अब तक दुनिया की तमाम संस्थाओं की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत विकास की गति से फिसल गया है, लेकिन देश में इस पर सुधार की भरपूर गुंजाइश है। विश्व रैंकिंग के हिसाब से देखें तो व्यापार करने में आसानी के मापदंडों के मामले में सरकार ने सुधार किये जाने के लिए कई कदम उठाये हैं। तहलका ने यह पड़ताल करने की कोशिश की है कि ऐसे कौन से कारक हैं, जिनसे तय हो कि पेशेवर कर (प्रोफेशनल टैक्स) की संवैधानिकता क्या है? क्योंकि कुछ राज्य इसे लागू करते हैं और कुछ नहीं; ऐसा क्यों है?
क्या है प्रोफेशनल टैक्स?
पहले जान लें कि प्रोफेशनल टैक्स है क्या? यह वह टैक्स है, जो राज्य सरकारें अपने विवेक से लगाती हैं। यह एक पेशेवर व्यक्तियों पर लगाया जाता है; जैसे- चार्टर्ड अकाउंटेंट, वकील, डॉक्टर व अन्य। भारत में सभी राज्य इसे अनिवार्य कर के तौर पर नहीं लगाते हैं।
सवाल यह उठता है कि क्या पेशेवर कर संवैधानिक है? कुछ राज्य सरकारें यह कर लगाती हैं; क्योंकि यह उनके लिए आय का एक स्रोत है। सवाल यह भी है कि पेशेवर कर, कम्पनी या उसके कर्मचारियों का भुगतान करने के लिए कौन उत्तरदायी है? चार्टर्ड एकाउंटेंट कुलतार सिंह का कहना है कि यह पेशेवर कर का भुगतान करने के लिए सम्बन्धित कर्मचारी की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि एक कम्पनी कर्मचारी की ओर से पेशेवर कर का भुगतान कर सकती है और खर्च से भरपाई कर सकती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जीएसटी और पेशेवर कर पूरी तरह से अलग हैं, हालाँकि जीएसटी में सेवाएँ भी शामिल हैं; लेकिन पेशेवर कर अलग रखा है।
पेशेवर कर विभिन्न पेशेवरों से एकत्र किया जाता है, जो इस अधिनियम में सूचीबद्ध हैं। यह वेतनभोगी कर्मचारियों, निदेशकों के साथ-साथ पेशेवरों से एकत्र किया जाता है। कम्पनी के तौर पर देखें, तो कम्पनी के निदेशक, स्व-नियोजित पेशेवर, साझेदारी, व्यक्तिगत साझेदार, या राज्य में किये गये किसी भी व्यवसाय के मालिकों, पूर्ववर्ती वर्ष में उनके सकल कारोबार के आधार पर कर की देयता से लिया जाता है। कुछ मामलों में कर का भुगतान तय है और इसका टर्नओवर के बावजूद भुगतान किया जाना है। उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल में किसी फैक्ट्री मालिक को पेशेवर कर का भुगतान तभी करना पड़ता है, जब पूर्ववर्ती वर्ष का कारोबार 5 लाख रुपये से अधिक का हो। कम्पनियों के मामले में प्रत्येक वर्ष 2,500 रुपये पेशेवर कर देना अनिवार्य है। यह नियोक्ता द्वारा उनके कर्मचारी से हर महीने काटा जाता है और सरकारी खजाने को भेजा जाता है और कुछ राज्यों में नगर निगम को भेजा जाता है। प्रोफेशनल टैक्स देना ज़रूरी होता है। राजीव ढांड एंड कम्पनी के राजीव ढांड ने बताया- ‘प्रोफेशनल टैक्स आयकर की तरह है। आयकर केंद्र सरकार के पास जमा होता है, जबकि पेशेवर टैक्स में अगर छूट नहीं दी गयी है, तो सम्बन्धित राज्य सरकार द्वारा एकत्र किया जाता है। कोई भी व्यक्ति जो वेतन, व्यवसाय या किसी भी प्रकार के पेशे से कमाई कर रहा है, तो वह प्रोफेशनल टैक्स का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है।’
कम्पनी के निदेशकों पर प्रोफेशनल टैक्स कैसे लगाये जाने के सवाल पर राजीव ढांड ने बताया कि कम्पनी को पहले प्रोफेशनल टैक्स रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (पीटीआरसी) प्राप्त करना होगा। यदि निदेशक पूर्णकालिक निदेशक हैं या उनमें से कोई भी प्रबन्ध निदेशक है, तो ऐसे निदेशकों को कम्पनी का कर्मचारी माना जाता है और इसलिए कम्पनी को हर निदेशक के वेतन से प्रति माह प्रोफेशनल टैक्स काटना होगा और ऐसी राशि सम्बन्धित प्राधिकरण के पास जमा करनी होगी। कम्पनी के हर निदेशक को अलग से पीटीई नम्बर प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होती। हालाँकि पूर्णकालिक निदेशक या प्रबन्ध निदेशक के अलावा अन्य निदेशकों के मामले में ऐसे निदेशकों को अलग से पीटीई नम्बर प्राप्त करना होगा और सालाना 2500 रुपये का भुगतान करना होगा।
संवैधानिकता है या नहीं?
