पिछले दिनों जिस प्रकार देश में फेसबुक और व्हाट्स एप को लेकर सियासी खेल खेला गया, उसका पटाक्षेप हो गया है। इसके चलते फेसबुक अब सियासी रण का मुद्दा बना हुआ है। दरअसल अब राजनीतिक लोग इस कदर निजी स्वार्थ में फँसते जा रहे हैं कि वे जनमामस को मिलने वाले अधिकारों को दरकिनार करने पर आमादा हैं। आज देश में सत्ता का बेहिसाब फायदा न उठाकर विकास की राजनीति करने वाले कम ही हैं। एक दौर था, जब नेता लोगों से मिलकर उनकी समस्याओं का समाधान करते थे, जिससे वे लोगों के बीच लोकप्रिय भी होते थे। लेकिन अब अधिकतर नेता नयी तकनीक के माध्यम से एक-दूसरे के खिलाफ साज़िशें कर रहे हैं। राजनीतिक रोटियाँ सेंकने और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर सामने वाले को नीचा दिखाने में लगे हैं।
फेसबुक पर उठे ताज़ा विवाद इसी का नतीजा है। तहलका संवाददाता ने इस मसले पर कई नेताओं से बात की, तो उन्होंने एक-दूसरे दल पर आरोप-प्रत्यारोप लगा अपना-अपना पल्ला झाड़ लिया। दरअसल फेसबुक को लेकर विवाद अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल में एक खबर छपने के बाद शुरू हुआ। अखबार ने खुलासा किया है कि भाजपा के कुछ नेताओं ने फेसबुक और व्हाट्स एप का इस्तेमाल अपने फायदे और हिंसा भड़काने के लिए किया है; जो फेसबुक नियमों का सरासर उल्लघंन है। अखबार की रिपोर्ट में इस बात का साफ दावा किया गया है कि तेलगांना के विधायक टी. राजा सिंह की नफरत फैलाने वाली पोस्ट पर फेसबुक ने कोई कार्यवाई इसलिए नहीं की, क्योंकि कम्पनी के व्यापारिक हित जुड़े हैं और ऐसा करना उसे काफी नुकसान पहुँचा सकता था। ऐसे में कांग्रेस का चिन्तित और सत्ता पक्ष पर हमलावर होना स्वाभाविक है। वैसे गौर करें तो इसका सम्बन्ध देश के हर नागरिक से जुड़ा है; क्योंकि फेसबुक और व्हाट्स एप की पहुँच तकरीबन हर नागरिक तक है। फेसबुक एक ऐसा खुला मंच है, जो अभिव्यक्ति की आज़ादी और सूचनाओं से जुड़ा है। लेकिन अभिव्यक्ति की आज़ादी का पैरोकार माना जाने वाला सोशल मीडिया का यह मंच आज तमाम सवालों में घिरा है। इस समय भारत में लगभम 34 करोड़ फेसबुक और 40 करोड़ व्हाट्स एप उपभोक्ता जुड़े हुए हैं।
इसलिए फेसबुक के लिए भारत एक बड़ा बाज़ार है और उसकी यहाँ से मोटी कमायी होती है। इस लिहाज़ से सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो इस बात पर भी नज़र रखे कि सोशल मीडिया चलाने वाली कम्पनियाँ किस तरह से कितनी कमायी कर रही हैं? उसका लेखा-जोखा भी पूरे देश की नज़र में होना चाहिए। फेसबुक पर उठे विवाद पर कानून के जानकार एडवोकेट पीयूष जैन का कहना है कि संविधान का अनुच्छेद-19 यदि हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है, तो हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अनुच्छेद-19 (2) हमें आज़ादी के साथ बंदिशों में रखते हुए हमारी ज़िम्मेदारियाँ भी तय करता है। लेकिन आज की सियासत में बहुत-से लोग न तो उत्तरदायित्व समझते हैं और न ही उनका निर्वहन कर रहे हैं। ऐसे ही लोगों द्वारा कोरोना-काल में ध्यान भटकाने का काम किया जा रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने ट्वीट करके भाजपा तथा आरएसएस पर आरोप लगाये हैं कि भारत में फेसबुक और व्हाट्स एप के ज़रिये फर्ज़ी खबरें और नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं। राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी आरोप लगाया है कि पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ गतिरोध पर उन्होंने झूठ बोला है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि हर किसी को भारतीय सेना की क्षमता और शौर्य पर विश्वास है, सिर्फ प्रधानमंत्री को छोड़कर; उनकी कायरता ने चीन को हमारी ज़मीन पर कब्ज़ा करने की अनुमति दी है। मगर वह किसी को लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ नहीं करने देंगे। उन्होंने इस मामले पर लोगों से सवाल उठाने की भी अपील की है। वहीं, कांग्रेस महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग को पत्र लिखकर मामले की उच्चस्तर पर जाँच कराने की माँग की है। इतना ही नहीं कांग्रेस ने भारत और दक्षिण एवं मध्य एशिया में फेसबुक के लिए लोकनीति की निदेशक अंखी दास के खिलाफ भी मोर्चा खोला है। कांग्रेस के युवा नेता अमरीश रंजन का कहना है कि फेसबुक के माध्यम से जो देश में भाईचारे और आपसी सौहार्द को खत्म करने का काम किया जा रहा है, उसे कांग्रेस बर्दास्त नहीं करेगी।
