21 जनवरी की दोपहर 2:00 बजे का वक्त था। सिटी पुलिस स्टेशन जयपुर उत्तर में अतिरिक्त पुलिस आयुक्त प्रथम अशोक गुप्ता के कमरे में एक महत्त्वपूर्ण बैठक चल रही थी। मीटिंग में गुप्ता के अलावा उत्तर पुलिस उपायुक्त राजीव पचार, अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त सुमित गुप्ता, सहायक पुलिस आयुक्त विजेन्द्र सिंह भाटी ओर आमेर थानाधिकारी राजेन्द्र सिंह चारण आजू-बाज़ू बैठे हुए थे। पिछले कुछ दिनों से जयपुर में पारिवारिक हत्याओं का ग्राफ बड़ी तेज़ी से बढ़ रहा था। सिर्फ एक महीने में तीन हत्याएँ न केवल चौंकाने वाली थीं, बल्कि लोगों में खौफ पैदा करने वाली भी थीं। एक दिन पहले ही 20 जनवरी की सुबह आमेर के दिल्ली रोड स्थित नयी माता मंदिर के पास एक खूबसूरत युवती की चेहरा कुचली लाश मिली थी। किसी ने बड़ी निर्दयता से उसकी हत्या कर दी थी। शव के पास ही हेलमेट और स्कूटी पड़ी हुई मिली थी। पुलिस ने बहुत कोशिश की कि खून किसने और क्यों किया? लेकिन इसका कोई सूत्र नहीं मिल रहा था। अब तक की जाँच के आधार पर आगे क्या करना चाहिए? इसी पर विचार विमर्श के लिए मीटिंग बुलायी गयी।
थानाधिकारी राजेन्द्र चारण ने वाकया फिर दोहराया- ‘सोमवार सुबह 9.00 बजे जब मैं अपने दफ्तर में काम कर रहा था; मुझे एक फोन कॉल से इत्तला मिली कि दिल्ली हाईवे पर दाऊजी की छतरी के पास माता मंदिर की झाडिय़ों में एक औरत की खून से लथपथ लाश पड़ी हुई है। उसके पास ही एक स्कूटी खड़ी है। घास में एक हेलमेट भी पड़ा है। फोन करने वाले ने अपना नाम बाबूलाल बताया कि घटना स्थल के पास ही मेरा चाय की दुकान है। उसका कहना था कि सुबह जब वह अपनी दुकान पर पहुँचा, तो यह खौफनाक नज़ारा देखकर वह काँप गया। सूचना मिलते ही मैं दल-बल के साथ सीधा घटनास्थल पर पहुँचा। माता मंदिर के दक्षिण की तरफ घनी झाडिय़ों के बीच एक युवती का क्षत्-विक्षत् शव पड़ा था। उसका चेहरा बुरी तरह कुचला हुआ था। युवती 25 बरस के लगभग थी और दिखने में बहुत खूबसूरत तथा चेहरे तथा वेशभूषा से पढ़ी-लिखी लगती थी। उसके पास में एक स्कूटी खड़ी हुई थी और निकट ही हेलमेट पड़ा हुआ था।’
थाना प्रभारी राजेन्द्र सिंह चारण ने बताया कि पहचान के लिए कोई सूत्र तलाशने के लिए पंजों के बल बैठकर मैंने युवती के चेहरे को गौर से देखा। चेहरा इस कदर कुचला गया था कि वह मांस का वीभत्स लोथड़ा बन गया था। थाना प्रभारी चारण के निर्देशों पर कांस्टेबल सुरेन्द्र ने युवती की जामा-तलाशी ली। लेकिन रुपयों से भरे पर्स के अलावा ऐसी कोई चीज़ नहीं मिली जिससे कि शव की सिनाख्त हो सके। चारण ने इसके बाद अफसरों को इसकी इत्तला दे दी।
ब्लाइंड मर्डर का मामला था। लिहाज़ा पुलिस के लिए एक नयी चुनौती थी। अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक गुप्ता, पुलिस उपायुक्त जयपुर उत्तर राजीव पचार, अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त सुमित गुप्ता और सहायक पुलिस आयुक्त आमेर विजेन्द्र सिंह भाटी तुरत-फुरत घटनास्थल पर जा पहुँचे। जयपुर के ऐतिहासिक उप-नगर आमेर क्षेत्र में दाऊजी की छतरी के पास का यह इलाका घने जंगल, मंदिर और रमणीयता के लिए जाना जाता है। शहर के कोलाहल से उकताये हुए अनेक लोग वहाँ घूमने जाते हैं। प्रेमियों के लिए तो वह मिलन का चॢचत ठिकाना था।
पुलिस अधिकारियों ने ध्यान से मृतक का चेहरा देखा। अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त सुमित गुप्ता भी लाश का मुआयना कर रहे थे। थानाधिकारी चारण ने बताया- ‘सर इसके पास से ऐसा कुछ नहीं मिला कि शव की सिनाख्त हो सके। जिस निर्ममता से चेहरा कुचला गया है। लगता है कोई गहरी रंजिश ही रही होगी?’