भारत के संविधान के अनुच्छेद 276 में यह प्रावधान है कि इस अधिनियम के तहत पेशेवरों, व्यवसायों, कॉलिंग और रोज़गार पर एक कर लगाया जाएगा और उसे एकत्र किया जाएगा। अनुसूची के दूसरे कॉलम में उल्लिखित किसी भी पेशे, व्यापार, कॉलिंग, रोज़गार और एकल तरीके से या वर्ग रूप में के तहत राज्य सरकार को कर का भुगतान करना होगा, जो कि तीसरे कॉलम में सूचीबद्ध हैं। अनुसूची 23 की प्रविष्टि केवल उन लोगों पर लागू होती है, जो राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचना के ज़रिये निर्दिष्ट करती हैं। अत: व्यापारिक कर संवैधानिक है।
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट मेंं वरिष्ठ अधिवक्ता वाई.के. कालिया ने बताया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 276 के तहत व्यापारिक कर संवैधानिक है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद-276 राज्य सरकार को पेशेवर कर के विषय के सम्बन्ध में कानून बनाये जाने की मंज़ूरी देता है। इसमें कहा गया है कि चूँकि संसद द्वारा कानून बनाये जाते हैं। इसलिए हम पेशेवर कर के बारे में राज्य सरकार की कानून बनाने की शक्ति पर सवाल नहीं उठा सकते। उन्होंने कहा कि एक व्यवसाय का मालिक अपने कर्मचारियों के वेतन से पेशेवर कर काटने की ज़िम्मेदारी होती है; साथ ही इस राशि को उचित सरकारी विभाग को जमा कराना होता है, जो कि कानून के हिसाब से कर विभाग को देता है।
प्रोफेशनल टैक्स स्लैब (रुपये में राज्यवार)
महाराष्ट्र
1/- से 5000/- तक शून्य
5,001/- से 10,000/- तक 175/-
10,001/- या इससे अधिक पर 200/-
* फरवरी माह के लिए 300/-
आंध्र प्रदेश
1/- से 5000/- तक शून्य
5,001/- से 6,000/-तक 60/-
6,001/- से 10,000/- तक 80/-
10,001/- से 15,000/- तक 100/-
15,001/- से 20,000/- तक 150/-
20,001/- या इससे अधिक पर 200/-
असम
1/- से 3500/- तक शून्य
3,501/- से 5,000/- तक 30/-
5,001/- से 7,000/- 75/-
7,001/- से 9,000/- तक 110/-
9,001/- या इससे अधिक पर 208/-
छत्तीसगढ़
1/- से 12,500/- तक शून्य
12,501/- से 16,667/- तक 150/-
16,668/- से 20,833/- तक 180/-
20,834/- से 25,000/- तक 190/-
25,001/- या इससे अधिक पर 200/-
गुजरात
1/- से 2,999/- तक शून्य
3,000/- से 5,999/- तक 20/-
6,000/- से 8,999/- तक 40/-
9,000/- से 11,999/- तक 60/-
12,000/- या इससे अधिक पर 80/-
कर्नाटक
1/- से 9,999/- तक शून्य
10,000/- से 14,999/- तक 150/-
15,000/- या इससे अधिक पर 200/-
मध्य प्रदेश
1/- से 3,333/- तक शून्य
3344/- से 4,166/- तक 30/-
4,167/- से 5,000/- तक 60/-
5,001 से 6,666/- तक 90/-
6,667/- से 8,333/- तक 150/-
8334/- या इससे अधिक पर 175/-
मेघालय
1/- से 4,166/- तक शून्य
4,167/- से 6,250/- तक 16.50/-
6,251/- से 8,333/- तक 25/-
8,334/- से 12,500/- तक 41.50/-
12,501/- से 16,666/- तक 62.50/-
16,667/- से 20,833/- तक 83.33/-
20,834/- से 25,000/- तक 104.16/-
25,001/- से 29,166/- तक 125/-
29,167/- से 33,333/- तक 150/-
33,334/- से 37,500/- तक 175/-
37,501/- से 41,666/- तक 200/-
41,667/- या इससे अधिक पर 208/-
ओडिशा
1/- से 5000/- तक शून्य
5,001/- से 6,000/- तक 30/-
6,001/- से 8000/- तक 50/-
8,001/- से 10,000/- तक 75/-
10,001/- से 15,000/- तक 100/-
15,001/- से 20,000/- तक 150/-
20,001/- या इससे अधिक पर 200/-
पश्चिम बंगाल
1/- से 5000/- तक शून्य
5,001/- से 6000/- तक 40/-
