अजीबो गरीब बात है कि प्रतिशोध का उन्माद दो सौ साल बाद भी अपना असर दिखाए। मारपीट-आगजनी-हिंसा देखते-देखते भयावह हो जाए। दूसरे दिन महाराष्ट्र के दूसरे इलाकों में भी पथराव-तोडफ़ोड़, हिंसा का फैलाव हो। इन सबके लिए राज्य का पुलिस प्रशासन और खुफिया एजंसियां जि़म्मेदार हैं। मुख्यमंत्री ने ज़रूर न्यायिक जांच बिठा दी है लेकिन क्या यह समाधान है? यह मामला राज्यसभा में भी उठा। जिस पर सदन स्थगित हुआ।
महाराष्ट्र के पुणे मेें आठ-दस हजार की आबादी का गांव है कोरेगांव-भीमा। यहां दो सौ साल पुराना युद्ध स्मारक है। हर साल की तरह इस साल भी पहली तारीख को युद्ध स्मारक के आस-पास मेला जुड़ा। भाषण हुए। विचित्रानुष्ठान हुए। अचानक मारपीट हुई और वहां खड़ी गाडिय़ों में आग लगा दी गई। वहां मौजूद पुलिस-होमगार्ड भी तमाशबीन बने रहे। यहां हुई हिंसा का फैलाव महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों में दिखा। राजधानी मुंबई के कई इलाके इसकी चपेट में आए। तीसरे दिन इन घटनाओं के विरोध में ‘बंदÓ हुआ। शाम को यह ‘बंदÓ वापस लिया गया। लेकिन कई शहरों में दो सौ साल से बनी जातीय एकजुटता की चूलें हिला गया। यदि राज्य प्रशासन पहले से सक्रिय रहा होता तो यह नौबत ही नहीं आती। पुणे की देहात पुलिस के क्षेत्र में आता है पिंपरी पुलिस स्टेशन। पुलिस ने भिडे, एकबोटे और उनके समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया है। इसमें हिंदूवादी मिलिंद एकबोटे है जो समस्त हिंदू अगाडी के ही हैं और ‘शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तानÓ के सामाजी भिडे है। इन पर भीमा कोरेगांव के युद्ध की दो सौवीं वर्षगांठ पर हिंसा भड़काने का आरोप है।
भिडे इस समय 85 साल के हैं और सांगली निवासी हैं। जबकि एकबोटे साठ साल के हैं और पुणे में ही रहते हैं। दोनों का महाराष्ट्र में खासतौर पर युवा वर्ग में काफी प्रभाव है। इस मारपीट, पथराव, आगजनी और हिंसा में इन्होंने खासी भूमिका निभाई।
नए साल पर मंगलवार को कई नेता मसलन दलित नेता और भारतीय रिपब्लिकन पार्टी, बहुजन महासंघ के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर ने इन दोनों हिंदूवादियों पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया जिसमें 30 साल के एक नौजवान की मौत हो गई। पिंपरी पुलिस स्टेशन में भिडे, एकबोटे और उनके समर्थकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज है और इन्हें पुणे देहात पुलिस के हवाले कर दिया गया है। जिसकी सीमा क्षेत्र में कोरेगांव भीमा है। यह कार्रवाई सामाजिक कार्यकर्ता अमित रवींद्र साल्वे की शिकायत पर दर्ज की गई जो बहुजन रिपब्लिक सोशलिस्ट पार्टी की सदस्य हैं।
अपनी शिकायत में साल्वे ने लिखा है कि जब वह अपनी मित्र के साथ भीमा कोरेगांव सोमवार को पहुंचीं तो कुछ लोगों ने उनसे झंडे छीने और उनमें आग लगा दी। मैंने खुद आरोपी ‘भिडेÓ एकबोटे और उनके समर्थकों को आगजनी करते हुए, पत्थर फेंकते हुए देखा है। इन्होंने पुलिस पर भी हमला किया।