घटनास्थल पर अब तक काफी भीड़ इकट्ठी हो गयी थी। सभी ने उसका चेहरा देखा; लेकिन कोई पहचान नहीं सका। ‘मामला अन्तरंग सम्बन्धों का लगता है। लाश पर गहरी नज़र डालते हुए उपायुक्त राजीव पचार ने कहा- ‘लडक़ी विश्वास की डोर में बँधी थी। जिस लडक़े के साथ यहाँ वीराने में पहुँची, लगता है उसी ने इसकी हत्या कर दी।’
अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त सुमित गुप्ता ने युवती के गले की तरफ गौर से देखते हुए कहा- ‘लगता है हत्या गला दबाकर की गयी है।’ उन्होंने अन्य अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा- ‘गले पर उँगलियों के निशान साफ नज़र आ रहे हैं। पहले गला दबाकर हत्या की गयी। फिर पहचान छुपाने के लिए बाद में चेहरा कुचला गया है।’ एक पल शव को गौर से देखते हुए उन्होंने उसकी कलाइयों की तरफ इशारा करते हुए कहा- ‘लगता है युवती ने अपने बचाव की पूरी कोशिश की होगी। संघर्ष में खरोंचें तो साफ-साफ नज़र आ रही हैं।’
वारदात में इस्तेमाल किया गया कोई वजनी पत्थर आसपास ही मिल जाना चाहिए। सुमित गुप्ता ने थानाधिकारी चारण पर गहरी नज़र डालते हुए कहा- ‘स्कूटी लडक़ी की हो सकती है। न भी हो, तो इसकी नम्बर प्लेट सिनाख्त का ज़रिया बन सकती है।’ एकाएक कांस्टेबल सुरेंद्र की नज़र किसी चमकती हुई चीज़ पर पड़ी। उसने फौरन टटोला, उसके हाथ में चाबियों का गुच्छा आ गया। सुरेंद्र ने चाबियों का गुच्छा अतिरिक्त पुलिस अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक गुप्ता की तरफ बढ़ाया, तो वह चौंक पड़े। ‘की हैंगर’ पर मंगलम अपार्टमेंट, कलवाड़ रोड दर्ज था। अशोक गुप्ता के चेहरे पर हल्की मुस्कान तैर गयी। उन्होंने पुलिस उपायुक्त राजीव पचार को चाबियों का गुच्छा थमाते हुए कहा- ‘यह है इस हत्याकांड की चाबी। मुझे लगता है, यह मर्डर मिस्ट्री खोलने की चाबी साबित होगी?’ अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक गुप्ता ने पुलिस उपायुक्त राजीव पचार, अतिरिक्त उपायुक्त सुमित गुप्ता, सहायक पुलिस आयुक्त (आमेर), विजेन्द्र सिंह भाटी और आमेर थाना प्रभारी राजेन्द्र सिंह चारण के नेतृत्व में विवेचना का दायित्व सौंपा। पड़ताल में सहयोग के लिए डीएसपी जयपुर उत्तर की टीम को भी शामिल किया गया। पुलिस ने पंचनामा बनाकर शव पोस्टमार्टम के लिए एसएमएस अस्पताल के मोर्चरी में भिजवा दिया। डॉग स्कवायड सीएफएसएल की टीमें ने सूचना मिलते ही वहाँ पहुँच गयीं। अपने अपने ढंग से अपराध की जड़ें टटोलने वाली उपरोक्त टीमें अपना काम करके लौट गयीं।
