इमरान ख़ान के हमलों से पाकिस्तान की राजनीति में मची हलचल
इमरान ख़ान जब क्रिकेट खेलते थे, तब भी क्रीज पर उतने नहीं टिके होंगे, जितने अब वह पाकिस्तान सेना के ख़िलाफ़ खुलकर खेल रहे हैं। पाकिस्तान में तब राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गयी, जब अक्टूबर के आख़िरी हफ़्ते पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अहमद अंजुम ने अहम ख़ुलासा करते हुए दावा किया कि कुछ महीने पहले राजनीतिक उथल-पुथल के बीच तत्कालीन सरकार ने सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा को मार्च में एक आकर्षक प्रस्ताव दिया था। हालाँकि इमरान ने इसका जवाब देते हुए कहा कि देखते रहिए, अभी बहुत ख़ुलासे होंगे। इमरान निश्चित ही पाकिस्तान में सेना की सत्ता को कमज़ोर करते हुए दिख रहे हैं।
इसके बाद से पाकिस्तान में अब न सिर्फ़ बहस छिड़ गयी है, बल्कि लगातार बयानबाजियाँ भी हो रही हैं। इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अहमद अंजुम के आरोपों का जवाब पीटीआई ने यह कहते हुए कि पूर्व प्रधानमंत्री (इमरान ख़ान) ने बन्द दरवाज़े की बातचीत के दौरान कभी भी कोई असंवैधानिक माँग नहीं की। यह पहली बार था, जब आईएसआई के किसी प्रमुख ने मीडिया से सीधे बात की थी।
पीटीआई नेताओं शाह महमूद क़ुरैशी, फवाद चौधरी और शिरीन मज़ारी ने कहा कि इमरान ख़ान ने सेना प्रमुख के साथ पिछले दरवाज़े से बातचीत के दौरान कभी कोई असंवैधानिक माँग नहीं की थी। उमर ने कहा कि बन्द दरवाज़ों के पीछे चर्चा किये गये मामले कोई गुप्त नहीं थे, क्योंकि ख़ान ने रैलियों और प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन पर चर्चा की थी। उन्होंने कहा कि माँगें हमेशा से जनता के सामने रही हैं। उन्होंने कहा कि इमरान ख़ान के पास सेना और देश दोनों हैं। लेकिन क्या इमरान ख़ान सेना के हर फ़ैसले से सहमत होंगे? उन्होंने कहा कि ख़ान को सेना से असहमत होने और यहाँ तक कि इसकी आलोचना करने का भी अधिकार है।
ज़ाहिर है पीटीआई यह कह रही है कि सेना देश या प्रधानमंत्री से ऊपर नहीं है। यह एक तरह से सेना की सत्ता को सीधी चुनौती है। पाकिस्तान में हाल के वर्षों में यह रिवाज़ रहा है कि देश के प्रधानमंत्री को विदेश यात्रा पर जाना होता है, तो पहले वह सेना प्रमुख से मिलता है। इमरान ख़ान सेना के राजनीतिक सत्ता में सेना की इस दख़लंदाज़ी के सख़्त ख़िलाफ़ रहे हैं। अब यह लड़ाई सडक़ों पर आ गयी है और साफ़ लग रहा है कि इसका कोई-न-कोई नतीजा ज़रूर निकलेगा; क्योंकि पाकिस्तान के कमोवेश सभी राजनीतिक दल सेना की इस दादागीरी के ख़िलाफ़ रहे हैं।
देखें, तो बीते एक साल से पाकिस्तान में काफ़ी कुछ बदला है। राजनीतिक हालात ऐसे हैं कि थमने का नाम नहीं ले रहे। इसकी शुरुआत अक्टूबर, 2021 में हुई, जब प्रधानमंत्री रहते हुए इमरान ख़ान और सेना के बीच आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति को लेकर टकराव हुआ। इमरान ख़ान के रिश्ते सेना से ख़राब होने लगे। अब यह लड़ाई बहुत आगे बढ़ गयी है।
यदि कुछ पुरानी बातें याद करें, तो अक्टूबर, 2021 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान चाहते थे कि लेफ्टिनेंट जनरल फ़ैज़ हमीद आईएसआई के प्रमुख बनें। उनके विपरीत सेना नदीम अंजुम को आईएसआई चीफ बनाना चाहती थी। जबरदस्त मतभेद के बीच सेना की चली और न चाहते हुए भी इमरान को सेना के दबाव में नदीम अंजुम को आईएसआई चीफ बनाना पड़ा। लेकिन इमरान के मन में सेना के प्रति कड़वाहट भर गयी। अप्रैल में इमरान की ही सत्ता चली गयी। इमरान ख़ान ने आरोप लगाया कि उनकी सरकार गिराने के लिए विपक्ष ने विदेशी ताक़तों (अमेरिका) के साथ मिलकर साज़िश रची।
इमरान जब सत्ता से बाहर हुए, तो नयी सरकार लिए कई समस्याएँ भी छोड़ गये। हाल में इमरान ख़ान को चुनाव लडऩे से अयोग्य ठहरा दिया गया। इसके बाद केन्या में एक पाकिस्तानी पत्रकार अरशद शरीफ़ की हत्या हुई, जिसे लेकर इमरान ने सेना पर बहुत-ही गम्भीर आरोप लगाये। इन आरोपों ने पाकिस्तान में नयी बहस शुरू कर दी। पत्रकार की केन्या में हत्या पर सेना और इमरान आमने-सामने आ गये। आईएसआई चीफ की प्रेस कॉन्फ्रेंस सेना ने आग में घी का काम किया।
