हाल की कई घटनाओं पर गौर किया जाए तो लगता है जैसे भारत में कॉरपोरेट शुद्धिकरण का दौर चल रहा है. काले धन के मामले पर एसआईटी के गठन का आदेश देते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने एक शब्द का इस्तेमाल किया था. यह शब्द था ‘लुटेरा पूंजीवाद’. अब ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे पूंजीवादी व्यवस्था में हुई लूट का हिसाब लेने की तैयारी हो रही हो. बड़े कॉरपोरेट घरानों की जवाबदेही तय हो रही है. उनकी कार्यशैली, व्यापारिक नैतिकता, वित्तीय सौदों और कानून बनाने वालों के साथ उनके गठजोड़ पर न सिर्फ सवाल उठाए जा रहे हैं बल्कि उनकी पड़ताल भी हो रही है. यह काम कैग, जांच एजेंसियां और मीडिया, सभी कर रहे हैं. इस प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट अगुवा की भूमिका में है. अनिल अंबानी और प्रशांत रुइया जैसे अरबपतियों को उन इंस्पेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों के सामने हाजिर होना पड़ा है, जिनकी महीने की तनख्वाह 50,000 रुपये से भी कम होती है. मुंबई के सबसे महंगे इलाकों में शानदार बहुमंजिला इमारतों के मालिक शाहिद बलवा और विनोद गोयनका महीनों से जेल की छोटी-छोटी कोठरियों में बंद हैं.
लेकिन कॉरपोरेट हेकड़ी के टूटने वाले इस दौर में भी एक कारोबारी समूह ऐसा है जिसने अब तक न सिर्फ अपने आप को किसी जांच की आंच से बचाए रखा बल्कि उल्टे एक जांच अधिकारी के खिलाफ ही कीचड़ उछालो अभियान छेड़ दिया. यह कारोबारी समूह है सहारा ग्रुप और ये अधिकारी हैं प्रवर्तन निदेशालय से जुड़े राजेश्वर सिंह
सिंह ने सहारा समूह के मुखिया सुब्रत रॉय को सम्मन जारी किया था कि वे पूर्व टेलीकॉम मंत्री ए राजा द्वारा आवंटित किए गए 2जी स्पेक्ट्रम में एकीकृत एक्सेस सेवा (यूएएस) लाइसेंस हासिल करने वाली एस-टेल कंपनी के साथ हुए वित्तीय सौदे के संदर्भ में व्यक्तिगत रूप से हाजिर हों. प्रवर्तन निदेशालय के साथ सहयोग करने की जगह सहारा मीडिया ने सिंह और उनके परिवार के खिलाफ कीचड़ उछालने का अभियान शुरू कर दिया. अन्य संवेदनशील जांचों का नेतृत्व करने के साथ-साथ सिंह प्रवर्तन निदेशालय की उस तीन सदस्यीय टीम का नेतृत्व भी कर रहे हैं जो एक दर्जन से ज्यादा देशों में फैले 2जी घोटाले के पैसे की खोज में लगी है. सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग मौकों पर 2जी मामले की जांच में प्रवर्तन निदेशालय की इस टीम की सराहना की है.
बीती मई में सहारा समय के संवाददाता सुबोध जैन ने सिंह को उनकी निजी जिंदगी तथा उनकी और उनके परिवार की तमाम वास्तविक व काल्पनिक संपत्तियों के बारे में सवाल करती हुई एक प्रश्नावली भेजी. इसमें ज्यादातर सवाल ऐसे थे जिनका अंदाज देखकर उल्टे कई सवाल खड़े होते थे.
उदाहरण के लिए, सिंह के दफ्तर को भेजे गए तीन पन्नों के 25 सवालों की फेहरिस्त में चौथा सवाल इस तरह है, ‘आप सभी अंडे एक ही टोकरी में रखने में यकीन नहीं करते, इसलिए आप अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से करीबी संपर्क बनाकर रखते हैं. क्या आप सरकार में अपने आकाओं को इन मुलाकातों के बारे में बताते हैं?’
दूसरे सवाल में पूछा गया है, ‘अक्टूबर, 2010 में आपने अपने बच्चे के जन्मदिन पर एक भव्य पार्टी का आयोजन किया था. इस पार्टी का पैसा किसने दिया था?’ या फिर ‘आप तीन-चार सिमकार्ड इस्तेमाल करते हैं. इन्हें रीचार्ज कैसे कराते हैं?’
कुछ सवाल पहेली बुझाने वाले थे और कुछ से उनके पीछे का द्वेष साफ दिखाई दे रहा था. मसलन एक सवाल में पूछा गया, ‘क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति से संबद्ध रहे हैं जो घोषित अपराधी हो?’ एक दूसरे सवाल में पूछा गया, ‘माना जाता है कि आप उन लोगों के संपर्क में थे जिनके खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय की जांचें लंबित थीं. ये लोग कौन हैं?’ एक अन्य सवाल इस तरह है, ‘आप पर आरोप है कि आपने प्रवर्तन निदेशालय से महत्वपूर्ण सूचनाएं लीक कीं. आपने उन्हें किन लोगों को बताया था?
मजेदार बात है कि इस प्रश्नावली के आने के छह महीने पहले सहारा के एक दूसरे वरिष्ठ पत्रकार ने प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी शरद चौधरी को घूस देने की कोशिश की थी. शरद चौधरी, राजेश्वर सिंह के सहयोगी हैं और 2जी मामले की जांच कर रही टीम के सदस्य हैं. उन्हें सहारा से जुड़े मामलों को 2जी की जांच से बाहर करने के लिए दो करोड़ रुपये का प्रस्ताव दिया गया था. प्रवर्तन निदेशालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने इसकी शिकायत सीबीआई से की और अब सीबीआई इस मामले की जांच कर रही है.
