अब तनिक पेसमेकर को और गहराई से समझ लें. वैसे, यह भी जान लें कि पेस मेकर का ज्ञान इतना ज्यादा गहरा है कि थोड़ी बहुत, आपके काम के लायक बातें ही मैं यहां बताऊंगा वे गहरे पानी पैठ ‘की जगह’ रहा किनारे बैठ जैसी ही हैं. पर वही काफी हैं.
‘पेस मेकर’ मशीन के दो हिस्से होते हैं.
एक तो बैटरी वाला, दो रुपये के सिक्के के बराबर का ‘बॉक्स’, जहां से करंट बनकर निकलेगा, वह हिस्सा. दूसरा वह तार या लीड जो इस करंट को दिल तक पहुंचाएगा. लीड में सेंसर लगे हैं. दिल के करंट की गड़बड़ी को ये सेंस कर लेते हैं. इसकी सूचना बॉक्स को दे देते हैं. लीड का एक सिरा बॉक्स से जुड़ा है. बॉक्स दिल से बाहर छाती में फिक्स किया जाता है. लीड का दूसरा सिरा बॉक्स से निकलकर, दिल में जा रहा है. दिल के करंट को सेंस करके जो बात पता चली उसी आधार पर बॉक्स का छोटा सा कंप्यूटरनुमा हिस्सा या तो अपना करंट दिल में भेज देगा, या आवश्यकता न महसूस हो , तो उसे रोक लेगा. सेंस करने पर करंट रोकना है, या इसकी परवाह किए बिना केवल भेजते ही रहना है, या रोकना-भेजना भी खुद पेसमेकर को तय करना है- यह चीज पेसमेकर की प्रोग्रामिंग कहलाती है. हम शरीर में डालते समय ही पेसमेकर को प्रोग्राम करके डालते हैं. उसकी करंट की गति (प्रति मिनट कितनी?) आदि चीजें तय कर देते हैं. लग जाने के सालों बाद भी, प्रोग्रामर नामक मशीन को स्टेथोस्कोप की भांति, छाती पर रखकर पेसमेकर की प्रोग्रामिंग को बाद में बदल भी सकते हैं. आजकल सारे पेसमेकर प्रोग्रामेबल ही होते हैं.
अब मन मे प्रश्न यह उठता है कि डॉक्टर लोग जब मुझे पेसमेकर लगाएंगे, तो यह कैसे, क्या लगाया जाएगा?
कुछ आपात स्थितियों के अलावा पेसमेकर प्लान करके ही लगाया जाता है. यह एक छोटा-मोटा ऑपरेशन सा जरूर है परंतु कैथ-लेब में जब इसकी लीड दिल में सही जगह डालने का प्रयास चल रहा होता है तो यह कॉर्डियोलोजिस्ट के ज्ञान, स्किल तथा धैर्य की परीक्षा जैसा होता है. इस ऑपरेशन में आपको बेहोशी या नींद की कोई दवा नहीं दी जाएगी. आप पूरे होश में होंगे. डॉक्टर से बातें कर सकेंगे. तब तो दर्द भी बहुत होगा? नहीं, दर्द एकदम नहीं होगा. चमड़ी का वह हिस्सा लोकल एनीस्थीसिया के जरिए ऐसा सुन्न कर दिया जाएगा कि आपको फिर कुछ भी पता ही नहीं चलेगा कि वहां क्या काट-पीट मच रही है. वैसे भी कोई बड़ा आपरेशन तो है नहीं, बस छाती में, कॉलर बोन (हंसुली) के नीचे चमड़ी में एक छोटा सा चीरा ही तो लग रहा है. इस चीरे के द्वारा चमड़ी और चर्बी के ठीक नीचे वह सिक्के बराबर पेसमेकर बॉक्स रखकर टांकों द्वारा उसे छाती पर फिक्स करना है. प्राय: पांच दस मिनट का काम.
