भारत में हरित क्रांति के जनक मनकोंबू संवासीबन स्वामीनाथन ने किसानों के राष्ट्रीय आयोग की अध्यक्षता करते हुए जब यह कहा कि आज खेत-खालियानों में जो कुछ चल रहा है वह बहुत ही गलत है इससे यह साफ हो गया था कि कृषि क्षेत्र में जो परेशानियां हैं उसे दूर करने के लिए कुछ कदम उठाए जाने चाहिए। कई तरह के जोखिम कृषि क्षेत्र में हैं उन्हें ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार एक महत्वकांक्षी योजना ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ लेकर आई जिससे फसल के नुकसान होने की स्थिति में किसानों को कुछ राहत इस बीमा कवर से मिले। लेकिन उससे किसानों को लाभ मिलने की बजाए, उसका लाभ बीमा कंपनियों को ज्य़ादा मिला।
‘तहलका’ के इस अंक में खास खबर के तौर पर इस विषय पर एक लेख प्रकाशित किया जा रहा है। आने वाले अंकों में ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ का पूरा तखमीना देने की कोशिश भी होगी। जिससे पूरी सच्चाई उजागर हो। सन 2016-17 में जो प्रीमियम किसानों से लिया गया और उन्हें जो मुआवजा मिला वह रु पए 6459.64 करोड़ है। इसी तरह 2017-18 में उन्होंने रु पए दो हज़ार करोड़ मात्र से ज्य़ादा की राशि दावों वगैरह में अदा की। लेकिन इंश्योरेंस कंपनियों को रु पए 9,335 करोड़ मात्र से अधिक की राशि हासिल हुई।
इस मामले की पूरी छानबीन इसलिए ज़रूरी है जिससे यह पता लग सके कि एक सामाजिक कल्याण योजना में इतनी बड़ी कमाई उचित है या नहीं। साथ ही इस मामले में यह भी पता लगाया जाना चाहिए कि जब कु ल किसानों में से 84 लाख किसानों का बीमा योजना के पहले साल में कराया गया। जो यह कुल किसानों की तादाद का पंद्रह फीसद है इन्होंने खुद को 2017-18 की योजना से खुद को अलग कर लिया। जबकि तकरीबन 5.72 करोड़ किसानों ने खुद को 2016-17 की फसल बीमा योजना में शरीक कराया था। लेकिन उनकी तादाद घट कर 2017-18 मे 4.87 करोड़ रही गई।
यदि राज्य भर देखें तो सबसे ज्य़ादा राजस्थान से 31.25 लाख किसान इस योजना से बाहर आ गए। महाराष्ट्र से 19.29 लाख और मध्यप्रदेश से 2.90 लाख किसानों ने इस बीमा योजना से अपने हाथ खींच लिए। चिंता की दूसरी बात यह है कि यदि यह योजना किसानों के लिए लाभदायक होती तो कोई भी किसान इस योजना से बाहर क्यों होता?
सवाल यह है कि फसल नुकसान मापने का हमारा तरीका क्या है? क्या फसलों की नुकसान का जायजा लेने का तरीका किसानों से मित्रवत नहीं है या नुकसान -मुआवजा का पूरा तौर-तरीका बहुत ही बोझिल और समय खाऊ है? यदि यह योजना ‘जन धन योजना’ से जुड़ी होती तो क्या ज्य़ादा उपयोगी होती? आज ज़रूरत यह है कि किसानों की फसल चौपट होने पर तत्काल उसे राहत पहुंचाई जाए। जिससे प्रत्यक्ष लाभ उसे मिले। अभी हाल में यह देखा गया है कि देश में बेमौसम बारिश, आंधी आदि आई जिसके कारण बुवाई और फसल कटाई और मंडी को माल ले जाते हुए फसल का काफी नुकसान हुआ। इधर मौसम में गड़बड़ी की बढ़ोतरी से ज़रूरी हो गया है कि ऐसे कदम उठाए जाएं जिसमें किसानों को फौरन राहत मिले।
विशेषज्ञों का कहना है कि सूचना और संचार के माध्यमों से किसानों का भरोसा फसल बीमा योजनाओं में फिर जमाया जाए। फसल बीमा योजनाएं इतनी चुस्त और पारदर्शी होनी चाहिए कि किसानों का उसमें भरोसा जगे। कृषि क्षेत्र के तमाम जोखिम को कम करते हुए उत्पादन इतना ज़रूर बढऩा चाहिए कि किसानों का भी कल्याण हो।