नायब तहसीलदार परीक्षा में धाँधली के बाद पहले से बदनाम पब्लिक सर्विस कमीशन पर फिर उठीं उँगलियाँ
पंजाब में नायब तहसीलदार परीक्षा (भर्ती) धोखाधड़ी से राज्य की आम आदमी पार्टी की सरकार और पब्लिक सर्विस कमीशन (पीपीएससी) की साख को बट्टा लगा है। नक़ल गिरोह से 11 ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्यूनिकेशन (जीएसएम) सात मिनी ब्लूटूथ ईयरप्लग, 12 मोबाइल, एक लैपटॉप और दो पेन ड्राइव मिली हैं, जिनसे की बरामदगी से जाँच दल को नक़ल गिरोह के सुराग़ ढूँढने हैं। इन्हीं के माध्यम से गिरोह ने न जाने कितने अभ्यर्थियों की मदद की, जिनमें से काफ़ी मैरिट सूची में हो सकते हैं। अभी तीन ऐसे सफल अभ्यर्थियों को पकड़ा जा चुका है। उन्होंने माना है कि इसके लिए उन्होंने मोटी रक़म अदा की है।
पटियाला क्षेत्र के जिन परीक्षा केंद्रों में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर सामूहिक नक़ल हुई, वहाँ जैमर आदि की व्यवस्था नहीं थी। यह ज़िम्मेदारी पीपीएससी की है और इस पर निगरानी रखना सरकार के उच्चाधिकारियों की ड्यूटी है। इसे चूक नहीं, बल्कि घोर लापरवाही माना जाएगा। जब नक़ल रहित सफलतापूर्वक परीक्षा कराने पर मुख्यमंत्री सार्वजनिक तौर पर इसका श्रेय लेते हैं, तो अब अपयश के लिए कोई ज़िम्मेदारी लेने को क्यों तैयार नहीं है?
कड़ी मेहनत और ईमानदारी से परीक्षा देकर सफल होने वालों को मामले का ख़ुलासा होने के बाद धक्का लगा है। उन्हें डर है कि कहीं सरकार परीक्षा को रद्द ही न कर दे। उनकी माँग है कि पूरी जाँच के बाद नक़ल से मैरिट में आये अभ्यथियों को निकालकर फिर से वरीयता सूची तैयार की जाए। व्यवस्था में किसी ख़ामी के लिए वे दोषी नहीं है। परीक्षा के लिए उन्होंने दिन रात कड़ी मेहनत कर सफलता हासिल की है। अभी इस बाबत सरकारी तौर पर कोई फ़ैसला नहीं लिया गया है। असफल अभ्यर्थियों की माँग परीक्षा फिर से कराने और सफल की माँग रद्द करने की रहेगी।
किसी को एक मौक़ा चाहिए और किसी को हाथ आयी नौकरी जाने का डर सता रहा है। पुलिस ने इस मामले में राज्य सरकार और पीपीएससी को शुरुआती जाँच के बाद क्लीन चिट देने की कोशिश की, जो तर्कसंगत नहीं। कैसे शुरुआती जाँच में ही पुलिस ऐसा कर सकती है। जिस तरह से बड़े स्तर पर इस परीक्षा में अत्याधुनिक तकनीक और लाखों-करोड़ों के वारे-न्यारे हुए हैं वह व्यवस्था पर सवाल खड़े करने वाला है। सरकार और आयोग कठघरे में है और उनकी जवाबदेही भी है, जिससे दोनों ही बच रहे हैं। पीपीएससी की ओर से इस मामले में किसी की संलिप्तता से इनकार किया गया है।
विपक्ष ने नक़ल के इस मामले की न्यायिक या केंद्रीय एजेंसी से कराने की माँग की है। उनकी राय में बड़े स्तर पर हुई गड़बड़ी में किसी का संरक्षण ज़रूर है और इसका ख़ुलासा पुलिस की जाँच में सम्भव नहीं है। विपक्ष ने यही नहीं आयोग की पूर्व परीक्षाओं की भी विस्तृत जाँच की माँग की है। पुलिस मामले की जाँच कर रही है। अभी तक तीन चयनित अभ्यर्थियों के अलावा नक़ल गिरोह के पाँच लोगों को गिरफ़्तार किया है। नक़ल गिरोह की मदद से रैंक हासिल करने वालों की और किसी कारणवश असफल रहने वालों की भी गिरफ़्तारी होगी।
