प्रमादी संवत्सर का प्रमाद और कोरोना का कहर

आज जब वैश्विक महामारी कोरोना वायरस चरम पर है और इसे लेकर आशंकाओं, सूचनाओं और अफवाहों का बाज़ार गर्म है, तब हमें ईश्वर याद आ रहा है। हालाँकि इससे पहले भी हम कभी ईश्वर को भूले नहीं, लेकिन प्रकृति से खिलवाड़ करने में भी हमने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। नतीजा हमारे सामने है। अभी तो इसकी शुरुआत है, पता नहीं कब तक मानव जाति को इसका त्रास झेलना पड़ेगा। ऐसे में हमें चाहिए कि हम सुधर जाएँ, सँभल जाएँ...।

25 मार्च से नव संवत्सर 2077 शुरू हो गया है। ज्योतिष के अनुसार यह प्रमादी संवत्सर है। प्रमाद का मतलब होता है- संकट, विपत्ति, उन्माद, नशा… आदि-आदि। प्रमाद के ये सभी अर्थ आज के समय की समीक्षा करने पर बिल्कुल सच साबित होते दिखाई देते हैं। प्रमाद तो हर किसी में होता है, अगर वह संन्यासी न हो तो। यह प्रमाद स्वाभाविक है। और जहाँ प्रमाद होता है, वहाँ नशा यानी घमंड भी होता है, हम सब आधुनिक होने के साथ-साथ इसी घमण्ड के चलते प्रकृति से खिलवाड़ करने लगे हैं और उसी का नतीजा है- संकट-विपत्ति, जो आज नोवल कोरोना वायरस कोविद-19 के रूप में कहर बनकर मानव जाति पर टूट पड़ी है। वैसे उन्माद हो या प्रमाद, मानवता और मानव-दोनों के लिए हानिकारक हैं। लेकिन अगर इंसान चैतन्य हो जाए, तो शायद इससे बच सकता है; जैसे आजकल हम कोरोना वायरस से लडऩे के लिए चैतन्य अवस्था में आ गये हैं और घरों में कैद हो गये हैं। चेतनता से ज्ञान के चक्षु खुलते हैं और प्रज्ञा की रश्मियाँ बलवती होने लगती हैं। जीवन में हर व्यक्ति को, यहाँ तक कि बुरे से बुरे व्यक्ति को कम-से-कम एक बार प्रकृति यह मौका ज़रूर देती है। लेकिन कभी-कभी यह ज्ञान बुढ़ापे में मिलता है। लेकिन कहा गया है कि जीवन की साँझ होने से एक सेकेंड पहले तक भी अगर यह चेतना जाग गयी, तो प्रायश्चित हो सकता है। यह समय भी हमारे प्रायश्चित का ही है। ज़रूरी नहीं कि हमने कोई बड़ा पाप किया हो, जिसकी सज़ा हमें प्रकृति देने पर आमादा है, लेकिन यह तो तय है कि जाने-अनजाने हमने कई ऐसी भूलें तो ज़रूर की हैं, जिसके चलते हमें आज हमें एक महामारी का सामना करना पड़ रहा है। यहाँ हमारे कुछ ग्रन्थ, कुछ भविष्यवक्ता याद आते हैं, जो हमें बहुत पहले से प्रकृति से छेड़छाड़ के नतीजों से आगाह कर चुके हैं। लेकिन अब यह संयम और धैर्यपूर्वक निष्ठा से चलने का समय है। ज़रूरी है कि हम सब  प्रकृति के संकेतों और वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और संन्यासियों की राय को धारण करते हुए आगे बढ़ेें। मनमानी न करें।

अभी तो ईसवी सन् 2020 यानी विक्रमी संवत् 2077 की शुरुआत भर है। इससे आगे का समय और भी संकट वाला हो सकता है। इसके संकेत हमें मिल चुके हैं। यद्यपि इसके संकेत और सन्दर्भ काल-वेत्ताओं, भविष्य-वक्ताओं, ज्योतिषाचार्यों, पहले के संतों और भारतीय पञ्चाङगविदों ने बहुते पहले ही कर दिये थे। पर हम नहीं जागे।

आज जब कोरोना नाम की महामारी चरम पर है और इसे लेकर आशंकाओं, सूचनाओं और अफवाहों का बाज़ार गर्म है, तब हमें नारद संहिता की ओर देखने की ज़रूरत है। नारद संहिता में एक श्लोक इस प्रकार है- ‘भूपावहो महारोगो मध्यस्याद्र्धवृष्टय / दु:खिनो जन्त्वसर्वेऽसंवत्सरे परिधाविनी।’ अर्थात्- परिधावी नामक संवत्सर में राजाओं में युद्ध होगा, महामारी फैलेगी, बेमौसम असामान्य वर्षा होगी और सभी जीव-जन्तु दु:खी होंगे। आज इस श्लोक की ये चारों भविष्यवाणियाँ सत्य ही तो साबित हो रही हैं। पिछले समय में परिधावी संवत्सर रहा है, जिसमें कई देशों में युद्ध के हालात रहे हैं। अब प्रमादी संवत्सर शुरू होने से पहले से ही बेमौसम विकट बारिश होनी शुरू हो गयी, जो कहीं-कहीं अभी तक भी हो रही है। कोरोना वायरस नाम की महामारी फैल गयी, जिसका कोई तोड़ नज़र नहीं आ रहा और सभी जीव दु:खी हैं। खासतौर पर इंसान भुखमरी, बेरोज़गारी, आर्थिक संकट और महामारी की चपेट में हैं। इस महामारी और बुरे समय के सम्बन्ध में पुराकाल की पुस्तकों में भी उल्लेख मिलता है। इन किताबों में से कई में कहा गया है कि एक महामारी का प्रकोप सवंत्सर 2076 के अन्त में सूर्यग्रहण से होगा।

