पाकिस्तान की पुरानी आदत रही है कि वह भारत की तरफ कोई-न-कोई बहाना बनाकर निशाना लगाता रहता है। पाकिस्तान कभी आतंकवादियों के सहारे घुसपैठ की कोशिश करता है, तो कभी संयुक्त राष्ट्र में भारत पर छींटाकसी करके नये-नये आरोप मढ़ता रहता है। अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के खास सलाहकार शाहबाज़ गिल ने दावा किया है कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ भारत से मिले हुए हैं। गिल ने दावा करते हुए कहा है कि वह यह नहीं कहते कि उनके पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ मुल्क (पाकिस्तान) के विरोधी हैं, लेकिन वह एक छोटी सोच वाले बिजनेसमैन हैं, जो कि भारत से मिले हुए हैं। गिल ने सवाल किया कि क्या एक पाकिस्तानी ट्रेडर भारतीय प्रधानमंत्री मोदी से मिलेगा? इसके जवाब में उन्होंने खुद ही दावा करते हुए कहा है कि लेकिन नवाज़ शरीफ ने मुल्क के प्रधानमंत्री के ज़िम्मेदार औहदे पर रहते हुए नेपाल की राजधानी काठमांडू में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुपचुप मुलाकात की थी। गिल का दावा है कि तब नवाज़ शरीफ ने इसकी जानकारी विदेश मंत्रालय (पाकिस्तान के गृह मंत्रालय) तक को नहीं दी।
अगर इस बात पर गौर करें, तो साफ पता चलता है कि इमरान खान भी पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्रियों की तरह ही अपने पूर्व प्रधानमंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई का बहाना ढूँढ रहे हैं। शायद यह पाकिस्तान की एक रीति बन चुकी है कि वहाँ जो भी नया प्रधानमंत्री बनता है, वह अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई के रास्ते तलाश करता है। वही अब हो रहा है। इन दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का अपने पूर्ववर्ती नवाज़ शरीफ पर हमला जारी है। एक पाकिस्तानी अखबार की रिपोर्ट में कहा गया है कि इमरान खान ने अपने पूर्ववर्ती नवाज़ शरीफ और भारत पर मिलीभगत का आरोप लगाकर पाकिस्तान और पाकिस्तानी संस्थाओं को कमज़ोर करने का आरोप लगाया है। इस अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री इमरान खान ने नवाज़ शरीफ पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बोली बोलने का आरोप लगाते हुए, उनके भारत से रिश्ते को बेनकाब करने की बात कही है। अक्टूबर के शुरू में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के कार्यकर्ताओं और प्रवक्ताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि पाकिस्तान में विपक्षी पार्टियों ने मिलकर हमारी सरकार के खिलाफ एक आंदोलन शुरू कर दिया है। इस साज़िश में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी, मुस्लिम लीग (नून) और फज़लुर्रहमान की जमीयत-उल-उलेमा इस्लाम भी शामिल हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि 20 सितंबर को मुल्क की राजधानी इस्लामाबाद में इन सभी पार्टियों ने एक रैली निकाली थी, जिसे नवाज़ शरीफ ने लंदन से सम्बोधित किया था। उन्होंने दावा किया कि इस रैली के बाद इन विपक्षी पार्टियों ने मिलकर पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) का गठन किया है। उन्होंने यह भी कहा कि पहले एक-दूसरे की विरोधी रहीं ये पार्टियाँ इमरान खान के खिलाफ लामबंद हो चुकी हैं। इमरान ने इसके पीछे भारत का हाथ भी बताया। हालाँकि यह आरोप सरासर गलत है; क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब नवाज़ शरीफ से मिले थे, तब वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे और अपने समकक्ष होने के नाते दो