जब जॉनी डेप और एम्बर हर्ड मामले की ख़बर दुनिया भर में फैली, तो इसने सभी का ध्यान खींचा। क्योंकि यह दो मशहूर हस्तियों के बीच अत्यधिक प्रचारित अदालती लड़ाई का मामला था। दूसरी बात यह एक ऐसे व्यक्ति से जुड़ी थी, जो एक बेहद सफल और बहुत लोकप्रिय हॉलीवुड अभिनेता था। इस अभिनेता का अपनी पूर्व पत्नी पर अंतरंग साथी हिंसा (आईपीवी) और खुले तौर पर उस मानसिक और भावनात्मक शोषण का आरोप था, जो उसे अपनी पत्नी की तरफ़ से झेलना पड़ा।
यह कोई ब्रेकिंग न्यूज नहीं है कि पुरुष भी अपनी हिंसक, भावनात्मक और मानसिक रूप से बीमार साथी की तरफ़ से शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक रूप से पीडि़त होते हैं। हालाँकि शायद ही कोई पुरुष यह सच कहने के लिए सामने आता है। क्योंकि ज़्यादातर समय पुरुष इस बात से इन्कार करते हैं कि उनके साथ दुव्र्यवहार किया जा रहा है। अगर किसी मौक़े पर वे इस तथ्य का सामना करने के लिए तैयार भी हैं कि वे एक अपमानजनक रिश्ते में हैं। ख़ासतौर से शारीरिक प्रताडऩा का शिकार हैं, तो भी एक पुरुष के लिए सामाजिक प्रतिक्रिया के कारण यह स्वीकार करना आसान नहीं है। हमारे पुरुष प्रधान समाज में पत्नी की तरफ़ से शारीरिक रूप से हावी होना और दुव्र्यवहार करना अमानवीय माना जाता है। दु:ख की बात है कि अगर यह सामने आता है कि कोई व्यक्ति ऐसी प्रताडऩा का सामना कर रहा है, तो वह सहानुभूति पाने के बजाय बेतुके चुटकुलों का पात्र बन जाता है। इसलिए जब हॉलीवुड सुपरस्टार डेप ने अदालत में अपने निजी जीवन के बारे में कुछ चौंकाने वाले विवरणों का ख़ुलासा किया, तो सभी ने उस पर तुरन्त ध्यान दिया। आईपीवी के ख़िलाफ़ उनकी आवाज़ और एम्बर द्वारा उनकी पत्नी के भावनात्मक शोषण को सुना गया और गम्भीरता से लिया गया।
ख़ुद से हुई हिंसा के बारे में डेप ने ख़ुलासा किया कि एम्बर उसे थप्पड़ मारती थी और धक्का देती थी। एक बहस के दौरान उसने डेप पर वोदका की बोतल फेंकी। जब डेप ने अपने बचाव की कोशिश की, तो ऐसा करते हुए बोतल से उसकी दाहिनी मध्यमा उँगली पर इतना गहरा ज़ख़्म हो गया कि हड्डी दिखने लगी। अभिनेता ने कहा कि वह कभी-कभी ख़ुद को एक बेडरूम या बाथरूम में बन्द करके हिंसक बहस से ख़ुद को दूर कर लेते था, और उसने कभी हर्ड (पत्नी) को नहीं पीटा। डेप ने गवाही में कहा कि मेरा मुख्य लक्ष्य पीछे हटकर अपना बचाव करना भर होता था।
हालाँकि डेप न केवल आईपीवी के अन्तिम पड़ाव पर थे, बल्कि उन्हें भावनात्मक शोषण भी झेलना पड़ रहा था। उन्होंने कहा कि उनके (मेरे और पत्नी हर्ड के) बीच अक्सर तर्क होते थे, जिनमें ग़ुस्से से नाम पुकारना और डराना-धमकाना शामिल था। उनके मुताबिक, यह मेरे प्रति शुद्ध घृणा की तरह था।
तथ्य यह है कि डेप इस मामले में जिस तरह सामने आये, उससे उम्मीद है कि अन्य पुरुष, जो चुपचाप पीडि़त होते हैं; अब सामने आने और मदद लेने का साहस करेंगे। क्योंकि हमेशा महिलाएँ ही ऐसी स्थिति का शिकार नहीं होती हैं, बल्कि पुरुषों को भी प्रताडि़त किया जाता है। हमें एक समाज के रूप में इसे स्वीकार करने की आवश्यकता है। साल 2005 में गठित सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन (एसआईएफएफ), जो अपनी जीवनसाथी द्वारा हिंसा, मानसिक और भावनात्मक उत्पीडऩ का सामना कर रहे पुरुषों के अधिकार की लड़ाई लडऩे के साथ-साथ उन्हें परामर्श, सहायता और समर्थन देता है। इस समूह के मुताबिक, स्व-स्वीकार्य रूप से ऐसे पुरुषों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है और हर ह$फ्ते चार या पाँच लोग समूह में शामिल होते हैं।
