कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में सोमवार को विपक्षी दलों की नागरिकता क़ानून, एनआरसी के खिलाफ और छात्र आंदोलन के समर्थन में हुई बैठक में विपक्ष के २० दल शामिल हुए। इस मौके पर एनसीपी प्रमुख शरद पवार, माकपा के सीताराम येचुरी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जैसे नेता उपस्थित थे। बैठक के बाद सोनिया गांधी ने मोदी सरकार कर जबरदस्त हमला किया और कहा कि सीएए और एनआरसी के खिलाफ नागरिकों खासकर युवाओं ने देश भर में विरोध प्रदर्शन किया गया है जिससे जाहिर होता है कि इन कानूनों के खिलाफ के खिलाफ युवाओं और देश में बड़े पैमाने पर निराशा और क्रोध है। कांग्रेस की पहल पर हुई इस बैठक से हालांकि बसपा प्रमुख मायावती, शिव सेना, टीएमसी जैसे दलों ने किनारा किया।
संसद एनेक्सी में हुई इस बैठक में प्रमुख नेताओं में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, माकपा के सीताराम येचुरी, झामुमो के नेता और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन,रालोद के अजित सिंह, भाकपा के डी राजा, राजद के मनोज झा, नेशनल कांफ्रेस (एनसी) नेता हसनैन मसूदी, एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल के अलावा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल, एके एंटनी, केसी वेणुगोपाल, गुलाम नबी आजाद और रणदीप सुरजेवाला भी शामिल रहे।
बैठक के बाद सोनिया गांधी ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ नागरिकों खासकर युवाओं के विरोध प्रदर्शनों पर यूपी और दिल्ली में पुलिस की कार्रवाई को चौंकाने वाला बताते हुए इसे पक्षपातपूर्ण और क्रूर करार दिया। कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार ने उत्पीड़न के खिलाफ ढीला रवैया अपनाया, नफरत फैलायी और लोगों को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने की कोशिश की।
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा – ”देश में अभूतपूर्व उथल-पुथल है। संविधान को कमजोर किया जा रहा है और शासन के उपकरणों का दुरुपयोग किया जा रहा है। सीएए और एनआरसी के खिलाफ नागरिकों खासकर युवाओं ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किया है। यह सीएए और एनआरसी उनके व्यापक निराशा और क्रोध को दर्शाता है।”
सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने लोगों को गुमराह किया है। उन्होंने केवल हफ्तों पहले दिए गए अपने खुद के बयानों का खंडन किया और अपने उत्तेजक बयान जारी रखे।
बैठक में देश के वर्तमान हालात पर विस्तार से चर्चा की गयी। इनमें संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों और कई विश्वविद्यालय परिसरों में हिंसा के बाद बने हालात और आर्थिक मंदी शामिल हैं।