देशों में शान्ति समझौते के नाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे मिल सकते थे। सवाल यह है कि अगर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री से कोई रिश्ता रखते, तो वह अब भी नवाज़ शरीफ से मिल सकते थे। पड़ोसी मुल्कों से अच्छे सम्बन्ध रखने की भारत ने हमेशा कोशिश की है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे बखूबी निभाया है। लेकिन किसी देश की सत्ता से अलग हुए लोगों से वह नहीं मिले, चाहे वह व्यक्ति उनका कितना भी करीबी रहा हो। इस बात का एक ठोस उदाहरण भारत और अमेरिका के बीच के सम्बन्धों का है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से अच्छे रिश्ते रहे हैं, वहाँ के राष्ट्रपति पद पर डोनाल्ड ट्रंप की नियुक्ति के बाद वह डोनाल्ड ट्रंप से ही मिले हैं। इससे साफ है कि भारत व्यक्ति विशेष से नहीं, बल्कि राष्ट्रों से अच्छे सम्बन्ध रखने के पक्ष में रहा है और आज भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी परम्परा का पालन कर रहे हैं, जो कि नीति-संगत है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अपने मुल्क के चाहे जिस व्यक्ति, चाहे जिस पार्टी और चाहे जिस गठबंधन पर आरोप लगाएँ; लेकिन भारत पर बिना किसी वजह के आरोप लगाना ठीक नहीं है। बताया जा रहा है कि इमरान खान इसलिए नवाज़ शरीफ को निशाना साध रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अपने भाषण में पाकिस्तानी सेना की आलोचना की थी। इस बात को लेकर इमरान खान ने कहा है कि नवाज़ शरीफ की सेना के खिलाफ भाषण की खुशियाँ भारत में मनायी गयी हैं।
हैरत की बात यह है कि भारत में इन दिनों पाकिस्तान के खिलाफ या उसमें हो रही गतिविधियों को लेकर कोई प्रतिक्रिया ही नहीं हुई है। लेकिन इतने पर भी इमरान खान ने कहा है कि उनकी सरकार पूरी कौम (पाकिस्तानी लोग) एक साथ मिलकर भारतीय साज़िश को नाकाम करेगी। उन्होंने कहा कि जो मुल्क की सेना का दुश्मन है, वह पाकिस्तान का दुश्मन है। उनका इशारा नवाज़ शरीफ की तरफ था। उन्होंने नवाज़ शरीफ को सम्बोधित करते हुए कहा कि यह कैसा इंकलाब है मियाँ साहब कि अपने बच्चों को लंदन में बैठाकर आप पाकिस्तानी अवाम को सडक़ों पर लाना चाहते हैं। इतना ही नहीं पाकिस्तान के केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री गुलाम सरवर खान ने तो नवाज़ शरीफ को एक सज़ायाफ्ता मुजरिम तक कहा।
इमरान की बौखलाहट का असली कारण
पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ हमेशा साज़िशें करता रहा है; लेकिन पाकिस्तान में यह दस्तूर रहा है कि वहाँ के लगभग हर प्रधानमंत्री ने भारत पर ऊल-जुलूल आरोप लगाये हैं। इमरान खान भी चाहें जितना झूठ बोल लें, लेकिन इसके पीछे की बौखलाहट साफ ज़ाहिर करती है कि वह अपने निजी मामले में भारत को क्यों घसीटना चाहते हैं? इसके पीछे तीन बड़ी वजहें हैं- पहली यह है कि भारत ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाले जम्मू-कश्मीर, गिलगित, बाल्टिस्तान आदि पर अपना दावा कर दिया है। दूसरी यह कि भारत ने जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटा दी है, जिससे पाकिस्तान की जम्मू-कश्मीर में सियासत नहीं चल पा रही है। तीसरी भारत सीमा विवाद मामले में चीन से किसी प्रकार से दबने को तैयार नहीं है और उसकी साज़िशों का पर्दाफाश कर रहा है।
भारत को कमज़ोर देखना चाहता है पाक
