कोरोना वायरस संक्रमण ने भौतिकतावादी अंधी दौड़ में प्रकृति के जरिये मानव मूल्यों की ओर लौटने के लिए प्रेरित किया है। इसके अलावा इंसानों को नए सिरे से सोचने को मजबूर किया है। पूरी दुनिया के लिए मिलने-मिलाने के लिए एक फासला तय कर दिया है। वायरस ने बता दिया है कि भौतिकतवादी के आगे प्रकृतिप्रेमी ज्यादा मजबूत और टिकाऊ है। इन सबके बीच जहां हवा, पानी को साफ रखने के लिए सरकारें अरबों रुपये खर्च कर रही थीं, अब बिना खर्च किए तकरीबन पूरी दुनिया की आबोहवा मानो पवित्र हो गई है।
प्रकृति ने जतला दिया है कि अगर गैर प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध प्रयोग होगा तो उसका विपरीत असर तो पड़ेगा ही, साथ ही उसका खामियाजा भी एक न एक दिन आपको ही भुगतना होगा। एक तरह से चेतावनी भी है और सीख भी। न सिर्फ सरकारों के लिए, बल्कि हर शख्स के लिए जो प्रकृति को यूं ही हल्के में ले रहा था। कोरोना ने कइयो को बेसहारा कर दिया है तो कइयों का पर्दाफाश भी कर दिया है।
कहां डेढ़ महीने पहले तक लोग चिड़ियों की चहचहाहट को तरसते थे, आज सिर्फ चिड़ियों की गूंज ही सुबह-शाम मेट्रो शहरोें तक के लोगों के दिल को सुकून दे रही है। कभी वे परिंदे कैद हुआ करते थे, आज लगभग पूरी दुनिया अपने ही बनाए या खरीदे गए घरों में कैद है। इसके पीछे गंभीरता से सिर्फ सोचने या विचार करने की ही जरूरत नहीं है, बल्कि अपनी खामियों और कथित तरक्की के पीछे होने वाले नुकसानों का आकलन करने की भी आवश्यकता है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि आज जो गंगा और यमुना जैसी नदियों की सेहत में सुधार हुआ है, उसके पीछे कोराना ही एकमात्र वजह है। इन नदियों का पानी जो नालों की हालत में बदल चुका था, अब इसमें सफ्फाकपन नजर आने लगा है। हवा में भी धूल-धुंध के कण मिट से गए हैं। चूंकि अब कामधंधे, उद्योग, वाहनों और विमानों का आवागमन भी ठप है। ऐसे में मानव को बड़ी कीमत तो चुकानी पड़ रही है, जिसका खामियाजा आने वाले समय में कहीं ज्यादा भयावह रूप में हमारे सामने आता दिखेगा, इससे कोई इनकार भी नहीं कर रहा है। पर जिनका जो फर्ज है, क्या वे उसे अदा कर रहे हैं?
भविष्य में बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी के आंकड़े डरावने वाले हो सकते हैं। लेकिन इनको भी समय रहते ईमानदारी से काम करने पर कम किया जा सकता है। ऐसे में जो लोग और देश मजबूत हैं, उनको आगे आना होगा। उनको बिना किसी झिझक और एहसान के अपना फर्ज निभाना होगा। वरना आने वाले वक्त में पीढ़ियां याद रखेंगी कि ये वक्त कोरोना से पहले का है और ये वक्त कोरोना के बाद का। यानी इतिहास बनने वाला है। अब कइयों के पास इस इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाने के लिए पूरा मौका है। वह चाहे मुल्क हो, व्यक्ति विशेष हो या फिर आम इंसान। कोई भी इसमें मददगार या हिस्सेदार बन सकता है।