कांग्रेस को उत्तरप्रदेश में लगभग खत्म करने वाले घुटे हुए पुराने कांग्रेसियों की नींद उड़ गई है। उन्होंने कभी यह नहीं सोचा था कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी प्रदेश में अपनी बहन प्रियंका को सेक्रेटरी बनाकर लाएंगे। उन्हें हमेशा यही लगता था कि अमेठी-रायबरेली तक ही गांधी परिवार सीमित रहेगा। प्रियंका को पूर्वी उत्तरप्रदेश में लाना राजीव की रणनीतिक सूझ है जिसमें वे कामयाब रहे।
प्रियंका की राजनीतिक सूझबूझ को अमेठी रायबरेली में ही सिमटा देने वाले राजनीतिक सूला इस समय काफी विस्मित हैं। उन्हें खुद को दिन-रात यह डर सता रहा है कि जातियों में उच्च वर्ग में होते हुए भी कहीं उन्हें राहुल-प्रियंका -ज्योतिरादित्य की तिकड़ी हशिए पर न कर दे। लखनऊ में अमौसी हवाई अड्डे से लखनऊ माल रोड में कांग्रेस के मुख्यालय के पूरे रास्ते चार घंटे के रोड शो में तिकड़ी और प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर ही छाए रहे। पूरे रास्ते प्रियंका सिर्फ अपने विभिन्नपोज से प्रशंसकों की तारीफ पाती रही। पूरे रास्ते वे खुश और प्रशंसकों के नारों को देखती-सुनती रहीं। उन्हें अहसास है कि राजनीति में किस तरह उन्हें फंूक-फंूक कर अगला कदम रखना है।
अमेरिका से दिल्ली में आने के बाद उन्होंने यही कहा था कि पति, परिवार और पार्टी उनकी जिम्मेदारी है। दूसरे दिन एक दो लाइन का उनका संदेश वायरल हुआ कि महिलाओं और युवाओं को साथ लेकर वे नई राजनीति में नई भागीदारी करेंगी। अपनी राजनीति प्रियंका अच्छी तरह जानती समझती है। तमाम चुनौतियों का उन्हें पूरा अहसास है इसलिए लखनऊ में जाकर भी उन्होंने सिर्फ भांपा है कि कितना कुछ उन्हें करना है। बेहद कम समय में।
प्रियंका को अहसास है कि उनके चेहरे में इंदिरा का नाक-नक्शा तलाशने वाले उनके व्यक्तित्व को दबाने की कोशिश में लगे हुए हैं। वे इस राजनीति को समझती हैं। लेकिन खामोश रहती है। लखनऊ में कांग्रेस ही नहीं बल्कि एक बड़े समुदाय ने राहुल-प्रियंका -सिंधिया का स्वागत किया। बाबा भूतनाथ से आए बुजुर्ग साधु रामचरण दास ने तो कहा कि उन्हें मानस की चैपाइयां स्मरण र्हो आइं और वही वे गुनगुनाने लगे। इस त्रिमूर्ति को उन्होंने प्रणाम किया। मुस्कराते हुए वे पैदल निकल गए।
एक अर्से से राहुल-प्रियंका और उनके विश्वसित लोग मिशन उत्तरप्रदेश पर काम करते रहे हंै। कांग्रेस में बिखराव और प्रदेश में उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं में गायब हो गए जोश को उन्होंने लखनऊ के इस रोड शो से खासा झिंझोड़ा है। उन्होंने ज़मीन पर उतर कर बदलाव की आंधी को परखा है। भाजपा के ऐसे नेता जो 2014 में मोदी लहर में अचानक कुर्सी पर आ गए वे अब खासे असमजंस में हैं। उन्हें अ बवह शिष्ट हिंदी याद नहीं आती जिसमें वे अपने घर-परिवार में बातचीत करते हैं।
अपनी खामोशी को ताजी मुस्कराहट के जरिए प्रियंका-राहुल-सिंधिया की तिकड़ी पूरे रोड शो में बिखेरती रही। यह ताजगी एक अलग किस्म की थी जो मंदिर-मस्जिद विवाद से अलग थी। यह ताजगी उस माहौल में बिखर रही थी जिसमें पेड़ों से पुराने पत्ते हट रहे थे नए पत्तों के आने के लिए। कांग्रेस की तिकड़ी के रोड शो के चलते न केवल लखनऊ बल्कि रायबरेली अयोध्या? फैजाबाद, अमेठी, सुल्तानपुर, शाहगंज और जौनपुर से वाराणसी , गोरखपुर , कुशीनगर तक कांग्रेस की वापिसी का संदेश पहुंचा। इस प्रदेश में महिलाओं और युवाओं की भागीदारी और उनके साथ की अपील है। इस अपील में कोई जाति, वर्ण , अमीर-गरीब की बात नहीं है। इसमें सिर्फ साथ चलने और परस्पर सहयोग का निवेदन है।
कांग्रेस में आए इस बदलाव से सपा और बसपा शिविरों में कतई कोई घबराहट नहीं है, क्योंकि इन पार्टियों के धुरंधर नेता इस बात पर एकमत हैं कि राज्य में कांग्रेस को उसकी खोई हुई ज़मीन मिलनी चाहिए क्योंकि प्रदेश के लिए गंगा-जामुनी संस्कृति की परंपरा हमेशा विकास की ओर रही है। प्रदेश में शांति, सद्भाव और सौहार्द आज बहुत ज़रूरी है।
प्रियंका-राहुल-सिंधिया की तिकड़ी का रोड शो करीब चार घंटे का था। पूरी राह फूल-मालाओं से भरी पड़ी थी। गुलाबी टी शर्ट के साथ बड़ा जुलूस कांग्रेस कार्यकर्ताओं का था। राफेल जेट विमान का एक नमूना भी इस जुलूस में था और सड़क -सड़क पर नारे लग रहे थे ‘चैकीदार….’। कांगे्रस मुख्यालय पहुुंचने के साथ यह रोड शो खत्म हुआ।
लेकिन इस रोड शो से यह संदेश पूरे प्रदेश में ज़रूर फैला कि कांग्रेस राज्य में खत्म नहीं हुई है। यह अभी भी सक्रिय है और सक्रिय हो सकती है, यदि राज्य के मतदाता सही ईवीएम मशीनों में अपने मत का उचित प्रयोग करें।
स्वामी अमितनंदनंदानंद सरस्वती