फीकी पड़ती मनमोहनी चमक

जब 2004 में सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री का पद ठुकराकर पूर्व में वित्तमंत्री रहे मनमोहन सिंह को इस पद पर बैठाया था तो पूरे पंजाब में खुशियों की लहर दौड़ गई थी. लोगों को इस बात का बड़ा गर्व हुआ था कि उनके यहां का कोई नेता देश का प्रधानमंत्री बना है. देश के अन्य हिस्से में रहने वाले सिखों को भी मनमोहन का देश के सबसे बड़े राजनीतिक पद तक पहुंचना बहुत अच्छा लगा था. यही वजह थी कि बिहार के गया में रहने वाले सिखों की पगड़ी का रंग अचानक आसमानी हो गया था. इसी रंग की पगड़ी मनमोहन सिंह भी पहनते हैं. पंजाब में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने का असर 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन के तौर पर भी दिखा. कांग्रेस ने प्रदेश की 13 लोकसभा सीटों में से आठ पर जीत दर्ज की थी. तब कांग्रेस यह कहते हुए पंजाब में वोट मांग रही थी कि एक पंजाबी को दोबारा प्रधानमंत्री पद पर देखना है तो कांग्रेस के पक्ष में मतदान करो. उस चुनाव के नतीजे यह साबित करते हैं कि पंजाब के लोगों ने कांग्रेस की इस अपील को माना और मनमोहन सिंह को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के मकसद से कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया.

लेकिन पिछले ढाई साल के दौरान पंजाब में काफी चीजें बदल गई हैं. विधानसभा चुनावों के प्रचार में उन्हीं मनमोहन सिंह की चमक फीकी पड़ती दिखी. कांग्रेस ने पंजाब में उनकी दो चुनावी रैलियां आयोजित करने की घोषणा की थी दो अमृतसर और लुधियाना में होनी थीं. लेकिन सिर्फ अमृतसर की रैली हो पाई और लुधियाना की रैली रद्द करनी पड़ी. पंजाब में मनमोहन सिंह से लोगों का किस कदर मोहभंग हो गया है, इसकी पुष्टि इससे होती है कि अमृतसर की रैली के लिए लगाई गई 10,000 कुर्सियों में से तकरीबन 7,000  खाली रहीं. इसके बाद लुधियाना की रैली रद्द कर दी गई.

कांग्रेस आधिकारिक तौर पर रैली रद्द करने के लिए मौसम को जिम्मेदार ठहरा रही है, लेकिन इन रैलियों के आयोजन से जुड़े कांग्रेस प्रचार समिति के वरिष्ठ लोग नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैंैं कि ऐसा किए जाने की असली वजह मनमोहन सिंह की घटी हुई लोकप्रियता है. राज्य में कांग्रेस की सरकारों में मंत्री रहे और प्रचार समिति के एक वरिष्ठ नेता ‘तहलका’ को बताते हैं, ‘पंजाब के लोगों और खास तौर पर सिखों में मनमोहन सिंह का अब वह असर नहीं रहा जो 2009 में था. उस समय सिखों ने मनमोहन के नाम पर कांग्रेस को वोट दिया था. अब मनमोहन सिंह के नाम पर वोट देने की बात तो दूर उन्हें सुनने तक के लिए कोई तैयार नहीं है. यही वजह है कि अमृतसर की रैली में लोगों की संख्या काफी कम रही और लुधियाना की रैली रद्द करनी पड़ी.’

प्रधानमंत्री ने दो नेताओं को टिकट दिलाने के लिए पैरवी की थी, लेकिन इनमें से किसी को भी टिकट नहीं मिला

कांग्रेस की तरफ से लुधियाना की रैली रद्द करने के लिए मौसम को वजह बताने के सवाल पर वे कहते हैं कि अमृतसर और लुधियाना के मौसम में कोई फर्क तो है नहीं इसलिए मौसम के मसले को मनमोहन सिंह की नाकामी को छिपाने के लिए बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. पंजाब के आम मतदाताओं में मनमोहन सिंह की घटी लोकप्रियता से चुनाव में उतरे उम्मीदवार भी वाकिफ हैं और पंजाब प्रदेश कांग्रेस समिति भी. यही वजह है कि उम्मीदवारों की तरफ से जिन स्टार प्रचारकों की मांग हुई उनमें मनमोहन सिंह का नाम शामिल नहीं था.

इस बात की पुष्टि खुद प्रदेश कांग्रेस समिति कार्यालय के एक पदाधिकारी करते हैं, ‘2009 में हर उम्मीदवार चाहता था कि उसके पक्ष में प्रचार करने एक बार मनमोहन सिंह आ जाएं. लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में ऐसे उम्मीदवारों की संख्या बेहद कम रही.’ यह पूछे जाने पर कि लुधियाना रैली रद्द होने के बाद फिर से प्रधानमंत्री को पंजाब में जनसभा संबोधित करने के लिए क्योंं बुलाया गया, वे कहते हैं, ‘उम्मीदवारों की तरफ से प्रधानमंत्री की रैली के लिए अनुरोध आ नहीं रहे थे, इसलिए प्रधानमंत्री को किसी और चुनावी रैली के लिए पंजाब नहीं  बुलाया  गया.’ पंजाब में प्रधानमंत्री की घटती लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि राज्य में कांग्रेस के प्रचार के लिए जो पोस्टर-बैनर लगे उनमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, अमरिंदर सिंह तो दिखे लेकिन मनमोहन सिंह ज्यादातर पोस्टरों-बैनरों में गायब दिखे. जबकि 2009 के चुनावों में कांग्रेस के हर पोस्टर-बैनर पर मनमोहन सिंह दिख जाते थे.

