पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी पूर्व राष्ट्रपति व पूर्व सेना प्रमुख को अदालत ने सज़ा-ए-मौत का फैसला सुनाया है। इस्लामाबाद की विशेष अदालत ने पूर्व तानाशाह परवेज़ मुशर्रफ को देशद्रोह के मामले में फाँसी की सजा सुनायी है। नवंबर, 2007 में संविधान की धज्जियाँ उड़ाकर आपातकाल लागू करने के मामले यह सज़ा सुनायी गयी है। उन्होंने देश में आपातकाल लागू करने के बाद मार्शल लॉ लगा दिया था। देशद्रोह का यह मामला दिसंबर, 2013 से लम्बित था। कुछ समय पहले दुबई से परवेज़ मुशर्रफ ने वीडियो जारी कर अपनी खराब सेहत का हवाला देते हुए जाँच आयोग के अपने पास आने का आग्रह किया था, कि वे आयें और जानें कि वेे कैसी हालत में है। उन्होंने देशद्रोह के मामले को निराधार बताया था। विशेष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने 2-1 के बहुमत से फाँसी की सज़ा का फैसला सुनाया।
क्या है पूरा मामला
विशेष अदालत ने 31 मार्च, 2014 को देशद्रोह के एक मामले में पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख और पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ को आरोपी बनाया था। 2013 के चुनावों में जीत के बाद पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) सरकार में आयी। सरकार आने के बाद पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ के िखलाफ संविधान की अवहेलना का मुकदमा दायर किया गया था। अभियुक्त परवेज़ मुशर्रफ केवल एक बार विशेष न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हुए जब उन पर आरोप लगाया गया था। उसके बाद से वो कभी कोर्ट में पेश नहीं हुए। इस बीच मार्च, 2016 में स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर मुशर्रफ विदेश चले गये।
अभी दुबई में हैं मुशर्रफ
मुशर्रफ 2016 में इलाज के लिए पाकिस्तान से दुबई चले गये और अभी वे वहीं निर्वासन का जीवन बिता रहे हैं। अदालत उन्हें पहले ही भगोड़ा घोषित कर चुकी थी साथ ही तल्ख टिप्पणी की थी कि अगर वे फलाँ तारीख को पेश नहीं होंगे, तो वे अपनी बात रखने का हक खो देंगे। हालाँकि, मुशर्रफ की दलील रही है कि वह बीमारी के चलते बाहर हैं और उन्हें सुनवाई में पूरा मौका नहीं मिला। एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक, पाकिस्तान में 2017 में 60 लोगों को फाँसी दी गयी थी और 2018 में यह संख्या घटकर 14 रह गयी।
तानाशाह मुशर्रफ
परवेज़ मुशर्रफ ने 1999 में पाकिस्तान की तत्कालीन नवाज़ शरीफ सरकार का तख्तापलट करके सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था। उस समय प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ श्रीलंका यात्रा पर गये हुए थे। उनके इस्लामाबाद लौटने के पहले ही उनकी सत्ता छीन ली थी। मुशर्रफ ने खुद को पाकिस्तान का सैन्य तानाशाह घोषित कर दिया। तब लोग बड़ी संख्या में अर्थ-व्यवस्था के लिए चौपट करने वाले प्रशासन से छुटकारा के तौर पर देख रहे थे। 11 सितंबर, 2001 में अमेरिका में हुए अलकायदा के आतंकी हमले के बाद अमेरिका का साथ देकर मुशर्रफ ने अमेरिका को अपना करीबी बना लिया। इसके बाद मिली अमेरिकी आर्थिक मदद से उनको पाकिस्तान की अर्थ-व्यवस्था में तेज़ी लाने में कामयाबी हासिल की। इसी भूमिका ने उनको पाकिस्तान का राष्ट्रपति बनाने में मदद पहुँचायी। 2001 में मुशर्रफ ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख रहते हुए खुद को राष्ट्रपति भी घोषित कर दिया। जब राष्ट्रपति बनने के बाद आर्मी चीफ पद छोडऩे की बारी आयी, तो वे मुकर गये। इस तरह से वे 2001 से 2008 तक शासन करने वाले पाकिस्तानसबसे लम्बे शासको में से एक बन गये। हालाँकि, आर्मी चीफ के पद पर नवंबर, 2007 तक यानी रिटायर होने तक वे इस पद पर भी बने रहे।
बुरे दिनों की शुरुआत
2007 तक पाकिस्तान में सब कुछ मुशर्रफ की योजनाओं के अनुसार ही हुआ। जैसे ही 2007 में उन्होंने देश के मुख्य न्यायाधीश को पद से हटाने की कोशिश की, तो उनका विरोध शुरू हो गया। हालात इतने बिगड़ गये कि आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी। इतना ही नहीं, उन्होंने पाकिस्तान के सैकड़ों नेताओं और जजों को भी नज़रबंद करना शुरू कर दिया, कई को नौकरियों से बर्खास्त कर दिया। दिसंबर, 2008 में बेनज़ीर भुट्टो की हत्या ने माहौल को पूरी तरह से उनके िखलाफ बना दिया। 2008 के अगस्त में राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद कुछ समय उन्होंने लंदन में निर्वासित का जीवन बिताया।