इमरान ख़ान और उनकी पार्टी पीटीआई वैसे ही पाकिस्तान चुनाव आयोग की तरफ़ से इमरान ख़ान को तोशाख़ाना मामले में अयोग्य क़रार देने से बिफरी हुई है। आयोग ने तो इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की भी सिफ़ारिश की है। अपने फ़ैसले में आयोग ने इमरान ख़ान को पाँच साल तक सार्वजनिक पद पर रहने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया है। यह मामला इमरान को विदेशी राजनेताओं या मेहमानों से प्राप्त क़ीमती उपहारों की बिक्री से प्राप्त आय को छिपाने का दोषी पाये जाने से जुड़ा है।
जिस पत्रकार की नैरोबी (केन्या) में हत्या हुई है, उसके ख़िलाफ़ कुछ दिन पहले ही देशद्रोह का मुक़दमा दायर किया गया था। अरशद पूर्व में पाक टीवी चैनल एआरवाय से जुड़े थे। अरशद को इमरान ख़ान का समर्थक माना जाता था। यही नहीं, अरशद एक से ज़्यादा बार पाक सेना के प्रमुख जनरल बाजवा की आलोचना कर चुके थे। इसमें कोई दो-राय नहीं कि अरशद की हत्या को लेकर पाकिस्तानी सेना सवालों के घेरे में है। इमरान ख़ान का आरोप है कि पत्रकार की हत्या राजनीति से प्रेरित है। इमरान ख़ान से लेकर उनके कई समर्थक इसके लिए पाकिस्तानी सेना को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।
पत्रकार की हत्या के मामले में जब हंगामा हुआ, तो सेना को बचाने के लिए आईएसआई चीफ नदीम अंजुम सामने आ गये। अंजुम ने कहा- ‘हमें बिना किसी कारण के निशाना बनाया जा रहा है। मार्च में (इमरान ख़ान के प्रधानमंत्री रहते) जनरल बाजवा को उनके कार्यकाल में अनिश्चितकालीन विस्तार के लिए आकर्षक प्रस्ताव दिया गया था। यह मेरे सामने दिया गया था। उन्होंने (जनरल बाजवा) इसे अस्वीकार कर दिया, क्योंकि वह चाहते थे कि सेना एक विवादास्पद भूमिका से संवैधानिक भूमिका की ओर बढ़े।’
इमरान ख़ान पर हमला करते हुए आईएसआई चीफ ने कहा- ‘आप (इमरान) रात को उनसे चुपचाप मिलते हैं और अपनी असंवैधानिक इच्छाएँ व्यक्त करते हैं। लेकिन दिन के उजाले में देशद्रोही (सेना प्रमुख को) कहते हैं। यह आपके शब्दों और आपके कृत्यों के बीच एक बड़ा विरोधाभास है।’
इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने भी एक बयान जारी किया। सेना ने कहा कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के प्रमुख इमरान ख़ान को अपने दावों को साबित करने की ज़रूरत है। आईएसपीआर के डीजी लेफ्टिनेंट जनरल बाबर इफ्तिखार ने कहा- ‘अरशद शरीफ़ और अन्य पत्रकारों ने दुनिया में पाकिस्तान और देश के संस्थानों को बदनाम करने का प्रयास किया। शरीफ़ की मौत के बाद लोगों ने सेना पर उँगली उठानी शुरू कर दी है। जबकि यह निर्धारित किया जाना बाक़ी है कि इस हत्या से वास्तव में किसे लाभ हुआ है? 30-40 साल की सेवा करने के बाद कोई भी देशद्रोही नहीं होना चाहता। हम कमज़ोर हो सकते हैं। हम $गलतियाँ कर सकते हैं; लेकिन हम कभी देशद्रोही नहीं हो सकते।’
इमरान ख़ान सरकार के साथ-साथ सेना पर भी लगातार दबाव बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। अक्टूबर के शुरू में उन्होंने ऐलान किया कि अगर सरकार नये चुनाव की घोषणा नहीं करती है, तो अक्टूबर के अन्त में आज़ादी-मार्च निकाला जाएगा। इमरान को अयोग्य ठहराये जाने और पत्रकार अरशद शरीफ़ की हत्या के बीच ये मार्च और ज़्यादा सुर्ख़ियों में आ गया। लाहौर इस्लामाबाद जाने वाले मार्च के लिए इमरान समर्थक सुबह से ही सडक़ों पर जुट गये। शाम को इमरान ने अपने समर्थकों को सम्बोधित करके इस मार्च का आग़ाज़ किया। इमरान के इस मार्च को इमरान और सरकार के बीच आर पार की लड़ाई के तौर पर देखा जा रहा है।
यह माना जा रहा है कि हाल के वर्षों में पाकिस्तान की सेना कमज़ोर हुई है। सत्ता पलट का जो खेल सेना खेलती थी, वह अब नहीं दिख रहा। सेना के ख़िलाफ़ राजनीतिक दल भी खुलकर बोलने लगे हैं। यहाँ तक कि जनता भी सेना के सत्ता में दखल के ख़िलाफ़ होने लगी है। आने वाले महीनों में देखना होगा कि यह ऊँट किस करवट बैठता है?