बनारस से अपनी पहली लोकसभा जीत के बाद सत्ता में आते ही और फिर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के बुनकरों, खासकर बनारस के बुनकरों के अच्छे दिन लाने का वादा किया था। लेकिन प्रधानमंत्री ने बुनकरों की आज तक सुध नहीं ली। इससे बनारस के बुनकर खासे हताश, निराश और सरकार से नाराज़ हैं। विश्व विख्यात बनारसी साडिय़ाँ बनाने वाले बुनकर आज संकट में हैं और रोज़ी-रोटी के लिए मोहताज हो रहे हैं। कोरोना-काल शुरू होने के बाद से तो हाल यह है कि इस उद्योग से जुड़े बनारस के लाखों लोग और उनके परिजन आज त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे हैं। बता दें कि बनारस के हथकरघा उद्योग को बनारसी साडिय़ों का कुटीर उद्योग माना जाता है, जो अब लगभग ठप होने के कगार पर है। बुनकरों में अपना सदियों पुराना व्यवसाय उजडऩे का खौफ और विकट रोष है और वे आन्दोलन करने की सोच रहे हैं। इसके पीछे कई कारण हैं। हथकरघा उद्योग से जुड़े बेरोज़गार हो रहे बुनकरों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश से किये गये दर्ज़नों वादे अधूरे होने के समय से ही वे लोग इस बात को लेकर आश्वसत नहीं थे कि प्रधानमंत्री उनकी ओर ध्यान देंगे और उनका यह शक सही साबित हुआ। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में बुनकरों की दशा कितनी खराब है और हज़ारों लोग कैसे इस सदियों पुराने अपने रोज़गार से वंचित हो चुके हैं, अगर यह देखना हो तो कोई बनारस के बुनकरों की दशा देखे, जिससे करीब आठ लाख लोगों और उनके परिजनों का जीवन चलता है।
बता दें कि नवंबर, 2014 में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार वाराणसी पहुँचकर लालपुर में व्यापार सुविधा केंद्र व शिल्प संग्रहालय का शिलान्यास किया था। वहाँ उनके साथ तत्कालीन केंद्रीय कपड़ा मंत्री संतोष गंगवार भी मौज़ूद थे। उस समय मोदी की केंद्र सरकार ने बुनकरों को आश्वासन दिया था कि इस व्यापार केंद्र पर केंद्र सरकार 147 करोड़ रुपये खर्च करेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तब शिलान्यास के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा था कि कृषि के बाद रोज़गार देने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र टेक्सटाइल है। यही एक ऐसा उद्योग है, जिसमें मालिक और मज़दूर के बीच कोई खाई नहीं होती है। उन्होंने कहा था कि इस व्यापार केंद्र की शुरुआत का मकसद बनारस के कपड़ा उद्योग को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाना है। लेकिन आज बनारस का कपड़ा उद्योग ठप होने के कगार पर पहुँच रहा है और प्रधानमंत्री इस खास उद्योग की कोई सुध नहीं ले रहे हैं। यही नहीं तत्कालीन केंद्रीय कपड़ा मंत्री संतोष गंगवार ने कहा था कि केंद्र सरकार देश में हथकरघा व शिल्प से जुड़े व्यवसाय को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाना चाहती है; लेकिन इसके बाद संतोष गंगवार ने भी इस ओर पलटकर नहीं देखा। उत्तर प्रदेश के हथकरघा उद्योग की बदहाली और बुनकरों की आर्थिक तंगी को लेकर इसी जुलाई में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा भी योगी आदित्यनाथ की राज्य सरकार पर निशाना साध चुकी हैं। उन्होंने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में एक अखबार की खबर का ज़िक्र करते हुए लिखा था कि हवाई प्रचार नहीं, आर्थिक मदद का ठोस पैकेज ही बुनकरों को इस तंगहाली से निकाल सकता है।
