जिंदगी में कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कोई मुसीबत बिना कोई चेतावनी दिए अचानक ही आ धमकती है और आप बिल्कुल ही असहाय-से हो जाते हैं. मेरे साथ भी एक दफा ऐसा हुआ था. यह करीब एक दशक पहले की बात है. तब मैं मुंबई में था. उस दिन मैं ऑफिस से घर आया ही था. दिन बहुत व्यस्त रहा था. ऊपर से घर लौटने के लिए अंधेरी से मलाड के लिए ट्रेन पकड़ी तो उसमें तिल तक रखने की जगह नहीं थी. इसलिए जब घर पहुंचा तो थोड़ी राहत-सी महसूस हुई. उस वक्त घर पर सन्नाटा था. मेरा रूम पार्टनर संदीप ऑफिस से नहीं लौटा था. मुझे बहुत भूख लग रही थी, इसलिए मैंने गैस चूल्हे पर अंडे उबलने के लिए रख दिए और नहाने की तैयारी करने लगा.
तभी घर की घंटी बजी. दरवाजे पर संदीप होगा यह सोचकर मैंने कुंडी खोल दी. लेकिन दरवाजा खुलते ही कई लोग जबरदस्ती घर में घुस आए. धक्का-मुक्की करते हुए एक आदमी ने मुझे दबोच लिया और बाकी लोगों ने घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी. उनमें से एक रसोई घर से अंडे की केतली लिए बाहर निकला और उसे फर्श पर पटकते हुए मुझसे पूछा, ‘इसमें क्या है?’ मैंने कहा, ‘अंडे.’ उसने दूसरा सवाल दागा, ‘किसलिए?’ मैंने कहा, ‘खाने के लिए.’
बड़ी ही अजीब स्थिति पैदा हो गई थी. वे अंडों को बहुत सावधानीपूर्वक सूंघ रहे थे. उन्होंने एक अंडा फोड़ भी दिया जो अभी कच्चा ही था. मुझे जिस आदमी ने पकड़ रखा था उसकी तरफ गर्दन घुमाते हुए मैंने पूछा, ‘क्या हो रहा है यह सब?’ रूखे अंदाज में जवाब देते हुए उसने कहा, ‘मैं तुम्हारे घर की तलाशी ले रहा हूं.’ थोड़ी हिम्मत करते हुए मैंने दूसरा सवाल दागा, ‘क्यों?’ उसने फिर कहा, ‘मैं बम ढूंढ़ रहा हूं.’ मैंने पूछा, ‘कौन हो तुम लोग?’ उसने चिढ़ते हुए कहा, ‘पुलिस, क्या तुम्हें दिख नहीं रहा.’
कई पड़ोसियों से मेरी हाय-हैलो होती ही रहती थी. लेकिन इस संकट के समय उन सभी ने बिल्कुल ही उदासनीता ओढ़ रखी थी
मुझे कैसे दिखता? उनमें से किसी ने भी खाकी वर्दी नहीं पहनी हुई थी. उनके मुंह से शराब का भभका भी उठ रहा था. इस बीच मेरे फ्लैट के बाहर भीड़ इकट्ठी हो गई थी. सोसाइटी के एसोसिएशन के अध्यक्ष भी उस भीड़ में मूक दर्शक की तरह खड़े थे. मैंने उन्हें सुनाते हुए थोड़ी ऊंची आवाज में कहा, ‘क्या हो रहा है महाशय?’ उन्होंने मुझे सूचना देने वाली शैली में कहा, ‘दोपहर में आपके घर में एक विस्फोट हुआ था.’ लगभग चौंकते हुए मैंने कहा, ‘विस्फोट? यहां?’ मैंने घर के अंदर सरसरी निगाह से देखा. वहां मुझे ऐसा कुछ भी नहीं दिखा. इसी बीच एक पुलिस अधिकारी ने घोषणा करने के अंदाज में कहा, ‘कुछ भी नहीं है यहां.’ सभी घर से बाहर निकल आए.
पुलिस अधिकारी ने अपनी गिरफ्त ढीली की और आदेश देते हुए कहा, ‘तुम्हें मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलना होगा.’ मैंने साहस दिखाते हुए कहा, ‘किसलिए? इस बिल्डिंग में मुझे हर कोई जानता है.’ पड़ोसी मेरी ओर लाचारी से देख रहे थे. पुलिसवालों में से एक ने मुझसे कहा, ‘तुम्हारे किसी पड़ोसी ने ही तुम्हारी शिकायत दर्ज कराई है.’ मैं कई पड़ोसियों को जानता था. उनसे मेरी मेरी हाय-हैलो होती रहती थी. लेकिन इस संकट के समय उन्होंने उदासीनता ओढ़ रखी थी. मैं भौचक रह गया.
फिर मुझे लगा कि क्यों न पुलिस को ही समझाने की कोशिश की जाए. मैंने उन्हें बताया कि मैं दूरदर्शन पर एक बहुत लोकप्रिय कार्यक्रम का निर्देशक हूं. लेकिन पुलिस वाले किसी भी सूरत में पिघलने को तैयार नहीं थे. उसने सवाल किया, ‘लेकिन जो विस्फोट हुआ उसका क्या ?’ मैंने जवाब दिया, ‘इस बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता. दोपहर में तो मैं घर पर भी नहीं था.’ उसने छूटते ही पूछा, ‘तुम्हारा रूममेट कहां है?’ मैंने बताया, ‘वह ऑफिस में होगा. वह चैनल वी के लिए काम करता है.’ पुलिसवाले ने फैसला देते हुए कहा, ‘रूममेट के आने तक तुम्हें पुलिस स्टेशन में इंतजार करना होगा.’
उन्होंने मुझे ऑटो में पटका और पुलिस स्टेशन ले गए. ऑटो का किराया मुझे ही देना पड़ा. उस जमाने में मोबाइल का चलन नहीं था. उन्होंने मुझे लैंडलाइन से फोन करने की इजाजत भी नहीं दी. संदीप और उसकी एक महिला पत्रकार मित्र के वहां आने में दो घंटे से ज्यादा का समय लग गया. ऑफिस से फ्लैट पर लौटते ही संदीप को पड़ोसियों ने मेरी दुर्दशा के बारे में सूचना दी थी. महिला पत्रकार ने थाने में कदम रखते ही पुलिस अधिकारी पर चिल्लाना शुरू कर दिया. मैंने उसे चुप रहने की सलाह दी क्योंकि मुझे यह लग रहा था कि कहीं पुलिसवाले मुझे सलाखों के पीछे न डाल दें. लेकिन वह तो जैसे पुलिसवालों पर फट पड़ने को तैयार थी. मुझे वहां लाने वालों के मुंह पर जैसे ताला जड़ गया था. उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे थाने से बाहर ले गई. थाने से घर लौटते हुए संदीप ने मुझे बताया कि वह धमाका डियोड्रेंट की बोतल फटने से हुआ था और उससे खिड़की का एक शीशा भी चटक गया था. मैंने इस घटना से कुछ बातें सीखीं. एक, अगर आपको पुलिसवाले पकड़ कर ले जाएं तो थाने जाने का खर्च देने को तैयार रहें. दो, महिला पत्रकारों की ताकत को कम करके न आंकें और तीन, दुआ करें कि आपको अच्छे पड़ोसी मिलें.