मंगलवार 17 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने ‘मॉब लीचिंग’ की बढ़ती घटनाओं पर एक अहम फैसला देते हुए कहा था कि, ‘कोई नागरिक अपने आप में कानून नहीं बन सकता। लोकतंत्र में भीड़ तंत्र को इजाज़त नहीं दी जा सकती’।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड की पीठ ने भीड़ और कथित गौरक्षकों द्वारा की जाने वाली हिंसा से निपटने के लिए निरोधात्मक, उपचारात्मक और दंडात्मक प्रावधानों पर दिशा निर्देश देते हुए साफ कह दिया कि, ‘गाय के नाम पर खून खराबा अब और नहीं चलेगा, संसद इस पर सख्त कानून बनाए।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश के चार दिन बाद ही शनिवार 21 जुलाई को राजस्थान के अलवर जिले की भीड़ ने एक युवक को गो तस्कर समझ कर पीट-पीट कर मार डाला। वारदात रामगढ़ क्षेत्र के ललावड़ी गांव में शुक्रवार 20 जुलाई की रात को हुई। शुक्रवार की देर रात ललावड़ी गांव के जंगलों में गोवंश को लेकर हरियाणा जा रहे 28 वर्षीय अकबर और उसके साथी असलम की गांव वालों ने लाठियों से बुरी तरह पिटाई कर दी, अकबर बुरी तरह मरणासन्न हो गया। लेकिन असलम भागने में सफल हो गया। सवा साल में इस जिले में भीड़ ने यह तीसरी जान ली है। इससे पहले एक अप्रैल 2017 को बहरोड़ में हरियाणा के पहलू खां की मौत हो गई, 10 नवम्बर 2017 को गोविंदगढ़ के बिन्दुका के उमर खान की हत्या कर दी गई और 8 दिसम्बर 2017 को तस्लीम खान को मार डाला गया। पुलिस ने शुरुआती दौर में हत्या का मामला दर्ज कर धर्मेन्द्र यादव और परमजीत नामक युवकों को गिरफ्तार कर अपने दायित्वों की इतिश्री कर ली।
पुलिस ने हमलावरों के मामले में आरोपियों के किसी संगठन से जुडऩे की बात भी हवा में उड़ा दी। उधर मुख्यमंत्री ने भी घटना को गंभीरता से नहीं लिया और किताबी बयान देकर मामले को रफा-दफा कर दिया कि ‘घटना निंदनीय है, लिहाजा दोषियों को कड़ी सजा दी जाएगी। यही लिपे-पुते लफ्ज गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने भी दोहराए और चुप्पी साध ली। लेकिन घटना की असलियत तब बेनकाब हुई जब, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस वारदात को ‘मोदी का क्रूर भारत’ की संज्ञा देते हुए बर्रे का छत्ता हेड़ दिया कि, ‘इस क्रूर इंडिया में मानवता की जगह नफरत ने ले ली है और लोगों को कुचला जा रहा है। उनका कहना था, ‘भीड़ के शिकार मरणासन्न अकबर को अस्पताल पहुंचाने में पुलिस को तीन घंटे क्यों लगे? आखिर क्यों लोग कुचले जा रहे हैं और मरने के लिए छोड़े जा रहे हैं?
