हिमाचल में पहली बार यह हुआ है कि सत्ता के केंद्र में शिमला कहीं नहीं। मुख्यमंत्री से लेकर सत्ता पक्ष भाजपा और विपक्ष कांग्रेस दोनों के सत्ता केंद्र इस विधानसभा चुनाव के बाद निचले हिमाचल को हस्तांतरित हो गए हैं। पिछले चार दशक में ऐसा कभी नहीं हुआ। मुख्यमंत्री निचले हिमाचल के मंडी जि़ले से हैं तो हाल ही में कांग्रेस ने अपने विधायक दल का नेता जिन मुकेश अग्निहोत्री को चुना है वे भी निचले हिमाचल के ही ऊना जि़ले से हैं। यही नहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती भी ऊना के ही रहने वाले हैं जबकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू निचले ही हिमाचल में हमीरपुर के रहने वाले हैं।
कांग्रेस के अब तक के सभी तीन मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार, राम लाल और वीरभद्र सिंह ऊपरी हिमाचल के हैं जबकि भाजपा के दोनों मुख्यमंत्री शांता कुमार (काँगड़ा) और प्रेम कुमार धूमल (हमीरपुर) निचले हिमाचल से रहे हैं। सत्ता के अलावा विपक्ष की भूमिका भी निचले हिमाचल में चले जाने से आने वाले सालों में हिमाचल की राजनीति दिलचस्प होगी। वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह पहली बार विधायक बने हैं। कांग्रेस की राजनीति की मुख्य भूमिका में आने में उन्हें अभी बक्त लगेगा। लिहाजा ऊपरी हिमाचल के लिए कांग्रेस में बड़ी भूमिका संभालने वाला कोई नहीं दिखता। भाजपा की राजनीति तो शुरू से ही निचले हिमाचल के इर्द-गिर्द रही है। ऐसे में आने वाले सालों में कांग्रेस की राजनीति भी निचले हिमाचल में चले जाने की पूरी सम्भावना है।
वीरभद्र सिंह को छोड़ दिया जाए तो वर्तमान राजनीति में माकपा के राकेश सिंघा को ही ऊपरी हिमाचल में ताकतवर नेता माना जा सकता है, भले विधानसभा में पार्टी के वे इकलौते विधायक होंगे। जिस हलके से वे जीते हैं वहां से आठ चुनाव जीत चुकीं विद्या स्टोक्स का इस बार नामांकन ही रद्द हो गया था। 90 साल की विद्या वैसे भी अब चुनाव राजनीति से संन्यास की बात कर चुकी हैं। कांग्रेस ही नहीं भाजपा में भी वीरभद्र सिंह के बाद ऊपरी हिमाचल का अब ऐसा कोई नेता नहीं जो उनके कद की बराबरी करता हो। लिहाजा सिंघा के पास मौका है अपने कद को देखते हुए पार्टी का इस क्षेत्र में विस्तार करें।
सत्ता का निचले क्षेत्र में हस्तांतरण होने से कांग्रेस के बीच निचले क्षेत्र से मुख्यमंत्री पद के दावेदारी की जंग शुरू होगी। चूँकि इस इलाके से पहले कभी कांग्रेस ने मुख्यमंत्री नहीं दिया, विधायक दल के नेता चुने गए मुकेश अग्निहोत्री के पास इन पांच सालों में खुद को बेहतर नेता साबित करने का अवसर है। विधायक दल का नेता होने के कारण वही विपक्ष के भी नेता होंगे लिहाजा इस दौरान एक नेता के तौर पर उनकी परीक्षा होगी। यदि वे इसमें सफल रहते हैं तो उनके लिए भविष्य में मुख्यमंत्री बनने की बहुत अधिक सम्भावना रहेगी।
मुकेश को पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का बेहद करीबी माना जाता है लिहाजा सिंह का समर्थन मिलने से उनकी ताकत विधायक दल में मजबूत रहेगी। हां, कांग्रेस संगठन में वीरभद्र सिंह विरोधी सुखविंदर सुक्खू के होने से ज़्यादा सम्भावना यही है कि पार्टी में पहले जैसी स्थिति बनी रहेगी। यानी विधायक दल एक तरफ और पार्टी संगठन एक तरफ। यह देखने वाली बात होगी कि 54 साल के मुकेश अग्निहोत्री संगठन से किस तरह का रिश्ता बना पाते हैं। फिलहाल संगठन के भीतर उनका अपना कोई गुट नहीं है लेकिन तय है कि वीरभद्र सिंह के तमाम समर्थक उनसे ही जुड़ेंगे।