भारत की बात करें, तो वर्ष 2004 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) ने ख़ुलासा किया कि देश में लगभग 1.8 फ़ीसदी महिलाओं ने अपने पतियों के ख़िलाफ़ हिंसा का सहारा लिया था। आँकड़ों के मुताबिक, ग्रामीण भारत की कहानी कुछ अलग नहीं लगती। ग्रामीण हरियाणा इसका नमूना है, जहाँ 21-49 आयु वर्ग के विवाहित पुरुषों के एक अध्ययन में 51.5 फ़ीसदी पुरुषों ने यातना या आईपीवी का सामना किया; जबकि 10.5 फ़ीसदी पुरुषों ने अपनी पत्नियों के हाथों हिंसा झेली।
हालाँकि अपमानजनक रिश्ते केवल हिंसा के बारे में नहीं हैं, उनमें भावनात्मक और मानसिक शोषण भी शामिल है। रिलेशनशिप एक्सपट्र्स के मुताबिक, लोगों के लिए यह पहचानना आसान नहीं है कि वे मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से अपमानजनक रिश्ते में हैं। आधा समय तो उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगती। हालाँकि कुछ व्यवहार सम्बन्धी लक्षण हैं, जिन्हें विवाह सलाहकार और मनोवैज्ञानिक एक पति या पत्नी द्वारा किये जा रहे मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक शोषण से पहचानते हैं। उदाहरण के लिए यदि आपका जीवनसाथी आपके प्रति अति-आलोचनात्मक या निर्णयात्मक है, तो आप एक अपमानजनक विवाह में हैं। आप उनके और आपके परिवार के लिए कुछ भी हासिल नहीं करते हैं। वे शायद ही कभी उन्हें ख़ुश करने के आपके प्रयासों की सराहना करते हैं। जब आप उनकी किसी बात के लिए सहमत नहीं होते हैं, तो आपका जीवनसाथी नाराज़ या परेशान हो जाता है। वह बिना अनुमति के आपके ईमेल, टेक्स्ट मैसेज, सोशल मीडिया, लैपटॉप या फोन की जाँच करके अपनी सीमाओं को नियंत्रित कर रहा है। आपकी सीमाओं की अनदेखी कर रहा है, और आपकी गोपनीयता पर हमला कर रहा है।
आपको यह भी महसूस करना चाहिए कि आप भावनात्मक रूप से अपमानजनक रिश्ते में हैं, यदि आपका जीवनसाथी अधिकारपूर्ण और अनुचित रूप से ईष्र्यालु है। साथ ही जब आप आसपास नहीं होते हैं, तो लगातार कॉल करता है। इससे आप यदि अकेले या परिवार या दोस्तों के साथ समय बिताना चाहते हैं, तो आप परेशान हो जाते हैं। यदि वह आपकी दुनिया का केंद्र बनना चाहता है और आपको अपने जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण लोगों जैसे आपके माता-पिता, भाई-बहन, विस्तारित परिवार, दोस्तों से अलग-थलग करना चाहता है या अन्य गतिविधियों का आनंद लेने से आपको रोकना चाहता है, तो यह आप पर हावी होने की कोशिश है।
एक अपमान करने वाला जीवनसाथी आप पर बेवफ़ाई का आरोप लगाता है। आपकी बार-बार जाँच करता है और आपको यह बताकर अपराधबोध कराता है कि उसने आपके लिए एक लाख बलिदान किये हैं। वह आपको हर समय एक अपराधबोध से देखता है और सन्देह के घेरे में रखता है। आपको अपर्याप्त महसूस कराता है और आत्महत्या करने की धमकी देता है, या बच्चों को आपसे दूर ले जाता है। ऐसे जीवनसाथी आमतौर पर आपकी उपलब्धियों, आशाओं और सपनों को कम करके आपको नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। अपने तर्कहीन व्यवहार के बारे में बात करने से इन्कार करते हैं या अपनी ग़लतियों और कार्यों की ज़िम्मेदारी नहीं लेते हैं। वे अपनी विफलता के लिए आपको या किसी और को दोष देते हैं। तर्कहीन होते हैं, और जब आपने कुछ ग़लत किया है, तो स्नेह वापस ले लेते हैं।