6,001/- से 7,000/- तक 45/-
7,001/- से 8000/- तक 50/-
8,001/- से 9,000/- तक 90/-
9,001/- से 15,000/- तक 110/-
15,001/- से 25,000/- तक 130/-
25,001/- से 40,000/- तक 150/-
40,001/- और इससे अधिक 200/-
वह व्यक्ति, जो किसी व्यवसाय का मालिक है; अपने कर्मचारियों के वेतन से पेशेवर कर में कटौती करने के लिए ज़िम्मेदार है। इस कर को सम्बन्धित राज्य को जमा कराया जाता है और फिर उसी के अनुसार रिटर्न दािखल किया जाता है। अब हम कहानी के दूसरे हिस्से पर आते हैं कि कैसे नयी कर व्यवस्था से व्यापार करने में आसानी (ईज ऑफ डूइंग) के लिए सुधार किया है? क्या नयी कर व्यवस्था, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ने व्यापार करने में आसानी को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण घटक साबित हुआ है? क्या जीएसटी लॉजिस्टिक और लेन-देन लागत में कमी के ज़रिये प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के साथ बाज़ार प्रदान किया जा सका है? जीएसटी अनुपालन और अप्रैल, 2020 से एक नये जीएसटी रिटर्न फाइलिंग तंत्र को और सुधार करने की योजना लागू करने की है। सूत्रों के अनुसार, अप्रैल, 2020 से शुरू होने वाले नये रिटर्न फाइलिंग सिस्टम में जीएसटी के तहत पंजीकृत करदाताओं की सभी श्रेणियों में दािखल करने में आसानी के लिए फॉर्म को सरल बनाया जाएगा। ई-चालान के लिए सरकार इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रमाणित करने और रिटर्न दािखल करने व ई-वे बिल बनाने के लिए अन्य पोर्टलों पर उपयोग में आसानी के लिए हर चालान को सत्यापित करने की भी योजना है। व्यापार करने में आसानी के तुलनात्मक आँकड़े बताते हैं कि से 2014 में दुनिया के 190 देशों में भारत 142वें स्थान पर था। जीएसटी को देश में 01 जुलाई, 2017 को आधी रात से लागू किया गया। डूइंग बिजनेस-2020 पर विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, केवल एक वर्ष में भारत 2018 में 77वें स्थान पर चढ़ गया और अक्टूबर, 2019 तक 63वें पायदान पर पहुँच गया। अब भारत का लक्ष्य है- विश्व रैंकिंग में शीर्ष 50 देशों की सूची में पहुँच जाए। आँकड़े बताते हैं कि जीएसटी और जीएसटी अनुपालन से बदलाव दिखा है।
डीपीआईआईटी के कदम
उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी), केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों और राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों के साथ समन्वय करके भारत में व्यापार करने की सुविधा के लिए इस क्षेत्र में कई उपाय किये गये हैं। इसमें 10 संकेतक हैं; जिनसे किसी व्यवसाय के चक्र को समझा जा सकता है-
क्रमांक संकेतक रैंक
- व्यवसाय शुरू करना 137
- कंस्ट्रक्शन परमिट के साथ डील 52
- बिजली 24
- सम्पत्ति का पंजीकरण 166
- श्रेय प्राप्त करना 22
- अल्पसंख्यक निवेशकों की सुरक्षा 7
- कर चुकाना 121
- सीमा पार व्यापार 80
- संविदा लागू करना 163
- इन्सॉल्वेंसी का निदान 108
कुल मिलाकर 77वीं रैंक
सरकार की ओर से देश में व्यापार के माहौल को आसान बनाने की दिशा में कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये गये हैं, जिसके बाद इसमें सुधार के संकेत भी दिखने लगे हैं। सार्वजनिक और निजी कम्पनी के लिए न्यूनतम पूँजी की आवश्यकता को कम्पनी (संशोधन) अधिनियम-2015 के तहत समाप्त कर दिया गया है। सरकार ने इसमें इलेक्ट्रॉनिक रूप से कम्पनी को शामिल करने के लिए एक एकल रूप सरलीकृत प्रोफार्मा पेश किया है, जिसमें अनुप्रयोगों को मिलाकर पाँच अलग-अलग नाम दिये हैं; जैसे- कि आरक्षण, कम्पनी निगमन, निदेशक पहचान संख्या (डीआईएन), स्थायी खाता संख्या (क्क्रहृ यानी पैन) और कर कटौती/संग्रह खाता संख्या (ञ्ज्रहृ यानी टैन)।
