डिजिटल मीडिया के दिग्गज प्लेटफॉर्म फेसबुक के भारत में 340 मिलियन (34 करोड़) से अधिक और व्हाट्स एप के 400 मिलियन (40 करोड़) उपयोगकर्ता हैं। मगर यह वैश्विक दिग्गज कम्पनी फेसबुक तब सवालों के घेरे में आ गयी, जब अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया कि फेसबुक ने भारत में अपने व्यापारिक हित बचाने के लिए सत्तारूढ़ दल के एक विधायक के घृणा और उन्माद फैलाने वाले संदेशों को लेकर नरमी दिखायी है। क्योंकि भारत फेसबुक के लिए एक बड़ा बाज़ार है और लॉकडाउन के दौरान 22 अप्रैल, 2020 को इसने घोषणा की थी कि उसका इस क्षेत्र में अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए रिलायंस जियो में 9.99 फीसदी हिस्सेदारी के लिए 5.7 बिलियन डॉलर (43,574 करोड़ रुपये) का निवेश करने का इरादा है।
अब कांग्रेस नेता शशि थरूर की अध्यक्षता वाली सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी संसदीय समिति ने फेसबुक के प्रतिनिधियों को 2 सितंबर को तलब किया है। इधर, सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति के दो सदस्यों केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन राठौर और भाजपा के ही नेता निशिकांत दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष इस बात को लेकर आपत्ति जतायी कि थरूर ने पैनल के सदस्यों के साथ चर्चा किये बिना समिति के समक्ष फेसबुक को बुलाने के अपने इरादे को ट्वीट करके नियम तोड़ा है। फेसबुक के प्रतिनिधियों के अलावा समिति ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के प्रतिनिधियों को भी नागरिकों की सुरक्षा के अधिकारों और सामाजिक/ऑनलाइन समाचार मीडिया प्लेटफार्मों के दुरुपयोग को रोकने और डिजिटल स्पेस में महिला सुरक्षा पर विशेष ज़ोर देने जैसे विषय पर चर्चा करने के लिए 2 सितंबर को मौज़ूद रहने के लिए कहा है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब यह सुनिश्चित करने के लिए कि फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म राजनीतिक तटस्थता बनाये रखते हैं, सरकार और विपक्ष को राष्ट्रीय हित में एकजुट होना चाहिए था; लेकिन दोनों ने एक-दूसरे के विपरीत पक्ष लिया है। फेसबुक एक मीडिया कम्पनी है और यह कानून के दायरे में आती है। उसे एक मीडिया कम्पनी की तरह ही मानने और उसके मामले में कानून के शासन को लागू करने की आवश्यकता है। द वॉल स्ट्रीट जर्नल (डब्ल्यूएसजे) की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा प्रतीत होता है कि कथित तौर पर कंटेंट का ध्रुवीकरण करके, बेहद सफल कम्पनी ने नैतिकता और सामग्री की तटस्थता के मुकाबले व्यावसायिक हितों को तरजीह दी है। फेसबुक के सह संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क एलिअॅट जुकरबर्ग ने यह स्पष्टीकरण दिया है कि भारतीय नागरिकों के सामाजिक सरोकारों को फेसबुक के कथित व्यावसायिक हितों के लिए क्यों खारिज कर दिया गया? जो एक क्रूर एकाधिकार है और भारतीय डिजिटल मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र में फैला है। पारम्परिक भारतीय मीडिया ने हमेशा नियामक उपायों और नैतिक प्रतिबद्धताओं के कारण अपने प्लेटफार्मों को नफरत से दूर रखा है। हालाँकि यहाँ फेसबुक सिर्फ भारत में पैसा कमाने के लिए गलत हो गया।
रिपोर्ट के मुताबिक फेसबुक जैसी एक डिजिटल मीडिया कम्पनी, जो व्हाट्स एप और इंस्टाग्राम की भी मालिक है; ने घृणास्पद सामग्री के प्रति आँखें मूँद लीं, जिससे भारत जैसे अच्छे लोकतंत्र में सौहार्द और सामंजस्य के लिए खतरा पैदा हो गया। यह दूसरों की तरह एक डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म है और इसे भारत के अन्य मीडिया हाउसों की तरह नियामक दायित्वों के तहत आना चाहिए। फेसबुक में दुनिया की एक बहुत बड़ी आबादी के विचारों को प्लेटफॉर्म देने की क्षमता है और यह निगरानी के तहत आती है। लिहाज़ा उसे जीवंत लोकतंत्र की खातिर अवश्य ही कानून के सामने तलब किया जाना चाहिए।