वीरभद्र सिंह आज तक विधायक दल की ताकत के ही बूते कांग्रेस में सरताज रहे हैं। इस समय भी 21 में से 17 विधायक उनके ही समर्थक हैं और अग्निहोत्री को चुने जाने से पहले इन विधायकों ने बाकायदा दस्तखत करके आलाकमान से वीरभद्र सिंह को ही दल का नेता चुने जाने की मांग की थी। लेकिन आलाकमान ने 84 साल के वीरभद्र सिंह की जगह युवा मुकेश को इसलिए तरजीह दी क्योंकि भाजपा ने 73 साल के प्रेम कुमार धूमल की जगह 52 साल के जय राम ठाकुर को भविष्य के हिसाब से मुख्यमंत्री का जिम्मा सौंप दिया था। इसमें दो राय नहीं कि मुकेश को चुने जाने का पक्ष वीरभद्र सिंह ने ही लिया था, यह देखकर कि वे नहीं तो उनका कोई समर्थक ही विधायक दल का नेता बने।
साल 2012 में जब यह लग रहा था कौल सिंह मुख्यमंत्री बनने के करीब पहुँच रहे हैं वीरभद्र सिंह ने पास पलट दिया था। कोई ज़माना था जब कौल सिंह वीरभद्र सिंह के समर्थक थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद उनके तेवर बदले और वे वीरभद्र सिंह विरोधी खेमे में जा खड़े हुए। दरअसल वे वीरभद्र की छाया से बाहर निकलकर प्रदेश अध्यक्ष के नाते अपनी अलग पहचान बनाना चाहते थे, लेकिन वीरभद्र सिंह ने इसे पसंद नहीं किया और कौल सिंह 2012 में कांग्रेस की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री की जगह मंत्री ही बने क्योंकि चुनाव से ऐन पहले वे प्रदेश अध्यक्ष बन गए थे।
ऐसी स्थिति मुकेश के सामने भी आ सकती है। विधायक दल के नेता के नाते वे कुछ नया और अपने हिसाब से करना चाहेंगे। यदि वीरभद्र सिंह इस पर अलग राय रखते हैं और मुकेश को रोकने की कोशिश करते हैं तो मतभेद जैसी स्थिति भी पैदा हो सकती है। हालांकि मुकेश जिस मजबूती से हाल के सालों में वीरभद्र सिंह के साथ खड़े रहे हैं, उससे उनके वीरभद्र सिंह के विरोध की सम्भावना कम ही नजर आती है।
जयराम के सामने चुनौतियाँ
जहाँ तक नई सरकार और नए मुख्यमंत्री की बात है, उनके सामने चुनौतियों की कमी नहीं। इससे भी असुखद स्थिति जाहिर होती है कि मंत्रियों के विभागों का बंटवारा उन्हें आलाकमान के अनुसार करना पड़ा। भाजपा के बीच के लोगों का कहना है कि संघ और भाजपा आलाकमान के पूरे आशीर्वाद के बावजूद विधायकों में असंतोष है। कुछ मंत्री अपने महकमों से खुश नहीं जो मंत्री नहीं बन पाए वे अलग से नाखुश हैं। यह आम चर्चा रही है कि राजीव बिंदल, रमेश धवाला, नरेंद्र ब्रागटा जैसे सीनियर विधायक अपनी नज़रअंदाजी पर परोक्ष में नाराज़गी खुलकर जाहिर करते हैं।
जानकारों के मुताबिक भाजपा की टिकट पर हारे नेता इस बात का विरोध कर रहे हैं कि उनके हलकों में भाजपा का विरोध करके जो उम्मीदवार निर्दलीय जीते हैं उन्हें भाजपा में शामिल न किया जाए। देहरा से हारे वरिष्ठ नेता रविंद्र रवि भी इस तरह का विरोध करने वाले नेताओं में शामिल हैं जिन्हे हलके की भाजपा समिति का पूरा समर्थन है।
भाजपा में अब यह भी चर्चा है कि आलाकमान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बदल सकती है। वर्तमान अध्यक्ष सतपाल सत्ती ऊना सीट से चुनाव हार गए थे। वैसे वे अपेक्षाकृत युवा हैं लेकिन हो सकता है कि संघ इस पद पर अपने किसी व्यक्ति बिठाना चाहे। इस बात की बहुत चर्चा है कि मुख्यमंत्री का चयन भाजपा अध्यक्ष की मजऱ्ी से ज्यादा संघ की मर्जी से हुआ है। यह सही है कि नए मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर की छवि साफ सुथरी है। बड़ा सवाल यह है कि क्या संघ के कन्धों पर सवार होकर वे अपनी चाल चल पाएंगे ?