अन्य महत्त्वपूर्ण कारक ई-फॉर्म एजीआईएलई (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स आइडेंटिफिकेशन नम्बर (जीएसटीआईएन) के पंजीकरण के लिए आवेदन, कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) पंजीकरण के साथ ही कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) पंजीकरण हैं। कोई भी आवेदक, यदि वह इनमें से किसी भी निकाय के लिए पंजीकरण करना चाहता है, तो ई-फॉर्म एजीआईएलई भर सकता है और कम्पनी निगमन के समय ही पंजीकरण हासिल कर सकता है। यह फॉर्म एक उपयोगकर्ता को स्पाइस फॉर्म के साथ जीएसटी, ईपीएफ और ईएसआई पंजीकरण के लिए आवेदन करने में सक्षम बनाता है। एक नयी और सरलीकृत वेब आधारित सेवा का शुभारम्भ किया गया, जिसमें आरयूए (रिजर्व यूनीक नेम) के ज़रिये नाम को आरक्षित भी करा सकते हैं। इसने नाम आरक्षण के दौरान डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट (डीएससी) की आवश्यकता को भी हटा दिया है। 15 लाख रुपये तक की अधिकृत पूँजी वाली कम्पनियों के लिए निगमन शुल्क को शून्य कर दिया गया है। पैन कार्ड जारी करने की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त, पैन और टैन को निगमन प्रमाण-पत्र (सीओआई) में उल्लेख किया गया है, जिसे पैन और टैन के लिए पर्याप्त सुबूत माना जाता है। ईपीएफओ और ईएसआईसी के लिए ऑनलाइन और श्रमसुविधा पोर्टल से ही पंजीकरण प्रदान किया जाता है। मुम्बई शॉप्स एंड इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के तहत पंजीकरण बिना किसी लागत और निरीक्षण के तय समय में प्रदान किये जाते हैं। साथ ही जीएसटी पंजीकरण के लिए बैंक खाते के विवरण की आवश्यकता भी हटा दी गयी है।
अन्य उपाय ऑनलाइन सिंगल विंडो सिस्टम और यूनिफाइड बिल्डिंग बाय-लॉ भी शुरू किये हैं। यदि निर्धारित समयसीमा के भीतर मंज़ूरी नहीं दी गयी है, तो डीम्ड अनुमोदन जारी कर दिया जाता है। इमारतों के लिए जोखिम आधारित वर्गीकरण को फास्ट ट्रैकिंग बिल्डिंग प्लान की स्वीकृति, निरीक्षण और प्रमाण-पत्र के अनुमोदन के लिए पेश किया गया है। भवन योजना अनुमोदन के लिए नोटरी प्रमाण पत्र या शपथ पत्र प्रस्तुत करने की जगह ई-शपथ दे सकते हैं। कई चरण में पूरे होने वाले निरीक्षणों को एक बार में ही संयुक्त निरीक्षण और सड़क खराब होने व पानी और सीवर कनेक्शन को जोडऩे को आसान किया गया है। विद्युत निरीक्षणालय द्वारा आंतरिक वायरिंग निरीक्षण की प्रक्रियाओं को खत्म कर दिया गया है साथ ही बाहरी कनेक्शन कार्यों में लगने वाले समय को कम कर दिया गया है।
सुरक्षित लेनदारों को व्यापार परिसमापन के दौरान पहले भुगतान किया जाता है, इसलिए श्रम और कर जैसे अन्य दावों को प्राथमिकता दी जाती है। पूरे देश के लिए लगभग 17 अप्रत्यक्ष केंद्र और राज्य के करों को एक ही अप्रत्यक्ष कर को मिलाकर गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) में बदल दिया गया है। केंद्रीय बिक्री कर, सेनवैट, राज्य के वैट और सेवाकर सहित पुराने बिक्री करों को जीएसटी में शामिल कर दिया है। इन करों के एकीकरण ने टैक्स के कैस्केडिंग प्रभाव को कम कर दिया है और इनपुट पर भुगतान किये गये करों को काफी हद तक विश्वसनीय बना दिया है।
