परिषद् में स्पीकर और डिप्टी स्पीकर की जगह सभापति (चेयरमैन) और उपाध्यक्ष होता है। इसके सदस्यों का चुनाव विधायक करते हैं जबकि अन्य नगर निकाय, जिला परिषद और अन्य स्थानीय निकायों की तरफ से चुने जाते हैं। इसके अलावा सरकार की सिफारिश पर राज्यपाल कुछ सदस्य मनोनीत (बंगाल में यह संख्या 12-13 हो सकती है) भी करते हैं।