नौ जुलाई. दोपहर से थोड़ा पहले का वक्त. बिहार के बोधगया में हुए धमाकों के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे वहां का दौरा कर चुके हैं. हम दरभंगा से करीब 20 किलोमीटर दूर बाढ़ समैला गांव पहुंचे हैं. संकरी, ऊबड़-खाबड़ और पानी से भरी सड़क पार करते हुए. करीब 500 घरों की बसाहट वाली बस्ती है समैला पोखर, लेकिन माहौल में एक अजीब सन्नाटा पसरा है. घरों से झांकते लोगों की शंका भरी निगाहों से गुजरते हुए हम सीधे जमील अख्तर के दरवाजे तक पहुंचते हैं. शुरुआती परिचय के बाद पेशे से मदरसा शिक्षक जमील से आगे कुछ पूछें कि उसके पहले ही वे अपनी सुनाने लगते हैं. वे जो कहते हैं उसका भाव कुछ यह होता है, ‘अभी तो चार दिन से बोधगया विस्फोट की खबरें छाई हुई हैं. सूत्रों के हवाले से रोज नए निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं कि यह माओवादियों का कारनामा है, मंदिर प्रबंधन की आंतरिक लड़ाई का नतीजा है, बर्मा में चल रहे बौद्धों-मुसलमानों के टकराव का परिणाम है और यह भी कि इंडियन मुजाहिदीन का कारनामा है. लेकिन तय मानिए जब बोधगया, पटना और दिल्ली में अनुमानों का युद्ध खत्म हो जाएगा, बड़े नेताओं की वहां आवाजाही और बयान रुक जाएंगे तो हमारे गांव में अनजान चेहरों का आना शुरू होगा, हमारे गांव की चर्चा होगी और फिर कोई न कोई यहां से उठाकर ले जाया जाएगा.’
हम जमील से इसकी वजह पूछते हैं. जानने की कोशिश करते हैं कि क्यों पिछले कुछ साल से उनके गांव बाढ़ समैला, उनके जिले दरभंगा और इसके आस-पास के इलाके में देश भर की पुलिस पहुंचने लगी है, लोगों को उठाकर ले जाने लगी है, और पिछले कुछ समय के दौरान देश भर में हुए आतंकी धमाकों से उनका कनेक्शन जुड़ रहा है. क्यों गांव में यह डर पसरा हुआ है कि बोधगया में कुछ हुआ है तो उसकी गाज आज नहीं तो कल यहां गिर सकती है? जमील कहते हैं, ‘वजह हम लोग जानते तो बता नहीं देते. यह तो वे ही बताएंगे.’ वे आगे जोड़ते हैं, ‘इंडियन मुजाहिदीन का जो अटकल-भटकल है, उसे तो पकड़ नहीं पा रहे तो क्या करेंगे, किसी न किसी को तो पकड़ते ही रहेंगे न!’
जमील की गोद में एक छोटा बच्चा है जो उनके भाई कफील अख्तर का है. दरभंगा के एक स्कूल में पढ़ाने वाले कफील को फरवरी, 2012 की एक सुबह कर्नाटक पुलिस पकड़कर ले गई थी. जमील बताते हैं, ‘सुबह-सुबह तीन-चार लोग दरवाजे पर आकर खड़े हुए. अब्बा ने पूछा कि क्या है तो उनका जवाब था कि वे लोग टावर लगाने वाले हैं. बात हो ही रही थी कि इसी बीच दो लोग सीधे घर में घुसकर कफील के बेडरूम में पहुंच गए जहां वह अपनी पत्नी के साथ था और फिर उसे पकड़कर यह कहते हुए ले गए कि बस दो-चार घंटे में छोड़ देंगे. जाते-जाते एक नंबर दिया था उन्होंने. जब उस पर कॉल किया तो बताया गया कि अभी तो वे दरभंगा में हैं और कफील को रांची ले जा रहे हैं, फिर बेंगलुरु ले जाने का पता चला और उसके बाद एनआईए के हवाले कर देने की खबर आई.’ कफील पर चार्जशीट हो चुकी है, लेकिन जमील को साफ-साफ पता नहीं है कि किस मामले में.