पाकिस्तान की पहले से ही यह सोच रही है कि वह भारत का मुकाबला स्वयं नहीं कर सकता, लेकिन कैसे भी भारत कमज़ोर पड़े। यही वजह है कि बँटवारे के समय से ही पाकिस्तान भारत के खिलाफ न केवल ज़हर उगलता रहा है, बल्कि आतंकवादियों के द्वारा तो कभी दूसरे तरीकों से हमले की साज़िशें करता रहा है। आज वहाँ के प्रधानमंत्री इमरान खान भी उसी राह पर चल रहे हैं। लेकिन पाकिस्तान हर बार अपने द्वारा बुने साज़िशों के जाल में फँसता रहा है और अन्त में वह जवाब तक नहीं दे सका है।
अफगानिस्तान को अपने पाले में लाना चाहता पाकिस्तान
यह बात सर्वविदित है कि अफगानिस्तान का रिश्ता पाकिस्तान से बहुत अच्छा नहीं रहा है; लेकिन फिलहाल अफगानिस्तान के रिश्ते भारत से अच्छे हैं। पाकिस्तान अफगानिस्तान को अपने पाले में लाने के लिए पुरज़ोर कोशिश कर रहा है। इस बात को समझने के लिए अक्टूबर के पहले हफ्ते अफगानिस्तान शान्ति प्रक्रिया पर नज़र डालना ही काफी होगा। खबर है कि जब अफगानिस्तान सरकार के प्रमुख वार्ताकार अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह पाकिस्तान के दौरे पर पहँुचे, तब पाकिस्तान में उनका ज़ोरदार स्वागत हुआ। प्रधानमंत्री इमरान खान समेत सभी महत्त्वपूर्ण लोगों ने उनसे मुलाकात की। इतना ही नहीं, पाकिस्तान के उनके दौरे को लेकर वहाँ के एक अखबार में पाकिस्तान के एक वरिष्ठ पत्रकार ने संपादकीय भी लिखा। उन्होंने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सम्बन्धों में मधुरता भरने के लिए लिखा कि 9/11 हमलों के बाद पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों में बिगाड़ की वजह अमेरिका ही था। उन्होंने लिखा कि लगभग 20 साल तक अफगानिस्तान को युद्ध की आग में झोंकने और पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान को लड़वाने के बाद अमेरिका ने तालिबान से समझौता कर लिया है।
नहीं बनी बात, तो उठाया जम्मू-कश्मीर का मुद्दा
पाकिस्तान ने इस महीने के शुरू में संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिर से जम्मू और कश्मीर का मुद्दा उठा दिया। हालाँकि भारत ने इस पर पलटवार करते हुए करारा जवाब दिया है। भारत ने कहा कि पिछले 70 साल से भारत पर आतंकी हमले कराते रहने वाले पाकिस्तान का एकमात्र गौरव आतंकवाद है। भारत ने कहा कि इस्लामाबाद ने एक बार फिर झूठ दोहराया और व्यर्थ के आरोप लगाये हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को भारत की ओर से दिये गये एक जवाब में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर को लेकर एकमात्र विवाद बचा है; वह उस हिस्से से सम्बन्धित है, जो अभी भी पाकिस्तान के अवैध कब्ज़े में है। भारत पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के सभी क्षेत्रों को खाली करने का आह्वान करता है।
नवाज़ के खिलाफ जारी नहीं हुआ गिरफ्तारी समन
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की बौखलाहट इन दिनों शायद इसलिए भी बढ़ी हुई है, क्योंकि ब्रिटेन में नवाज़ शरीफ के खिलाफ नॉन-बेलेबल अरेस्ट वॉरंट (गैर-जमानती गिरफ्तारी समन) जारी नहीं किया गया। पाकिस्तान इस समन को जारी करवाने की काफी समय से कोशिशें कर रहा था। ब्रिटेन सरकार ने इस मामले को लेकर पाकिस्तानी अधिकारियों से स्पष्ट कहा है कि वह (ब्रिटेन) पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति से जुड़े मामलों में दखल नहीं दे सकता। बता दें कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री (70 वर्षीय) नवाज़ शरीफ का लंदन में करीब एक साल से इलाज चल रहा है। हालाँकि उनके खिलाफ लाहौर हाईकोर्ट में मुकदमा चल रहा है और कोर्ट ने उन्हें सिर्फ चार हफ्ते के लिए देश से बाहर जाने की इजाज़त दी थी; लेकिन वह उसके बाद पाकिस्तान नहीं लौटे।