भिडे को भिडे गुरूजी के नाम से पूरे महाराष्ट्र में जाना जाता है। वे शिवाजी के अनुयायी हैं और उनके भक्तों में कई सौ नौजवान हैं। भिडे ने अपना संगठन चलाने से पहले पुणे में किसी कॉलेज में कुछ समय पढ़ाया भी। पहले से उनके संगठन के सदस्यों के खिलाफ कई मामले पुलिस में दर्ज हैं। एकबोटे पहले कारपोरेटर थे। उसके संगठन ने कई ऐसी गाडिय़ां पकड़ी जिनसे गाएं ले जाई जाती थीं। इन पर हत्या, दंगा करने और प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटी कानून की धाराएं भी हैं।
इस बीच दक्कन पुलिस स्टेशन में गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी और जेएनयू के छात्र उमर खालिद जो एल्गार परिषद के शनिवाखडा में 31 दिसंबर को बोल रहे थे उनके खिलाफ उत्तेजक भाषण देने की शिकायत दर्ज की गई है। इसे अक्षय बिक्कड (22) और आनंद घोंड (25) ने दायर किया है। इन्होंने मांग की है कि इनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई हो।
भीम कोरेगांव झड़पों का मुद्दा ज़ोरदार तरीके से राज्यसभा में उठा। जबकि बहस द मुस्लिम वीमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑफ मैरीज) बिल 2017 पर होनी थी। यह तीन तलाक के बतौर भी जाना जाता है। यह पहले ही लोकसभा में पास हो चुका है। विपक्षी सदस्यों ने शून्य काल में यह मामला उठाया और सदन दो बजे तक स्थगित कर दिया गया। पहले अध्यक्ष ने सदन के स्थगन की अनुमति नहीं दी फिर सदस्यों ने विशेषाधिकार प्रस्ताव पेश किया।
तकरीबन दो सौ साल पहले भीमा कोरेगांव युद्ध पुणे जि़ले में हुआ था। यहीं ईस्ट इंडिया कंपनी ने पेशवा की सेना को हराया था। नए साल पर सोमवार को हिंसा की घटनाओं से पुणे शहर में जबदस्त तनाव रहा। इसमें एक मौत हुई और कई घायल हो गए।
इस हिंसा के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भाजपा-आरएसएस को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि उनकी निगाह में ऐसा भारत है जिसमें भारतीय समाज में दलित सबसे नीचे के पायदान पर हैं। ट्विटर पर उन्होंने लिखा ‘आरएसएस व भाजपा के फासीवादी दृष्टिपत्र में ऐसा भारत बताया गया है जहां दलित भारतीय समाज में सबसे नीचे रहेंगे। ऊमा, रोहित वेमुला और भीम कोरेगांव उसी प्रतिरोध के प्रतीक हैं।Ó
इस हिंसा का असर मुंबई पर भी पड़ा। चेंबूर, मुलंड खासे उपद्रवग्रस्त रहे। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस ने तत्काल जांच के आदेश दे दिए हैं। इस बीच मरिया बहुजन महासंघ (बीबीएम) के नेता प्रकाश अंबेडकर ने बुधवार (तीन जनवरी को) हिंसा न रोक पाने में राज्य सरकार की नाकामी पर विरोध जताने के लिए ‘बंदÓ का आयोजन किया जो पचास फीसदी से ज्य़ादा प्रभावी रहा है। महाराष्ट्र सरकार की न्यायिक जांच के आदेश को प्रकाश अंबेडकर ने मानने से इंकार कर दिया है।
अंबेडकर का कहना है कि हिंसा के लिए हिंदू एकता अधाडी के लोग जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र डेमोक्रेटिक फ्रंट, महाराष्ट्र लेफ्ट फ्रंट और ढाई सौ संगठनों ने बुधवार को बंद रखा। पुणे में हुई हिंसा के चलते महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से हिंसा की खबरें हैं।