जमील से बातें करने के बाद हम थोड़ी ही दूर जफीस सिद्दीकी के घर पहुंचते हैं. जफीस कतील सिद्दीकी के पिता हैं. कतील की पिछले महीने यरवदा जेल में हत्या हो गई थी. कतील की मां गुलशन आरा रोते हुए कहती हैं, ‘हमारे बेटे को यह कहकर उठाया गया था कि वह नकली नोटों का कारोबार करता है.
अगर मेरा बेटा नकली नोटों का कारोबार करता तो हमारा घर इस हाल में होता? हम साल-दर-साल खेत बेचकर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई करवाते?’ जफीस सिद्दीकी कहते हैं, ‘हमारा बेटा आतंकवादी था, जाली नोटों का कारोबारी था या कुछ और, यह तो वही लोग बताते हैं लेकिन उसके मरने के बाद एक पिता के तौर पर मुझे उसकी मौत की खबर पाने का तो अधिकार था, लेकिन अब तक सरकार या प्रशासन की ओर से आधिकारिक सूचना नहीं दी गई है. पुणे से हम उसकी लाश भी अपने खर्च से लेकर आए. पैसा नहीं था तो लोगों ने चंदा किया.’
जफीस के कुछ सवाल हैं. वे कहते हैं, ‘पुलिस यह तो बताए कि जब मेरे बेटे को 19 नवंबर, 2011 को उठाया गया था तो फिर यह क्यों बताया गया कि उसे 23 नवंबर को दो लाख रुपये के नकली नोट और नौ पिस्टल के साथ पकड़ा गया है. उसे छह जून, 2012 को दिल्ली के कोर्ट में पेश किया जाना था तो क्यों नहीं ले जाया गया, क्यों उसे यरवदा जेल में ही रोके रखा गया और आठ जून को उसकी हत्या कैसे हो गई?’ वे आगे जोड़ते हैं, ‘हमें तो बाद में किसी ने यह भी कहा कि मेरे बेटे ने 2003 में अपनी बेटी के इलाज के लिए किसी से एक लाख रुपये बतौर कर्ज लिए थे, उस चक्कर में भी उसकी दुश्मनी हुई होगी. हमारे बेटे की शादी ही 2005 में हुई तो 2003 में उसकी बेटी कहां से आ गई? हम बेटा खो चुके हैं. कहां-कहां कहें अपनी बात?’
जफीस से मिलने के बाद हम मोहम्मद फसीह के घरवालों से मिलने जाते हैं. संदेश भिजवाने पर फसीह के डॉक्टर पिता विनम्रता से बातचीत के लिए मना कर देते हैं. इस संदर्भ में मोहम्मद फसीह का नाम न सिर्फ बाढ़ समैला बल्कि पूरे इलाके में सबसे अधिक चर्चित हुआ है. पिछले साल फसीह को सऊदी अरब से प्रत्यर्पण करवाकर भारत लाया गया है. फसीह को इंडियन मुजाहिदीन के संस्थापक यासीन भटकल का खास आदमी और इंडियन मुजाहिदीन के संस्थापकों में से एक बताया जाता है. फसीह की पत्नी निखत परवीन फोन पर बताती हैं, ‘मुझे तो अब तक कुछ पता ही नहीं चल रहा है. मैंने तो डीजीपी से लेकर सरकार तक से संपर्क किया. डीजीपी कह रहे हैं कि उन्हें कुछ पता नहीं. नीतीश कुमार सिर्फ इतना कह रहे हैं कि गलत है. लालू या उनकी पार्टी वोट बैंक के लिए ही सही, कम से कम बोल तो रहे हैं लेकिन नीतीश तो बोल तक नहीं रहे.’
बाढ़ समैला में लंबे समय तक रुकने और इस दौरान कई लोगों से बात करने के बाद हम दरभंगा लौट आते हैं. वहीं इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं कि जिस इलाके की पहचान अलग-अलग समय में अलग-अलग विभूतियों की वजह से रही वह क्यों हालिया वर्षों में आतंक के गढ़ के रूप में जाना जाने लगा है. क्यों सिर्फ पिछले तीन साल में देश से जिन 14 आतंकियों को पकड़ा गया है उनमें अधिकांश इसी जिले के या पास के मधुबनी जिले के हैं?