नक़ल गिरोह के बाक़ायदा कंट्रोल सेंटर हैं और वहाँ तैनात विषय विशेषज्ञ प्रश्नों के उत्तर तैयार करते हैं। एक ऐसे ही सेंटर के जींद (हरियाणा) में पाया गया। गिरोह के पाँच सदस्यों में नवराज चौधरी, गुरप्रीत सिंह और जतिंदर सिंह पंजाब के हैं, जबकि सोनू कुमार और वरिंदरजीत सिंह हरियाणा हैं। इस काम को अंजाम दोनों राज्यों के कुछ लोगों ने सयुक्त तौर पर दिया है। गिरफ़्तार नक़ल गिरोह के सदस्यों के मोबाइल डेटा से सब कुछ हासिल किया जा सकता है। सम्पर्क साधने, लेन-देने की बात करने, पैसे अग्रिम तौर पर लेने और अन्य बहुत-से काम में कुछ दलालों की भूमिका भी हो सकती है।
नक़ल गिरोह के लोग बाक़ायदा तौर पर ऐसे अभ्यर्थियों के आनलाइन फार्म भराकर उन्हें मदद के लिए भेजते हैं। ये लोग आधुनिक डिवाइस (वायरलैस कैमरे) से पेपर की फोटो कंट्रोल सेंटर भेजने का काम करते हैं। आगे का ज़िम्मा केंद्र और वहा तैनात लोगों का होता है। वहाँ हर विषय के विशेषज्ञ उनके हाथों हाथ जवाब तैयार करते और फिर अपने लोगों को मिनी जीएसएस या ब्लूटूथ के ज़रिये भिजवा दिये जाते हैं। बहु विकल्प पेपर के जवाब काफ़ी हद तक सही होते थे। यही वजह है कि नक़ल गिरोह के लोग शर्तिया नौकरी का वादा कर मोटी राशि वसूल करता था।
शर्तिया चयन के इस खेल में करोड़ों के वारे-न्यारे हुए हैं। बिना मिलीभगत के इतने बड़े काम को अंजाम देना नामुमकिन है। तृतीय श्रेणी के कर्मचारी की परीक्षा में पूरी जाँच के बाद ही अभ्यर्थी को परीक्षा केंद्र में जाने दिया जाता है, जबकि नायब तहसीलदार की परीक्षा में अभ्यर्थी बिना ऐसी ठोस जाँच के परीक्षा केंद्र में गये और नक़ल गिरोह की मदद से सफल भी हुए। यह संख्या कितनी है अभी इसका ख़ुलासा नहीं हुआ है; लेकिन एक के बाद एक कडिय़ां जुड़ते जाने के बाद एक दर्ज़न के आसपास हो सकती है। परीक्षा में पेपर लीक, नक़ल और अन्य अनैतिक तरी$के न केवल बोर्ड या आयोग, बल्कि सरकार की सीधी ज़िम्मेदारी होती है। सितंबर में घोषित नतीजों में चुने गये अभ्यर्थियों में ऐसे नाम प्रमुख रहे जिनको मैरिट में काफ़ी ऊपर स्थान मिला है। सूची में दूसरी रैंक पर बलराज चौधरी, 12वीं रैंक पर लवप्रीत सिंह और 21वीं रैंक पर आया वरिंदरपाल चौधरी पुलिस की गिरफ़्त में है। बलराज पीपीएसी की दो परीक्षाओं में असफल रहा है; लेकिन इस बार मैरिट में उसे दूसरा स्थान मिला है। मैरिट में आये लोगों को दस्तावेज़ आदि पीपीएससी में जमा कराने थे। इस प्रक्रिया की तिथि भी घोषित हो चुकी थी।