अनुभव की दृष्टि से जयराम भले प्रेम कुमार धूमल के मुकाबले 19 हों, उनके सामने अफसरशाही को नियंत्रण में रखने की बड़ी चुनौती रहेगी। हरियाणा में संघ से सीधे मुख्य्मंत्री बिठाने का भाजपा का अनुभव उतना अच्छा नहीं रहा है। यह इस बात से साबित हो जाता है कि पिछले तीन साल में दर्जन बार मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को हटाने की चर्चा चल चुकी है। मंत्रियों से लेकर विधायक तक उनकी कार्यप्रणाली पर अपनी नाराज़गी छिपाते नहीं। जय राम के सामने आने वाले महीनों में इस तरह की दिक्कतें आ सकती हैं।
जय राम के सामने एक और बड़ी समस्या है। उन्हें दो पूर्व मुख्यमंत्रियों शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल को भी नाराज़ नहीं होने देना है। शांता की भले अब उतनी पकड़ न रही हो धूमल अभी भी प्रदेश की राजनीति में काफी वजन रखते हैं। साल 2019 के संसदीय चुनाव में प्रदेश में वे मुख्यमंत्री न होने के बावजूद जयराम के मुकाबले भाजपा के लिए ज्यादा मह्त्वपूर्ण रहेंगे। पार्टी और विधायकों पर तो धूमल की पकड़ जयराम और सत्ती के मुकाबले आज भी ज़्यादा है ही, जनता पर भी उनकी मज़बूत पकड़ है। यह बहुत दिलचस्प बात है कि धूमल के चुनाव हारने को लेकर अभी तक आम लोगों में यही धारणा है कि धूमल हारे नहीं थे, उन्हें हरवाया गया था। लोग यह भी खुले आम कहते हैं कि भाजपा ने धूमल को आगे न किया होता तो कांग्रेस की सरकार दुबारा बन गयी होती। जिस तरह जयराम ने मुख्यमंत्री बनने के बाद भी धूमल को महत्व दिया है उसी से जाहिर हो जाता है जयराम भी इस तथ्य को मानते हैं कि धूमल को नाराज़ करना महंगा पड़ सकता है।
इधर धूमल के राजनीतिक भविष्य को लेकर कयासबाजियों का दौर जारी है। मीडिया में उनके प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने से लेकर केंद्र में मंत्री और राज्यपाल बनने की अटकलें लगातार लगती रहती हैं। खुद धूमल बार बार यह कह चुके हैं कि वे किसी पद के पीछे नहीं।
धूमल ने पिछले कुछ दिनों से उन्हें लेकर लगाए जा रहे क्यासों पर विराम लगाने के लिए स्वयं सामने आना ही उचित समझा। धूमल ने कहा है कि कुछ लोग हर रोज कोई न कोई भ्रामक और तथ्यहीन प्रचार करने में जुटे हैं। कभी मुझे राज्यपाल बनाकर तो कभी कुछ और पद देने जैसा प्रचार विभिन्न माध्यमों से करते रहते हैं। धूमल ने कहा कि कुछ पार्टी विचाराधारा के कट्टर विरोधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी एक पवित्र संस्था को चुनावों में मेरे खिलाफ काम करने जैसा दुष-प्रचार करने में जुटे हुए हैं जोकि सर्वदा तथ्यों के विपरीत ही नहीं बल्कि पूरी तरह से निराधार और भ्रामक प्रचार है और पार्टी के खिलाफ जहर उगलने के समान है।
धूमल ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमेशा राष्ट्र को सुदृढ़ और देश को दुनिया के मानचित्र पर शिखर पर देखने के सपने को साकार करने की दिशा में काम करता है। मुझे गर्व है कि संघ का आशीर्वाद तथा सहयोग सदा मुझे मिला है। मैं 1964-65 से भारतीय मजदूर संघ का कार्यकर्ता रहा हूं। धूमल ने कहा कि मुझे पार्टी ने बहुत कुछ दिया है आज मेरे पास जो भी मान-सम्मान है वह सब पार्टी का दिया हुआ है। मैं पार्टी की ओर से दिए गए सम्मान से पूरी तरह से संतुष्ट हूं। उन्होंने कहा है कि इस तरह की भ्रामक बातों से कार्यकर्ताओं और पार्टी समर्थकों ही नहीं जनता के बीच भी गलत सन्देश जाता है। उन्होंने कहा कि वे भाजपा के आम कार्यकर्ता की तरह हैं और इससे संतुष्ट हैं।