युवती की सिनाख्त के लिए शव के पास पायी गयी स्कूटी की नम्बर प्लेट को ज़रिया बनाना पुलिस के लिए काफी कारआमद साबित हुआ। नतीजतन मृतक की पहचान रेशमा मंगलानी के रूप में हो गयी। परिवहन विभाग से मिले ब्यौरे के अनुसार, रेशमा जयपुर के ब्रह्मपुरी स्थित जयसिंह पुरा खोर इलाके की झूले लाल कॉलोनी में रहने वाले सुनील मंगलानी की पुत्री थी। रेशमा की माँ का नाम रेखा मंगलानी था। पुलिस का मंगलानी परिवार तक पहुँची। जैसे ही मंगलानी परिवार को घटना का पता चला, तो घर में कोहराम मच गया। रेशमा की माँ ने बिलखते हुए कहा- ‘जैसी ज़िन्दगी रेशमा जी रही थी, उसके दोस्तों और दुश्मनों की कमी नहीं थी।’ एक पल रुकने के बाद उसने हिचकते हुए कहा- ‘पिछले काफी दिनों से उसके वैवाहिक रिश्तों में भी तनाव था। अब क्या कहूँ? कहीं ऐसा तो नहीं कि अयाज़ ने ही उसकी हत्या कर दी हो?’ अयाज़ कौन? थाना प्रभारी चारण के सवाल पर रेखा फट पड़ी- ‘पति है उसका। पिछले काफी दिनों से अलगाव चल रहा था दोनों में? यह अयाज़ का ही काम हो सकता है।’ पुलिस के लिए रेशमा के मोबाइल कॉल डिटेल खंगालना ज़रूरी था, ताकि पता चल सके कि आिखरी वक्त में उसका सम्पर्क किससे था? अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त सुमित गुप्ता ने रेखा मंगलानी से रेशमा का फोन नम्बर लेकर कम्पनी से कॉल डिटेल की सीडीआर हासिल कर ली। कॉल डिटेल में रेशमा रविवार को पूरे दिन अयाज़ के सम्पर्क में थी। सुमित गुप्ता का माथा ठनके बिना नहीं रहा। उन्होंने राजीव पचार से मंत्रणा करते हुए कहा- ‘हमारा टार्गेट यही होना चाहिए। मंगलानी दम्पति की तहरीर पर पुलिस ने मामला भारतीय दण्ड संहिता की धारा-302, 201 के तहत प्रकरण संख्या 36/2020 के तहत दर्ज कर लिया। पुलिस ने अयाज़ की तलाश में घर पर दबिश दी। लेकिन अयाज़ घर पर नहीं मिला। आिखर उसके मोबाइल को सर्विलांस पर लगाने के बाद उसकी लोकेशन गलता गेट पायी गयी। पुलिस ने घेरेबन्दी करते हुए अयाज़ को गलता गेट स्थित सराय मोहल्ला में उसके चाचा के घर से गिरफ्तार कर लिया।
जयपुर के जयसिंह पुरा खोर स्थित झूले लाल कॉलोनी में वीआईपी स्कूल के निकट ही रहते हैं सुनील मंगलानी। मध्यम वर्गीय कारोबारी है- सुनील मंगलानी। उनकी पत्नी रेखा मंगलानी गृहिणी है। रेशमा उनकी इकलौती लडक़ी थी। इकलौती संतान होने के कारण ज़रूरत से ज़्यादा लाड-प्यार ने उसे काफी स्वच्छंद बना दिया था। लडक़ों से दोस्ती करना या उनके साथ घूमना-फिरना उसके मौज़-शौक में शामिल था। माँ ने कभी टोका भी कि बेटी तुम लडक़ी हो। मौज़-शौक तो ठीक है सब कुछ मर्यादा में ही रहकर हो तो अच्छा है। लेकिन रेशमा ने यह कहते हुए माँ की सीख को हवा में उड़ा दिया, माँ जमाना बहुत आगे बढ़ चुका है। जो वक्त के साथ तालमेल नहीं रख