जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के सदस्यों के सम्मेलन (कॉप26) के लिए ग्लासगो में एकत्र हुए विश्व नेताओं को पंचामृत की पेशकश की, तो यह स्पष्ट था कि भारत ने अमीर देशों पर हमला किया था। भारत ने वन वर्ल्ड – लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट (पर्यावरण के लिए एक विश्व जीवन शैली) का मूल आधार बनने के लिए एक शब्द लाइफ (जीवन) इस अभियान को दिया। चुनौती से निपटने के लिए पाँच अमृत तत्त्व ‘पंचामृत’ की बात की। इसके तहत साल 2030 तक भारत अपनी ग़ैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावॉट तक ले जाएगा। अक्षय ऊर्जा से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50 फ़ीसदी तक पूरा करेगा। कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को एक अरब टन से कम करेगा। अपनी अर्थ-व्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45 फ़ीसदी से कम करके भारत अन्त में साल 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तैयार है।
भारत का अभियान मानव जाति के ग्रह (पृथ्वी) को बचाने के लिए पर्यावरण के प्रति अपने शोषणकारी दृष्टिकोण को सुधारने का एक अवसर है। जलवायु परिवर्तन के कारण चरम तक ख़राब होते मौसम ने जीवन पर भारी असर डाला है। पूरी दुनिया को उत्सर्जन में कटौती की ज़रूरत है। वर्तमान में विकसित और विकासशील देशों के बीच विश्वास की कमी है। अमीर देश पर्यावरण के क्षरण के लिए ग़रीब देशों को दोषी ठहराने में लगे हैं।
तथ्य यह है कि भारत दुनिया की 17 फ़ीसदी आबादी वाला देश होने के बावजूद कार्बन का केवल पाँच फ़ीसदी हिस्सा ही उत्सर्जित करता है। जबकि चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश पूरी दुनिया से उत्सर्जित 36.44 गीगा टन कार्बन डाईऑक्साइड का 50 फ़ीसदी से अधिक हिस्से का उत्सर्जन करते हैं। हैरानी की बात है कि वैश्विक उत्सर्जन में अकेले चीन का योगदान 25 फ़ीसदी से अधिक है। वहीं भारत के मुक़ाबले केवल एक-चौथाई आबादी वाला अमेरिका भी भारत के मुक़ाबले दोगुने से अधिक कार्बन का उत्सर्जन कर रहा है। मूल रूप से सभी मनुष्य समान हैं और यह प्रति व्यक्ति कार्बन फुटप्रिंट है, जिसका अर्थ होना चाहिए कि अमीर देशों ने समान शर्तों पर ज़िम्मेदारी साझा करने के लिए अपने कार्बन उत्सर्जन में आनुपातिक रूप से कटौती दिखायी होगी। अमीर देश समाधान के साथ सामने नहीं आने में देरी बढ़ते तापमान की क़ीमत पर कर रहे हैं और केवल ग़रीब देशों को दोष दे रहे हैं। शुद्ध शून्य उत्सर्जन का रोडमैप नयी अर्थ-व्यवस्था और उदार वित्त पोषण के लिए समावेशी हरित प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण है।
संयुक्त राष्ट्र के एक निकाय जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल ने भी अपनी रिपोर्ट में तर्क देते हुए कहा है कि भूमंडलीय ऊष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) को सतत् विकास, ग़रीबी उन्मूलन और असमानताओं को कम करने की अधिक क्षमता के साथ काम करना होगा। इससे पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस कार्बन उत्सर्जन के बजाय 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित होगा और ऐसा करने से पर्यावरण के कई पहलुओं को हासिल करना काफ़ी आसान हो जाएगा।
आईपीसीसी रिपोर्ट में भी ऊर्जा के लिए कोयला, गैस और तेल में भारी कमी, बिजली उत्पादन की कार्बन तीव्रता को कम करने और नवीकरणीय स्रोतों की हिस्सेदारी को लगभग 70 फ़ीसदी तक बढ़ाने का सुझाव दिया गया है। यह ख़ुशी की बात है कि दुनिया के दो सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले देशों- अमेरिका और चीन ने अब पृथ्वी के पर्यावरण को और ख़राब होने से बचाने के लिए उन्नत जलवायु क्रियाओं के लिए एक कार्य समूह बनाकर मिलकर काम करने की घोषणा की है। सहयोग का यह सिद्धांत मानवता को आशा की एक किरण दिखाता है।