कांग्रेस के नेता पवन खेड़ा ने कहा कि फेसबुक को कुछ कहने पर केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद क्यों भड़क जाते हैं? जबकि उन्हें इसका जवाब देना चाहिए, ताकि सच्चाई सामने आ सके। वहीं भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद का कहना है कि राहुल गाँधी लूजर (ढीले) हैं। जो लोग अपनी ही पार्टी के लोगों को प्रभावित नहीं कर सकते, वो अब भाजपा और आरएसएस पर पूरी दुनिया को कंट्रोल करने का आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव से पहले डाटा को हथियार बनाने के लिए राहुल गाँधी को कैंब्रिज एनालिटिका और फेसबुक के साथ गठजोड़ करते हुए पकड़ा गया था, और आज वह भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं। वहीं अंखी दास ने दिल्ली पुलिस की साइबर सेल में कुछ लोगों पर उन्हें जान से मारने की धमकी देने और उनकी फोटो वायरल करने का मामला दर्ज कराया है। बता दें कि फेसबुक को संसदीय समिति के सामने बुलाने पर सांसदों के टकराव की स्थिति है। कांग्रेस के सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता वाली सूचना प्रौद्योगिकी मामलों की संसद की स्थायी समिति द्वारा फेसबुक से जवाब माँगने पर सियासी घमासान मच गया है। समिति के कुछ सदस्यों के विरोध पर कांग्रेस का कहना है कि क्या ये सदस्य फेसबुक को बचाना चाहते हैं। शशि थरूर का कहना है कि यह विषय संसदीय स्थायी समिति के अधिकार क्षेत्र में है। हमारी संसदीय समिति सामान्य मामलों में नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा और ऑनलाइन न्यूज मीडिया प्लेटफॉर्म के दुरुप्रयोग पर विचार करेगी, ताकि सत्य सामने आ सके।
इधर इस विवाद में आम आदमी पार्टी ने कड़ा रुख अपनाते हुए फेसबुक को समन भेजने का फैसला लिया है। पार्टी विधायक राघव चड्ढा का कहना है कि फेसबुक अधिकारियों के खिलाफ बहुत सारी शिकायतें मिल रही हैं। फिर भी फेसबुक जान-बूझकर भड़काऊ पोस्ट के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। दिल्ली विधानसभा की शान्ति एवं सद्भाव समिति ने भी मामले पर तत्काल संज्ञान लेते हुए फेसबुक अधिकारियों को समन भेजने का फैसला लिया है। इसी सम्बन्ध में फेसबुक के ज़िम्मेदारों, खासकर फेसबुक की वरिष्ठ अधिकारी अंखी दास की समिति के समक्ष मौज़ूदगी सुनिश्चित करने को कहा गया है।
हेट स्पीच को लेकर उठे विवाद पर फेसबुक ने सफाई देते हुए कहा है कि दुनिया भर में हमारी नीतियाँ एक जैसी हैं। हम किसी की भी राजनीतिक हैसियत या पार्टी के जुड़ाव को देखे बिना नफरत और हिंसा फैलाने वाले भाषणों, खबरों पर अंकुश लगाते हैं। मानते हैं कि इस दिशा में अभी और भी कुछ करने की ज़रूरत है।
इधर, इस विवाद पर साइबर विशेषज्ञ आर.के. राज का कहना है कि जब एक रहस्य खुलता है, तो अनेक रहस्यों का उदय होता है। ऐसा ही फेसबुक और व्हाट्स एप के विवाद में हुआ है। वैसे डाटा को एकत्रित करने का खेल पुराना है। कभी-कभार इस मामले में आवाज़ तो उठती रही है। पर यह मामला राजनीतिक पक्षधरता से जुड़ा है; इसलिए इतना हो-हल्ला मचा है और मामले में गम्भीरता दिखायी जा रही है। राज का कहना है कि फेसबुक, व्हाट्स एप और ट्विटर जैसे प्रभावशाली सूचना माध्यमों पर भी हमें हर पल पैनी नज़र रखनी होगी, ताकि फेसबुक जैसी कोई घटना लोकतांत्रित प्रक्रिया को प्रभावित न कर पाये और भारतीय समाज को कोई नुकसान न हो पाये। सोशल मीडिया (फेसबुक) से जुड़ा एक चिन्ताजनक मुद्दा फर्ज़ी खबरों का जाल भी है; जिसकी वजह से देश में कई जगहों पर हिंसा तक भड़की है। ऐसे में इस समय फर्ज़ी खबरों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की ज़रूरत है; न कि फेसबुक को सियासी हथियार बनाने की। वैसे भी फेसबुक की विश्वनीयता पर सवाल उठते रहे हैं। वहीं कई देशों में सत्तारूढ़ दलों की ओर से फेसबुक तरफदारी करने और उसे राजनीतिक फायदा पहुँचाने के आरोप भी लगते रहे हैं।