शोध से पता चलता है कि लगभग 43 फ़ीसदी पतियों ने अपनी पत्नियों द्वारा किये गये दुव्र्यवहार, अपमान, उत्पीडऩ और निराशा के कारण आत्महत्या करने पर विचार किया है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, विश्व स्तर पर आत्महत्या करने वाले पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में दोगुनी है। मैं यह नहीं कह रही हूँ कि सभी आत्महत्याएँ एक अपमान करने वाले पति या पत्नी के कारण होती हैं; लेकिन इन आँकड़ों पर भरोसा करें, तो यह उनमें से एक बड़ा कारण है, जिसका फ़ीसद बहुत है।
जैसा कि आँकड़े बताते हैं कि पुरुष अधिक कमज़ोर होते हैं, क्योंकि वे यह मानने से इन्कार करते हैं या छिपाते हैं कि वे एक अपमानजनक रिश्ते में हैं। वे इन्कार की स्थिति में रहते हैं और इसके बारे में बात नहीं करते हैं। यहाँ तक कि अगर उन्हें पता चलता है कि वे एक अपमानजनक रिश्ते में हैं, तो वे किसी से मदद तक नहीं माँगते। क्योंकि दूसरे व्यक्ति के साथ साझा करने की बात तो दूर है, वे ख़ुद इसे स्वीकार करने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं। आख़िर एक मर्दाना आदमी कैसे कमज़ोर हो सकता है या किसी के द्वारा चालाकी या बदसलूकी का शिकार हो सकता है, ख़ासकर एक महिला के हाथों। लेकिन कई लोग यह सब चुपचाप सहते रहते हैं। क्योंकि उनके दिमाग़ में यह भरा है कि वे दु:ख उठाने के लिए ही हैं। क्योंकि असली मर्द रोते नहीं हैं। असली मर्द अपनी भावनाओं के बारे में बात नहीं करते हैं। यह कहेंगे कि डर लगता है, तो लोग क्या कहेंगे? अगर मैं किसी को बता दूँ कि मेरी पत्नी मुझे मार रही है या भावनात्मक रूप से गाली दे रही है, तो वे मुझे डरपोक या जोरू का ग़ुलाम कहेंगे। महिलाओं की ही तरह पुरुष भी तलाक़ के सामाजिक और आर्थिक परिणामों, लम्बी क़ानूनी लड़ाई, अपने बच्चों तक पहुँच खोने, अपने साथियों और सहकर्मियों की नज़र में सम्मान खोने के कारण इस स्थिति तक क़दम उठाने से बचते हैं।
सबसे बुरी बात यह है कि ख़ुद को और अपने परिवार को झूठे मामले में फँसाने का ख़ौफ़ भी रहता है, क्योंकि भारतीय दण्ड संहिता के तहत कई क़ानून महिलाओं के पक्ष में हैं। अच्छे कारण के लिए भी, क्योंकि बड़ी संख्या में महिलाओं को इसके संरक्षण की आवश्यकता है। हालाँकि हम इस तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं कि बहुत-सी महिलाएँ अपनी सुरक्षा के लिए बनाये गये क़ानूनों का दुरुपयोग करती हैं। गुरुग्राम के उस 31 वर्षीय पुरुष के परिवार से पूछो, जिसने 6 मई को एक होटल में आत्महत्या कर ली; क्योंकि उसकी पत्नी और उसके दूसरे परिजन उसे परेशान कर रहे थे और झूठे मामले में फँसाने की धमकी दे रहे थे।
आप कह सकते हैं कि अधिक लिंग-तटस्थ घरेलू हिंसा क़ानूनों और महिलाओं द्वारा क़ानूनों के दुरुपयोग की आवश्यकता के बारे में यह तर्क और धारा-498(ए) जैसे क़ानूनों में दुरुपयोग के प्रावधान को लागू करने की आवश्यकता (एक महिला के पति या रिश्तेदार के साथ क्रूरता के अधीन) या दहेज़ अधिनियम की धारा-4 को भुला दिया गया है। लेकिन इसे सख़्ती से कुचलने की ज़रूरत है। क्योंकि यह दु:ख की बात है कि भारत में अपनी पत्नी के हाथों हिंसा और भावनात्मक शोषण का सामना करने वाले पुरुष ख़ुद को बचाने के लिए कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि क़ानून उन्हें पीडि़त के रूप में नहीं मानता है। दुनिया भर के अधिकांश देशों के विपरीत भारत में घरेलू हिंसा के ख़िलाफ़ क़ानून दोनों लिंगों को सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए विदेशों में प्रताडि़त और प्रताडि़त पति अदालतों से बचाव आदेश माँग सकते हैं; लेकिन भारत में दुव्र्यवहार का शिकार होने वाले पतियों के पास वह विकल्प नहीं है। हम क़ानूनी तौर पर भारतीय समाज में कई सकारात्मक बदलाव देख रहे हैं। अब भारत को भी क़ानूनी तौर पर अपने जीवनसाथी या परिवार के सदस्यों के हाथों घरेलू हिंसा या भावनात्मक और मानसिक शोषण का सामना करने वाले पुरुषों को अधिक समर्थन करना चाहिए।
हालाँकि एक अनुपयोगी और असंगत क़ानूनी व्यवस्था को छोड़कर क्या हम एक समाज के रूप में अपने आप को सभी दोषों से मुक्त कर सकते हैं? क्या हम भी समान रूप से दोषी नहीं हैं? क्या हम अपने लड़कों को हमेशा कठिन होने और इसे एक मर्द की तरह लेने के लिए कहकर मर्दानगी की पुरातन, यहाँ तक कि मध्ययुगीन धारणा के साथ नहीं जी रहे हैं? क्या हम उन पुरुषों का भी मज़ाक़ नहीं उड़ाते, जो अपनी भावनाओं के सम्पर्क में हैं और उन्हें बहन कहते हैं? इसके लिए दूसरों से ज़्यादा पुरुष ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि जब कोई महिला आईवीपी या मानसिक शोषण की शिकायत करती है, तो उसके जीवन में महिलाएँ उस पर हँसती नहीं हैं या उसे ख़ारिज नहीं करती हैं। वे इसे गम्भीरता से लेती हैं और पीडि़ता के साथ सहानुभूति रखती हैं, उसे दिलासा देती हैं और उसके साथ खड़ी होती हैं। वे उसे मदद लेने की सलाह भी देती हैं और कुछ मामलों में उसके लिए मदद भी देती हैं। लेकिन पुरुष क्या करते हैं? वे अविश्वास और उपहास में हँसते हैं, जब उन्हें पता चलता है कि एक आदमी को उसकी पत्नी ने पीटा था। वे उसे जोरू का ग़ुलाम करार दे देते हैं। तो क्या भाईचारा केवल शराब की मेज तक सीमित है, और शरारत भर करने के लिए है? जब कोई अन्य पुरुष घरेलू प्रताडऩा का शिकार हो रहा हो, तो मानव-संहिता कहाँ जाती है? इस क्षेत्र में पुरुष एक दूसरे का समर्थन क्यों नहीं करता?
क्या हमने कभी सोचा है कि इस मध्ययुगीन मानसिकता को बदलने का समय आ गया है कि मर्द को दर्द नहीं होता या लड़के रोते नहीं हैं। क्या यह सही समय नहीं है कि हम एक समाज के रूप में उन पुरुषों के प्रति अधिक सहानुभूतिपूर्ण बनें, जो अपने जीवनसाथी के हाथों पीडि़त हैं? सिर्फ़ इसलिए कि एक आदमी शान्ति बनाये रखने के लिए चुप रहता है या क्योंकि वह अपने बच्चों को खोना नहीं चाहता, उसकी क़ीमत किसी इंसान से कम नहीं हो जाती। हमें उसकी तरफ़ मदद का हाथ बढ़ाना चाहिए या सहानुभूतिपूर्ण सहयोग करना चाहिए। उस व्यक्ति का मज़ाक़ नहीं उड़ाया जाना चाहिए, जो यह स्वीकार करने का हौसला दिखा रहा है कि वह अपनी पत्नी से शारीरिक या भावनात्मक शोषण का सामना कर रहा है। क्योंकि ख़ुद ऐसा स्वीकार करने के लिए हिम्मत चाहिए होती है, बाक़ी की तो बात ही छोडि़ए।
हमें यह महसूस करने की ज़रूरत है कि एक पुरुष का शारीरिक और भावनात्मक शोषण एक वास्तविकता है, और हमें इसे हल करने की आवश्यकता है। उसके लिए हमें कितने और जॉनी डेप या एम्बर हर्ड चाहिए? आख़िर हमें पुरुषों में यह धारणा रखने की आवश्यकता है कि अगर कोई शारीरिक और भावनात्मक रूप से अपमानजनक रिश्ते में है, तो उसका अपनी समस्याओं के बारे में बात करना ठीक है। आख़िर हम कितनी और आत्महत्यायों का इंतज़ार करेंगे? क्या ऐसे मुद्दों पर हँसना और आहत भावनाओं को हवा देना ठीक है? समय आ गया है कि पुरुष को रोने दें!
(लेखिका पायनियर में वरिष्ठ संपादक हैं।)