बृहद्संहिता में उल्लेख मिलता है- ‘शनिश्चर भूमिप्तो, स्कृद रोगे प्रपीडिते जन:’ अर्थात्- जिस संवत्सर के अधिपति शनि महाराज होते हैं, उस वर्ष में महामारियों के प्रकोप से लोग पीडि़त रहते हैं और मरते हैं। आज नोवल कोरोना वायरस के प्रकोप से यही तो हो रहा है। ऐसी ही भविष्यवाणी बृहद् संहिता में भी की गयी है। गीता में भी मनुष्य के विनाश के कई संकेत दिये गये हैं।

अब बात करते हैं नास्त्रेदमस की। नास्त्रेदमस ने अपनी पुस्तक में एक जगह पर लिखा है- एक समय ऐसा आयेगा, जब रास्तों में सूअर की तरह के मुँह वाले लोग दिखाई देंगे। उन्होंने यह भी कहा है कि सन् 2020 में तीसरा विश्वयुद्ध होगा। कई जगह कुछ भविष्यवक्ताओं ने जैविक हथियारों वाले युद्ध के संकेत दिये हैं। अगर आपने महाभारत पढ़ी या देखी हो, तो आपने उसके युद्ध की तबाही तो ज़रूर समझी होगी। बताया जाता है कि महाभारत का युद्ध दुनिया का सबसे बड़ा और भीषण नरसंहार वाला युद्ध था। जानते हैं क्यों? क्योंकि वह जैविक हथियारों वाला युद्ध था। आग्नेस्त्र, ब्रह्मास्त्र, नागपाश और न जाने कैसे-कैसे तबाही मचा देने वाले अस्त्रों का ज़िक्र आया है, जिनके प्रकटीकरण मात्र से लोग मौत के मुँह में समाने लगते थे। इसके अलावा दिखाई देने वाले शस्त्र भी उन दिनों महामारक और संघारक हुआ करते थे। आज के शस्त्रों में तलवार, खंज़र, बन्दूक, रायफल, तोप, टैंक, मिसाइल और बम हैं। जबकि अस्त्र- परमाणु हथियार और जैविक हथियार हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि कोरोना वायरस भी एक जैविक हथियार ही है, जिसे चीन ने ईज़ाद किया है। जो भी यह आज बीमारी के रूप में फैलकर सभी को डराने और चपेट में लेकर मौत के मुँह में पहुँचाने के लिए पर्याप्त है।

खैर, अब बात करते हैं भविष्यवक्ता सिल्विया ब्रॉउन की। सिल्विया ब्रॉउन ने बहुत पहले ही दावा किया था कि वे आत्माओं से बात कर सकती हैं। जब उन्होंने यह कहा था, तब उनका मखौल उड़ाया गया था। लेकिन, आज सिल्विया ब्रॉउन की इस महामारी के बारे में की गयी भविष्यवाणी सच साबित हुई। उन्होंने अपने उपन्यास ‘द आइज़ ऑफ डार्कनेस’ में एक महामारी के बारे में जो भी कहा था, आज साबित हो गया कि वह कोविड-19 के बारे में ही कहा था। 1981 में प्रकाशित उनका यह उपन्यास एक महामारी की ओर संकेत करता है। जिसमें बताये गये लक्षण और समय इस महामारी से मिलते हैं। यह उपन्यास उन्होंने कॉन्सिपिरेसी थ्योरी में लिखा था। दूसरे हैं, अमेरिकी लेखक डीन कून्त्ज़। डीन ने अपने एक उपन्यास में इस हत्यारे वायरस को सीधे-सीधे वुहान-400 कहा है। विचार कीजिए, उन्होंने सदियों पहले उस शहर का नाम तक बता दिया, जहाँ से कोरोना वायरस फैला।

अगर हम फिल्मों की बात करें, तो कई हॉलीवुड और कुछ बॉलीवुड फिल्मों में जैविक युद्ध के संकेत दिये गये हैं। कई ऐसी महामारियों को भी इन फिल्मों में दिखाया गया है, जो छूने मात्र से एक इंसान से दूसरे में फैलती दिखती हैं और महामारी की चपेट में आये लोगों का अन्त भी मौत के अलावा दूसरा नहीं दिखता। फिल्मों में मनुष्यों को छिपने पर मजबूर होने के दृश्य भी दिखाये गये हैं। कुल मिलाकर आज पूरी दुनिया घरों में दुबकी बैठी है। लोगों को यही भय है कि वे इस बीमारी से कैसे बचे रह सकते हैं। फिल्मों में कई महामारियों के जो लक्षण दिये गये हैं, वो भी कोरोना वायरस में मौज़ूद हैं। ऐसे में हमारा कर्तव्य है कि हम इस महामारी से खुद भी बचें, दूसरों को भी बचाएँ; ताकि मानव जाति सुरक्षित रह सके।