हरियाणा में आन्दोलनकारी किसानों की गिरफ़्तारी पर बवाल 7 जुलाई से दिल्ली की सीमाओं पर विरोध-प्रदर्शन होगा तेज़
पिछले साल केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लॉकडाउन के दौरान बनाये गये तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहा किसान आन्दोलन अब दोबारा उफान पर आने वाला है। किसान संगठनों की मानें, तो किसान फिर से दिल्ली घेराव के लिए निकल पड़े हैं और 26 जून को राजभवन का घेराव करेंगे।
दरअसल कोरोना महामारी, लॉकडाउन और कुछ राज्यों में विधानसभा और कुछ राज्यों में पंचायत चुनावों के चलते किसान दिल्ली की सीमाओं से कम होकर दूसरे राज्यों और गाँवों में फैल गये थे। अब दोबारा किसान संगठन दिल्ली की सीमाओं पर आन्दोलन को तेज़ करने की तैयारी में जुट गये हैं। तीनों कृषि क़ानूनों को बने 5 जून को एक साल पूरा हो गया है। किसान आन्दोलन को भी लगभग इतना ही समय हो चुका है और क़ानूनों के विरोध को इससे भी अधिक समय। लेकिन दिल्ली घेराव और देशव्यापी आन्दोलन को 26 मई को छ: महीने पूरे हुए थे। सरकार ने इन क़ानूनों को 18 महीने के टाल रखा है; लेकिन न तो उन्हें रद्द किया है और न लागू कर पायी है। कृषि क़ानूनों के विरोध में दिल्ली से लेकर देश और दुनिया भर में किसानों के पक्ष में लोग खड़े हुए और सरकार पर कृषि क़ानूनों को वापस लेने का दबाव बनाया। दिल्ली की सभी सीमाओं पर लगातार आन्दोलन का असर यह हुआ कि देश भर के किसान यहाँ जुटने लगे। विपक्षी दलों ने भी किसानों का साथ दिया। जब सरकार नहीं झुकी, तो गाँव-गाँव में जागरूकता फैलाने का आह्वान किया गया।
इसके बाद हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में 5 जून को किसानों ने भाजपा नेताओं, सांसदों और विधायकों का घेराव किया। सबसे ज़्यादा हरियाणा में 45 से ज़्यादा जगह पर भाजपा-जजपा नेताओं के आवास और कार्यालयों का घेराव कर किसानों ने नये कृषि क़ानूनों की प्रतियाँ फूँकीं। किसानों ने भाजपा-जजपा के 6 मंत्रियों, 7 सांसदों और 17 विधायकों के आवासों का घेराव किया और कृषि क़ानून तथा सरकार विरोधी नारे लगाये। हिसार में सबसे बड़ा किसान प्रदर्शन हुआ। यहाँ किसानों ने 8 सांसदों-विधायकों के आवासों को घेरा। मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के आवासों के घेराव के दौरान पुलिसकर्मियों ने बलपूर्वक किसानों को रोका, जिससे उनके बीच मामूली झड़प हुई। कुछ किसानों को गिरफ़्तार कर लिया गया। इसकेबाद किसानों ने प्रदर्शन और तेज़ कर दिया, जिससे सरकार को गिरफ़्तारर किसानों को रिहा करना पड़ा।
उत्तर प्रदेश में भी किसानों ने कुछ नेताओं के घर के बाहर प्रदर्शन की कोशिश की, लेकिन वहाँ पुलिस पहले से ही अलर्ट थी और किसानों को आवास तक नहीं पहुँचने दिया गया। हालाँकि एक-दो जगह किसान नेताओं के आवासों तक पहुँचने में सफल रहे। वहीं पंजाब में भी किसानों ने कुछ सांसदों, विधायकों के आवासों का घेराव किया। हाल यह था कि भाजपा नेता एक तरह से नज़रबन्द हो गये थे। इधर पंचकूला में किसानों ने तीन जगह पर जाम लगाकर कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया। बता दें कि इससे पहले किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर आन्दोलन के छ: महीने पूरे होने पर कालादिवस मनाया था।
अब देश भर के किसान एक बार फिर दिल्ली की सभी सीमाओं पर जुटेंगे। राज्यों से किसानों को दिल्ली की सीमाओं पर बुलाया जाएगा। किसान नेताओं का कहना है कि दिल्ली समेत कई राज्यों में लॉकडाउन खुल चुका है। अब दोबारा किसान दिल्ली की सीमाओं पर जमेंगे और कृषि क़ानूनों के वापस होने तक वापस नहीं होंगे। वैसे बता दें कि किसान कोरोना वायरस जैसी महामारी के दौरान भी दिल्ली की सीमाओं से हटे नहीं हैं। लेकिन बड़ी संख्या में वे सीमाओं पर नहीं रहे हैं। किसान नेताओं के अनुसार, आन्दोलन कभी ख़त्म नहीं हुआ, लेकिन कोरोना के चलते दिल्ली की सीमाओं पर अदला-बदली करके किसान जुटे रहे। अब फिर से किसान सीमाओं पर उसी तरह