प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 नवंबर को सिडनी संवाद में भारत के प्रौद्योगिकी विकास और कान्ति विषय पर सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि हम दुनिया की सबसे व्यापक सार्वजनिक सूचना और संरचना का निर्माण कर रहे हैं और 60,000 गाँवों को जोडऩे की राह पर हैं। हम सशक्तिकरण, संयोजकता (कनेक्टिविटी), लाभ वितरण और कल्याण सहित शासन के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग करके लोगों के जीवन को बदल रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत के उद्योग सेवा क्षेत्र संसाधनों के रूपांतरण और जैव विविधता के संरक्षण के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करके बड़े पैमाने पर डिजिटल परिवर्तन के दौर से गुज़र रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत को भविष्य के लिए तैयार करने का बड़ा प्रयास हो रहा है। हम 5जी और 6जी जैसी दूरसंचार प्रौद्योगिकी में स्वदेशी क्षमता विकसित करने में निवेश कर रहे हैं। भारत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अग्रणी देशों में से एक है।
सभी रिपोट्र्स और सूचनाओं को देखें, तो हम पाते हैं कि मोदी सरकार में सन् 2014 के बाद प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कुछ सराहनीय कार्य तो हुए हैं; लेकिन भारत में प्रौद्योगिकी का जितना विकास होना चाहिए था, वो अभी तक नहीं हुआ है। इसमें और तेज़ी लाने की ज़रूरत है। भारत का सालाना रक्षा बजट लगभग 4.78 लाख करोड़ रुपये का है, फिर भी भारत हथियार और रक्षा उपकरणों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है। आज भी भारत अपनी रक्षा ज़रूरतों का क़रीब 60 फ़ीसदी सामान आयात करता है। इसके अतिरिक्त उत्पादन, इलेक्ट्रॉनिक्स सहित कई क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर आयात होता है। कुल मिलाकर भारत तकनीक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत अभी अन्य देशों से बहुत पीछे है। देश को अमेरिका, चीन, जापान जैसे विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा करने के लिए केंद्र सरकार को अभी अथक प्रयास करने होंगे।
पिछली सरकार ने एक महत्वाकांक्षी भारतीय एसटीआई उद्यम के मार्गदर्शक विजन के साथ विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (एसटीआई) नीति 2013 बनायी थी। मौज़ूदा सरकार ने नयी शिक्षा नीति उच्च शिक्षा के विदेशी संस्थानों को भारत में नये संस्थान खोलने के लिए प्रेरित करने का हर सम्भव प्रयास किया। लेकिन सन् 2014 के बाद देश में पहले से खुले हुए संस्थान तेज़ी से बन्द हुए हैं। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (एआईसीटीई) के अनुसार, शिक्षा सत्र 2014-15 में 77 संस्थान बन्द हुए थे। इसके बाद 2015-16 में 126, 2016-17 में 163, 2017-18 में 134, 2018-19 में 89, 2019-20 में 92 और पिछले साल यानी 2020 में 179 तकनीकी उच्च शिक्षा के संस्थान बन्द हो गये थे। शिक्षा संस्थानों के इतनी तेज़ी से बन्द होने के पीछे सरकार की क्या मंशा रही, यह तो नहीं पता; लेकिन इससे शिक्षा के क्षेत्र में देश का बहुत बड़ा नुक़सान ज़रूर हुआ है। बड़ी बात यह है कि इतनी बड़ी संख्या में संस्थानों के बन्द होने के पीछे कोरोना वायरस महामारी का असर बताया जा रहा है। लेकिन संस्थान तो कोरोना महामारी से पहले भी ख़ूब बन्द हुए हैं।
हालाँकि 24 मार्च, 2020 को तालाबन्दी के बाद तो सभी शिक्षण संस्थान बन्द हो गये थे। कई परिवारों की कमायी में कमी आयी, जिसकी वजह से अनेक छात्रों को फीस देने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इससे संस्थानों की कमायी पर भी असर पड़ा है। संस्थानों को चालू रखने के लिए कई जगह तमाम अध्यापकों को या तो नौकरी से निकाल दिया गया या मार्च से वेतन नहीं दिया गया। लेकिन अकेले महामारी ही इस समस्या का कारण नहीं है। पिछले कई साल से इनमें से अधिकतर संस्थानों में बड़ी संख्या में पद ख़ाली पड़े हुए हैं। यहाँ तक कि आईआईटी जैसे तकनीकी शिक्षा संस्थानों, जहाँ कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच दाख़िला लेना करोड़ों छात्रों के लिए एक सपना होता है; में भी अभी शिक्षक पद ख़ाली पड़े हैं। 2018-19 सत्र में देश के 23 आईआईटी संस्थानों में 118 पद ख़ाली थे। ये सब रोज़गार और करियर के बदलते स्वरूप तथा छात्रों की कई विषयों में रुचि गिरने की वजह से हो रहा है।
अक्टूबर, 2020 में प्रधानमंत्री ने बताया था कि सन् 2014 से पहले तक देश में 16 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और नौ भारतीय सूचना और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईआईटी) थे। सन् 2014 के बाद सात आईआईटी और 16 नये आईआईआईटी की स्थापना की गयी है। 5 फरवरी, 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईआईटी) अधिनियम संशोधन विधेयक को मंज़ूरी देकर पाँच भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान (आईआईटी) को राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान का दर्जा देने का प्रावधान किया। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अनुसार, वर्तमान में भारत में 23 आईआईटी हैं। देश में 31 राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) हैं, जिनमें से 31वें एनआईटी, आंध्र प्रदेश की स्थापना सन् 2015-16 में हुई। वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान कुछ डीएसटी संस्थानों में शोध केंद्रों की स्थापना की गयी।