‘पेसमेकर की लाइफ टाइम वारंटी से किसी भ्रम में न पड़ें. यह जीवन भर नहीं चलता. दसेक साल में इसकी बैटरी खत्म हो जाती है’
असली काम है तार या लीड को दिल में पहुंचाना तथा उसे ऐसी सही जगह फिक्स करना कि फिर वह तार हिलकर अपनी जगह से कभी खिसक न जाए. लीड को, कॉलर बोन के नीचे से जा रही खून की एक नस (सबक्लेवियन वेन) में पंक्चर करके, उसके जरिए दिल में डाला जाता है. यह नस सीधे दिल तक जा रही है. लीड एक बार दिल में पहुंची तो फिर इसे दिल में एक सही जगह पर लगाने का प्रश्न आता है. इसमें आधे घंटे से लेकर कितना भी समय लग सकता है. कार्डियोलोजिस्ट तब तक लीड घुमाता रहेगा जब तक वह ऐसा सही स्थान न पा ले जहां करंट को कोई रुकावट या बाधा न मिल रही हो. अब बाहर रखी मशीन द्वारा इसका टेस्ट होता है. एक बार लीड सही जगह फिक्स हो गई तो उसे फिर बॉक्स में स्क्रू करके, लीड का शेष बचा गुच्छा और बॉक्स को चमड़ी के नीचे सिल दिया जाता है. बस, लग गया पेसमेकर. इस दौरान मरीज को न तो कोई दर्द होगा, न उसे बेहोश किया जाएगा. मरीज से बस यही उम्मीद की जाएगी कि वह शांति से एक-डेढ़ घंटे सीधा लेटा रहे.
क्या इस ऑपरेशन में कोई खतरा भी हो सकता है?
बिल्कुल हो सकता है साहब. दिल के मामले तो ऐसे ही होते हैं. वैसे, प्राय: तो कोई खतरा नहीं. यदा-कदा कभी चमड़ी के नीचे खून रिसकर इकट्ठा हो जाए, या उस जगह चमड़ी में इंफेक्शन हो जाए. यदि डॉक्टर पूरी सावधानियां बरते तो यह सब कभी नहीं होगा. खून की नस पंक्चर करते समय दूसरी नस को गलती से पंक्चर कर दिया जाए, या ठीक नीचे फेफड़ों को पंक्चर कर दिया जाए तब बड़ा खतरा पैदा हो जाता है. डॉक्टर उससे भी निबट ही लेते हैं. सक्षम कार्डियोलोजिस्ट के हाथों यह बहुत सुरक्षित ऑपरेशन है.
पेसमेकर लगने के बाद क्या सावधानियां बरतनी होंगी?
लगने के बाद चार-पांच दिन में छुट्टी हो जाएगी. महीने भर बाद वे आपको एक बार बुलाकर फिर पेसमेकर की प्रोग्रामिंग करेंगे. फिर छह माह बाद या एक साल के अंतराल पर. कुछ बातें याद रखें.
– तकलीफ न भी हो, पर साल में एक बार पेसमेकर की जांच अवश्य करा लें.
– कभी कोई और डॉक्टर किसी और बीमारी के कारण यदि आपकी एमआरआई जांच लिखे तो भी न कराएं. एमआरआई में ताकतवर चुंबकीय क्षेत्र बनता है जो पेसमेकर को अचानक बंद कर सकता है. हर डॉक्टर को पहले ही बता दें कि आपको पेसमेकर लगा है.
– एयरपोर्ट आदि पर सुरक्षा जांच के गेट में घुसने से पूर्व उन्हें बता दें कि आपको पेसमेकर लगा है. पेसमेकर से सुरक्षा अलार्म बज सकते हैं.
– पेसमेकर की लाइफ टाइम वारंटी से किसी भ्रम में न पड़ें. यह जीवन भर नहीं चलता. दसेक साल में इसकी बैटरी खत्म हो जाएगी. नियमित प्रोग्रामिंग करवाते रहने से छह सात माह पूर्व ही आपको पता चल जाएगा कि बैटरी बदलवानी है. वर्ना किसी दिन पेसमेकर बंद होकर जानलेवा भी हो सकता है.
कभी आपको या परिवार में किसी को, कोई डॉक्टर पेसमेकर लगवाने की सलाह दे तब ये दोनों लेख वापस फिर से पढ़िएगा. तब मेरी कही एक-एक चीज आपको समझ में भी आएगी और बड़ी महत्वपूर्ण भी लगेगी. ये दोनों लेख उसी दिन के लिए लिखे गए हैं, मान लें.