आन्दोलन करने को विवश बुनकर
इसी साल अगस्त में बनारस के आर्थिक संकट में फँसे बुनकरों ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बिजली का बिल बढ़ाने और पॉवरलूम पर दी जाने वाली बिजली-सब्सिडी खत्म करने को लेकर राज्य सरकार को आन्दोलन की धमकी दी थी। विदित हो कि बिजली विभाग के अधिनियम के 2006 के करार के मुताबिक, बुनकरों को एक पॉवरलूम पर हरेक महीने केवल 71.5 रुपये ही बिजली का बिल चुकाना पड़ता था, जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने खत्म करके हथकरघा उद्योगों में स्मार्ट मीटर लगा दिये। इससे बुनकरों का बिजली बिल हर महीने के डेढ़ हज़ार से अधिक आने लगा। इससे नाराज़ बुनकरों ने पहले 1 सितंबर से हड़ताल पर जाने की सरकार को चेतावनी दी थी और कहा था कि अगर मुख्यमंत्री ने उनकी परेशानी को समझते हुए मीटर हटाकर पुराने बिल को बहाल नहीं किया, तो वे पॉवरलूम को हमेशा के लिए डिसकनेक्ट (बन्द) करा लेंगे। सरकार ने 4 सितंबर को बिजली बिल पर राहत का आश्वासन दिया, जिससे बुनकर काफी खुश हुए; लेकिन बुनकरों को अब तक बिजली विभाग की तरफ से कोई राहत नहीं मिली है। ऐसे में बुनकर फिर से आन्दोलन की तैयारी कर रहे हैं। बुनकरों की मानें, तो सरकार उन्हें फिर से हड़ताल पर जाने के लिए विवश कर रही है, क्योंकि उन्हें अभी तक बिजली बिलों में कोई राहत नहीं मिली है। इधर कोरोना वायरस के चलते लगे लॉकडाउन ने भी बुनकरों की रोज़ी-रोटी पर हथौड़ा मारा है और अब जब उन्हें उम्मीद थी कि रुका हुआ काम फिर से चलने लगेगा, कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों और सरकार की सख्ती ने उस पर फिर से कुठाराघात कर दिया है।
बता दें कि अगर प्रदेश के सभी बुनकर हड़ताल करते हैं, तो राज्य सरकार को हर महीने तकरीबन 100 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान होगा, जो कि बढ़े बिजली बिल से मिले राजस्व से कई गुना ज़्यादा होगा। एक अनुमान के मुताबिक, बनारसी साड़ी का सालाना कारोबार तकरीबन 1,000 करोड़ रुपये से भी ज़्यादा का है, जिसमें 300 से 400 करोड़ रुपये का माल हर साल विदेशों को निर्यात होता है। बड़ी विडम्बना यह है कि चीन से अब यार्न आ रहा है, जिस पर 25 फीसदी टैक्स लगा रही है, जिससे बनारस के हथकरघा उद्योग पर एक और कुठाराघात हो रहा है। वर्ष 2007 में बनारस में करीब 5,255 छोटी बड़ी इकाइयाँ थीं। इनमें तकरीबन 20 लाख लोग काम करते थे, और यह कारोबार करीब 7 हज़ार 500 करोड़ रुपये का था। लेकिन अब इनमें से करीब सवा दो हज़ार से अधिक इकाइयाँ बन्द हो चुकी हैं और बाकी इकाइयाँ भी प्रदेश और केंद्र सरकारों की बेरुखी और टैक्स वसूली वाली सोच के चलते बन्द होने के कगार पर हैं। नये पॉवरलूम लगाने की सोच रहे व्यापारियों ने भी अब इस धन्धे से दूरी बना ली है। क्योंकि उनके पुराने उद्योगों में ताले पडऩे की नौबत आ रही है।
पहले ही बहुत अच्छी नहीं थी कमायी