भारत को आत्मनिर्भर बनाने और अगले दशक में वैज्ञानिक शोध एवं विकास के मामले में देश को विश्व के अग्रणी राष्ट्रों की पंक्ति में लाने का लक्ष्य लेकर बनायी गयी नयी विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति के मसौदे को अन्तिम रूप दे दिया गया है। महत्त्वपूर्ण मानव संसाधन को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की ओर आकर्षित एवं पोषित करने के साथ-साथ उन्हें इस क्षेत्र में बनाये रखने के लिए इस नीति के अंतर्गत जन केंद्रित पारिस्थितिक तंत्र विकसित करने पर ज़ोर दिया गया है। इस नयी नीति में हर पाँच साल में पूर्णकालिक समतुल्य शोधकर्ताओं की संख्या, शोध एवं विकास पर सकल घरेलू व्यय (जीईआरडी) और जीईआरडी में निजी क्षेत्र के योगदान को दोगना करने पर भी बल दिया गया है।
प्रौद्योगिकी के विकास से कृषि के क्षेत्र में अधिक उपज देने वाले बीजों से लेकर फ़सलों के पकने के बाद की प्रौद्योगिकी के प्रयोगों ने अनाजों की उपज को बढ़ाया है। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) तथा प्रतिरक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) निरंतर नागरिकों और रक्षा विभाग के लिए विस्तृत पैमाने पर विज्ञान और तकनीकी अनुसंधान में संलग्न हैं। रक्षा के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी विकास का ही आधुनिकतम परिणाम है कि भारत में अब मिसाइल बनायी जाने लगी हैं। कुछ मिसाइलों का आगामी विकास हेतु परीक्षण भी किया जा चुका है।
सन् 2014 में भारत ने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का सफल परीक्षण किया। क्रायोजेनिक इंजन बहुत भारी सेटेलाइट्स को लम्बी दूरी तक प्रक्षेपित करने में सफल है। मिशन 2017 के अंतर्गत इसरो ने एक साथ 104 उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा के अन्दर स्थापित किया था। इसरो ने इसके द्वारा विश्व कीर्तिमान बनाया। सन् 2019 में भारत ने चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण किया था। ये मिशन आंशिक रूप से सफल रहा। इसका आर्बिटर सफलतापूर्वक आज भी चंद्रमा के चारों ओर घूम रहा है; लेकिन विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर की क्रैश लैंडिंग हुई थी।
सरकार मेक इन इंडिया प्रोग्राम में रक्षा उपकरणों में स्वदेशी उत्पादन को महत्त्व दे रही है। सैन्य सुधारों के लिए एफडीआई पॉलिसी, इंडस्ट्रियल लाइसेंसिंग पॉलिसी और निर्यात को सरल बनाया गया है। रक्षा निर्यात के मामले में भारत अब शीर्ष 25 देशों में पहुँच गया है। रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्र में भारत को दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल करने के लिए रक्षा मंत्रालय ने 3 अगस्त, 2020 को रक्षा उत्पादन और निर्यात संवर्धन नीति का मसौदा जारी किया है।
राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी विकास रणनीति मसौदा 2020-24 का लक्ष्य वर्ष 2025 तक जैव प्रौद्योगिकी उद्योग को 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक ले जाना तथा शिक्षा और उद्योग को जोड़ते हुए जीवंत स्टार्टअप, उद्यमी और औद्योगिक आधार का निर्माण तथा विकास करना है। सन् 2016 में आईआईटी गुवाहाटी में सेंटर फॉर रूरल टेक्नोलॉजी की स्थापना हुई और सन् 2018 में इसमें नये सिरे से बदलाव किये गये, ताकि आईआईटी, एनआईटी, आईआईएसईआर जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों को ग्रामीण समुदायों से जोड़ा जा सके। 2014-15 के बाद भू-स्थानिक क्षेत्र से प्राकृतिक संसाधन डेटा प्रबन्धन प्रणाली के तहत कई अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गयी।
दिसंबर, 2016 में तारापुर महाराष्ट्र साइट के लिए सैद्धांतिक मंज़ूरी दी गयी, जो कि थोरियम अनुप्रयोग के लिए उपयोग किये जाने वाले 300 मेगावॉट उन्नत भारी जल रिएक्टर का पता लगाने वाला है। भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को लोकप्रिय बनाने के लिए दिल्ली में 15 जनवरी, 2019 को दो विज्ञान संचार कार्यक्रम डीडी विज्ञान और भारत विज्ञान शुरू हुए।
भारत विश्व के विभिन्न देशों के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी साझेदारी के साथ अमेरिका में 30 मीटर टेलीस्कोप, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में स्क्वायर किलोमीटर ऐरे जैसी अत्याधुनिक खगोल विज्ञान सुविधाओं को तैयार करने के काम में भाग ले रहा है। भारत संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोग से महाराष्ट्र में लेजर इंटरफेरोमीटर गुरुत्वाकर्षण तरंग वेधशाला का तीसरा डिटेक्टर स्थापित कर रहा है। भारत विशेष रूप से विमानन जैव ईंधन ऊर्जा के क्षेत्र में वैश्विक विज्ञान और प्रौद्योगिकी साझेदारियों के लिए प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में उभरा है। सन् 2017 में भारत परमाणु अनुसंधान के लिए यूरोपीय संगठन का एक सहयोगी सदस्य बन गया है। अगर केंद्र सरकार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ठीक से काम करे, तो भारत इस क्षेत्र में विश्व में का$फी अग्रणी भूमिका निभा सकता है।