[box]‘जो दोषी हो उसे कठोर सजा दें, लेकिन पूरे इलाके को तो बदनाम न करें. फिर तो इलाके में मुसलमान होना और मुसलमानों का रहना ही गुनाह हो जाएगा!’[/box]
दरभंगा में कोई इस पर खुलकर बात करने को तैयार नहीं होता. कुछ लोग एक-एक कर बताते हैं कि कैसे 23 नवंबर, 2011 को सबसे पहले मधुबनी के सकरी गांव से कयूर जमाली को दिल्ली पुलिस के स्पेशल ब्रांच ने पकड़ा था और उसके बाद से यह सिलसिला ही चल निकला. बाद में बाढ़ समैला के कतील सिद्दीकी को पकड़ा गया और फिर वहीं के गौहर अजीज खुमैनी को. इसके बाद जिले के ही चकजोहरा गांव के अब्दुल रहमान और फिर देवराबंधौली गांव के नकी और नदीम को पुलिस ने गिरफ्तार किया. फिर मधुबनी जिले में बलहा के मोहम्मद कमाल, उसके बाद दरभंगा शहर में ही 55 वर्षीय साइकिल मिस्त्री मोहम्मद कफील, फिर दरभंगा के रजौरा से अब्दुल्ला दिलकश और बाढ़ समैला से कफील अख्तर की गिरफ्तारी हुई. इसी दौरान सऊदी अरब से फसी महमूद को भारत लाया गया.
इनमें से ज्यादातर गरीब घरों के नौजवान हैं सो एक वर्ग आशंका जता रहा है कि उनका बहकना आसान रहा होगा, लेकिन कुछ गिरफ्तारियों पर सवाल उठ रहे हैं. एक तो 55 वर्षीय साइकिल मिस्त्री मोहम्मद कफील की ही है. कफील ने ही कथित रूप से इंडियन मुजाहिदीन के संस्थापक यासीन भटकल को दरभंगा में पनाह दी थी जो डॉ इमरान के नाम से दरभंगा में रहते हुए हकीम बनकर अपने नेटवर्क का विस्तार कर रहा था. स्थानीय पत्रकार और इलाके की गहरी समझ रखने वाले विजय पूछते हैं, ‘जब करोड़पति और सऊदी अरब में रहने वाला फसी महमूद भटकल का दायां हाथ माना जा रहा है और वह संस्थापकों में से एक था तो भला भटकल को एक साइकिल वाले के सौजन्य से गंदी बस्ती में रहने की जरूरत क्या थी? वह बाढ़ समैला गांव में मजे से रहकर भी अपना काम कर सकता था! चलिए, मान लिया कि पकड़े गये सारे आतंकवादी ही साबित होंगे लेकिन अपने देश में एक विदेशी आतंकवादी कसाब के पकड़े जाने पर सरकार मुकदमा लड़ने से लेकर तमाम तरह के इंतजाम करती है तो इस इलाके के जो नौजवान पकड़कर ले जाए जाते रहे हैं उनका मुकदमा कैसे लड़ा जा रहा है, कौन लड़ रहा है और लड़ने के लिए पैसे कहां से आएंगे, इस पर किसी नेता ने कभी बात ही नहीं की!’
विजय के ये सवाल सही हैं लेकिन हम उनसे दूसरा सवाल करते हैं कि एकबारगी से तो ऐसा नहीं हुआ होगा कि देश भर से पुलिस यहां पहुंचने लगी और एक के बाद एक नौजवानों को उठाकर ले जाने लगी. इसकी आहट पहले भी तो सुनाई पड़ी होगी. इस बार जवाब सामाजिक कार्यकर्ता शकील सल्फी देते हैं. वे कहते हैं, ‘करीब एक दशक पहले फजलूर रहमान नामक एक आदमी पकड़ा गया था. उसका केस अभी भी दरभंगा की अदालत में चल रहा है. उस पर एक व्यवसायी के बेटे के अपहरण का मामला था. बाद में उसका कनेक्शन दाऊद इब्राहिम ग्रुप से बताया गया था. फिर यह भी कहा गया कि बॉलीवुड में भी उसके कारनामे रहे हैं. बहरहाल, बात आई-गई हो गई थी. 2009 में मधुबनी से उमैर मदनी को पकड़ा गया. तब इंडियन मुजाहिदीन नामक संस्था का नाम ताजातरीन था. फिर दो साल शांति रही, लेकिन 2011 के आखिर से तो जो सिलसिला शुरू हुआ उससे इस इलाके की पहचान ही बदल गई. कोई आतंक का दरभंगा मॉड्यूल कहने लगा तो कोई आतंकवादियों की नर्सरी.’ शकील कहते हैं, ‘जो दोषी हो, उसे सजा दें, कठोर सजा दें, लेकिन पूरे इलाके को तो बदनाम न करें. फिर तो इस इलाके में मुसलमान होना और मुसलमानों का रहना ही गुनाह हो जाएगा!’
