शरद पवार को एक राजनीतिज्ञ के तौर पर आप किस तरह देखते हैं?
एक राजनीतिज्ञ के तौर पर शरद पवार 24 घंटे डेवलपमेंट के बारे में सोचते रहते हैं। एग्रीकल्चर सेक्टर के प्रति वह समर्पित हैं। जब वह देश के कृषि मंत्री थे, उस वक्त उन्होंने क्रांतिकारी कदम उठाये थे। जिसकी वजह से देश की तस्वीर एक कृषि प्रधान देश के तौर पर मुकम्मल हुई। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसानों को उनकी लागत से अधिक मूल्य मिलना चाहिए। उनका मानना है कि किसानों को पारम्परिक कृषि के अलावा अन्य पर्याय, जैसे- हार्टिकल्चर, फ्लोरिकल्चर, हसबेंडरी, डेयरी आदि विकल्पों पर काम करना चाहिए, ताकि उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो।
जैविक तंत्र ज्ञान, जेनेटिकली मॉडिफाइड बीज, कृषि का आधुनिकीकरण उनकी सोच का नतीजा है। आपको याद होगा जब वह डिफेंस मिनिस्टर थे, उस वक्त पहली दफा डिफेंस में महिलाओं को प्रवेश मिला था। हालाँकि महिलाओं के डिफेंस में एंट्री को लेकर काफी विरोध हुआ था। लेकिन वह महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर बिलकुल दृढ़ निश्चय है।
पारिवारिक-व्यक्ति के तौर पर किस तरह के इंसान शरद?
राजनीति उन्हें विरासत में मिली है। राजनीति को एक मिशन के तौर पर एक समाज सेवा के तौर पर समाज की भलाई देश की भलाई के तौर पर ही देखते हैं।
रही परिवार की बात, तो उनकी अपनी एक बेटी है। अपनी पुत्री को ही पुत्र मानते हैं। उनकी सोच समाज के रूढि़वादी और दकियानूसी विचारधाराओं के िखलाफ खुली और प्रगतिशील है।
अपने भाइयों के परिवार को भी पवार अपना ही परिवार मानते हैं। पिछले दो-तीन दशक से, जो मैं देख रहा हूँ, उनके लिए उनके परिवार का मतलब सिर्फ मैं और मेरी बेटी नहीं है। उनके लिए उनके भाई का परिवार भी उनका ही परिवार है। उनके बच्चे, नाती, पोते भी उनके अपने ही हैं। पवार पवार के लिए उनके परिवार के साथ-साथ समाज, उनके कार्यकर्ता, पार्टी सब उनके परिवार का ही हिस्सा है। वसुधैव कुटुंबकम की पर उनका पूर्ण विश्वास है।
शरद पवार की भूमिका को लेकर हमेशा से लोगों में अविश्वास की भावना बनी रहती है ऐसा क्यों?
उन पर विश्वास न करने की बात उनके राजनीतिक विरोधियों द्वारा फैलायी गयी सोची-समझी सा•िाश का हिस्सा है। अगर बात अविश्वास की होती, तो महाराष्ट्र में नयी सरकार बनती। उनके सभी राजनीतिक दलों से अच्छे सम्बन्ध है। वह प्रधानमंत्री मोदी से जिस शाइस्तगी से बात करते हैं, उसी शाइस्तगी से सोनिया जी और ममता बनर्जी से भी। मतभेद, वैचारिक मतभेद कभी भी उनके निजी सम्बन्धों पर हावी नहीं रहे।
सभी दलों से, सभी दलों के नेताओं से उनके जो अच्छे सम्बन्ध हैं। उनसे उनका जो मिलना जुलना होता रहता है। उसी को लेकर इस तरह से एक परसेप्शन तैयार किया जा रहा है कि उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। एक उदाहरण देखिए, जब वह दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मिलने गये थे, तब यहाँ तो यह बात फैलने लगी थी कि वह भाजपा के साथ महाराष्ट्र में सरकार बनानेे डील कर रहे हैं; जबकि ऐसा कुछ नहीं था।
जब चुनाव के नतीजे आये तस्वीर कुछ इस तरह थी कि विपक्ष की भूमिका में होंगे एनसीपी व कांग्रेस। लेकिन पुराने समीकरण बनते बिगड़ते चले गये। यह कैसे हुआ