अच्छी बात यह रही कि नियुक्ति से पहले पुलिस के पास शिकायत पहुँच गयी और जाँच के बाद इसे सही पाया गया। पटियाला पुलिस ने विभिन्न धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कर कार्रवाई को अंजाम दिया। भर्ती पंजाब में हो रही थी; लेकिन इसे अंजाम देने में हरियाणा के कुछ लोगों की संलिप्तता है। राज्य की कई परीक्षाओं में यहाँ के गिरोह ऐसे काम को अंजाम दे चुके हैं। नौकरी भर्ती के समय ऐसे गिरोह सक्रिय हो जाते हैं। दूसरे की जगह पेपर देने, पेपर लीक करने और अत्याधुनिक तकनीक के इस्तेमाल करने में कुख़्यात है। आप सरकार के दौरान हुए इस भर्ती घोटाले से उसकी प्रतिष्ठा गिरी है। अगर न्यायिक आयोग या किसी केंद्रीय एजेंसी से जाँच की माँग ज़ोर पकड़े, तो पीछे नहीं हटना चाहिए; क्योंकि संरक्षण के आरोप तो लग ही रहे हैं।
भर्ती का पैमाना
वर्ष 2022 में नायब तहसीलदार के 78 पदों के लिए आवेदन माँगे गये थे। 300 नंबर के पेपर में 120 प्रश्न दिये गये। हर प्रश्न 2.5 अंक का था। सभी प्रश्न बहुविकल्प के थे। इनमें सामान्य ज्ञान के 80 प्रश्न (200 अंक) और मेंटल एबिलिटी-रीजनिंग के 40 प्रश्न (100 अंक) थे। बेरोज़गारी के इस दौर में सम्मानजनक पद के लिए काफ़ी उत्सुकता रही। अधिसूचना जारी होने, फार्म जमा कराने, परीक्षा होने और मैरिट सूची जारी होने में क़रीब आठ माह से ज़्यादा लग गया। मामला उजागर होने के बाद कड़ी मेहनत के बूते मैरिट में आये लोग ऊहापोह की स्थिति में आ गये हैं। जब तक जाँच पूरी नहीं होती तब तक कुछ भी कहना मुश्किल है।
बदनाम रहा है पीपीएससी
पंजाब पब्लिक सर्विस कमीशन (पीपीएससी) एक दौर में काफ़ी बदनाम रहा है। वर्ष 2002 में पैसों के बदले नौकरी देने के बड़े मामले में तत्कालीन अध्यक्ष रवि सिद्धू और सचिव की गिरफ़्तारी हुई थी। रवि सिद्धू से काफ़ी बड़ी राशि की बरामदगी भी हुई थी। सतर्कता (विजिलेंस) ब्यूरो ने इस मामले को उजागर किया था। कभी पत्रकार रहे सिद्धू की नियुक्ति राजनीतिक थी, जिसका बेजा इस्तेमाल उस दौरान हुआ था। पटियाला के न्यायालय ने रवि सिद्धू को सात साल की क़ैद और एक करोड़ रुपये के ज़ुर्माने की सज़ा सुनायी थी। उनके अलावा सचिव प्रीतपाल सिंह और बिचौलिये परमजीत सिंह पम्मी को चार-चार साल की क़ैद के अलावा पाँच-पाँच हज़ार रुपये ज़ुर्माने की सज़ा सुनायी थी।
सतर्कता ब्यूरो ने पूरी जाँच के बाद पाया कि रवि सिद्धू के पीपीएसी अध्यक्ष रहते 32 नियुक्तियाँ ग़लत तरीक़े से हुईं। इनमें कुछ पद सिविल सर्विस (न्यायिक) भी थे। इससे उस दौरान पीपीएसी की साख जैसे मिट्टी में मिल गयी थी। उसके बाद से हर सरकार कम-से-कम राजनीतिक नियुक्तियों से परहेज़ करने लगी। तब कहीं जाकर इस संस्था के प्रति लोगों में कुछ भरोसा पैदा हुआ। नायब तहसीलदार भर्ती घोटाले की वजह से फिर भरोसा घटा है।
जाँच माँग की पर दारोमदार
कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल ने नायब तहसील परीक्षा भर्ती घोटाले की जाँच के लिए सीबीआई या न्यायिक आयोग से कराने की माँग की है। मामले की विस्तृत और सही जाँच होती है, तो बड़ा पर्दाफाश हो सकता है। बिना संरक्षण के इतना बड़ा काम नहीं हो सकता है। पुलिस जाँच में ऐसे नामों का ख़ुलासा होना सम्भव नहीं है।