अपनी कमियां दूर करेगें : मुकेश
चार बार के विधायक मुकेश अग्निहोत्री पत्रकारिता से राजनीति में आये। उन्होंने अब तक जो चार चुनाव लड़े, वे सभी अच्छे अंतर से जीते। वीरभद्र सिंह के बेहद करीबी माने जाने वाले मुकेश को आक्रामक नेता के तौर पर जाना जाता है और विधानसभा के भीतर भी उन्हें पार्टी का पक्ष मजबूती से रखने वाला नेता माना जाता है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि भाजपा की ही तरह कांग्रेस ने भी अगले 20 साल तक राजनीति कर सकने वाला नेता चुना है। ‘तहलकाÓ ने मुकेश से उनके नेता चुने जाने से लेकर भाजपा और अन्य तमाम मुद्दों पर बातचीत की।
कांग्रेस को इस बार करारी हार झेलनी पड़ी। आपके ख्याल से क्या कारण रहे।
हिमाचल का रिकार्ड रहा है कि यहाँ हर बार सत्ता बदल जाती है। वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने अथाह विकास पिछले पांच साल में किया था। जो कमियां रहीं उन्हें दूर करने की कोशिश करेंगे। पार्टी मजबूत और रचनात्मक विपक्ष की भूमिका के लिए तैयार है। हमारा ध्यान जनता से जुड़े तमाम मुद्दों पर रहेगा और सकारात्मक राजनीति की पूरी कोशिश होगी।
नए मुख्यमंत्री और भाजपा आरोप लगा रहे है कि वीरभद्र सिंह सरकार ने वित्तीय अनुशासन नहीं बरता जिससे हिमाचल पर 45,000 करोड़ रुपये का भारी भरकम कर्ज चढ़ गया है।
हिमाचल के पास आय के बहुत सीमित संसाधन हैं। भाजपा और नए मुख्यमंत्री दोनों यह जानते हैँ। जब वे पिछली सरकार पर आरोप लगाते हैं तो यह भूल जाते हैं कि 2012 में जब वीरभद्र सिंह ने भाजपा से सरकार का जिम्मा संभाला था तो प्रदेश पर 30,000 करोड़ का भारी कर्ज था। मुझे लगता है कि प्रदेश को अपने संसाधन बढ़ाने होंगे। यहाँ दूसरे प्रदेशों के मुकाबले सरकारी कर्मचारी ज्यादा हैं क्योंकि निजी क्षेत्र छोटा है। कांग्रेस सरकार और बतौर उद्योग मंत्री मैंने निजी क्षेत्र के विकास की काफी कोशिश की और इसके परिणाम स्वरुप निवेश भी अच्छी मात्रा में आया जिससे यहाँ के युवाओं को रोजगार के ज्यादा अवसर मिले।
आप कांग्रेस विधायक दल के नेता चुने गए। क्या रणनीति रहेगी आपकी। वीरभद्र सिंह जैसे वरिष्ठ नेता की मौजूदगी में क्या आप स्वतंत्रता से काम कर पाएंगे।
मैं कांग्रेस आलाकमान का मुझ पर भरोसा जताने के लिए आभार करता हूँ। हमारे पास विधानसभा में 21 की संख्या है और आम जनता से जुड़े मुद्दों के लिए हम विधानसभा के भीतर और बाहर पूरी ताकत से लड़ेंगे। संगठन और विधायक दल की ताकत मिलकर एक मजबूत विपक्ष से भाजपा सरकार का सामना रहेगा। भाजपा की क्षेत्रवाद और धर्म-जातिवाद पर आधारित राजनीति की कांग्रेस हमेशा विरोधी रही है और राहुल गाँधी के युवा नेतृत्व में देश और प्रदेश में विकास, किसान, महिला और युवा आधारित राजनीति हम पूरी ताकत से करते रहेंगे। वीरभद्र सिंह प्रदेश में कांग्रेस की हमेशा सबसे बड़ी ताकत रहे हैं। वे प्रदेश के सबसे अनुभवी नेता हैं। छह बार मुख्यमंत्री रहे हैं लिहाजा उनका मार्गदर्शन तो हमारी सबसे बड़ी ताकत है। मेरा सौभाग्य है कि राजनीति में हमेशा उनका आशीर्वाद मुझ पर रहा है। सरकार के रवैये के अनुरूप ही विपक्ष जवाब देगा। विकास और सेवा के एजेंडे पर सरकार को हरसंभव सहयोग पार्टी देगी। हाँ, अगर कांग्रेसी नेता, कार्यकर्ता या आम लोगों के खिलाफ प्रतिशोध भावना से सरकार काम करेगी तो कांग्रेस उसका मुंहतोड़ जवाब देगी।