अहम सवाल यह है कि आखिर मनमोहन सिंह से पंजाब के लोगों के मोहभंग की वजह क्या है? इस बारे में पूर्व कांग्रेसी मंत्री कहते हैं, ‘पहली बात तो यह कि पंजाब के लोगों को यह लगता है कि पिछले आठ साल से प्रधानमंत्री रहने के बावजूद मनमोहन सिंह ने सूबे के लिए कुछ नहीं किया. जब वे प्रधानमंत्री बने थे तो यहां के लोगों को लगा था कि अब प्रदेश की तसवीर बदलेगी. मनमोहन सिंह से मोहभंग की दूसरी बड़ी वजह यह है कि लोगों के बीच में यह धारणा बन गई है कि वे कहने को तो प्रधानमंत्री हैं लेकिन उनके हाथ में कुछ नहीं है और उन्हें हर फैसला सोनिया गांधी से पूछकर करना पड़ता है.

आठ साल में मनमोहन सिंह की अपनी एक अलग छवि नहीं बन पाने से यहां के लोगों पर उनका असर खत्म हुआ है. तीसरी वजह यह है कि पंजाब का समाज वैसे लोगों को पसंद करता आया है जो मजबूती से अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं और हर मोर्चे पर मजबूत दिखते हैं. मनमोहन सिंह इस मामले में भी सफल नहीं दिखते.’ विपक्षी दल मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री कहकर राष्ट्रीय राजनीति में उन पर निशाना साधते हैं और विधानसभा चुनाव में  यही खेल पंजाब में चला. प्रधानमंत्री की रैली के एक दिन बाद ही भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेतली ने पंजाब में एक चुनावी रैली में कहा, ‘मनमोहन सिंह एक कमजोर प्रधानमंत्री हैं और इसी वजह से कांग्रेस भी कमजोर है. निर्णय प्रक्रिया में कांग्रेस और सहयोगी दलों ने बार-बार हस्तक्षेप करके प्रधानमंत्री पद की गरिमा को कम किया है.’ जेतली के बयान से साफ है कि मनमोहन को लेकर पंजाब के लोगों में जो धारणा बनी है उसे हवा देने का काम विपक्ष ने भी जमकर किया.

हालांकि, जब मनमोहन सिंह चुनावी रैली संबोधित करने अमृतसर पहुंचे तो उन्होंने यहां के लोगों का मन मोहने की पूरी कोशिश की. उन्होंने इस शहर में गुजारे दिनों को याद किया और स्थानीय लोगों को यह संदेश देने के लिए कि वे उनके बीच के ही हैं, अपना भाषण पंजाबी में दिया. उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा पंजाब के लिए किए गए कार्यों को गिनाया. उन्होंने बताया कि वे चाहते थे कि अमृतसर में केंद्रीय विश्वविद्यालय बने लेकिन राज्य सरकार ने जमीन नहीं दी. प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने पंजाब के लिए कई योजनाओं को लागू कराने की कोशिश की लेकिन राज्य सरकार ने सहयोग नहीं किया. इसके बावजूद प्रदेश की राजनीति को जानने वाले लोग और खुद कांग्रेस के अंदर के लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं कि प्रधानमंत्री की इन बातों ने 30 जनवरी को हुए चुनाव में मतदाताओं के मत डालने के निर्णय पर कोई असर डाला होगा.

कांग्रेस के लोग ही बताते हैं कि प्रधानमंत्री ने सुरिंदर सिंगला और राजबीर चौधरी को टिकट दिलाने के लिए पैरवी की थी लेकिन इनमें से किसी को भी टिकट नहीं मिला. सिंगला जालंधर कैंट या जालंधर सेंट्रल और चौधरी सुजानपुर से टिकट मांग रहे थे. प्रधानमंत्री की पैरवी के बावजूद टिकट नहीं दिए जाने पर जब अमरिंदर सिंह से सवाल पूछा गया तो उन्होंने न तो प्रधानमंत्री की पैरवी की पुष्टि की और न ही इसे खारिज किया. एक तरफ तो मनमोहन सिंह के कहने पर दो टिकट भी नहीं दिए गए वहीं राहुल गांधी की सिफारिश पर राज्य में छह उम्मीदवारों को टिकट मिला. इससे यह संकेत भी मिलता है कि मनमोहन सिंह ने न सिर्फ पंजाब के लोगों के बीच अपनी लोकप्रियता गंवाई है बल्कि प्रदेश के नेताओं के बीच भी उनका असर कम हुआ है.