गर्मी का मौसम चल रहा है. इसी बीच चुनाव भी पड़ गया है यानी सिर मुंडाते ही ओले पड़ने जैसी बात हो गई. गर्मी का मौसम चुनावी मौसम में तब्दील हो गया है. इस मौसम का हाल बताने में मौसम विभाग को पसीने आ रहे हैं. अंदरखाने की बात है कि इस मौसम की जानकारी देने में मौसम विभाग के मिजाज पूरी तरह से बिगड़ गए हैं. इसलिए पेश है नये-नये वोटर बने एक युवा वोटर की ओर से चुनावी मौसम का मोटा-मोटी हाल-
आसमान आशंकित, बादल बदहवास हैं, बिजली की बत्ती गुल है, क्योंकि वे सर्वथा अप्रत्याशित दृश्य देख रहे हैं. वे देख रहे हैं कि प्रत्याशी गरज रहे हैं, कड़क रहे हैं, बरस रहे हैं. अजब छटा छाई है. धूप निकली है, मगर बारिश जारी है. कहीं स्याही बरस रही है, तो कहीं अंडे, कहीं थप्पड़ तो कहीं डंडे.
इस चुनावी मौसम में सूरज की पूरी तरह से घिघ्घी बंध गई है. उसके तेवर उम्मीदवारों की त्यौरियों के सामने ढीले हैं. सूरज की किरणें बस्तियों में बाद में पहुंच पाती हैं, नेताओं की टोली पहले आ धमकती है. सूरज से ज्यादा (बाई गॉड!) नेताओं के कुर्ते चमक रहे है. चिडि़यों से ज्यादा उनके चमचे चहक रहे हैं. वोऽ वोऽ वोऽ टऽ टऽ टऽ… वोऽ वोऽ… टऽ …
गर्मी के शबाब में आश्चर्यजनक उछाल देखा जा रहा है. वह दिनोंदिन निखरती चली जा रही है. स्पष्ट है, इसमें देश की भौगोलिक स्थिति का कोई हाथ नहीं है. इस स्थिति के लिए जिम्मेदार चुनाव में खडे़ होने वाले नेताओं के मुख हैं. जो आजकल हर पल वोटरों के उन्मुख हैं. अब तो दिन और रात दोनों तप रहे हैं. आम गर्मी के कारण नहीं नेताओं के भाषण के कारण पक रहे हैं.
जुबानी पारा तेजी से चढ़ रहा है, मर्यादा का पारा उतनी ही तेजी से लुढ़क रहा है. आरोपों की आंधियां प्रचंड चल रही हैं. रुक-रुक कर नहीं लगातार. थपड़ ही थपड़, प्रहार ही प्रहार. रह-रहकर जो आचार संहिता के तंबू उखाड़े जा रही हैं. चुनाव आयोग अधिकतम और न्यूनतम वेग दर्ज करने में अपने को असमर्थ पा रहा है, क्योंकि हर क्षण आंधियों का वेग एक नया रिकार्ड बना रहा है.
जगह-जगह आश्वासनों के भारी वायुदाब देखने को मिल रहे हैं. जिसे हवाई पुल बहुत आसानी से झेल रहे हैं. कहीं-कहीं शिकायतों के निम्नवायुदाब के क्षेत्र भी हैं. जिसके चलते हवा का रुख अचानक बदल भी सकता है. इस मौसम में एक अजब ‘हवा’ की चर्चा चहुंओर हो रही है, इसके वावजूद वोटर का दम घुट-सा रहा है.
घर से बाहर निकलने वालों के लिए चेतावनी- कृपया जब तक अतिआवश्यक न हो, घर से न निकलें. अगर निकलना ही पडे़ तो मुंह और आंखों को अच्छी तरह से ढंक लें. रैलियों के रेले में खूब धूल उड़ रही है और मतदाताओं के आंखों में पड़ रही है. इसलिए आंखे मींचने से कान में तेल डालना अच्छा है. बाहर धूल फांकने से घर में पड़े रहना अच्छा है.
मौसम का पूर्वानुमान- आने वाले करीब एक माह तक मौसम ऐसे ही बना रहेगा. सोमवार से इतवार आपके सप्ताह के हर वार में उम्मीदवार होंगे. वादों के बादल आंशिकरूप से छाए रहेंगे. झूठ की उमस और बढे़गी. आरोप-प्रात्यारोपों की बौछारें और तेज हो सकती हैं. और सबसे खास बात है कि सितारे अभी कुछ दिनों तक जमीन पर नजर आएंगे. मतदाताओं की आंखों की नमी के बढ़ने के चलते उन्हें गर्मी का एहसास ज्यादा होगा. प्रचार थमने के बाद फौरी राहत मिलने के आसार हैं. चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद मौसम अचानक से करवट बदलेगा. मौसम सामान्य हो जाएगा. जो नेता आज जगराते कर रहे हैं, वे चादर तान कर सोएंगे. और जो मतदाता आज पूजे जा रहे हैं, वे करवट बदल-बदल कर रोएंगे. अगले पांच सालों के मौसम का पूर्वानुमान अभी से लगाना जितना मुश्किल है, वहीं जनता की हालत का पूर्वानुमान लगाना उतना ही आसान है. चुनावी मौसम आते हैं, चले जाते हैं, मगर देश का मौसम कमोबेश एक-सा रहता है, बदलता ही नहीं कमबख्त!