सकते, उन्हें आगे चलकर गुज़रा वक्त बहुत याद आता है। मैं जवान हूँ, पढ़ी-लिखी हूँ। मैं नहीं चाहती कि नसीहतों की बेडिय़ों में ज़िन्दगी काट दूँ और आगे चलकर मुझे गुज़रे वक्त को लेकर टसुए बहाने पड़े कि मैं बहुत कुछ बन सकती थी; लेकिन नहीं बन पायी? रेखा मंगलानी समझ गयी कि बेटी नसीहतें समझने की उम्र लाँघ चुकी है। अब उसे कुछ कहना अपना मान-गँवाना है। लेकिन बेटी कों दो टूक कहने से भी नहीं चूकी- ‘मैंने माँ नहीं, सखी बनकर सीख दी; मानना या नहीं मानना, तुम्हारी मर्ज़ी।
माँ की रोक-टोक पर रेशमा ने सीख तो सुन ली। किन्तु बन्धन में रहने की नहीं, बन्धन तोडऩे की। उसको लगा, सम्भवत: उसका बढ़ता जेब खर्च माँ को अखर रहा है। आॢथक रूप से आत्मनिर्भर हो जाएगी, तो उसे रोक-टोक अपने आप खत्म हो जाएगी। रेशमा खूबसूरत थी। अच्छी-खासी पढ़ी लिखी और आधुनिक आचार-व्यवहार वाली लडक़ी थी। नौकरी के लिए उसे कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी। उसे जल्दी ही एक फाइनेंस कम्पनी में नौकरी मिल गयी। यह वर्ष 2017 की बात है। घाटगेट स्थित सरायवालों मोहल्ला का रहने वाला अयाज़ अहमद भी उसी फाइनेंस कम्पनी में काम करता था। रेशमा मंगलानी और अयाज़ की मुलाकात फिल्मी अंदाज़ में ही हुई। एक सुबह कुछ अजीब ही इत्तिफाफ हुआ। अयाज़ जैसे ही ऑफिस बिल्डिंग में घुसने को हुआ, तो उसे अजीब नज़ारा दिखायी दिया। पास ही खड़ी मोटर साइकिल की टेक लगाकर दो-तीन शोहदे िकस्म के लडक़े रेशमा को घेरकर छींटाकसी कर रहे थे। अयाज़ को यह बर्दाश्त नहीं हुआ।
अयाज़ मज़बूत कद-काठी वाला लडक़ा था। उसने फब्तियाँ कसने वाले लडक़ों को ललकारा और फिर उनकी अच्छी-खासी धुनाई करके खदेड़ दिया। हाथापाई के दौरान अयाज़ को भी कुछ चोटें आयीं। रेशमा ने उस दिन ऑफिस जाना छोड़ा और अयाज़ के लाख इन्कार के बावजूद उसके क्लीनिक ले जाकर मरहम-पट्टी करवायी। यहीं से दोनों की मुहब्बत का सिलसिला शुरू हो गया। एक ही ऑफिस था और दोनों की वॄकग डेस्क भी आजू-बाज़ू थी। काम का वक्त भी एक ही था। शुरू में अनुराग आँखों से छलकता रहा। दोनों तरफ आग बराबर लगी हुई थी। दिन भर का साथ हो, तो प्यार की ज्वाला धधकने में कहाँ देर थी? आिखर अयाज़ ने ही कदम बढ़ाये- ‘अब तुम्हारे बिना जीना मुश्किल है?’ रेशमा का भी गुबार फूट पडा- ‘मेरा भी यही हाल है। लेकिन तुम मुसलमान, मैं सिंधी? क्या परिवार, मज़हब और समाज हमें मिलने देंगे?’ दोनों के प्यार के चर्चे ऑफिस, घर और समाज में आम हुए तो अयाज़ को अगर परिवार वालों ने घेरा। रेशमा वहीं पिता और माँ रेखा भी बेटी पर बरस पड़ी- ‘क्या कोई और नहीं मिला था? हमारे समाज में लडक़ों की कौन-सी कमी थी?’