सिंह इस प्रश्नावली और उनके सहयोगी को कथित तौर पर घूस देने की कोशिश करने के मामले को मई में सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में ले आए. इसके बाद छह मई को सहारा के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी करते हुए न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और एके गांगुली की बेंच ने टिप्पणी की, ‘हम प्राथमिक तौर पर इस बात को लेकर संतुष्ट हैं कि 2जी घोटाले और उससे संबंधित मामलों में श्री राजेश्वर सिंह द्वारा की जा रही जांच को प्रभावित करने की कोशिश की गई है. इसके लिए उन पर कुछ व्यक्तियों के खिलाफ जांच आगे न बढ़ाने के लिए दबाव बनाया गया. हम इसका स्वतः संज्ञान लेते हैं और नोटिस जारी करने का निर्देश देते हैं.’
सिंह ने अदालत में दिए अपने हालिया शपथपत्र में लिखा है कि पिछले तीन महीने से उनका ज्यादातर समय 2 जी मामले में जांच को आगे बढ़ाने की जगह इन ‘ओछी‘, ‘द्वेषपूर्ण‘ और ‘धमकी भरी‘ शिकायतों का जवाब देने में जा रहा है. तहलका द्वारा सहारा से संपर्क करने की कोशिशों के बावजूद इस खबर के लिखे जाने तक वहां से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली
इसके बाद सहारा ने प्रश्नावली भेजने वाले पत्रकार को बर्खास्त कर दिया और चौधरी को घूस देने की कोशिश करने वाले वरिष्ठ पत्रकार का स्थानांतरण लंदन कर दिया है. लेकिन उत्पीड़न बंद नहीं हुआ है. जैन ने अपनी बर्खास्तगी के बाद से दर्जन भर सरकारी विभागों में सिंह के खिलाफ शिकायतें कर दी हैं. 12 जुलाई को वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के एक अंडर सेक्रेटरी ने प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक को लिखा कि उनके विभाग को उस दिन तक जैन द्वारा सिंह के खिलाफ 50 से अधिक शिकायतें मिली हैं, जिनसे संबंधित कागजों का वजन 40 किलो से ज्यादा है. सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात तो यह है कि जैन ने सत्ता पक्ष और विपक्षी पार्टियों के दस से अधिक सांसद जुटा लिए हैं जो प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री, कानून मंत्री के कार्यालयों और विभिन्न मंत्रालयों के सेक्रेटरियों के कार्यालयों को भेजी गई उनकी शिकायतों का समर्थन कर रहे हैं.
इस पूरे मामले की शुरुआत करीब एक साल पहले हुई जब सिंह ने सहारा के खिलाफ जांच की शुरुआत की थी. जुलाई, 2010 में उन्होंने एक दर्जन से ज्यादा बैंकों को निर्देश दिया कि सहारा समूह की विभिन्न कंपनियों द्वारा 2009 से जमा किए गए नगद पैसों का ब्योरा दिया जाये. सुप्रीम कोर्ट में सिंह द्वारा दिए गए शपथपत्र में लिखा है, ‘कार्यशैली कुछ ऐसी है कि विभिन्न खातों में अलग-अलग दिन देश के दूर-दराज के इलाकों से भारी नगद जमा कराया जाता है और तुरंत ही चेक के जरिए निकाल लिया जाता है. इससे प्राथमिक तौर पर यह लगता है कि यह पैसे को वैध बनाने की कोशिश है.’
सिंह को इस बात का अंदेशा था कि यह काले धन को सफेद बनाने की कवायद है. इस आशंंका के आधार पर उन्होंने सहारा की विभिन्न कंपनियों के कुल 334 बैंक खातों की जांच शुरू कर दी. लगभग उसी समय सहारा समूह द्वारा एस-टेल में किए गए निवेश की जांच भी शुरू कर दी गई. एस-टेल वही कंपनी है जिसने छह यूएएस लाइसेंस हासिल किए हैं और 2जी साजिश में उसकी संभावित भूमिका के बारे में जांच चल रही है. 28 सितंबर, 2007 को सहारा समूह की कंपनी सहारा प्राइम सिटी ने एस-टेल में 14 करोड़ का निवेश किया था. इसी दिन कंपनी ने टेलीकॉम लाइसेंस के लिए आवेदन किया था. सहारा समूह की ही एक दूसरी कंपनी स्काई-सिटी फाउंडेशन ने कथित तौर पर एस-टेल में 10 करोड़ रुपये का अतिरिक्त निवेश किया है. एस-टेल ने लाइसेंस की फीस देने के लिए अलग-अलग स्रोतों से धन इकट्ठा किया था, अब पैसे के इन स्रोतों के बारे में जांच चल रही है. सिंह ने दो फरवरी को सुब्रत रॉय को इस संबंध में पूछताछ के लिए सम्मन भेजा कि 17 फरवरी को वे व्यक्तिगत रूप से हाजिर हों. किसी तरह रॉय ने इस सम्मन पर चार हफ्ते तक कार्रवाई न होने का रास्ता निकाल लिया. 30 मार्च को दूसरा सम्मन जारी किया गया कि रॉय आठ अप्रैल को हाजिर हों. लेकिन वे हाजिर नहीं हुए. रॉय के आने की जगह सहारा के पत्रकार की तरफ से प्रश्नावली और शिकायतों का पुलिंदा आया.
अब चार अगस्त को सुप्रीम कोर्ट सुब्रत रॉय और उनके पत्रकार द्वारा दाखिल किए गए शपथपत्रों और सिंह द्वारा दिए गए जवाबों पर सुनवाई करेगा. अदालत के हालिया निर्णयों को देखते हुए लगता है कि उस दिन से सहारा का शुद्धिकरण भी शुरू हो सकता है.