यह माना जाता है कि प्रदेश कांग्रेस संगठन और विधायक दल में हमेशा खाई बनी रही है। आप इसे कैसे पाटेंगे। दूसरा विधायक दल के नेता के नाते आपके तात्कालिक क्या लक्ष्य हैँ।
ऐसी कोइ खाई है ही नहीं। संगठन और विधायक दल एक इकाई हैं। राहुल गांधी के नेतृत्व में 2019 में केंद्र में कांग्रेस सरकार बनाना हमारा सबसे बड़ा लक्ष्य है। इस समय चारों सीटें भाजपा के पास हैं। हम जनता से जुड़े मुद्दे पूरी ताकत से उठाकर दुबारा उसका भरोसा जीतने के लिए जी जान लड़ा देंगे ताकि 2019 में भाजपा से यह सीटें छीन सकें।
किसानों -मज़दूरों के लिए लड़ते रहेंगे: सिंघा
माकपा भले एक ही सीट विधानसभा में जीत पाई लेकिन राकेश सिंघा की जीत ने उसमें एक नई ताकत फूंक दी है। विधायक बनाने के बाद से सिंघा बहुत सक्रिय दिखने लगे हैं। माकपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी को प्रदेश में नए सिरे से ताकत देने की कोशिश शुरू हो गयी है। सिंघा तेज तर्रार नेता माने जाते हैं और यदि पार्टी संगठन के स्तर पर कोशिश करें तो प्रदेश की आध दर्जन सीटों पर खुद को मजबूत करने की स्थिति में बन सकती है। चुनाव जीतने के बाद सिंघा ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कुल्लू में दसवें दो दिवसीय जिला सम्मेलन में शिरकत की जिससे आभास मिलता है कि वे संगठन को ज्यादा सक्रिय करने की कोशिश में हैं। वे इस समय माकपा के राज्य सचिवालय के भी सदस्य हैं।
‘तहलकाÓ से बातचीत में सिंघा ने पार्टी की रणनीति के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में जनता की मूलभूत सुविधाओं शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, बिजली का निजीकरण किया गया है, जिससे जनता पर महंगी शिक्षा, महंगे इलाज और महंगी बिजली-पानी का बोझ बढ़ गया है। किसानों की ज़मीन से बेदखली ज्यादातर गरीब और दलित किसान परिवारों को कानून को ताक पर रखकर की जा रही है। सांप्रदायिक हमलों को रोकने के लिए जनता को जागरूक करना होगा। उन्होंने आश्वासन दिया कि कुल्लू की जनता की समस्याओं को भी विधानसभा में उठाएंगे। सिंघा ने कहा कि देश में जब से भाजपा की सरकार आई है, तब से अल्पसंख्यकों, दलितों पर हमले बढ़े हैं।
केंद्र सरकार आरएसएस के हिन्दुत्व के एजेंडे को लागू कर रही है। गौ रक्षक दल रोजमर्रा मजबूर लोगों पर हमले कर रहे हैं। देश में साम्प्रदायिकता फैलाई जा रही है। दूसरी तरफ जनता के ऊपर महंगाई का बोझ लगातार बढ़ रहा है। बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। उन्होंने कहा कम्युनिस्ट पार्टी को सरकार की जनता विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन को तेज करने की ज़रूरत है। कुल्लू के दो दिवसीय सम्मेलन में पार्टी के वरिष्ठ नेता ओंकार शाद ने भी भाग लिया। सम्मेलन में बढ़ती महंगाई, ज़मीन को नियमित करने श्रम कानूनों में संशोधन के खिलाफ, दलित व महिलाओं के उत्पीडऩ के खिलाफ, शिक्षा के साम्प्रदायिकरण व व्यापारीकरण के खिलाफ प्रस्ताव परित किए गए। सिंघा ने प्रदेश में किसानों पर गहराते कृषि संकट और उसके प्रभाव पर भी गहरी चिंता जताई है। सिंघा ने कहा कि जो किसान फल और सब्जियों का उत्पादन करते हैं वह इस संकट से पूरी तरह प्रभावित हैं। राज्य और केंद्र की सरकारें इस संकट का समाधान करने के बजाय ऐसी नीतियां लागू कर रही हैं, जिससे यह संकट