रेशमा ने बिफरते हुए कहा- ‘मैने कब कहा माँ! कि हमारे समाज में लडक़ों का अकाल पड़ गया है? लेकिन जैसा लडक़ा मुझे चाहिए, अगर समाज में न हो, तो मैं क्या करूँ? जिस समाज को मेरी भावनाओं की कद्र नहीं; मुझे भी उसकी परवाह नहीं? और हाँ; माँ! तुम कान खोलकर सुन लो। मैं उसी से शादी करूँगी, जिसे मैं चाहूँगी। …मैं समाज छोड़ सकती हूँ, तो घर भी छोड़ सकती हूँ।’
बेटी की धमकी में बागी तेवर साफ नज़र आ रहे थे। ज़माना देख चुकी माँ ने बेटी की आँखें पढ़ ली थीं। उन्होंने झूले लाल के मंदिर में जाकर माथा टेकने में देर नहीं की- ‘दाता! जैसी तेरी मर्ज़ी।’ घाटगेट स्थित सराय मोहल्ला में रहने वाला अयाज़ मोहम्मद भी अपने पिता रियाज़ मोहम्मद का इकलोता बेटा था। सिंधी समुदाय की लडक़ी को शरीक-ए-हयात बनाने का बेटे का फैसला उन्हें भी कुबूल नहीं हुआ। उन्होंने समाज और मज़हब की दुहाई देते हुए बेटे को समझाया। अयाज़ भी पिता रियाज़ अहमद की नसीहतों पर हत्थे से उखड़ गया। उसने भी वही किया, जो रेशमा ने किया- ‘अब्बू! निकाह मेरी ज़िन्दगी का अहम फैसला है। इसे मुझे ही तय करने दीजिए।’ रियाज़ अहमद ने बेटे की आँखों में मनमानी का उमड़ता सैलाब देख लिया था। उन्होंने खुदा की बन्दगी में हाथ उठा दिये। बोले- ‘लेकिन बेटा! एक बात याद रखना अगर यह निकाह हमें कुबूल नहीं, तो नहीं। फिर भी इस घर में तुम्हारी वापसी तो कुबूल है। लेकिन रेशमा की नहीं! यह मेरा आिखरी फैसला है।
यह 24 जुलाई, 2017 की बात है। फैसला हो चुका था। मुहब्बत की दीवानगी भारी पड़ी और दोनों गाज़ियाबाद भाग छूटे। वहाँ जाकर उन्होंने आर्य समाज में शादी रचा ली। रियाज़ अहमद ने तो बेटे की जुदाई को ज़िन्दगी का हिस्सा बना लिया, लेकिन मंगलानी दम्पति दिल को पत्थर नहीं बना सके। इकलौती बेटी का बिछोह ज़्यादा दिन बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होंने बेटी और दामाद दोनों को अपना लिया। गाज़ियाबाद से लौटने के बाद रेशमा के परिजनों की इजाज़त लेकर अयाज़ ने निकाह भी पढ़वा लिया। लेकिन इस निकाह में अयाज़ का परिवार शामिल नहीं हुआ। अलबत्ता अब अयाज़ रेशमा के घर में ही रहने लगा था। इस बीच रेशमा ने कालवाड़ रोड पर स्थित मंगलम सिटी में एक फ्लेट भी खरीद लिया। पिछली अक्टूबर, 2019 में ही रेशमा ने एक बच्चे को जन्म दिया। शादी के बाद कम्पनी ने अयाज़ को डिलेवरी ब्वॉय का काम सौंप दिया था। नतीजतन उसे ज़्यादातर फील्ड में ही रहना पड़ता था। पुलिस ने अयाज़ को अदालत में पेश कर रिमांड पर ले लिया। गिरफ्त में होने के बावजूद जिस तरह अयाज़ बेफिक्र नज़र आ रहा था, पूछताछ में पुलिस अधिकारियों को यह बात संशय में डालने वाली थी। उसकी तोतारटंत जारी थी- ‘भला मैं रेशमा की हत्या क्यों करूँगा? जिस लडक़ी के लिए मैंने अपने परिवार को छोड़ा, मज़हब की परवाह नहीं की? रेशमा से मेरा झगड़ा हो गया था। इसलिए काफी दिनों से हम अलग ही रह रहे थे। पिछले दो दिनों से तो मैं जयपुर में ही नहीं था। अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त राजीव पचार की समझ में बात नहीं आ रही थी। अयाज़ दु:ख भी जता रहा था और रो भी रहा था। लेकिन उसकी आँखों में आँसू नहीं थे। कहीं अयाज़ रोने का नाटक तो नहीं कर रहा?