हथकरघा उद्योग पर जिस तरह सरकार बिजली बिल और टैक्स बढ़ाकर इससे जुड़े लोगों की खून-पसीने की कमायी छीनना चाहती है, इसे ठीक नहीं कहा जा सकता। क्योंकि हथकरघा उद्योग में पहले ही मेहनत बहुत है और कमायी काफी कम। इस काम में बुनाई की बारीकी से लेकर डिजाइन तक का बहुत ध्यान रखा जाता है। अगर किसी साड़ी में एक धागा भी गड़बड़ हो गया, तो सारी मेहनत बेकार हो जाती है और साड़ी के दाम चौथाई से भी कम रह जाते हैं, जो कि कारीगर का मेहनताना भी नहीं होता।
एक हथकरघा कारीगर ने बताया कि एक साड़ी की बुनाई के लिए हर दिन 12 घंटे काम करने पर आठ दिनों में एक साड़ी ही तैयार हो पाती है, जिसके बदले दो हज़ार रुपये मिलते हैं यानी एक कारीगर जब बहुत मेहनत करता है, तब भी वह महीने में आठ से 10 हज़ार रुपये ही मुश्किल से कमा पाता है। ऐसे में अगर घर में कोई आवश्यक खर्चा आ पड़े या कोई बीमार हो जाए, तो कर्ज़ लेने के सिवाय और कोई चारा नहीं होता। अब इस उद्योग के ठप होने से रोज़ी-रोटी का यह छोटा-सा ज़रिया भी सरकार छीनने पर आमादा है। एक अन्य कारीगर ने बताया कि जब प्रधानमंत्री ने बनारस आकर हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने का आश्वासन दिया था, तब हमने सोचा था कि अब शायद हमारे दिन भी बहुरेंगे; लेकिन सब कुछ उल्टा हो गया है। अब न तो प्रधानमंत्री मोदी इस ओर ध्यान देते हैं और न ही मुख्यमंत्री योगी। हम लोग अपने बच्चों को अच्छा खाना, अच्छी शिक्षा तक नहीं दे पाते। अब तो मन करता है कि इस दुनिया को छोडक़र कहीं दूर चले जाएँ। इसी तरह की निराशा बनारस के हथकरघा उद्योग से जुड़े लगभग सभी लोगों में आज देखने को मिलती है।
दस्तकारी का काम भी पड़ा है ठप
यह गर्व की बात है कि बनारस दुनिया का ऐसा इकलौता शहर है, जहाँ दस्तकारी के अलावा करीब 60 तरह के दूसरे कारोबार सदियों होते आ रहे हैं, जिनके उत्पादन की माँग पूरी दुनिया में है। लेकिन आज इनमें से ज़्यादातर कारोबार या तो बन्द हो गये हैं या बन्द होने के कगार पर हैं। अगर आप बनारस के ठठेरी बाज़ार की गलियों से गुजरें, तो यहाँ झेनी-हथौड़ों की आवाज़ अब आपको धीमी पड़ती नज़र आयेगी; क्योंकि यहाँ का कारोबार भी कोरोना वायरस के चलते काफी दिनों से ठप पड़ा है। यहाँ गोप की बनावट, मुगल वंश के पुतले, बंगाली संस्कृति वाले खिलौने, गढ़ाई का काम, बर्तन और सोने-चाँदी के वरक बनाने जैसे दो दर्ज़न से अधिक दस्तकारी के काम होते हैं, जिनके कारीगरों को मंदी का सन्नाटा और रोज़ी-रोटी छिनने का खौफ खाये जा रहा है।
अगर बनारस में बनने वाले लकड़ी के खिलौनों की बात करें, तो इनकी सुन्दर बनावट और नक्काशी किसी को भी बरबस अपनी ओर खींच लेने वाली होती है। ऐसा लगता है कि यहाँ के खिलौने देखने वालों से बातें करना चाहते हैं। इन खिलौनों की सुन्दरता को अगर देखना है, तो बनारस की कश्मीरी गली में जाकर देखा जा सकता है, जहाँ अब लगभग सन्नाटा-सा पसरा हुआ है। वह भी तब, जब देश के प्रधानमंत्री बनारस से ही सांसद हैं और बनारस को क्वेटो बनाने का बीड़ा उठा चुके हैं। लोगों को उनसे काफी उम्मीदें हैं। मेरी इस लेख के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील है कि वे बनारस के करोड़ों के हथकरघा उद्योग के साथ-साथ दूसरे उद्योगों को फिर से नयी राह दें और इन उद्योगों से जुड़े लाखों लोगों को रोज़ी-रोटी के संकट से बचाएँ, ताकि बनारस के साथ-साथ देश में खुशहाली का माहौल बन सके।