और भी गहरा हो रहा है। जीएसटी लागू करने और पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि ने राज्य के किसानों की रीढ़ तोड़ दी है। कहा कि पार्टी चुनाव से पहले स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने की बात करने वाले प्रधानमंत्री की ओर से अभी तक रिपोर्ट को लागू न करने की निंदा करती है। प्रधानमंत्री को अब बताना चाहिए कि उन्होंने चुनावों के दौरान सेब पर आयात शुल्क घटाने का वादा किया था, अब उसे क्यों नहीं पूरा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सीपीआई (एम) का मानना है कि केंद्र और राज्य सरकारें प्रदेश में बढ़ रही सेब आर्थिकी का गला घोंट रही हैं। भविष्य में इन नीतियों की वजह से आर्थिकी में गिरावट की संभावना है। उन्होंने कहा कि आढ़ती एपीएमसी से सांठगांठ कर कृषि और बागवानी उत्पाद विपणन कानून 2005 की सरेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं। किसानों से तय मजदूरी के स्थान पर ओवर चार्ज किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू नहीं किया गया तो प्रदेश भर में प्रदर्शन किए जाएंगे। सिंघा ने कहा कि एक अनुमानित सर्वे के अनुसार राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न फसलों के उत्पादन की लागत में 22 से 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सरकारों की वैकल्पिक साधनों के निर्माण में असफलता के कारण किसानों को परिवहन के जरिये अपने उत्पादों को बाजार में पहुंचाना पड़ता है जो पूरी तरह डीजल पर निर्भर है। पार्टी को लेकर उन्होंने कहा कि जनता का पार्टी पर भरोसा है यह चुनाव नतीजे से जाहिर हो जाता है। सिंघा ने कहा कि माकपा लोगों के मुद्दों को राजनीति से ज्यादा तरजीह देती है। हमने कभी राजनीति के लिए लोगों के मुद्दे नहीं छोड़े। हम जनता के लिए लडऩे में विश्वास रखते हैं। पिछले सालों में जब विधानसभा में हमारा कोई प्रतिनिधित्व नहीं था हमने ही तमाम राजनितिक दलों के मुकाबले जनता के मुद्दों की लड़ाई लड़ी। किसानों के मुद्दों हों, मजदूरों के मुद्दे हों या गुडिय़ा से दुष्कर्म और हत्या का मुद्दा हो। हम सदा लड़ाई लड़ते रहे हैं और लड़ते रहेंगे।
प्रदेश में आर्थिक संकट
विशेष संवाददाता
आने वाले दिनों में प्रदेश गंभीर आर्थिक संकट में घिर सकता है यदि केंद्र इसकी मदद को आगे नहीं आता है। प्रदेश पर 45,000 करोड़ से ज्यादा के कर्ज के अलावा खराब आर्थिक स्थिति की हालत इस बात से समझी जा सकती है कि पिछले दो माह में कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने के लिए भी कर्ज लेना पड़ा है। मेडिकल कालेज, मण्डी में नर्सों को समय पर वेतन का भुगतान करवाने के लिये प्रदेश हाई कोर्ट से आदेश करवाने पड़े । सामाजिक सुरक्षा पैंन्शन का भुगतान भी समय पर करने के लिए प्रदेश उच्च न्यायालय को ही दखल देना पड़ा। इस तथ्य को मुख्यमंत्री जयराम ने स्वीकार किया है। उन्होंने कबूल किया है कि उनके सामने आर्थिक संकट समेत कई चुनौतियां हैं। इन चुनौतियों से पार पाते हुए उनकी सरकार आगे बढ़ेगी और राज्य में विकास के नए आयाम स्थापित करेगी। उन्होंने कहा कि राज्य के आर्थिक संकट से कैसे निपटना है। इसका पूरा प्लान बनाया जा रहा है और केंद्र सरकार से भी उदार वित्तीय मदद मांगी जाएगी और बेल आउट पैकेज की कोशिश की जाएगी।