इस पूछताछ में पुलिस आयुक्त उत्तर राजीव पचार को आभास होने लगा था कि अब वह मामले की तह तक पहुँच रहे हैं। उन्होंने अपने शब्दों में तनिक नरमी लाते हुए कहा- ‘ठीक है; लेकिन यह तो मानते हो कि जो हुआ बहुत ही बुरा हुआ। अब अगर मुजरिम कोई और है, तो पुलिस ज़रूर ढूँढ निकालेगी। लेकिन इसके लिए हमें तुम्हारी मदद चाहिए। अब जब तुम कहते हो कि रेशमा के साथ तुम्हारा काफी दिनों से अलगाव चल रहा था। तुम्हें सिर्फ यह बताना है कि कल दोपहर से रात 11 बजे के बीच तुम कहाँ-कहाँ पर थे?’ पचार ने उसका कन्धा थपथपाते हुए कहा- ‘बस, यह बताओ और तुम्हारी छुट्टी।’
‘लेकिन सर, मेरा इस मामले में कोई हाथ नहीं है।’ -अयाज़ ने पुरज़ोर शब्दों में कहा।
अब राजीव पचार को गुस्सा आ गया। उन्होंने भडक़ते हुए कहा- ‘मैं तुमसे भलमनसाहत से पूछ रहा हूँ और तुम झूठ-पर-झूठ बोलते जा रहे हो? अपना दायाँ पाँव कुर्सी की पुश्त पर रखो, और जल्दी करो।’ अयाज़ ने डरते-डरते अपना दायाँ पाँव कुर्सी पर रखा, तो उसके पाँव की तरफ इशारा करते हुए राजीव पचार ने पूछा- ‘बता तेरे इस पाँव पर यह किस चीज़ के दाग है?’ उन्होंने गुस्से से लाल होते हुए कहा- ‘ये दाग हैं? ये दाग सूखे हुए खून के हैं…और उस वक्त के हैं, जब तूने रेशमा का चेहरा पत्थर से कुचलने की कोशिश की थी और खून के छींटे तेरे पाँवों पर भी गिरे थे। बोल तू क्या कहता है?’ दरअसल जब अयाज़ रोने का नाटक कर रहा था, तभी राजीव पचार की नज़रें उसके पाँवों की तरफ चली गयी थीं। उसके दायें पैर पर कुछ दाग थे, जो सिर्फ सूखे खून के ही हो सकते थे। पचार इसी बात से अयाज़ को सच उगलने के लिए मजबूर कर सकते थे। अयाज़ का चेहरा फक पड़ गया। राजीव पचार ने भाँप लिया। पंछी जाल में फँस चुका है। उन्होंने उसके आगे चाबियों का गुच्छा लहराते हुए कहा- ‘जानते हो यह चाबियाँ कहाँ की हैं?’ पीले पड़ते चेहरे को हाथों में थामते हुए अयाज़ नीचे झुकता चला जा रहा था, राजीव पचार का हर शब्द उसे जेहन के हथौड़े की तरह पड़ रहा था- ‘अयाज़ यह चाबियाँ कलवाड़ रोड स्थित मंगलम सिटी में तुम्हारे फ्लेट की हैं। तुमने तयशुदा योजना के तहत रेशमा को फोन कर घर से रामगढ़ मोड़ पर बुला लिया। कल रविवार को दिन भर घूमते रहे। गिले-शिकवे मिटाने का नाटक करते रहे। शाम को उसे फ्लेट पर ले गये। उसे स्ट्रांग बीयर पिलायी और घुमाने का वादा कर उसे आमेर की तरफ ले गये, जहाँ सन्नाटा देखकर रेशमा को नीचे गिरा दिया। फिर निर्ममता से उसका गला घोंटकर मौत की नींद सुला दिया। उसकी पहचान मिटाने के लिए भारी पत्थरों से उसका चेहरा कुचल दिया। इसी आपाधापी में तुम्हारी जेब से फ्लेट की चाबियाँ गिर गयी। पुलिस को चाबियों का यह गुच्छा, मौका-ए-वारदात पर मिल गया। फ्लेट पर रेशमा को लेकर तुम्हारी कल की आवाजाही की पूरी सीसीटीवी फुटेज मिल गयी। फ्लेट पर तुम्हारी मौज़ूदगी की तस्दीक करने वाली बीयर की बोतल पर तुम्हारी उँगलियों के निशान भी मिल गये। बोलो क्या कहते हो? अयाज़ के लिए कहने को अब क्या बचा था? उसने आँसू पोंछते हुए