लगता है रफाल लड़ाकू विमानों का भूत मोदी सरकार का पीछा नहीं छोड़ेगा। सरकार की ही एजेंसी नियंत्रक और लेखा परीक्षक (कैग) ने कुछ गंभीर सवाल उठाये हैं। संसद में रखी गयी कैग की रिपोर्ट में 36 राफेल की खरीद पर कहा गया है कि फ्रांस की युद्धक विमान निर्माता कंपनी दासौ एविएशन और यूरोपीय मिसाइल निर्माता एमबीडीए ने अभी तक करार के तहत दी जाने वाली तकनीक भारत को नहीं सौंपी है।
कैग की रिपोर्ट बुधवार को संसद में रखा गया था। बता दें दासौ एविएशन ने रफाल जेट बनाए हैं जबकि एमबीडीए विमान के मिसाइलों की आपूर्ति करने वाली कंपनी है।
रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि उसने अभी तक एक भी मामला ऐसा नहीं देखा जिसमें विदेशी कंपनी ने भारतीय उद्योग को उच्चस्तरीय तकनीक हस्तांतरित की हो। साथ ही यह भी कहा कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) के मामले में रक्षा क्षेत्र का स्थान कुल 63 क्षेत्रों में से 62वां है।
निश्चित ही कैग के यह सवाल उठाने से मोदी सरकार की परेशानी बढ़ सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि रक्षा सौदे के तहत दासौ एविएशन और एमबीडीए ने डीआरडीओ को 30 फीसद उच्च तकनीक देने का प्रस्ताव किया था। कैग के मुताबिक हल्के युद्धक विमान एलसीए के इंजन कावेरी के निर्माण में डीआरडीओ तकनीकी सहायता चाहता है। अब तक कंपनी ने तकनीक के ट्रांसफर की पुष्टि नहीं की है।
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2005 से मार्च, 2018 तक विदेशी कंपनियों के साथ कुल 66,427 करोड़ रुपये के कुल 48 ऑफसेट करार हुए हैं। दिसंबर, 2018 तक कंपनी को 19,223 करोड़ के ऑफसेट करार की भरपाई करनी थी। हालांकि अभी तक केवल 11,396 करोड़ का काम हुआ है जो कुल करार का 59 फीसद है। करार के तहत बाकी विमान 55,000 करोड़ रुपये के विमान 2024 तक दिए जाने हैं। कैग के मुताबिक ऑफसेट करार के तहत निर्माता कंपनियों इन बाध्यताओं को पूरा करने में विफल रही हैं। चूंकि करार का अधिकांश समय निकल चुका है इसलिए इस देरी में निर्माता कंपनी को ही फायदा होता है।
बता दें पांच रफाल विमानों की पहली खेप की आपूर्ति फ्रांस ने हाल में भारत को की है। मोदी सरकार ने फ्रांस से अंतर-सरकारी सौदा किया था जिसके तहत 59,000 करोड़ रुपये में 36 राफेल युद्धक विमान भारत को सौंपे जाने हैं। भारत की ऑफसेट नीति के तहत विदेशी रक्षा कंपनियों को अनिवार्य रूप से भारत से करार की कुल लागत का तीस फीसद हिस्सा भारत में खर्च करना होता है।
यही नहीं एमआइ-17 हेलीकॉप्टरों को अपग्रेड करने में हुई देरी पर भी कैग ने रक्षा मंत्रालय की आलोचना की है। आपूर्ति की समय सीमा में निरंतर देरी के कारण इन हेलीकॉप्टरों को अपग्रेड करने में केवल दो साल का समय बचा है। इन हेलीकॉप्टरों को अपग्रेड करने का प्रस्ताव वर्ष 2002 में रखा गया था। लेकिन 18 साल बाद भी इन्हें उन्नत नहीं बनाया जा सका है। इसीलिए इन हेलीकॉप्टों के उड़ने की क्षमता बेहद सीमित हो गई है।