हालांकि केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने यह कहते हुए पलटवार करने की कोशिश की कि, ‘राहुल गांधी के परिवार ने 1984 में भागलपुर जैसे दंगों में नफरत की अगुवाई की और वह भी गिद्ध राजनीति के जरिए वही काम कर रहे है। लेकिन घटना को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन में स्मृति ईरानी का पटाखा फुस्स हो गया, नतीजतन मामला संसद में भी गूंज गया और राहुल गांधी द्वारा सवाल उठाए जाने पर हकीकत पर पर्दा उठने लगा कि, ‘पुलिस वालों ने पहली ज़रूरत को दरकिनार किया और अकबर को 250 मीटर पर स्थित अस्पताल पहुंचाने में तीन घंटे लगाए जबकि पीडि़त तब तक जीवित था।
सरकार सक्रिय हुई और पुलिस महानिदेशक ओ.पी. गल्होत्रा ने संयुक्त जांच टीम बनाई तो मौके से जान बचाकर भागे अकबर के साथी असलम ने सनसनीखेज खुलासा कर दिया कि लालवाड़ी के पास पहले भीड़़ ने फायरिंग की फिर हमला कर दिया। इस सवाल पर कि गायों को रात में क्यों ले जा रहे थे? असलम का कहना था कि, ‘दिन में गायों के बिदकने का खतरा रहता है, इसालिए एहतिहात के तौर पर सफर रात को किया जा रहा था। उधर पुलिस की संयुक्त जांच रिपोर्ट भी चौंकाने वाली थी कि, ‘स्थानीय पुलिस ने अकबर की चोटों को गंभीरता से अनुमान लगाने की बजाय पहले गायों को गौशाला पहुंचाने की जल्दी मचाई, नतीजतन अकबर समय रहते अस्पताल नहीं पहुंच सका।
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट इस मामले में काफी कुछ कह देती है। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘मृतक के एक हाथ में फ्रेक्चर था, उसकी पीछे की पसलियां टूटी हुई थी। फेफड़ों में चोट और अत्यधिक खून बहना पाया गया तो जाहिर है कि, अकबर के साथ पूरी निर्ममता बरती गई। पुलिस जिस समय मौकाए वारदात पर पहुंची, अकबर मिट्टी में सना खेत में पड़ा था। जिस हालत में अकबर पड़ा हुआ था, पुलिस को उसे संभालकर उठाना और गाड़ी में लाना था, लेकिन उसे तो अद्र्धचेतन अवस्था में भी लात-घूंसों पर धर लिया गया। आखिर यह कौन सी पुलिसिया कार्रवाई थी? घायल अकबर को पहले अस्पताल ले जाना ज़रूरी था या थाने? एएसआई मोहन सिंह उसे पहले थाने ले जाने की जि़द पर अड़े थे और अब जबकि घटना ने तूल पकड़ लिया तो वे शर्मिन्दगी के साथ इस बात पर हामी भी भरते नजर आते हैं।
लेकिन इस बात ने तो पुलिस की कार्यशैली पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं कि आखिर पुलिस घायल अकबर को अस्पताल ले जाने की बजाय थाने क्यों ले गई? जो वक्त उसके उपचार में खर्च होना था वो थाने की खानापूर्ती में जाया हो गया, नतीजतन मरणासन्न अकबर को तो दम तोडऩा ही था?
इस संवेदनशील मामले में केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल का बयान स्तब्ध करने वाला था कि, ‘जैसे जैसे मोदी जी लोकप्रिय होते जाएंगे, ऐसी घटनाएं बढ़ेगी। चुनाव के समय पहले भी ऐसा हुआ था, 2019 में कुछ और होगा, ये मोदी जी की योजनाओं का रिएक्शन है।’ मेघवाल का बयान वायरल हुआ तो वे विवाद में फंसते नजर आए। नतीजतन उन्होंने यह कह कर बचने की कोशिश की कि, ‘मेरे बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है।
गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने जब मौके पर जाकर हालात देखे तो उन्होंने इस मामले में बड़ा बयान देते हुए माना कि, अकबर की मौत पुलिस हिरासत में हुई है। राज्य सरकार ने अब इस मामले में न्यायिक जांच कराने का फैसला लिया है। इसके साथ ही गृहमंत्री कटारिया ने दोषियों को सजा दिलाने का वादा करते हुए कहा कि किसी को भी किसी की जान लेने का हक नहीं है। इस बीच स्पेशल डायरेक्टर जनरल पुलिस एन आर के रेड्डी ने अकबर की मौत को पुलिस की चूक बताते हुए कहा कि, ‘जो हुआ, उसे टाला जा सकता था। उधर सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में सख्ती बरतते हुए राज्य सरकार से तत्काल रिपोर्ट तलब की है। उधर गृह मंत्रालय ने भी घटना के ब्यौरे के साथ-साथ आरोपियों पर हुई कार्रवाई के बारे में जल्द से जल्द ब्यौरा देने को कहा है।
इस मामले को लेकर प्रदेश के एक दैनिक का कहना है, ‘प्रदेश में भीड़ फैसले कर रही है, मानों वही सरकार हो? कुल मिलाकर सरकार का रवैया हैरान करने वाला है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद आखिर वह कौनसी मजबूरी है जो राज्य सरकार को भीड़ के खिलाफ कानून बनाने से रोक रही है? वो भी तब, जब आए दिन भीड़ के पैरों तले कानून और व्यवस्था कुचली जा रही है?