शिमला ज़िले के ठियोग में सेब उत्पादक शकुंतला शर्मा की ख़ुशी के अपने कारण हैं। प्राकृतिक खेती की तकनीक से उनके बाग़ में पैदा हुए सेब से उन्हें इस बार बाज़ार में अप्रत्याशित रूप से 100 रुपये प्रति किलोग्राम से अधिक की क़ीमत मिली। यह अभी तक उन्हें मिली सबसे ज़्यादा क़ीमत है। शकुंतला के मुताबिक, इसका एक और लाभ हुआ है कि लागत का ख़र्चा पहले से काफ़ी घटा है।
शकुंतला बताती हैं कि जैसे ही स्थानीय बाज़ार में ख़रीदार जब उनके सेब के बक्सों पर ‘प्राकृतिक सेब’ का लेबल देख रहे हैं, तो तुरन्त निर्धारित क़ीमत पर ख़रीदार रहे हैं। इससे ज़ाहिर होता है कि वे ग़ैर-रासायनिक उत्पाद को प्राथमिकता दे रहे हैं। उनके मुताबिक, ग़ैर-रासायनिक सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती (एसपीएनएफ) के साथ खेती की लागत पर 50,000 से 60,000 रुपये की बचत हो जाती है, जो वास्तव में एक बड़ा लाभ है।
महिला किसान पाँच बीघा सेब के बाग़ सहित कुल 10 बीघा ज़मीन पर एसपीएनएफ का इस्तेमाल कर रही हैं। शकुंतला के मुताबिक, प्राकृतिक सब्ज़ियों के ख़रीदार भी उनके दरवाज़े पर आते हैं और अच्छी क़ीमत में उन्हें ख़रीदारते हैं। एसपीएनएफ पद्धति देसी गाय के गोबर, मूत्र और कुछ स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों से प्राप्त चीज़ें पर आधारित है। एसपीएनएफ के लिए फॉर्म इनपुट घर पर तैयार किये जा सकते हैं। इस तकनीक में किसी भी तरह के रासायनिक खाद या कोई कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता है।
शिमला ज़िले के रोहड़ू खण्ड में समोली पंचायत के एक और बाग़वान रविंदर चौहान ने बताया कि वह काफ़ी वित्तीय फ़ायदे में हैं; क्योंकि रासायनिक स्प्रे पर लगातार बढ़ते ख़र्च के कारण उन्हें अपने सेब बाग़ में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती में बदलाव ने मुझे पिछले तीन साल में अच्छा मुनाफ़ा कमाने में मदद की है।
प्राकृतिक खेती की तकनीक से आठ बीघा ज़मीन पर सेब उगाने वाले चौहान ने तमिलनाडु, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों में सेब का एक डिब्बा (वज़न 25 किलो) 4200 से 4500 रुपये में बेचा। इसमें परिवहन लागत भी शामिल है। रविंदर चौहान के मुताबिक, सामान्य बाज़ार में क़ीमतों में उतार-चढ़ाव का उन पर ज़्यादा असर नहीं पड़ता; क्योंकि उनके सेब रसायन मुक्त, प्राकृतिक और स्वस्थ हैं। वह पहले से दर (क़ीमत) तय करते हैं।
राज्य सरकार द्वारा सन् 2018 में शुरू किये गये पीके3वाई योजना के एक हिस्से के रूप में हिमाचल प्रदेश में कृषि और बाग़वानी फ़सलों के लिए ग़ैर-रासायनिक कम लागत वाली जलवायु लचीला एसपीएनएफ तकनीक को बढ़ावा दिया जा रहा है। राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई (एसपीआईयू) द्वारा साझा किये गये आँकड़ों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में अब तक (आंशिक या पूर्ण रूप से) 1,33,056 किसान प्राकृतिक खेती कर रहे हैं, जिसमें 7,609 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल है। इसमें तक़रीबन 12,000 सेब बाग़वान शामिल हैं।
बाहरी बाज़ार, उत्पादन, कृषि स्थिति और कम ख़र्च पर शून्य निर्भरता के सन्दर्भ में प्राकृतिक खेती के परिणामों से जहाँ किसान ख़ुश हैं, वहीं उन्होंने बेहतर लाभ के साथ प्राकृतिक उपज के विपणन के लिए अपने स्वयं के सम्बन्ध बनाने के प्रयास भी शुरू कर दिये हैं। इनमें से कुछ को स्थानीय मण्डियों में रासायनिक मुक्त प्राकृतिक उपज के अच्छे दाम मिल रहे हैं। अन्य लोग इन सेबों को देश के विभिन्न हिस्सों में भेज रहे हैं और कई को तो दरवाज़े पर ही ख़रीदार मिलने लगे हैं।
शिमला ज़िले के चौपाल ब्लॉक के लालपानी दोची गाँव के एक फल उत्पादक सुरेंद्र मेहता को सन् 2019 और 2020 में प्राकृतिक रूप से उत्पादित सेब के लिए जयपुर और दिल्ली में ख़रीदार मिले। शिमला ज़िले के शिलारू की एक महिला सेब उत्पादक सुषमा चौहान, जो कुल 50 बीघा में से 10 बीघा भूमि पर एसपीएनएफ कर रही हैं; ने कहा कि रासायन-मुक्त प्राकृतिक उपज के बारे में जागरूकता धीरे-धीरे बढ़ रही है और अब बाहर से ख़रीदार उनके पास आ रहे हैं।
पीके3वाई के कार्यकारी निदेशक, राजेश्वर सिंह चंदेल कहते हैं कि राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई स्थानीय कृषि आधारित विपणन मॉडल के लिए विभिन्न किसानों की तलाश कर रही है, जिन्हें उन्होंने स्वयं विकसित किया है। इससे हमें इन सफल किसान-बाज़ार सम्बन्धों को अपने कार्यक्रम के साथ जोडऩे में मदद मिलेगी; जिसमें हम सभी किसानों को बाज़ार से जोडऩे पर विचार कर रहे हैं।
“वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि एसपीएनएफ तकनीक से सेब की फ़सल में खेती की लागत में 56.5 फ़ीसदी की कमी की है; जबकि सेब की फ़सल में लाभ में 27.4 फ़ीसदी बढ़ोतरी हुई है। सेब में स्कैब और मार्सोनिना ब्लॉच की घटना भी पारम्परिक प्रथाओं की तुलना में प्राकृतिक खेती में कम होती है और किसान एसपीएनएफ को अपनाकर एक ही खेत में कई फ़सलें लेने में सक्षम हैं।“
शकुंतला शर्मा
सेब उत्पादक