250 करोड़ रुपये तक टर्नओवर वाली कम्पनियों के लिए कॉरपोरेट आयकर दर 30 फीसदी घटाकर 25 फीसदी कर दिया गया है। सोशल सिक्योरिटी कॉन्ट्रिब्यूशन के भुगतान के लिए इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली शुरू की गयी है, जिससे आसानी से रिटर्न भुगतान किया जा सके। ईपीएफ भुगतान के लिए इलेक्ट्रॉनिक और प्रशासनिक शुल्क को अनिवार्य कर दिया गया है, साथ ही कर्मचारी भविष्य निधि योजना-1952 (ईपीएफएस) को मासिक वेतन के 0.85 फीसदी से घटाकर 0.65 फीसदी कर दिया गया है। कर्मचारियों के जमा लिंक्ड इंश्योरेंस (ईडीएएलआई) पर लगने वाले प्रशासनिक शुल्क 0.01 फीसदी को खत्म कर दिया गया है।
कंटेनरों की इलेक्ट्रॉनिक सीलिंग के कार्यान्वयन, बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे में सुधार और डिजिटल हस्ताक्षरों के साथ सहायक दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करने की अनुमति देने सहित विभिन्न पहलुओं के ज़रिये निर्यात और आयात के लिए लगने वाले समय और लागत को कम किया गया है। जोखिम-आधारित निरीक्षणों के लिए आयात-निर्यात के लिए 5 फीसदी सामान का भौतिक निरीक्षण किया जाता है। एडवांस बिल ऑफ एंट्री अपनायी है, जो जहाज़ के आने से पहले आयातकों को सीमा शुल्क निकासी की प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति प्रदान करती है। सिंगल विंडो इंटरफेस फॉर ट्रेड (स्विफ्ट) के तहत एक ऑनलाइन आवेदन प्रणाली ई-संचित शुरू की गयी है, जिसमें व्यापारियों को डिजिटल हस्ताक्षर के साथ इलेक्ट्रॉनिक रूप से सहायक दस्तावेज़ पेश करने की अनुमति है।
राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड की शुरुआत हुई है, जो स्थानीय अदालतों में मामले के मानदंडों की रिपोर्ट आसान बनाती है। व्यावसायिक न्यायालय अधिनियम-2015 में संशोधन करके ज़िला स्तर पर वाणिज्यिक न्यायालयों की स्थापना के लिए वाणिज्यिक न्यायालयों के आर्थिक अधिकार क्षेत्र को एक करोड़ से घटाकर मात्र तीन लाख रुपये कर दिया गया है। इनसॉल्वेंसी सम्बन्धी समस्याओं के निपटारे के लिए इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड को अपनाया गया है, जिसमें कॉरपोरेट देनदारों के लिए एक पुनर्गठन प्रक्रिया की व्यवस्था होगी। इनसॉल्वेंसी कार्यवाही के दौरान देनदारों के व्यवसाय को जारी रखने की सुविधा भी दी गयी है। पुनर्गठन और दिवाला कार्यवाही के प्रभावी संचालन के लिए व्यावसायिक संस्थानों की स्थापना की गयी है। आईबीसी के तहत समयबद्ध प्रक्रिया का संकल्प है और दिवालियापन अंतिम उपाय है। इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 की धारा-42 में यह संशोधन किया गया है कि लेनदार को लेनदार ेद्वारा और किसी अन्य लेनदार द्वारा लाये गये देनदार के िखलाफ दावों को स्वीकार करने या खारिज करने के फैसले पर आपत्ति करने का अधिकार है।
पेशेवर कर लगाने वाले राज्य निम्नलिखित हैं-
आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, असम, गुजरात, केरल, मेघालय, त्रिपुरा, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मिजोरम, ओडिशा, पुड्डुचेरी, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, नागालैंड, सिक्किम, राजस्थान, तेलंगाना
पेशेवर कर न लगाने वाले राज्य
अरुणाचल प्रदेश, दिल्ली, गोवा, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, अंडमान और निकोबार, चंडीगढ़, दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली, लक्षद्वीप