जब प्रियंका ने वाराणसी से चुनाव लडऩे की अपनी संभावना के बारे में यह कहा कि वह तैयार है पर अंतिम आदेश पार्टी का होगा, तो चारों ओर एक उत्सुकता सी फैल गई थी। सभी लोग प्रियंका और मोदी की टक्कर देखने के लिए आतुर थे। पर अंत में पार्टी ने यह बयान देकर सारी बात को खत्म कर दिया कि प्रियंका वाराणसी से चुनाव नहीं लड़ेगी।
फिर वह क्यों नहीं लड़ रही? गांधी परिवार के दोनों बच्चों में से ज़्यादा करिश्माई और कार्यकर्ताओं और आम लोगों के साथ स्वाभाविक तौर पर संपर्क बनाने वाली प्रियंका के प्रशंसक और आलोचक दोनों ही इस फैसले का विश्लेषण करने में लग गए।
इसका सबसे ज़्यादा विरोध प्रियंका की माता सोनिया गांधी ने किया। उन्हें यह सही नहीं लगा कि प्रिंयका अपना पहला ही चुनाव इतनी कठिन सीट से लड़े। वैसे भी उन्हें लगा कि जिस राज्य में पार्टी का पूरा काम ही न हो और तैयारी भी पूरी न हो वहां चुनाव लडऩा सही नही होगा।
कांग्रेस सदस्यों ने यह प्रश्न उठाया कि जब प्रियंका कहीं और से आसानी से चुनाव जीत सकती है तो वाराणसी से चुनाव क्यों लडऩा। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि प्रियंका के लिए संसद में जाने का सबसे आसान रास्ता है अमेठी में होने वाले उप चुनाव द्वारा। यदि राहुल गांधी अमेठी और वायनाड (केरल) दोनों स्थानों से चुनाव जीत जाते हैं तो वे अमेठी की सीट छोड़ सकते हैं। प्रियंका 2022 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव से भी अपनी शुरूआत कर सकती है।
जब समाजवादी पार्टी ने शालिनी यादव (अब शलिनी की जगह तेज बहादुर को टिकट दिया गया) को बसपा-सपा और आरएलडी का वाराणसी से उम्मीदवार घोषित कर दिया तो यह साफ हो गया था कि इस गठबंधन का साथ प्रियंका को नहीं मिलेगा। इसका भरपूर लाभ मोदी को होगा। पार्टी के सदस्यों का यह भी मानना है कि यदि प्रियंका चुनाव लड़ती है तो वह केवल उसी क्षेत्र तक बंध जाती जबकि उन्हें पूर्वी उत्तरप्रदेश का कार्यभार सौपा गया है। वह पार्टी की ‘स्टार कंपेनर’ हैं। विश्लेषकों का मानना है कि प्रियंका को न लड़ा कर कांग्रेस ने एक तरह से मोदी को ‘वाकओवर’ दे दिया है। मोदी अपनी जीत के प्रति इतने अश्वस्त हैं कि उन्होंने जनसभा में लोगों से कहा कि वे अब केवल जीत के बाद ही वाराणसी आएंगे।
उधर कांग्रेस के प्रत्याशी राय ने कहा कि वह अपने चुनाव प्रचार के दौरान स्थानीय मुद्दे उठाते रहेंगे। ध्यान रहे कि राय ने 2017 में भी वाराणसी जि़ले के पिंदारा से विधानसभा चुनाव लड़ा और हारा था। उन्होंने कहा कि उनका मुख्य मुद्दा होगा मोदी के वे वादे जो उन्होंने वाराणसी के लोगों के साथ किए पर उन्हें पूरा नहीं किया। इसके साथ ही नगर को तोडऩे का मामला भी जनता तक जाएगा। गंगा अभी भी साफ नहीं हुई है। लोग सब जानते हैं। उन्होंने कहा कि मैंने प्रियंका से अपील की थी कि वे यहां से चुनाव लड़े। मैं आभारी हूं पार्टी का जिसने मेरे जैसे कार्यकर्ता पर फिर से भरोसा जताया है। पूर्वी उत्तरप्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी का समर्थन और उत्साहवर्द्धन मेरे साथ है। मैं उनकी उम्मीदों पर पूरा उतरने का प्रयास करूंगा।
राय ने यह सारी बातें प्रियंका के दौरे से पहले कहीं जब पार्टी अपनी नेता के दौरे की पूरी योजना बना रही थी। जैसे ही पार्टी ने राय के नाम की घोषणा की उसके साथ ही पार्टी की इस बात के लिए आलोचना भी हुई कि उसने पहले प्रियंका का नाम हटा दिया। यह सब 28 मार्च को शुरू हुआ जब पार्टी समर्थकों ने प्रियंका से उनके परिवार की पक्की सीट रायबरेली से चुनाव लडऩे को कहा। इस पर प्रियंका ने कह दिया-”वाराणसी से क्यों नहीं?’’ कांग्रेस को इस मुद्दे पर काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा। प्रियंका को इस तरह की बातों से बचना चाहिए। प्रियंका की यह आलोचना भी होगी कि उनमें बड़ी लड़ाई का मादा नहीं है। पता नही प्रियंका ने क्यों इसे लंबे समय तक चलने दिया और राहुल गांधी ने भी क्यों इस मुद्दे पर बात स्पष्ट नहीं की। उन्होंने बल्कि यह कहा कि वे अभी यह ‘संस्पैंस’ जारी रखेंगे। पर यह चलना नहीं और लोगों में काफी निराशा फैली।
सवाल यह है आखिर इस तरह बात को अंधकार में रखने के पीछे मंशा क्या थी? क्या कांग्रेस में इसे लेकर झिझक आ गई थी? क्या राहुल गांधी ने इस आधार पर प्रियंका को मना किया कि वह मोदी का सामना नहीं कर पाएगी और उसकी हार प्रियंका और पार्टी दोनों के लिए हानिकारक होगी। अंत में कांग्रेस को यह जानने में एक महीना लग गया कि मोदी को वाराणसी में हराया नहीं जा सकता? क्या यह बात शुरू से ही स्पष्ट नहीं थी? क्या असल में मोदी की हार की कोई संभावना नहीं थी?