जुटेंगे, जैसे पहले जुटे थे। किसानों का दावा है कि इस बार वे केंद्र सरकार को झुकाकर यानी तीनों कृषि क़ानूनों को वापस कराकर ही दम लेंगे। आन्दोलन को किसान इसलिए भी दोबारा तेज़ करना चाहते हैं, क्योंकि उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में बहुत-ही कम समय बचा है। ऐसे में अगर आन्दोलन तेज़ होता है, तो भाजपा को बड़ा नुक़सान होना तय है। किसान नेता कहते हैं कि पंजाब और हरियाणा में जून के अन्त तक धान की पौध की रोपाई पूरी हो जाएगी। इससे किसानों के पास समय भी निकल आएगा और सभी राज्यों से दिल्ली की सीमाओं पर बड़ी संख्या में किसान जुट सकेंगे।
किसानों की अगली रणनीति क्या है? यह तो कोई नहीं जानता, लेकिन सरकार किसानों की दोबारा बड़े आन्दोलन की किसानों की तैयारी को लेकर सरकार के कान खड़े हो गये हैं।
हाल ही में भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मिले। ममता बनर्जी ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह पूरी तरह किसानों के साथ हैं। केंद्र सरकार किसान आन्दोलन का असर देख चुकी है और समझ चुकी है कि जब तक किसान आन्दोलन समाप्त नहीं होगा, उसके लिए मुसीबतें खड़ी होती रहेंगी। लेकिन इसे सरकार की ज़िद कहें या तानाशाही कि वह किसानों की एक नहीं सुन रही है। क्योंकि किसानों ने सरकार द्वारा दिये गये बातचीत के हर प्रस्ताव को स्वीकार किया और हर बार संयुक्त किसान मोर्चा के किसान नेता केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की अगुवाई वाली बैठक में हिस्सा लेने पहुँचे। लेकिन क़रीब एक दरज़न बार की वार्तालाप का नतीजा शून्य निकला और सरकार ने कृषि क़ानून वापस लेने की किसानों की माँग सिरे से ख़ारिज कर दी। 22 जनवरी के बाद से इस मुद्दे पर सरकार से बातचीत बन्द है। सरकार ने किसानों से निपटने की हर सम्भव कोशिश भी है और उन पर बल प्रयोग भी किया है। छ: महीने के किसान आन्दोलन में सैकड़ों किसान शहीद हो गये हैं। अचम्भित करने वाली बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंजाब हरियाणा में जियो टॉवर तोड़े जाने पर अफ़सोस तो संसद में जताया था, लेकिन सैकड़ों किसानों के शहीद होने पर एक भी शब्द नहीं बोला। इतना ही नहीं भाजपा नेताओं ने किसानों को आतंकवादी और $खालिस्तानी तक कहा और उनके साथ देश के दुश्मनों जैसा व्यवहार किया। हालाँकि सरकार को इस अनसुनी का भारी ख़ामिज़ा भुगतना पड़ा है और आगे भी भुगतना पड़ सकता है।
इधर भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता एवं संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत ने दावा किया है कि केंद्र की मोदी सरकार किसान आन्दोलन को दिल्ली की विभिन्न सीमाओं से हटाकर जींद स्थानांतरित करवाना चाहती है, किन्तु उसकी चाल को किसान कामयाब नहीं होने देंगे। हम दिल्ली को किसी सूरत में नहीं छोड़ेंगे। वहीं हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा है कि उन्हें शान्तिपूर्ण प्रदर्शन पर कोई आपत्ति नहीं है; लेकिन क़ानून को अपने हाथ में लेने वालों से सख़्ती से निपटा जाएगा।
वैसे मनोहर लाल खट्टर अपनी इस बात पर कभी टिके नहीं रहे हैं। याद कीजिए वो दिन जब हरियाणा के किसान शान्तिपूर्वक मार्च निकाल रहे थे और हरियाणा सरकार ने उन पर लाठी चार्ज करा दिया था, जिसके बाद हरियाणा के किसानों ने देश भर में आन्दोलन का आह्वान किया था और कुछ ही महीनों बाद किसानों ने दिल्ली की सीमाओं का रुख़ किया था। तब भी हरियाणा की खट्टर सरकार ने किसानों पर पानी की बोछार करवायी थी, हाईवे ख़ुदवाया था, आँसू गैस के गोले फिकवाये थे और वैरिकेट लगवाये थे। आज वही मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के मुँह से शान्ति पूर्वक आन्दोलन करने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई न करने की बात शोभा नहीं देती। वहीं केंद्र सरकार ने भी किसान आन्दोलन कुचलने के का$फी प्रयास किये थे। लेकिन किसानों ने हार नहीं मानी और अब लड़ाई आरपार की है।