एक ओर तो दिल्ली सरकार सरकारी और प्राइवेट स्कूल में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिये तमाम दावे करती है। वहीं प्राइवेट स्कूल वालों की मनमर्जी के सामने कुछ भी बोलने से बचती है। प्राइवेट स्कूल वालों ने जो अपने नियम-कायदे बना रखें है। वो उसी तर्ज पर चल रहे है। फीस बढ़ोत्तरी न करें तो तमाम तरह से बच्चों से फीस वसूल ही लेते है। प्राइवेट स्कूल वालों की मनमर्जी तो कोरोना काल में भी खूब चली है।
स्कूल बंद होने के बावजूद बच्चों की फीस में ऐकाना पैसा तक की कमी नहीं की गई है। अभिभावकों को हर हाल में पूरी की फीस देनी पड़ी है। अभिभावक सुनीता गर्ग का कहना है कि उनके बच्चे ईस्ट दिल्ली के एक प्रमुख स्कूल में पड़ते है। जब कोरोना काल था तब, बच्चे स्कूल तक नहीं जा रहे थे। तब उन्होंने स्कूल प्रबंधन से अपील की थी कि जब स्कूल नहीं खुल रहे है। तो फीस में कटौती की जाए ,यानी कम ली जाए क्योंकि उनके पति एक चार्टड एकाउन्टेड के जहां काम करते है। तो ऑफिस न जाने पर उनके वेतन में कटौती की गई है। इस लिहाज से स्कूल में ही होना चाहिये।
तो स्कूल वालों का दो -टूक जवाब था कि फीस कम नहीं होगी अगर आप फीस देने में असमर्थ है तो बच्चों का नाम स्कूल से कटवा सकते है और सरकारी स्कूल में लिखवा सकते है।इसी तरह अन्य अभिभावकों की यही कहानी है। दिल्ली अभिभावक एसोसिएशन से जुड़े पंकज कुमार का कहना है कि सरकारी सिस्टम ही नहीं अब तो प्राइवेट सिस्टम में धांधली और मनमर्जी चल रही है।
सुनवाई के नाम पर कुछ भी नहीं है। क्योंकि दिल्ली सरकार को भली -भाँति मालूम है। कि प्राइवेट वाले जमकर फीस की आड़ में तमाम तरह से फीस वसूली कर रहे है। सालाना फीस, कम्प्यूटर फीस, खेल -खूद के समान के नाम पर फीस इसी तरह आने -जाने के लिये ट्रांसपोर्ट फीस अब तो एक और नया फीस की तरीका बढ़ा दिया है। जैसे ए- सी बस का होना और बस शत -प्रतिशत सेनेटाइज होगी। स्कूल में सबसे बड़ा एक खेला और ये चल रहा है कि हर साल हर क्लास का सिलेबस बदला जा रहा है।
आखिर इसके पीछे की मंशा जो भी हो लेकिन अभिभावकों को काफी परेशानी होती है। पूर्व टीचर संतोष शर्मा का कहना है कि प्राइवेट वालों पर जब तक शिक्षा निदेशालय का विभाग का हाथ है तब तक स्कूल वालों की मनमर्जी चलती रहेगी। और अभिभावकों को फीस देना होगा।