शकील जो कहते हैं वह होना शुरू भी हो चुका है. दरभंगा के सल्फी मदरसा में मिले एहतेशाम कहते हैं, ‘दिल्ली में हमारे साथियों को हॉस्टल, लॉज और कमरा तक मिलने में परेशानी हो रही है. यहां के जो बच्चे पहले से कहीं पढ़ रहे हैं, उन्हें संदेह के नजरिये से देखा जा रहा है.’ दूसरे लोग यह भी कहते हैं कि अभी से ही इलाके में शादी-ब्याह करने में लोग सोचने लगे हैं और आने वाले दिनों में मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं.
तमाम दलों के नेताओं ने बाढ़ समैला जैसे गांवों का दौरा तो किया है लेकिन रस्मी तौर पर. दरभंगा और मधुबनी का संसदीय क्षेत्र फिलहाल भाजपा के खाते में है और पास का समस्तीपुर संसदीय क्षेत्र जदयू के हवाले. इन दोनों दलों के लिए यह कभी मसला नहीं रहा. लालू प्रसाद इस मसले को हमेशा उठाते रहे हैं लेकिन एक सीमा के बाद उनका बोलना भी रस्मी लगता है. राजद के ही गुलाम गौस जैसे नेता कुछ ज्यादा सक्रिय दिखे लेकिन उनकी भी एक सीमा रही. कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ शकील अहमद भी पास के ही इलाके से आते हैं, वे भी इधर आए लेकिन गोल-मोल बातों के अलावा कुछ न कर सके. मुसलमानों को सबसे नाराजगी है लेकिन सबसे ज्यादा नाराजगी इस बात से है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुछ क्यों नहीं बोलते, इलाका बदनाम हो रहा है.
एक वर्ग से यह सवाल भी उठ रहा है कि आग लगी तो धुआं उठा या धुआं उठाकर आग होने के संकेत दिए जाते रहे हैं. और यह भी कि आखिर कोई राज्य क्यों ऐसी छूट दिए हुए है कि दरभंगा-मधुबनी इलाके में किसी राज्य की पुलिस पहुंचे और किसी को उठाकर ले जाए. कुछ समय पहले पुलिस महानिदेशक अभयानंद ने इस पर जवाब दिया था, ‘हमें बताकर किसी राज्य के पुलिसवाले आएं, तब तो हम बताएं कि असल माजरा क्या है.’ दरभंगा के एक पुलिस अधिकारी कहते हैं, ‘यह धुआं ऐसे ही नहीं उठा है, आग लगी थी. कुछ और गिरफ्तारियां होंगी तो आजमगढ़ की तरह कमर टूट जाएगी. लोग ही तंग होकर तौबा करने लगेंगे तो फिर आतंकी संगठन इधर नजर नहीं उठा सकेंगे.’ यह सुनकर हमें बाढ़ समैला के जमील की बात याद आती है जिनका कहना था कि बोधगया में कोई सुराग नहीं मिलेगा तो लकीर पीटने के लिए इधर ही आवाजाही बढ़ेगी.
हमारे यहां से निकलते-निकलते खबरें आने लगी हैं कि बोधगया बम कांड के तार इंडियन मुजाहिदीन और दरभंगा से जुड़ने के संकेत मिल रहे हैं. खुफिया विभाग ने दरभंगा, मधुबनी इलाके पर नजर रखने को कहा है ताकि उधर से कोई नेपाल न निकल जाए. शकील सल्फी कहते हैं, ‘नेपाल के पास होना भी एक बड़ा गुनाह ही है इस इलाके के मुसलमानों के लिए.’