सुप्रीम कोर्ट ने आगे बढ़कर फिर अपने आदेश से पत्रकार प्रशांत कनौजिया को तुरंत जमानत देकर रिहा कराया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ योगी से संबंधितकानूनी तौर पर एक अभद्र वीडियों को प्रशांत ने शेयर कर लिया था। इस पर उत्तरप्रदेश पुलिस ने तत्काल पत्रकार को गिरफ्तार कर लिया ।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हमें फिर भरोसा मिला है कि हम अभी भी ‘बनाना रिपब्लिक’ नहीं है। छुट्टियों के दौरान बैठी वकेशन बेंच में इंदिरा बनर्जी और अजयरस्तोगी ने तो विवादित ट्वीटस को एक पत्रकार की निजी आज़ादी में कटौती करने लायक पर्याप्त नही माना। इस पूरे मामले में पुलिस बड़े लोगों के दबाव में थी। यहबात तथ्य से भी जाहिर है कि कानौजिया को दिल्ली से बाहर उत्तरप्रदेश ले जाया गया वह भी बिना मेजिस्ट्रेट से लिए किसी ट्रांजिट रिमांड के।
पुलिस की कार्रवाई से मीडिया हलकों में खासी धमक रही। एडीटर्स गिलड ऑफ इंडिया ने इसे कानूनों का मनमाना इस्तेमाल करार दिया। देश के विभिन्न प्रेसक्लब, पत्रकारों के मीडिया संगठनों के अपने संगठनों ने इस पुलिसिया कार्रवाई की निंदा की। पूरा मीडिया समुदाय गिरफ्तार पत्रकार के समर्थन में एकजुट हो गया।पुलिस ने उस पर आईटी एक्ट की धारा 67 लगा रखी थी। जिसके तहत किसी अश्लील सामग्री को शेयर करना संगीन अपराध है। इसके लिए रिमांड आदेश चाहिए।
उत्तरप्रदेश सरकार जिस बात पर नाराज़ हुई वह एक वीडियो क्लिप था जिसमें एक महिला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शादी करने की इच्छा जताती दिखती हैं।उत्तरप्रदेश पुलिस ने कानौजिया के खिलाफ वीडियों शेयर करने का आरोप लगा कर उसे गिरफ्तार कर लिया। कनौजिया ने आरोप लगाने वाली कानपुर की इसमहिला का वीडियो शेयर किया था। उसे दिल्ली के मकान से गिरफ्तार किया गया और जेल भेज दिया गया। उस महिला को भी शाम को गिरफ्तार कर लिया गया।पुलिस ने टीवी के दो पत्रकारों को भी हिरासत में लिया जिन्होंने उस विवादित वीडियों को प्रसारित किया।
सोशल मीडिया पोस्ट करने पर किसी पत्रकार को गिरफ्तार करना निश्चय ही प्रेस की आज़ादी पर हमला है। यह न केवल अलोकतांत्रिक है बल्कि यह आज़ादी कोकम करने की साजिश भी है।
एपेक्स कोर्ट में साफतौर पर बताया है कि कहां पुलिस ने गलती की। कनौजिया के खिलाफ पुलिस कानूनी कार्रवाई तो कर सकती थी लेकिन वह किसी के निजीअधिकारों को नहीं छीन सकती। अपने मालिकों को खुश करने के लिए इसने नोएडा के एक निजी टीवी चैनेल के दफ्तर, परिसर को भी सील कर दिया, क्योंकिमुख्यमंत्री आदित्यनाथ को बदनाम करने की यह एक साजिश था। इसलिए संपादक को भी गिरफ्तार किया गया।
कनौजिया के खिलाफ लखनऊ के हजरतगंज पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई। अलग से नोएडा के सिटी मेजिस्ट्रेट शैलेंद्र मिश्र ने एक आदेश जारी करकेनेशन लाइव के परिसरों को दो महीने के लिए सील करा दिया। यह कार्रवाई एक दिन बाद हुई जब चैनेल प्रमुख ईशिका सिंह और संपादक अनुज शुक्ला गिरफ्तारकिए जा चुके थे। मेजिस्ट्रेट के आदेश में कहा गया है कि इस घटना से भविष्य में कानून और व्यवस्था और बिगड़ सकती थी इसलिए तात्कालिक प्रसारण रोकनेे केलिए चैनेल को बंद करना पड़ा। अब सेक्टर 45 का परिसर दो महीने तक बंद रहेगा जिसकी शुरूआत नौ जून को हुई।
अधिकारी यह भी कहते हैं कि चैनेल के पास नेटवर्क 10 का लाइसेंस है, ‘नेशन लाइव’ का नहीं जिसके कारण यह गैर कानूनी प्रसारण हुआ। इन गिरफ्तारियों केसाथ ही विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ता और वकील ज़ोर शोर से यह कहने लगे कि पुलिस कार्रवाई से प्रेस की अभिव्यक्ति की आज़ादी को तोड़ दिया गया है। यहभरोसा कर पाना कठिन है कि जब सोशल मीडिया में ऐसी ऊल-जलूल सामग्री भरी हुई है तो कैसे पुलिस एक या दो लोगों को उस अपराध के तहत, बिना छानबीनके हिरासत में ले लेती है जिसमें छूट पाना आसान नहीं होता।