समाजवादी पार्टी की पारिवारिक सुलह लगता है, ज्यादा दिनों तक चलने वाली नहीं है। अर्थात् फिर से टूटती नजर आ रही है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के पूर्व ही तत्कालीन मुख्य अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव के बीच इस कदर तीखें शब्दों के बाण चलें कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव की महामहर में शिवपाल यादव ने अपनी अलग से पार्टी बनाकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के बैनर तलें चुनाव लड़ा और कई सीटों पर समाजवादी पार्टी का जमकर विरोध भी किया।
यदि बात की जाए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तो इस पारिवारिक लड़ाई का भाजपा ने जमकर सियासी लाभ उठाया। जैसे-तैसे समाजवादी के संस्थापक व पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच सुलह भी करा दी थी। सुलह का लाभ बस पार्टी को ये मिला कि 2022 के विधानसभा चुनाव में शिवपाल यादव और अखिलेश यादव ने एक साथचुनाव लड़ा और एक दूसरे के खिलाफ कोई बयानबाजी नहीं की है। जिसके चलते पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ा और सीटे भी मिली। लेकिन सपा राज्य में सरकार बनाने में नाकाम रही।
चुनाव में हार के कारण पारिवारिक सुलह फिर से विरोध के रास्ते पर चलती दिख रही है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि अगर पार्टी में पारिवारिक लड़ाई और मनमुटाव चलता रहा तो आने वाले 2024 लोकसभा के चुनाव में पार्टी को नुकसान हो सकता है। वर्ष 2017 की तरह सपा की पारिवारिक लड़ाई का सियासी लाभ भाजपा लें सकती है।
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता ने बताया कि, अगर पार्टी परिवार वाद और पारिवारिक लड़ाई में यूं ही फंसी रही तो आने वाले दिनों में लोगों का पार्टी से जुड़ाव कम होगा और कुछ पार्टी के नेता पार्टी छोड़कर अन्य दल में जाने से परहेज नहीं करेगें।