देश की 17वीं लोकसभा में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए को 2014 की तुलना में कहीं ज़्यादा सीटें मिली हैं। इसके बाद भी लगातार भाजपा इस कोशिश में है कि किस तरह बंगाल पर अपना आधिपत्य जमाया जाए। इसके लिए चुनाव बाद की हिंसा का नित्य प्रति फैलाव हो रहा है। यह कोशिश की जा रही है कि राज्य में पहले ही चुनाव करा दिए जाएं। इस तैयारी में भाजपा खास तौर पर रुचि ले रही है।
पश्चिम बंगाल में राज कर रही ममता बनर्जी ने भाजपा से मुकाबला करने का सिलसिला शुरू किया है। लोकसभा 2019 में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के सांसदों में फासला महज चार-पांच सीटों का ही है। एक सवाल के जवाब में ममता ने कहा कि उन्हें कतई 2019 में हुए लोकसभा चुनाव नतीजों का अंदाजा नही था। उन्होंने कहा, भाजपा नहीं जानती कि घायल बाघिन ज़्यादा खतरनाक होती है। कहीं बंगाल में मोदी शाह की पार्टी को मुंह की न खानी पड़ जाए।
बंगाल में चुनावी हिंसा में तृणमूल और भाजपा अपने अपने कार्यकर्ताओं के मारे जाने की संख्या बढ़ा-चढ़ा कर बता रहे हैं। पिछले महीने कोलकाता में कालेज स्ट्रीट स्थित विद्यासागर कालेज में रखी बंगाल के विख्यात शिक्षा शास्त्री, दार्शनिक, समाज सुधारक और लेखक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की एक पुरानी मूर्ति को भाजपा-संघ परिवार के लोगों ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की चुनावी प्रचार रैली में तोड़ डाला था वहां आगजनी और तोडफ़ोड़ भी हुई थी। बंगाल में किसी भी बालक की शिक्षा की शुरूआज जब होती है तो ईश्वरचंद्र विद्यासागर की लिखी वर्णमाला पाठ से उसकी विद्या आरंभ होती है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को विद्यासागर कालेज में ईश्वर चंद्र विद्यासागर की साढ़े आठ फुट ऊंची मूर्ति का अनावरण (10 जून) पूरे धार्मिक-शैक्षणिक संस्कारों के साथ किया । इसे फाइबर ग्लास से ढका गया है। इस मौके पर विद्यासागर परिवार के लोग भी मौजूद थे। ममता ने कहा चुनाव बाद राज्य में हो रही हिंसा में तृणमूल के आठ और भाजपा-संघ परिवार के दो लोग मारे गए हैं। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। मैंने राज्य के आपदा प्रबंधन कोष से सभी मृतकों के परिजनों को आर्थिक मदद दी है। इस राज्य को भाजपा पूरी कोशिश कर रही है कि गुजरात बना दिया जाए। लेकिन ऐसा मैं नहीं होने दूंगी।
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जो खुद माने हुए वकील रहे हैं, उन पर आरोप है कि वे राज्य सरकार को भंग करने की तमाम कोशिशों में जुटे हैं। मुख्यमंत्री ने राज्यपाल का नाम लिए बिना कहा कि वे राज्य की संस्कृति बचाने के लिए जेल भी जाने को तैयार हैं। वे नहीं चाहती कि बंगाल फिर 50 पहले के दौर में आ जाए जब राज्य में हर कहीं धमाके ही धमाके होते थे और हिंसा व आगजनी का दौर-दौरा था।
उन्होंने कहा कि बंगाल की विरासत और संस्कृति को ये लोग जिस चश्मे से देखते हैं वह बहुलतावादी नहीं है। बांग्ला संस्कृति और साहित्य में पूरे समाज के वर्गों का हाथ रहा है। येे चाहते हैं। कि बंगवासी अपनी संस्कृति और विरासत भूल कर उत्पाती तत्व बन जाएं। इन लोगों ने एक समाज सुधारक, शिक्षाविद की मूर्ति तोड़ी। यह शर्मनाक हरकत थी। लेकिन ये जो करते हैं उस पर कभी इन्हें कोई पछतावा नहीं होता।
अब ये हम पर मूर्ति तोडऩे का इल्ज़ाम लगा रहे हैं। हमने कभी कार्ल माक्र्स और लेनिन की आदमकद मूर्तियां नहीं तोड़ी । हम तो बंगाल की सत्ता में 35 साल के वामपंथी राज के बाद आए। हमने कभी ऐसा विध्वंस भी नहीं किया। लेकिन त्रिपुरा में सत्ता में आते ही इन्होंने आम्बेडकर, लेनिन और पेरियार की मूर्तियां तोड़ी। अब ये बंगाल को गुजरात बनाना चाहते हैं। इनकी कोशिश है कि बंगाल की जो शिक्षित तस्वीर देश के सामने है उसे ये नष्ट कर दें।
पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से विभिन्न दलों के बीच हिंसा गहराती गई। बैरकपुर में तृणमूल के दो समूहों में आपस में टकराव हुआ। पुलिस ने तृणमूल नेताओं के आदेशों के तहत काम किया। अभी ताजी हिंसा उत्तरी 24 परगना में हुई थी। भाजपा नेताओं के अनुसार यह हिंसा तृणमूल की आंतरिक गुटबाजी के चलते हुई। फिलहाल जो हिंसा हो रही है वह देसी हथियारों और देसी बमों के जरिए हो रही है। इसका मकसद सिर्फ दहशत फैलाना है। साथ ही इलाकाई दादागीरी को एक बड़ी रकम पाने की आस में बचाए रखना है। इसमें कहीं-कहीं पुलिस और बड़े नेता भी हिस्सेदार हैं।
सिर्फ सत्ता के लिए एक चुनी हुई सरकार को किसी भी तरह गिरा देने से तरह-तरह की शंकाएं उपजती हैं। मानिकलता में मिठाई के व्यपारी तरुण घोष कहते हैं कि पहले कम्युनिस्ट राज ज़रूर था लेकिन पूरे राज्य में शांति थी। छिटपुट हिंसा थी। अभी तो पांचायत, विधानसभा,लोकसभा तमाम चुनावों में सत्ता पाने के लिए गंठजोड़ , दादागीरी और धर्म का सहारा राज्य में अशांति ही बढ़ा रहा है। इससे बच्च,ों बड़ों का भविष्य बिगड़ रहा है। और बुजुर्गों की परेशानी बढ़ रही है। ऐसा तब नहीं था।
बहरहाल पश्चिम बंगाल में अशांति का फैला डर और आतंक पैर पसार रहा है। आज जनजीवन परेशान है।