चाहे कारण कुछ भी हो पर वह मीडिया को पता नहीं। इस कारण प्रियंका का चुनाव न लडऩा भाजपा को एक मुद्दा दे गया है। भाजपा अब यह शोर मचा सकती है कि प्रियंका चुनाव से भाग गई है। अब बात करिश्माई व्यक्तित्व से उलट उनकी चुनौती को स्वीकार न कर पाने पर आ जाएगी। इसका यह असर भी जाएगा कि गांधी परिवार अपने लिए सुरक्षित सीटें ही तलाशते हैं। इसके बाद अब प्रियंका को भी लोग गंभीरता से लेना छोड़ सकते हैं। उन्होंने 2012 में एक बार कहा था-”मैं आऊं क्या’’, पर जब अवसर आया तो वह नहीं आई।
तेज पर लगी रोक
उत्तर प्रदेश लोक सभा चुनावों में सपा-बसपा गठबंधन के साझा तेज बहादुर का नामांकन पत्र चुनाव अधिकारी ने रद़द कर दिया। उन्हें शालिनी यादव की जगह अंतिम समय में गठबंधन का वाराणसी से उम्मीदवार बनाया गया था। अब शालिनी यादव ही गठबंधन की उम्मीदवार होंगी।
उन्हें सपा का टिकट देने की जानकारी पार्टी के प्रवक्ता मनोज राय धूपचंडी ने दी थी। सैनिकों को मिलने वाले भोजन पर सवाल उठाते हुए वीडियो वायरल करने के कारण तेज बहादुर को बल से बाहर कर दिया गया था। तेज बहादुर आज़ाद उम्मीदवार के रूप में अपना पर्चा भर चुके थे। कुछ दिन पहले से ही यह चर्चा शुरू हो गई थी कि शालिनी की जगह तेज बहादुर को सपा अपना उम्मीदवार घोषित कर सकती है। पर इस मुद्दे पर कोई अधिकारिक घोषणा नहीं हुई थी।
शालिनी ने कुछ समय पहले ही कांगे्रस को छोड़ कर सपा का दामन थामा था। सपा में आने के कुछ घंटे बाद ही सपा ने उसे अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था।
तेज बहादुर उस समय चर्चा में आए जब उन्होंने जनवरी 2017 में जवानों के मिलने वाले खाने को लेकर सोशल मीडिया पर वीडियो डाला था। इसके बाद अप्रैल में सीमा सुरक्षा बल ने उनको अनुशासनहीनता का दोषी मानते हुए बर्खास्त कर दिया था। अफसरों ने बताया था कि जांच में कांस्टेबल दर्जे के जवान द्वारा लगाए गए आरोप सही नहीं पाए गए थे।
यादव ने वीडियो में कहा था – देशवासियों मैं आप से अपील करता हूं। हम लोग सुबह छह बजे से शाम पांच बजे तक लगातार 11 घंटे बर्फ में खड़े हो कर ड्यूटी करते हैं। कैसा भी मौसम हो हम ड्यूटी पर तैनात रहते हैं। मगर हमारी हालत यह कि हमारी न तो सरकार सुनती है और न ही कोई मंत्री, यहां तक कि इसे मीडिया भी नहीं दिखाता। तेज़ बहादुर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी अपील की थी। उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री इसकी जांच कराएं। उसने लिखा था, ‘वीडियो डालने के बाद शायद मैं रहूँ या न रहूँ। अफसरों के बहुत बड़े हाथ हैं, वे मेरे साथ कुछ भी कर सकते हैं, कुछ भी हो सकता है।’ यादव जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर तैनात बीएसएफ की 29वीं बटालियन का सिपाही था। जांच के दौरान उसे जम्मू बदल दिया गया था। उसने नौ जनवरी को सोशल मीडिया पर वीडियो डाल कर खराब खाना दिए जाने की शिकायत की थी। इस मामले ने काफी तूल पकड़ा। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी बीएसएफ में इस मामले की जांच करने को कहा था इसके बाद कई जवानों के ऐसे वीडियो सामने आए। तेज़ बहादुर के 22 साल के बेटे ने 17 जनवरी 2019 को खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी।