उत्तर प्रदेश के 75 जिलों की 403 विधानसभा चुनाव को लेकर इस बार प्रत्याशियों के बीच एक अजब सी कहानी देखने को मिल रही है। भाजपा, सपा,बसपा और कांग्रेस सहित जो भी अन्य छोटे दल है। उनके प्रत्याशी पार्टी को जिताने के साथ-साथ हर हाल में स्वयं को जिताने पर बल दें रहे है। जानकारों का कहना है कि इस बार चुनाव किसी भी पार्टी के लिये इकतरफा नजर नहीं आ रहा है। इसलिये जो भी प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। वो चुनाव इस आधार पर लड़ रहे है। कि मतदाता पार्टी के साथ –साथ उनको चुने।
बतातें चलें, उत्तर प्रदेश की सियासत का अपना ही मिजाज है।यहां के लोग सत्ता परिवर्तन में विश्वास करते है। किसी भी पार्टी को दोबारा सत्ता नहीं सौंपना चाहते है। अगर विरोधी दल सही हो और सही तरीके से जनता के अधिकारों के साथ विकास की बात रख सकें तो, जनता उसे ही मौका देती है। लेकिन इस बार का मिजाज कुछ और है। क्योंकि भाजपा के साथ-साथ सपा, बसपा और कांग्रेस सहित अन्य पार्टी के नेता में कोई खास दावे दारी नहीं ठोक पा रहे है।इसका मतलब साफ है कि चुनाव में प्रत्याशी भी असमंजस में है। कि उनकी ही पार्टी चुनाव जीतेगी या हारेगी।
इसलिये प्रत्याशी पार्टी के साथ स्वयं चुनाव जीतने के लिये ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है। उत्तर प्रेदश की सियासत के जानकार प्रमोद गर्ग का कहना है कि ये बात सही है कि 2007 में पूर्ण बहुमत के साथ प्रदेश में बसपा को जिताकर मायावती को मुख्यमंत्री बनाया था। फिर 2012 में सपा को बहुमत देकर अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया था। इसी तरह 2017 में भाजपा को बहुमत देकर योगी आदित्य नाथ को मुख्यमंत्री बनाया था। अगर इस बार सत्ता परिवर्तन के साथ अन्य दल को मौका देती है। तो ये आने वाला समय ही बतायेगा कि जनता परिवर्तन लाती है। या फिर पुनः भाजपा पर विश्वास करती है।