महाराष्ट्र में एक अजीब-सा गड़बड़झाला वाला माहौल था। लेकिन शरद पवार माहौल को एक सधे और सुलझे हुए परिवार के वरिष्ठ सदस्य की भाँति सुलझाने में लगे हुए थे। उन्होंने महसूस किया कि शिवसेना, भाजपा से अलग रहना चाहती है। उन्होंने शिवसेना की इस भावना का सम्मान किया। उन्होंने इस अद्भुत समीकरण को लेकर सोनिया जी से बातचीत की, उन्हें कन्वेंस किया। पहले वह शिवसेना के मुद्दे पर साथ आने के लिए हिचकिचा रही थीं। या कहिए शुरुआती तौर पर उन्होंने स्पष्ट तौर पर शिवसेना के साथ आने से इन्कार कर दिया था; लेकिन बाद में वह राजी हो गयीं। शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के साथ शरद पवार के निजी सम्बन्ध रहे हैं। उद्धव ठाकरे को भी उन्होंने कांग्रेस की विचारधारा किस तरह तालमेल रखा जाए, उसे लेकर उन्होंने उनको कनवेंस किया। उन्हें मुख्यमंत्री के पद के लिए तैयार किया। कॉमन मिनिमम प्रोग्राम की रूपरेखा तय करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। इसमें दो राय नहीं कि महाराष्ट्र में जो आज सरकार है उसे मूर्त रूप देने में शरद पवार की भूमिका उस तरह की रही जो परिवार को साथ लाने में एक वरिष्ठ समझदार बुजुर्ग की होती है। आपस में विश्वास, सहमति, सद्भावना और सहनशीलता बनाये रखने की। अब इसमें अविश्वास कहाँ आता है?
ऐसा कहा जाता है कि अजित पवार के भाजपा के साथ मिलकर सत्ता बनाने के पीछे शरद पवार का हाथ था?
देखिए, अजित पवार के मामले में शरद पवार पर जो आरोप लग रहे हैं, वे एकदम बेबुनियाद हैं। दरअसल, पार्टी के भीतर एक गुट का सवाल था कि शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी सरकार कैसे बन सकती है? उसकी लाइफ कितनी होगी? उधर दूसरा गुट था, जो इस लाइन पर सकारात्मक सोच लिए काम कर रहा था कि भाजपा के साथ सरकार बनायी जा सकती है।
अब अजित पवार कब फडणवीस से मिले.., उनके पास कितने विधायकों का सपोर्ट था? आपस में उनके बीच क्या डील हुई? इस बात की जानकारी पवार साहब को नहीं थी।
आप इस बात पर गौर करिए कि शरद पवार ने उसी शाम को ऐलान कर दिया था कि महा विकास आघाड़ी के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे होंगे। इस ऐलान से आप काफी कुछ समझ सकते हैं। यह बातें सिर्फ उन्हें बदनाम करने के लिए की जा रही हैं।
शरद पवार पर उनके विरोधी आरोप लगाते हैं कि वह राजनीति के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी अपना वर्चस्व चाहते हैं। यह आरोप कितना सही है?
दरअसल, बात वर्चस्व बनाये रखने की नहीं है, बल्कि जानकारी हासिल करने की है; दिलचस्पी लेने की है। श्रद्धा व समझने की है। और मुझे लगता है कि हर राजनीतिक को राजनीति के अलावा अन्य विषयों पर भी शोध करते रहना चाहिए।
आप कह सकते हैं कि वह एक अकेले ऐसे राजनीतिज्ञ हैं, जिन्हें राजनीति के अलावा साहित्य, नाटक, कला, खेल, सामाजिक-गैरसामाजिक आंदोलन, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, नीति शास्त्र की गहरी समझ है। उनके मित्रों में लेखक, विचारक, प्रोफेसर, डॉक्टर, वकील, इंजीनियर समाज के हर वर्ग के लोग जुड़े हुए हैं। युवा वर्ग से जुड़ा रहता है। उन्हें नवीन तकनीकों की जानकारी होती है। वह 80 साल के युवा बुजुर्ग हैं।