स्वास्थ्य पर हम ज़ोर तो देते हैं, पर हमने देश में स्वास्थ्य सेवाओं को कितना खड़ा किया और कितने मेडिकल कॉलेज देश में आज चल रहे हैं? इस पर एक नज़र दौड़ाएँ, तो पता चलेगा कि हमें स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने की ज़रूरत है।
यदि हम देश की आज़ादी के समय के सरकारी मेडिकल कॉलेज और निजी मेडिकल कॉलेज में आज तक वृद्धि तो हुई है; लेकिन यह वृद्धि पर्याप्त नहीं है। सन् 1947 में भारत में कुल 22 सरकारी मेडिकल कॉलेज थे। सन् 1960 तक 35 और सरकारी मेडिकल कॉलेज तथा तीन निजी मेडिकल कॉलेज खुले। सन् 1970 में 34 नये सरकारी और छ: निजी कॉलेज खुले। अगले एक दशक (सन् 1980) तक सरकारी आठ और निजी तीन, फिर सन् 1990 तक सरकारी सात, निजी 25, सन् 2000 तक सरकारी 13 और निजी 29 मेडिकल कॉलेज खुले। सन् 2001 से सन् 2005 के बीच सरकारी 10 और निजी 43 मेडिकल कॉलेज खुले। अगले पाँच वर्षों में 25 सरकारी और 47 निजी कॉलेज सामने आये। फिर सन् 2011 से सन् 2015 तक सरकारी 55 और निजी 48 मेडिकल कॉलेज खुले। और सन् 2016 से 2022 तक 146 सरकारी और 90 निजी मेडिकल कॉलेज देश में खुले। यानी 31 दिसंबर, 2022 तक देश में कुल 355 सरकारी और 295 निजी मेडिकल कॉलेज बन चुके हैं। वहीं सरकारी कॉलेजों में कुल 52,048 सीटें और निजी कॉलेजों में 46,965 सीटें हैं।
यदि हम सन् 1980 से सन् 2010 के बीच के समय को देखें, तो इन 30 वर्षों में कुकुरमुत्ते की तरह 144 निजी मेडिकल कॉलेज उगे हैं। दूसरी तरफ़ सरकारी मेडिकल कॉलेज सिर्फ़ 55 ही खुले। निजी कॉलेजों की पड़ताल से पता चलता है कि इनके खुलने में भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा है। कॉलेजों के खुलने के लिए निर्धारित शर्तों की अनदेखी कर पैसों के बल पर मापदंडों को नकारकर काम हुआ है। एक-एक सीट को छात्रों ने पैसे देकर ख़रीदा है। मतलब मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पाने की जो योग्यता है, उसकी अनदेखी की गयी है। जबकि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सही पारदर्शिता रही और योग्य छात्रों को प्रवेश मिला। इसी की वजह से सरकारी कॉलेज से पूर्ण प्रशिक्षित डॉक्टरों ने अपने व्यवसाय में क़दम रखा। इस तरह से देखें, तो निजी कॉलेजों से शिक्षा प्राप्त डॉक्टरों की कुशलता को प्रामाणिकता के आधार पर खरा नहीं कहा जा सकता। सरकारी मेडिकल कॉलेजों को खोलने में सरकार ने 2011 के बाद दौड़ लगायी। विशेषकर देश के राज्यों के दक्षिणी, पश्चिमी और उत्तर प्रदेश में मेडिकल कॉलेज खुले। कोरोना के दो वर्षों के दौरान मेडिकल कॉलेजों के खोलने के लिए नियमों में बहुत ढील दी गयी, जिसमें ज़िला अस्पताल तक को नयी नीति के तहत मेडिकल कॉलेजों के तौर पर शुरू किया गया।
सन् 2014 के बाद कुल 270 नये मेडिकल कॉलेज खुले, जिनमें 164 सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं। इनमें सीटों की संख्या लगभग 19,400 है। बा$की 106 निजी मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें 15,500 सीटें हैं। इसके अलावा जो मेडिकल कॉलेज पहले से चले आ रहे हैं, उनमें 12,500 सीटें बढ़ायी गयी हैं। जबकि ढाँचे में कोई विशेष तब्दीली नहीं की गयी है। कई सरकारी मेडिकल कॉलेज निजी मेडिकल कॉलेजों की तरह ढीले-ढाले हैं। पढ़ाई की कोई विशेष सुविधा नहीं है। सरकार ने इनमें सुधार का कोई विशेष प्रयास नहीं किया है। उपकरणों की कमियों से लेकर ढाँचागत व्यवस्था भी लचर है। ऐसी स्थिति में मेडिकल कॉलेज खोलकर नंबर बढ़ाने से बेहतर शिक्षा मेडिकल के छात्रों को मिल पानी कठिन है। फिर अच्छे डॉक्टर जन सेवा के लिए कैसे उपलब्ध हो सकते हैं? चिकित्सा के क्षेत्र की शिक्षा में खानापूर्ति नहीं होनी चाहिए। एक प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले छात्र को थ्योरी और प्रैक्टिस का सम्पूर्ण ज्ञान होना चाहिए, तभी वह रोगी को सही उपचार देकर स्वस्थ करने में सफल हो पाएगा। नये डॉक्टरों में इतना तो आत्मविश्वास पैदा हो, जिससे कठिन-से-कठिन रोगों के उपचार में वह सहायक बन सके।
इन मेडिकल कॉलेजों में उचित स्टाफ हो, उचित अनुसंधान की व्यवस्था हो, जो भविष्य की नयी बीमारियों को पकडऩे में माहिर हों। यह तभी हो सकता है, जब नये डॉक्टरों को बेहतर प्रशिक्षण मिले और उपचार करने का आत्मविश्वास उनमें हो। ख़ाली मेडिकल कॉलेज खोलकर सीटों की व्यवस्था करने से दुनिया के सामने खड़ा होने वाला चिकित्सक नहीं बन सकता। कॉलेजों के लिए संसाधन जुटाने की विशेष आवश्यकता है। निजी कॉलेजों में छात्र को भारी-भरकम फीस देकर डॉक्टर बनाकर आम जनता के दर्द को कम नहीं किया जा सकता। क्योंकि जिस डॉक्टर ने पढ़ाई में क़र्ज़ लेकर आधी-अधूरी शिक्षा ली है, वह उस क़र्ज़ को उतारने के लिए उपचार करने के ख़र्चे में रोगी को पीसेगा।
भारत के 11 लाख डॉक्टरों में से महाराष्ट्र और दिल्ली में लगभग 2,40,000 डॉक्टर हैं। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के हिसाब से भारत में पर्याप्त डॉक्टर नहीं हैं। अधिकांश डॉक्टर शहरों के पास ही रहना चाहते हैं। ग्रामीण क्षेत्र अच्छी चिकित्सा सुविधा के अभाव में अभी भी हैं। इसलिए सरकार का ध्यान स्वास्थ्य सेवाओं को आम नागरिक के लिए सरल ढंग से उपलब्ध कराने में होना चाहिए।