भारत सरकार के वित्त विभाग ने 27 मार्च, 2017 को प्रदेश के वित्त सचिव के नाम भेजे पत्र में स्पष्ट कहा था कि राज्य सरकार वर्ष 2016-17 में केवल 3540 करोड़ का ही कर्ज़ ले सकती है। बजट दस्तावेजों के मुताबिक 31 मार्च 2015 को कुल कर्जभार 35151.50 करोड़ था और उसके बाद 2015-16, 2016-17 और 2017-2018 में बजट आंकड़ो के मुताबिक यह कर्ज 15 हजार करोड़ के करीब लिया गया और 31 मार्च 2018 को निश्चित रूप से यह आंकड़ा 50 हजार करोड़ से ऊपर हो जाएगा। जबकि दूसरी ओर से प्रतिवर्ष सरकार की टैक्स और गैर टैक्स आय में कमी होती जा रही है। वर्ष 2012-13 में प्रदेश की गैर कर आय कुल राजस्व का 46.28 फीसद थी जो कि 2016-17 में घटकर 41.95 फीसद रह गयी है। इसी तरह से 2012-13 में करों से आए कुल राजस्व का 5.68फीसद थी जो कि 2016- 17 में घटकर 4.59: रह गई है। यह सारे आंकड़े विधानसभा में प्रस्तुत बजट दस्तावेजों में दर्ज है।
जयराम ने कहा कि राज्य पर इस समय 46,500 करोड़ रुपए का कर्ज है और इससे पार पाना चुनौती है। इसके लिए वे अपने दिल्ली दौरे में पीएम नरेंद्र मोदी से चर्चा कर चुके हैं। उन्होंने इसके लिए विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा है। उन्होंने इस संबंध में केंद्रीय वित्त मंत्री से भी बात की है और वहां से पूरी मदद का आश्वासन मिला है। उन्होंने कहा कि इसके बारे में वित्त विभाग से विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने को कहा है। उनका कहना था कि राज्य की लोन की सीमा भी पूरी हो गई है और ऐसे में स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि विकास किसी भी तरह के प्रभावित नहीं होगा।
जयराम ठाकुर ने कहा कि पूर्व कांग्रेस सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में राजनीतिक लाभ के लिए कई घोषणाएं की और शिलान्यास किए। आलम यह था कि एक साथ सौ-सौ शिलान्यास किए गए। इससे वित्तीय हालात खराब हुए। इसके अलावा कई तैनातियां गैर ज़रूरी की गई थी। उनका कहना था कि इससे राज्य की वित्तीय स्थिति तहस-नहस हुई थी। अब सत्ता परिवर्तन के बाद वह दौर निकल चुका है। उन्होंने कहा कि राज्य की नई सरकार केंद्र से विशेष पैकेज की मांग करेगी और वहां अधिक से अधिक प्रोजेक्ट भेजेंगे। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक फेरबदल की प्रक्रिया जारी है और यह नई सरकार के गठन के बाद ज़रूरी भी था।
ठाकुर ने कहा कि धर्मशाला में विधानसभा अब भावनात्मक रूप से जुड़ गई है और उनकी सरकार हर भावना का सम्मान करती है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने इसे जिस लाभ के लिए खोला था, उसे उसका लाभ नहीं मिला। उनका कहना था कि जब कांग्रेस सरकार ने धर्मशाला में विधानसभा का सत्र करवाने का ऐलान किया था तो वह चुनाव हार गई थी। उन्होंने कहा कि पहले भी राज्य को विशेष औद्योगिक पैकेज मिला था। उनका कहना था कि राज्य में पर्यटन विकास की अपार संभावनाएं हैं और धार्मिक और एडवेंचर टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि कैबिनेट की हर बैठक में एक-एक, दो-दो विभागों की प्रेजेंटेशन दी जाएगी। इसके माध्यम से मंत्री जान पाएंगे कि उनके विभागों का कामकाज कैसा है उसमें क्या-क्या किया जाता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए सभी विभागों को आदेश दे दिए गए हैं। एनजीटी के शिमला को लेकर आए आदेश के मद्देनजर सरकार विधि विभाग कि राय ले रही है उसके मुताबिक आगे काम किया जाएगा।