गर्दन उठायी- ‘सर! मैं कुबूल करता हूँ कि मैंने रेशमा का खून किया है। सर मैंने अपनी ज़िन्दगी में और कोई जुर्म नहीं किया। एक बदकार बीवी का पति बने रहकर रोज़-रोज़ मरने से तो एक रोज़ की मौत बेहतर है। अपनी जवानी और खूबसूरती की बदगुमानी में डूबी हुई औरत को घर और पति से मुहब्बत नहीं थी। सोशल मीडिया पर उसके 6,000 फालोअर थे और यह सिलसिला लगातार बढ़ रहा था। पता नहीं, किस-किसके साथ चैटिंग करती थी! फोन पर बातें होती थी, ऐसी ही बातें उसके कद्रदान करते थे। हर रोज़ मेरा दिल और जिस्म इन बातों को देख-सुनकर छलनी होता था। मैंने घुमा-फिराकर बहुत समझाया, लेकिन नहीं मानी। सिर पर अपने शानदार नाज़-ओ-अंदाज़ का जुनून सवार था। कैसे मानती? वह एक ही वक्त में अनेक के दिलों पर राज करना चाहती थी।’
‘फिर, फिर क्या हुआ?’ -पचार ने पूछा।
‘बेटा हुआ तो उम्मीद जगी, अब रेशमा पति और परिवार में मन रमा लगा लेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसने फिर फिसलन पर पाँव रखने शुरू कर दिये थे। अब उससे अलग रहने में ही मेरी भलाई थी। मैंने कहा कि ठीक है, तुम जैसे चाहो रहो। तलाक कुबूल करो, ताकि मैं नये सिरे से अपनी ज़िन्दगी शुरू कर सकूँ। लेकिन तलाक की बात करने पर वह उलटा मुझ पर चढ़ बैठी। बोली- या तो मेरे साथ रहो, नहीं तो घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज करा दूँगी? बस, मेरा खून खोल गया। मुझे दो ही विकल्प समझ में आये आत्महत्या या रेशमा की इस दुनिया से विदाई।’
‘फिर क्या हुआ?’ -राजीव पचार ने पूछा।
‘मैंने रिश्तों में खटास मिटाने का ड्रामा रचा। पहले फोन करके उसे रामगढ़ मोड़ पर बुला लिया। वह आयी, तो उसे कॉफी हाऊस ले गया। दिन भर घुमाता रहा। फिर शाम को उसे लेकर मंगलम सिटी के फ्लैट पर चला गया। वहाँ हमने बीयर पी। फिर खाना खाने बाहर चले गये। रेशमा काफी खुश नज़र आ रही थी। मुझ पर मनमानी करने का मौका जो मिल गया था! उसको नशे की ज़्यादा डोज देने के लिए मैंने उसे स्ट्रॉन्ग बीयर पिलायी। दिल्ली रोड स्थित माता मंदिर के पास का इलाका मैंने वारदात के लिए पहले ही चुन रखा था। अब तक रात के नौ बज चुके थे। घुमाने का बहाना करते हुए माता मंदिर ले आया। मौका देखते ही पहले मैंने उसका गला दबा दिया। इस दौरान उसे शायद मेरे इरादों की भनक मिल गयी थी। नतीजतन वह मुझसे उलझ पड़ी। मगर मैंने उसे दबोचकर मार दिया। फिर पहचान मिटाने के लिए पत्थर से उसका चेहरा कुचल दिया। स्कूटी में पता नहीं कैसे पेट्रोल खत्म हो गया था। इसलिए स्कूटी वहीं पर छोडऩी पड़ी। मैं गुस्से और तैंस में हत्या तो कर बैठा। पर बाद में घबराहट होने लगी। पता था देर-सवेर पुलिस आयेगी। इसलिए अब्बू के यहाँ जाने के बजाय चाचा के घर जाकर छिप गया।’ अयाज़ को अपने किये का कोई पछतावा नहीं था। वह यही कहता रहा- ‘मेरी कोई गलती नहीं थी। रेशमा पत्नी-धर्म भूलकर गुनाह के रास्ते पर चल रही थी। मेरी ज़िन्दगी भी ज़हर कर रही थी। उसे मारता नहीं, तो क्या आरती उतारता?’
अयाज़ अभी न्यायिक अभिरक्षा में है।